नमस्कार आज हम हिंदी व्याकरण के महत्वपूर्ण अध्यायों मे से एक समास (Samas) के बारे मे हम अध्ययन करेंगे । इस अध्ययन के दौरान हम समास की परिभाषा, समास के भेद इत्यादि के बारे मे जानेंगे ।
समास शब्द का अर्थ (Samas in Hindi)
समास शब्द का अर्थ :- संक्षिप्त या छोटा करना
समास किसे कहते हैं?
समास शब्द की रचना ‘ सम + आस ‘ से मिलकर हुई है। सम् शब्द का अर्थ ‘ पास ‘ तथा ‘ आस ‘ का अर्थ ‘ आना या बैठना ‘ होता है। अर्थात एक या एक से अधिक पदो के बीच के विभक्ति – चिन्ह योजको या शब्द – शब्दांशौ को हटाकर पास – पास बैठाने को ‘ समास ‘ कहते है।
समास की परिभाषा
परिभाषा- दो या दो से अधिक शब्दों के मेल को समास कहते है।
समास से सम्बंधित अन्य शब्दों के अर्थ
समास में प्राय: दो पद होते है- 1. पूर्व पद 2. उत्तर पद
सामासिक पद
दोनों पदों को मिलाने से बनने वाला पद सामासिक पद कहलाता है।
समास विग्रह
समास विग्रह- दोनों पदों को अलग करने की प्रक्रिया समास विग्रह कहलाती है।
उदाहरण – बैलगाड़ी (समास) बैल से चलने वाली गाड़ी (समास-विग्रह)
समास के भेद अथवा प्रकार
सामान्यता एक प्रश्न उत्पन्न होता है की समास के कितने भेद होते हैं?
समास के छ: भेद होते है:-
अव्ययीभाव समास | तत्पुरुष समास | कर्मधारय समास | द्विगु समास | द्वन्द्व समास | बहुव्रीहि समास |
(प्रथम पद अव्यय हो, एक ही शब्द आये बार-बार) (जिसमें परिवर्तन नही आता हो) (उपसर्ग हो)जैसे – अत्यधिक (अधिक से अधिक) | (दूसरा पद प्रधान व (कारक चिन्हों का लोप)जैसे- राजपुरुष (राजा का पुरुष) तत्पुरुष समास के 6 भेद होते है1.कर्म तत्पुरुष2.करण तत्पुरुष3.संप्रदान तत्पुरुष4.अपादान तत्पुरुष5. संबंध तत्पुरुष6. अधिकरण तत्पुरुष | कर्मधारय समास (उत्तर पद प्रधान हो) (पदो में विशेषण हो) विशेषण=विशेष्य संबंध)जैसे – नीलाकाश(नीला है जो आकाश) | (प्रथम पद संख्या का इत अर्थात् संख्यावाची हो)जैसे – त्रिफला(तीन फलों का समूह) | दोनों पद प्रधान हो (छिपा ‘और’ का मझधार)(विलोम/पुरक)जैसे- राधा-कृष्ण (राधा और कृष्ण) | (दोनों पर गौण, तीसरा अर्थ निकले) राक्षस, भगवान के अवतार के नाम के पर्यायवाचीजैसे- त्रिनेत्र(तीन है नेत्र जिसके-शिव) |
नञ तत्पपुरुष |
समास के भेद याद करने का सरल तरीका –
ट्रीक – “अब के तो दे दे”
अ = अव्ययी भाव समास ब = बहुब्रीहि समास
के = कर्मधारय समास तो = तत्पुरुष समास
दे = द्विगु समास दे = द्वन्द्व समास
(1) अव्ययीभाव समास
जिस समास में पूर्व पद प्रधान हो तथा साथ में अव्यय हो अव्ययीभाव समास कहलाता है। जैसे:-
अव्ययीभाव समास की विशेषता :-
- इस समास का पूर्व पद प्रधान होता हैं।
- इस समास का पूर्व पद कोई उपसर्ग नहीं होता हैं।
- अव्ययीभाव समास का पूर्व पद कोई अविकारी शब्द होता हैं।
- इस समास में पदों की पुनरावृति होती हैं या प्रत्यय के रूप में ‘अनुसार, पूर्वक, उपरांत’ जुड़े रहते हैं।
आजीवन | जीवन पर्यंत / जीवन भर |
प्रतिदिन | हर दिन / दिन – दिन, प्रत्येक दिन |
यथाशक्ति | शक्ति के अनुसार |
प्रतिपल | हर पल |
भरपेट | पेट भरकर / पेट भर के |
आजन्म | जन्म पर्यन्त / जन्म से लेकर |
बेखटके | बिना खटके / बिना खटके के |
निर्भय | बिना भय का |
कृपापूर्वक | कृपा से पूर्ण / कृपा के साथ |
श्रद्धापूर्वक | श्रद्धा से पूर्ण |
निःसंकोच | संकोच से रहित |
अनुकूल | कूल के अनुसार |
नियमानुसार | नियम के अनुसार |
रातभर | रात्रि पर्यंत |
दिनभर | दिन पर्यंत |
दिनोदिन | दिन ही दिन में |
रातोंरात | रात ही रात में |
कानोंकान | कान ही कान में |
यथाशक्ति | शक्ति के अनुसार |
आपादमस्तक | पाद से मस्तक तक |
प्रत्युपकार | उपकार के प्रति |
प्रतिबिंब | बिंब के बदले बिंब |
अत्यधिक | अधिक से अधिक |
निर्विकार | विकार रहित |
दर्शनार्थ | दर्शन हेतु |
बीचोबीच | बीच के भी बीच में |
क्षणक्षण | प्रत्येक क्षण |
धीमे-धीमे | धीमे के पश्चात् धीमे |
धुंधला-धुंधला | धुंधले के पश्चात् |
दौड़मदौड़ | दौड़ने के पश्चात् दौड़ना |
कहाकही | कहने के पश्चात् कहना |
सुनासुनी | सुनने के पश्चात् सुनना |
मंद-मंद | बहुत मंद |
यथास्थान | जो स्थान निर्धारित है |
यथास्थिति | जैसे स्थिति है |
प्रतिवर्ष | प्रत्येक वर्ष/वर्ष – वर्ष |
निस्संदेह | संदेह रहित |
निडर | डर रहित |
प्रत्यक्ष | आँखो के सामने |
(2) तत्पुरुष समास
जिस समास में उत्तर पद अर्थात् दूसरा पद प्रधान हो तत्पुरुष समास कहलाता है। इसकी पहचान यह है कि समास विग्रह करने पर विभक्ति चिह्न नजर आते हैं। कर्त्ताता और सम्बोधन को छोड़कर अन्य कारक चिह्नों के आधार पर इन्हें कर्म तत्पुरुष, करण तत्पुरुष आदि कहा जाता है। जैसे-
कर्म तत्पुरुष (‘को’) का लोप
जितेंद्रिय | इंद्रियो को जीतने वाला |
विद्याधर | विद्या को धारण करने वाला |
जेबकतरा | जेब को काटने वाला |
विकासोन्मुख | विकास को उन्मुख |
मनोहर | मन को हरने वाला |
सिद्धिप्राप्त | सिद्धि को प्राप्त |
शरणागत | शरण को गया हुआ |
वयप्राप्त | वय को प्राप्त |
स्वर्गप्राप्त | स्वर्ग को प्राप्त |
कष्टापन्न | कष्ट को आपन्न (प्राप्त) |
गृहागत | गृह को आगत |
विरोध जनक | विरोध को जन्म देना वाला |
मुँहतोड़ | मुँह को तोड़ने वाला |
यश प्राप्त | यश को प्राप्त |
तर्कसंगत | तर्क को संगत |
ख्याति प्राप्त | ख्याति को प्राप्त |
करण तत्पुरुष (से, के द्वारा)के लोप से बनने वाले
हस्तलिखित | हस्त द्वारा लिखित |
बिहारीरचित | बिहारी द्वारा रचित |
मनमाना | मन से माना |
शोकातुर | शोक से आतुर |
करुणापूर्ण | करुणा से पूर्ण |
शोकाकुल | शोक से आकुल |
जलसिक्त | जल से सिक्त |
पददलित | पद से दलित |
देश निकाला | देश से निकाला |
अकालपीड़िता | अकाल से पीड़िता |
हृदयहीन | हृदय से हीन |
प्रेमसिक्त | प्रेम से सिक्त |
रणविमुख | रण से विमुख |
कृष्णार्पण | कृष्ण के लिए अर्पण |
वज्राहत | वज्र से आहत |
भुखमरा | भूख से मरा |
श्रमजीवी | श्रम से जीने वाला |
शोकाकुल | शोक से आकुल |
मेघाच्छन्न | मेघ से आछन्न |
पददलित | पद से दलित |
महिमामंडित | महिमा से मंडित |
वाग्युद्ध | वाक् से युद्ध |
आचारकुशल | आचार से कुशल |
नीतियुक्त | नीति से युक्त |
मुँहमाँगा | मुँह से माँगा |
रेखांकित | रेखा के द्वारा अंकित |
जग-हँसाई | जग के द्वारा हँसी |
लोक सत्य | लोक द्वारा सत्य |
क्रियान्विति | क्रिया के द्वारा अन्विति |
मोहांध | मोह से अंधा |
संप्रदान तत्पुरुष (के लिए) के लोप से बनने वाला
परीक्षाभवन | परीक्षा के लिए भवन |
स्नानघर | स्नान के लिए घर |
छात्रावास | छात्रों के लिए आवास |
मार्गव्यय | मार्ग के लिए व्यय |
युद्धक्षेत्र | युद्ध के लिए क्षेत्र |
भूतबलि | भूतों के लिए बलि |
भण्डारघर | भण्डार के लिए घर |
हवनकुण्ड | हवन के लिए कुण्ड |
पुत्रशोक | पुत्र के लिए शोक |
देशभक्ति | देश के लिए भक्ति |
देवालय | देव के लिए आलय |
बालामृत | बालकों के लिए अमृत |
पाकशाला | पाक के लिए शाला |
सत्याग्रह | सत्य के लिए आग्रह |
यज्ञशाला | यज्ञ के लिए शाला |
रंगमंच | रंग के लिए मंच |
देवार्पण | देव के लिए अर्पण |
विधानसभा | विधान के लिए सभा |
सभामंडप | सभा के लिए मंडप |
रसोई घर | रसोई के लिए घर |
घुड़साल | घोड़ो के लिए साल (भवन) |
हथकड़ी | हाथ के लिए कड़ी |
गुरुदक्षिणा | गुरु के लिए दक्षिणा |
अपादान तत्पुरुष (से) अलग होने के अर्थ में
बंधन मुक्त | बंधन से मुक्त |
पदच्युत | पद से च्युत |
पथभ्रष्ट | पथ से भ्रष्ट |
धर्मविमुख | धर्म से विमुख |
स्थानच्युत | स्थान से च्युत |
ईश्वरविमुख | ईश्वर से विमुख |
शक्तिहीन | शक्ति से हीन |
लक्ष्यभ्रष्ट | लक्ष्य से भ्रष्ट |
सेवानिवृत | सेवा से निवृत |
लाभरहित | लाभ से रहित |
कर्त्तव्यविमुख | कर्त्तव्य से विमुख |
लोकविरूद्ध | लोक से विरूद्ध |
नेत्रहीन | नेत्र से हीन |
स्थानभ्रष्ट | स्थान से भ्रष्ट |
भयभीत | भय से भीत |
ऋणमुक्त | ऋण से मुक्त |
देश निकाला | देश से निकाला हुआ |
संबंध तत्पुरुष (का,के, की) के लोप से बनने वाला
गंगाजल | गंगा का जल |
अन्नदान | अन्न का दान |
राजभवन | राजा का भवन |
विद्यासागर | विद्या का सागर |
गुरुसेवा | गुरु की सेवा |
राजदरबार | राजा का दरबार |
मृगछौना | मृग का छौना |
चरित्रचित्रण | चरित्र का चित्रण |
चन्द्रोदय | चन्द्र का उदय |
राष्ट्रपति | राष्ट्र का पति |
गृहस्वामी | गृह का स्वामी |
कूपजल | कूप का जल |
लखपति | लाखों का पति |
राजकन्या | राजा की कन्या |
पितृभक्त | पिता का भक्त |
राजकुमार | राजा का कुमार |
सेनापति | सेना का पति |
गोदान | गो का दान |
प्रेमोपासक | प्रेम का उपासक |
रामोपासक | राम का उपासक |
अनारदाना | अनार का दाना |
विभाध्यक्ष | विभाग का अध्यक्ष |
राजपुरूष | राजा का पुरूष |
घुड़दौड़ | घोड़ों की दौड़ |
पर्णशाला | पर्णों की शाला |
सूर्योदय | सूर्य का उदय |
जगन्नाथ | जगत् का नाथ |
चंद्रोदय | चंद्र का उदय |
मतदाता | मत का दाता |
मंत्रिपरिषद् | मंत्रियों की परिषद |
सत्रावसान | सत्र का अवसान |
अछूतोद्धार | अछूतों का उद्धार |
मनः स्थिति | मन की स्थिति |
प्राणाहुति | प्राणों की आहुती |
मनोविकार | मन का विकार |
रामायण | राम का अयन |
पुस्तकालय | पुस्तक का आलय |
चर्मरोग | चर्म का रोग |
रंगभेद | रंग का भेद |
रूपांतर | रूप का अंतर |
पथपरिवहन | पथ का परिवहन |
मंत्रिपरिषद् | मत्रियों की परिषद् |
अधिकरण तत्पुरुष (में,पर) का लोप
वीरश्रेष्ठ | वीरों में श्रेष्ठ |
जलमग्न | जल में मग्न |
सिंहासनारुढ़ | सिंहासन पर आरुढ़ |
शरणागत | शरण में आगत |
विश्वविख्यात | विश्व में विख्यात |
क्षत्रियाधम | क्षत्रियों में अधम |
व्यवहारकुशल | व्यवहार में कुशल |
नरोत्तम | नरों में उत्तम |
क्षत्रियाधम | क्षत्रियों में अधम |
आत्मनिर्भर | आत्म पर निर्भर |
शास्त्रप्रवीण | शास्त्रों में प्रवीण |
गृहप्रवेश | गृह में प्रवेश |
ग्रामवास | ग्राम में वास |
नराधम | नरों में अधम |
कार्यकुशल | कार्य में कुशल |
कविश्रेष्ठ | कवियों में श्रेष्ठ |
मुनिश्रेष्ठ | मुनियों में श्रेष्ठ |
हरफनमौला | हर फन में मौला |
आत्मनिर्भर | आत्म पर निर्भर |
तर्ककुशल | तर्क में कुशल |
लोकप्रिय | लोक में प्रिय |
कर्मनिष्ठ | कर्म में निष्ठ |
वाग्वीर | वाक् (बोलने) में वीर |
सर्वोत्तम | सर्व में उत्तम |
मुनिश्रेष्ठ | मुनियों में श्रेष्ठ |
कविराज | कवियों में राजा |
धर्मरत | धर्म में रत |
कानाफूसी | कान में फुसफुसाहट |
वनवास | वन में वास |
ध्यानमग्न | ध्यान में मग्न |
नञ तत्पुरुष
नञ तत्पुरुष समास के अंतर्गत पहला खंड नकारात्मक अर्थात् न, ना, अ अथवा अन् उपसर्ग होता है। इस समास से अभाव या निषेध का अर्थ प्रतीत होता है।
अयोग्य | न योग्य |
अनाथ | न नाथ |
अपठित | न पठित |
नालायक | न लायक |
अपरिचित | न परिचित |
असभ्य | न सभ्य |
अनादि | न आदि |
असंभव | न संभव |
अनंत | न अंत |
(3) कर्मधारय समास
जिस समास में प्रथम पद या पूर्व पद विशेषण तथा दूसरा पद या उत्तर पद विशेष्य हो उसे कर्मधारय समास कहा जाता है। इस समास में विशेषण विशेष्य या उपमान उपमेय सम्बन्ध पाया जाता है। जैसे-
नीलाकाश | नीला है जो आकाश |
चन्द्रमुख | चन्द्रमा के समान मुख |
महर्षि | महान है जो ऋषि |
महात्मा | महान है जो आत्मा |
सज्जन | सत् है जो जन |
पुरुषरत्न | पुरुष के रूप में है रत्न जो |
महापुरुष | महान है पुरुष जो |
लालकुर्ती | लाल है कुर्ती जो |
चरण-कमल | कमल के समान चरण |
भला-मानुष | भला है मनुष्य जो |
कृष्ण सर्प | कृष्ण (काला) है सर्प जो |
महाराज | महान है राजा जो |
परमानन्द | परम है आनन्द जो |
सुयोग | अच्छा है योग जो |
मुखचंद्र | चंद्रमा के समान मुख है जो |
क्रोधाग्नि | अग्नि के समान है क्रोध जो |
परमाणु | परम है अणु जो |
परमात्मा | परम है आत्मा जो |
भवसागर | भव रूपी सागर |
खाद्यान्न | खाद्य है जो अन्न |
श्वेताम्बर | श्वेत है जो अंबर |
महाजन | महान है जो जन |
महाविद्यालय | महान है जो विद्यालय |
स्त्रीरत्न | स्त्री रूपी रत्न |
कमलनयन | कमल के समान नयन |
नरसिंह | सिंह रूपी नर |
(4) द्विगु समास
जिस समस्त पद का प्रथम पद संख्याचाचक हो और पूरा पद संख्या के समाहार या योग का वर्णन करे।
जिस समास में प्रथम पद या पूर्व पद संख्यावाची हो द्विगु समास कहलाता है। जैसे-
त्रिफला | तीन फलों का समूह |
पंचवटी | पाँच वटों (वृक्षों का समूह) |
नवरत्न | नव रत्नों का समूह |
अठन्नी | आठ आनों का समूह |
त्रिगुण | तीन गुणों का समूह |
चौराहा | चार राहों का समाहार |
शतांश | शत (सौवां) अंश |
पंचप्रमाण | पाँच प्रमाण |
दुधारी | दो धार वाली |
अष्टाध्यायी | अष्ट अध्यायों का समूह |
षट्कोण | षट् (छह) कोणों का समूह |
अष्टभुज | अष्ट (आठ) भुजाओं का समूह |
त्रिदोष | त्रि (तीन) दोषों का समूह |
सप्तर्षि | सात ऋषियों का समाहार |
चतुर्भुज | चार भुजाओं का समूह |
दशाब्दी | दस अब्दों (वर्षों) का समूह |
त्रिवेणी | तीन वेणियों (धाराओं) का समूह |
द्विवेदी | दो वेदों का ज्ञाता |
दुपहिया | दो पहियों (चक्के) वाला |
चतुर्वर्ग | चार वर्गों का समूह |
दुमंजिला | दो मंजिलों का समाहार |
चौपाया | चार पावों का समूह |
सतसई | सात सौ पदों का समूह |
चतुर्वेद | चार वेदों का समाहार |
द्विगु | दो गौओं का समूह |
चौमासा | चार मासों का समाहार |
त्रिलोक | तीन लोकों का समाहार |
पंचतंत्र | पंच तंत्रो का समाहार |
सप्ताह | सात दिनों का समाहार |
शताब्दी | शत शब्दों का समाहार |
दुराहा | दो राहों का समाहार |
(5) द्वन्द्व समास
जिस समास में दोनों पद प्रधान होते हैं उसे द्वन्द्व समास कहते हैं। समास विग्रह करने पर ‘और’ अव्यय नजर आता है।
इसमें दोनों पदों को मिलाते समय मध्य-स्थित योजक लुप्त हो जाता हैं।
सेठ-साहूकार | सेठ और साहूकार |
राधा-कृष्ण | राधा और कृष्ण |
राजा-रानी | राजा और रानी |
दाल-रोटी | दाल और रोटी |
काला-सफेद | काला और सफेद |
भाई-बहिन | भाई और बहन |
नीचे-ऊपर | नीचे और ऊपर |
गौरीशंकर | गौरी और शंकर |
भलाबुरा | भला और बुरा |
धर्माधर्म | धर्म और अधर्म |
आना-जाना | आना और जाना |
बाप-दादा | बाप और दादा |
लोक-परलोक | लोक और परलोक |
दाल-भात | दाल और भात |
धर्माधर्म | धर्म और अधर्म |
शिव-पार्वती | शिव और पार्वती |
देवासुर | देव और असुर |
जल-वायु | जल और वायु |
तन-मन | तन और मन |
हाथी-घोड़े | हाथी और घोड़े |
दिन-रात | दिन और रात |
लाभालाभ | लाभ या अलाभ |
ठण्डा-गरम | ठण्डा या गरम |
धर्माधर्म | धर्म या अधर्म |
सुख-दुख | सुख या दुख |
आय-व्यय | आय या व्यय |
जीवन-मरण | जीवन या मरण |
यश-अपयश | यश या अपयश |
घटते-बढ़ते | घटते या बढ़ते |
राग-द्वेष | राग या द्वेष |
राम-लक्ष्मण | राम और लक्ष्मण |
नहाया-धोया | नहाया, धोया आदि |
बाल-बच्चे | बाल, बच्चे आदि |
अन्नजल | अन्न और जल |
माँ-बाप | माँ और बाप |
हाथ-पाँव | हाथ,पाँव आदि |
फल-फूल | फल, फूल आदि |
थोड़ा-बहुत | थोड़ा या बहुत |
आज-कल | आज या कल |
(6) बहुव्रीहि समास
जहाँ पहला पद और दूसरा पद मिलकर किसी तीसरे पद की और संकेत करते हैं वहाँ बहुव्रीहि समास होता हैं।
जिस समास में अन्य पद प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे-
चक्रधर | चक्र को धारण किये हुए है जो (विष्णु) |
नीलकण्ठ | नीला है कण्ठ जिसका (शिव) |
गजानन | गज के समान आनन (मुख) है जिसका (गणेश) |
दशमुख | दस है मुख जिसके (रावण) |
गिरधर | गिरि (पहाड़) को धारण करने वाला (कृष्ण) |
चतुर्भुज | चार भुजाओं वाला है जो (विष्णु) |
चतुर्मुख | चार है मुख जिसके (ब्रह्मा) |
त्रिनेत् | तीन नेत्रों वाला है जो (शंकर) |
पंचानन | पांच मुखों वाला है जो (शिव) |
षडानन | छः है मुख जिसके (कार्तिकेय) |
त्रिलोचन | तीन है लोचन जिसके वह(शिव) |
पतितपावन | पतितों को पावन करने वाले हैं जो (ईश्वर) |
पवनपुत्र | पवन का पुत्र है जो (हनुमान) |
वीणापाणि | वीणा है हाथ में जिसके (सरस्वती) |
शूलपाणि | शूल है पाणि में जिसके (शिव) |
चन्द्रशेखर | चन्द्रमा है शिखर पर जिसके (शिव) |
दिनकर | दिन को करने वाला है जो(सूर्य) |
गिरधर | गिरि को धारण करने वाला है जो (कृष्ण) |
पद्मासना | पद्म (कमल) है आसन जिनका (लक्ष्मी) |
सूर्यपुत्र | सूर्य का पुत्र है जो (कर्णं) |
कुसुमशर | कुसुम के शर (बाण) हैं जिनके (कामदेव) |
अनंग | अंग नहीं है जिनका वो (कामदेव) |
अष्टाध्यायी | आठ हैं अध्याय जिसके वो (संस्कृत व्याकरण पाणिनी कृत) |
वाग्देवी | वाक् भाषा की देवी है जो (सरस्वती) |
मोदकप्रिय | मोदक (लड्डू) हैं प्रिय जिनको (गणेश) |
मुरारी | मुर (राक्षस विशेष) के अरि (शत्रु) हैं जो (कृष्ण) |
शचीपति | शची के पति हैं जो (इन्द्र) |
मनोज | मन में जन्म लेता है जो (कामदेव) |
रेवतीरमण | रेवती के साथ रमण करते हैं जो (बलराम) |
दशमुख | दश हैं मुख जिसके (रावण) |
वीणापाणि | वीणा है पाणि में जिसके (सरस्वती) |
शूलपणि | शूल है पाणि (हाथ) में जिसके (शिव) |
चतुरानन | चार हैं आनन जिसके (ब्रह्मा) |
सतखण्डा | सात हैं खण्ड जिसमें |
चतुर्भुज | चार है भुजाएँ जिसकी (विष्णु) |
वज्रांग | वज्र के समान है अंग जिसका (हनुमान) |
महेश्वर | महान है ईश्वर जो (शिव) |
वस्त्रकार | वस्त्रों को बनाता है जो (दर्जी) |
घासफूस | घास और फूस के समान है जो (महत्वहीन वस्तुएँ) |
महावीर | महान है वीर जो (हनुमान) |
चंद्रचूड़ | चन्द्र है चूड़ (सिर) पर जिसके (शिव) |
पुंडरीक | कमल के समान है जो (विष्णु) |
वारिज | वारि (जल) से जन्म लेता है जो (कमल) |
वक्रतुंड | तुंड (मुख) है वक्र (टेढ़ा) जिनका (गणेश) |
हलधर | हल को धारण करने वाला है जो (बलराम) |
शचीपति | शची का पति – इंद्र |
देवराज | देवों का राजा – इंद्र |
मनोज | मन में जन्म लेने वाला – कामदेव |
अशुतोष | शीघ्र तुष्ट हो जाते हैं- शिव |
कपीश्वर | वह जो कपियों(वानर) के ईश्वर है- हनुमान |
समास के उदाहरण
सामासिक पद | समास विग्रह | समास का नाम |
परोक्ष | अक्षि के परे/ आँख के पीछे (पीठ पीछे) | अव्ययीभाव |
समक्ष | अक्षि के सामने / आँख के सामने | अव्ययीभाव |
प्रत्यक्ष | अक्षि के आगे / आँखो के सामने | अव्ययीभाव |
भरपेट | पेट भरकर / पेट भर के | अव्ययीभाव |
दिन दिन | दिन के बाद दिन | अव्ययीभाव |
गगनचुम्बी | गगन को चूमने वाला | कर्म तत्पुरुष |
गिरहकट | गिरह को काटने वाला / गाँठ को खोलने(काटने) | कर्म तत्पुरुष |
मुँहतोड़ | मुँह को तोड़ने वाला | कर्म तत्पुरुष |
स्वर्गप्राप्त | स्वर्ग को प्राप्त | कर्म तत्पुरुष |
चिड़ीमार | चिड़ियों को मारने वाला | कर्म तत्पुरुष |
प्रेमसिक्त | प्रेम से सिक्त | करण तत्पुरुष |
मदान्ध | मद से अन्धा / मद से अंध | करण तत्पुरुष |
मुँहमाँगा | मुँह से माँगा | करण तत्पुरुष |
कामचोर | काम से चोर | करण तत्पुरुष |
श्रमजीवी | श्रम से जीने वाला | करण तत्पुरुष |
पददलित | पद से दलित | करण तत्पुरुष |
तुलसीकृत | तुलसी द्वारा कृत | करण तत्पुरुष |
दुखसन्तप्त | दुःख से सन्तप्त | करण तत्पुरुष |
रोगग्रस्त | रोग से ग्रस्त | करण तत्पुरुष |
जलसिक्त | जल से सिक्त | करण तत्पुरुष |
रसभरा | रस से भरा | करण तत्पुरुष |
मदमाता | मद से माता / मद से मत हुआ | करण तत्पुरुष |
शोकाकुल | शोक से आकुल (व्याकुल) | करण तत्पुरुष |
करुणापूर्ण | करुणा से पूर्ण | करण तत्पुरुष |
मेघाच्छन्न | मेघ से आच्छन्न | करण तत्पुरुष |
शोकग्रस्त | शोक से ग्रस्त | करण तत्पुरुष |
रोगपीड़ित | रोग से पीड़ित | करण तत्पुरुष |
शोकार्त | शोक से आर्त | करण तत्पुरुष |
विधानसभा | विधान के लिए सभा | सम्प्रदान तत्पुरुष |
शिवार्पण | शिव के लिए अर्पण | सम्प्रदान तत्पुरुष |
देवालय | देव के लिए आलय | सम्प्रदान तत्पुरुष |
रसोईघर | रसोई के लिए घर | सम्प्रदान तत्पुरुष |
गौशाला | गौ के लिए शाला / गायों के लिए शाला | सम्प्रदान तत्पुरुष |
सभाभवन | सभा के लिए भवन | सम्प्रदान तत्पुरुष |
राहखर्च | राह के लिए खर्च | सम्प्रदान तत्पुरुष |
लोकहितकारी | लोक के लिए हितकारी | सम्प्रदान तत्पुरुष |
ब्राह्मणदेय | ब्राह्मण के लिए देय | सम्प्रदान तत्पुरुष |
मार्गव्यय | मार्ग के लिए व्यय | सम्प्रदान तत्पुरुष |
पुत्रशोक | पुत्र के लिए शोक | सम्प्रदान तत्पुरुष |
स्नानघर | स्नान के लिए घर | सम्प्रदान तत्पुरुष |
देशभक्ति | देश के लिए भक्ति | सम्प्रदान तत्पुरुष |
डाकमहसूल | डाक के लिए महसूल | सम्प्रदान तत्पुरुष |
साधुदक्षिणा | साधु के लिए दक्षिणा | सम्प्रदान तत्पुरुष |
मरणोत्तर | मरण से उत्तर | अपादान तत्पुरुष |
बलहीन | बल से हीन | अपादान तत्पुरुष |
धर्मच्युत | धर्म से च्युत | अपादान तत्पुरुष |
धनहीन | धन से हीन | अपादान तत्पुरुष |
पदच्युत | पद से च्युत | अपादान तत्पुरुष |
पदभ्रष्ट | पद से भ्रष्ट | अपादान तत्पुरुष |
धर्मविमुख | धर्म से विमुख | अपादान तत्पुरुष |
स्थानभ्रष्ट | स्थान से भ्रष्ट | अपादान तत्पुरुष |
व्ययमुक्त | व्यय से मुक्त | अपादान तत्पुरुष |
मायारिक्त | माया से रिक्त | अपादान तत्पुरुष |
प्रेमरिक्त | प्रेम से रिक्त | अपादान तत्पुरुष |
पापमुक्त | पाप से मुक्त | अपादान तत्पुरुष |
पथभ्रष्ट | पथ से भ्रष्ट | अपादान तत्पुरुष |
ऋणमुक्त | ऋण से मुक्त | अपादान तत्पुरुष |
शक्तिहीन | शक्ति से हीन | अपादान तत्पुरुष |
ईश्वरविमुख | ईश्वर से विमुख | अपादान तत्पुरुष |
नेत्रहीन | नेत्र से हीन | अपादान तत्पुरुष |
स्थानच्युत | स्थान से च्युत | अपादान तत्पुरुष |
लोकोत्तर | लोक से उत्तर | अपादान तत्पुरुष |
रामोपासक | राम का उपासक | सम्बन्ध तत्पुरुष |
अन्नदान | अन्न का दान | सम्बन्ध तत्पुरुष |
गंगाजल | गंगा का जल | सम्बन्ध तत्पुरुष |
श्रमदान | श्रम का दान | सम्बन्ध तत्पुरुष |
खरारि | खर का अरि | सम्बन्ध तत्पुरुष |
वीरकन्या | वीर की कन्या | सम्बन्ध तत्पुरुष |
रामायण | राम का अयन | सम्बन्ध तत्पुरुष |
त्रिपुरारि | त्रिपुर का अरि | सम्बन्ध तत्पुरुष |
देवालय | देव का आलय | सम्बन्ध तत्पुरुष |
राजभवन | राजा का भवन | सम्बन्ध तत्पुरुष |
आनन्दाश्रम | आनन्द का आश्रम | सम्बन्ध तत्पुरुष |
प्रेमोपासक | प्रेम का उपासक | सम्बन्ध तत्पुरुष |
हिमालय | हिम का आलय | सम्बन्ध तत्पुरुष |
चन्द्रोदय | चन्द्र का उदय | सम्बन्ध तत्पुरुष |
राष्ट्रपति | राष्ट्र का पति | सम्बन्ध तत्पुरुष |
देशसेवा | देश की सेवा | सम्बन्ध तत्पुरुष |
पुस्तकालय | पुस्तक का आलय | सम्बन्ध तत्पुरुष |
चरित्रचित्रण | चरित्र का चित्रण | सम्बन्ध तत्पुरुष |
राजपुत्र | राजा का पुत्र | सम्बन्ध तत्पुरुष |
राजगृह | राजा का गृह | सम्बन्ध तत्पुरुष |
मृगछौना | मृग का छौना | सम्बन्ध तत्पुरुष |
अमरस | आम का रस | सम्बन्ध तत्पुरुष |
ग्रामोद्धार | ग्राम का उद्धार | सम्बन्ध तत्पुरुष |
राजदरबार | राजा का दरबार | सम्बन्ध तत्पुरुष |
सेनानायक | सेना का नायक | सम्बन्ध तत्पुरुष |
सभापति | सभा का पति | सम्बन्ध तत्पुरुष |
गुरुसेवा | गुरु की सेवा | सम्बन्ध तत्पुरुष |
विद्यासागर | विद्या का सागर | सम्बन्ध तत्पुरुष |
आनन्दमग्न | आनन्द में मग्न | अधिकरण तत्पुरुष |
पुरुषोत्तम | पुरुषों में उत्तम | अधिकरण तत्पुरुष |
नराधम | नरों में अधम (नीच) | अधिकरण तत्पुरुष |
ग्रामवास | ग्राम में वास | अधिकरण तत्पुरुष |
गृहप्रवेश | गृह में प्रवेश | अधिकरण तत्पुरुष |
शास्त्रप्रवीण | शास्त्रों में प्रवीण | अधिकरण तत्पुरुष |
दानवीर | दान में वीर | अधिकरण तत्पुरुष |
आत्मनिर्भर | आत्म पर निर्भर | अधिकरण तत्पुरुष |
कविश्रेष्ठ | कवियों में श्रेष्ठ | अधिकरण तत्पुरुष |
क्षत्रियाधम | क्षत्रियों में अधम(नीच) | अधिकरण तत्पुरुष |
नरोत्तम | नरों में उत्तम | अधिकरण तत्पुरुष |
शरणागत | शरण में आगत | अधिकरण तत्पुरुष |
ध्यानमग्न | ध्यान में मग्न | अधिकरण तत्पुरुष |
मुनिश्रेष्ठ | मुनियों में श्रेष्ठ | अधिकरण तत्पुरुष |
महात्मा | महान आत्मा / महान है जो आत्मा | कर्मधारय |
नवयुवक | नव युवक / नव है जो युवक | कर्मधारय |
महावीर | महान वीर | कर्मधारय |
सद्भावना | सत् भावना | कर्मधारय |
महात्मा | महान आत्मा / महान है जो आत्मा | कर्मधारय |
छुटभैये / छुटभैया | छोटे भैये / छोटा है जो भैया | कर्मधारय |
सज्जन | सत् जन / सत है जो जन | कर्मधारय |
नीलोत्पल | नील उत्पल/ नीला है जो उत्पल (कमल) | कर्मधारय |
महापुरुष | महान् पुरुष | कर्मधारय |
परमेश्वर | परम ईश्वर / परम है जो ईश्वर | कर्मधारय |
सन्मार्ग | सत् मार्ग | कर्मधारय |
विद्युद्वेग | विद्युत के समान वेग | कर्मधारय |
लौहपुरुष | लौह के समान पुरुष | कर्मधारय |
घनश्याम | घन जैसा श्याम / घन के समान श्याम | कर्मधारय |
कुसुमकोमल | कुसुम के समान कोमल | कर्मधारय |
नररत्न | नर रत्न के समान | कर्मधारय |
चरणकमल | चरण कमल के समान / कमल के समान चरण | कर्मधारय |
मुखचन्द्र | मुख ही है चन्द्र / चन्द्र के समान मुख | कर्मधारय |
अधरपल्लव | अधर पल्लव के समान | कर्मधारय |
मुखचन्द्र | मुख चन्द्र के समान/ चन्द्र के समान मुख | कर्मधारय |
पुरुषरत्न | पुरुषों में रत्न / पुरुष रूपी रत्न | कर्मधारय |
स्त्रीरत्न | रत्न रुपी स्त्री / स्त्री रूपी रत्न | कर्मधारय |
पुत्ररत्न | रत्न रुपी पुत्र / पुत्र रूपी रत्न | कर्मधारय |
विद्यारत्न | विद्या ही है रत्न / विद्या रूपी रत्न | कर्मधारय |
चतुर्वेद | चार वेदों का समाहार | द्विगु |
त्रिभुवन | तीन भुवनों (संसार) का समाहार | द्विगु |
पंचपात्र | पाँच पात्रों का समाहार | द्विगु |
त्रिकाल | तीन कालों का समाहार | द्विगु |
सतसई | सात सौ का समाहार | द्विगु |
चवन्नी | चार आनों का समाहार / समूह | द्विगु |
त्रिफला | तीन फलों का समाहार | द्विगु |
नवग्रह | नौ ग्रहों का समाहार | द्विगु |
षड्रस | छह रसों का समाहार | द्विगु |
त्रिगुण | तीन गुणों का समाहार | द्विगु |
त्रिलोक | तीन लोकों का समाहार | द्विगु |
दुधारी | दो धार वाली / दो धारों से युक्त | द्विगु |
दुपहर | दूसरा पहर | द्विगु |
दुसूती | दो सूतों वाला | द्विगु |
पंचप्रमाण | पाँच प्रमाण | द्विगु |
शतांश | शत अंश / शत(सौवां) अंश | द्विगु |
सहस्रानन | सहस्त्र(हजार) है आनन(मुख) जिसके (विष्णु) /शेषनाग | बहुव्रीहि |
प्राप्तोदक | प्राप्त हैं उदक जिसे / प्राप्त हुआ है जल जिसकों | बहुव्रीहि |
सहस्रकर | सहस्र हैं कर जिसके | बहुव्रीहि |
दिगम्बर | दिक् है अम्बर जिसका / दिशाएँ ही है वस्त्र जिनके जैन धर्म का सम्प्रदाय | बहुव्रीहि |
पीताम्बर | पीत है अम्बर जिसका / पीले वस्त्रों वाला (कृष्ण) | बहुव्रीहि |
चतुर्भुज | चार हैं भुजाएँ जिसकी / | बहुव्रीहि |
नेकनाम | नेक है नाम जिसका / नेक (अच्छे) कार्यो से है नाम जिसका- महापुरुष/ प्रसिद्ध व्यक्ति | बहुव्रीहि |
चौलड़ी | चार हैं लड़ियाँ जिसमें | बहुव्रीहि |
सतखण्डा | सात हैं खण्ड जिसमें / बड़ा महल | बहुव्रीहि |
मिठबोला | मीठी है बोली जिसकी / मृदुभाषी | बहुव्रीहि |
चतुरानन | चार हैं आनन जिसके / ब्रह्मा | बहुव्रीहि |
निर्धन | निर्गत है धन जिससे | बहुव्रीहि |
वज्रायुध | वज्र है आयुध जिसका / (इन्द्र) | बहुव्रीहि |
जितेन्द्रिय | जीती हैं इन्द्रियाँ जिसने / निष्काम/वीतराग | बहुव्रीहि |
शान्तिप्रिय | शान्ति है प्रिय जिसे | बहुव्रीहि |
निर्जन | नहीं है जन जहाँ / निकल गए जन जहाँ से | बहुव्रीहि |
वज्रदेह | वज्र है देह जिसकी / वज्र के समान देह(शरीर) है जिनका- हनुमान | बहुव्रीहि |
सचेत | चेत के साथ है जो | बहुव्रीहि |
लम्बोदर | लम्बा है उदर जिनका (गणेश) | बहुव्रीहि |
सदेह | देह के साथ है जो | बहुव्रीहि |
शूलपाणि | शूल है पाणि में जिसके / (शिव) | बहुव्रीहि |
गोपाल | वह, जो गौ का पालन करे / गो का पालन करने वाला (कृष्ण) | बहुव्रीहि |
सबल | बल के साथ है जो | बहुव्रीहि |
वीणापाणि | वीणा है पाणि में जिसके / हाथ (पाणि) में है वीणा जिसके-सरस्वती | बहुव्रीहि |
सपरिवार | परिवार के साथ है जो | बहुव्रीहि |
बेरहम | नहीं है रहम जिसमें | बहुव्रीहि |
दशमुख | दश हैं मुख जिसके (रावण) | बहुव्रीहि |
धर्माधर्म | धर्म और अधर्म | द्वन्द्व |
थोड़ा-बहुत | थोड़ा या बहुत | द्वन्द्व |
भलाबुरा | भला या बुरा | द्वन्द्व |
ठण्डा-गरम | ठण्डा या गरम | द्वन्द्व |
गौरीशंकर | गौरी और शंकर | द्वन्द्व |
राधाकृष्ण | राधा और कृष्ण | द्वन्द्व |
लाभालाभ | लाभ या अलाभ | द्वन्द्व |
सीताराम | सीता और राम | द्वन्द्व |
भला-बुरा | भला और बुरा | द्वन्द्व |
लेनदेन | लेन और देन | द्वन्द्व |
पाप-पुण्य | पाप या पुण्य | द्वन्द्व |
धनुर्बाण | धनुष और बाण | द्वन्द्व |
पापपुण्य | पाप और पुण्य | द्वन्द्व |
दालभात | दाल और भात | द्वन्द्व |
शिवपार्वती | शिव और पार्वती | द्वन्द्व |
देशविदेश | देश और विदेश | द्वन्द्व |
अन्य अध्ययन सामग्री
संज्ञा | कारक |
सर्वनाम | वाक्य विचार |
विशेषण | वाच्य |
क्रिया | काल |
शब्द | अविकारी शब्द |
क्रिया विशेषण | मुहावरे |
संधि | लोकोक्तियाँ |
लिंग | वर्ण विचार |
वचन | विराम चिन्ह |
समास | वाक्यांश के लिए एक शब्द |
उपसर्ग | पारिभाषिक शब्दावली |
प्रत्यय | कारक चिन्ह |
अनेकार्थी शब्द | विलोम शब्द |
तत्सम शब्द | तद्भव शब्द |
एकार्थक शब्द | अन्य सभी लेख |
Faq
समास क्या है समास के भेद?
समास शब्द की रचना ‘ सम + आस ‘ से मिलकर हुई है। सम् शब्द का अर्थ ‘ पास ‘ तथा ‘ आस ‘ का अर्थ ‘ आना या बैठना ‘ होता है। अर्थात एक या एक से अधिक पदो के बीच के विभक्ति – चिन्ह योजको या शब्द – शब्दांशौ को हटाकर पास – पास बैठाने को ‘ समास ‘ कहते है।
समास कैसे बनता है?
समास-प्रक्रिया में जिन दो शब्दों का मेल होता है, उनके अर्थ परस्पर भिन्न होते हैं तथा इन दोनों के योग से जो एक नया शब्द बनाते हैं; उसका अर्थ इन दोनों से अलग होता है।
Q.1
‘जेबकतरा’ शब्द में कौन-सा समास है?
1 कर्मधारय समास
2 अपादान तत्पुरुष समास
3 संप्रदान तत्पुरुष समास
4 कर्म तत्पुरुष समास
Q.2 ‘अल्पबचत’ में कौन-सा समास है?
1 अव्ययीभाव समास
2 कर्मधारय समास
3 तत्पुरुष समास
4 द्वन्द्व समास
Solution
अल्पबचत = अल्प है जिसकी बचत (कर्मधारय समास) कर्मधारय समास:- ‘दूसरा पद प्रधान’ इस समास में विशेषण और विशेष्य अर्थात् उपमान और उपमेय का अर्थ बोध होता है; जैसे:- सन्मार्ग = सत् (अच्छा) है जो मार्ग, बदबू = बद(बुरी) है जो बू आदि।
Q.3
‘तीन माह का समाहार’ समास-विग्रह का समास रूप होगा-
1
तिरंगा
2
तिमाही
3
तिकोना
4
त्रिवेदी
Solution
-तीन माह का समाहार समास-विग्रह का समास रूप = तिमाही (द्विगु समास)
द्विगु समास:- (i) द्विगु समास ने प्राय: पूर्व पद संख्या वाचक होता है तो कभी – कभी परपद भी संख्यावाचक देखा जा सकता है।
(ii) द्विगु समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह का बोध कराती है अन्य अर्थ का नहीं, जैसे कि बहुव्रीहि समास में देखा जाता है। जैसे:- चौपाया (चार पाँव वाला)
विशेष:- एक से लेकर दस और दस से भाज्य संख्याओं में द्विगु समास आता है।
Q.4
निम्नलिखित में कौन-सा विकल्प सुमेलित नहीं है?
1
तिरंगा = तीन रंगों का समूह
2
त्रिफला = तीन फलों का मिश्रण
3
षण्मुख = छह मुखों का समूह
4
चौपाया = चार राहों का समूह
Solution
‘चौपाया’ = चार पैरों का समूह (द्विगु समास) चौराहा = चार राहों का समूह द्विगु समास:- (i) द्विगु समास ने प्राय: पूर्व पद संख्या वाचक होता है तो कभी – कभी परपद भी संख्यावाचक देखा जा सकता है।
(ii) द्विगु समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह का बोध कराती है अन्य अर्थ का नहीं, जैसे कि बहुव्रीहि समास में देखा जाता है।
जैसे:- अठन्नी = आठ आनों का समूह
विशेष:- एक से लेकर दस और दस से भाज्य संख्याओं में द्विगु।
Q.5
निम्नलिखित में कौन-सा विकल्प सुमेलित नहीं है?
1
तिरंगा = तीन रंगों का समूह
2
त्रिफला = तीन फलों का मिश्रण
3
षण्मुख = छह मुखों का समूह
4
चौपाया = चार राहों का समूह
Solution
‘चौपाया’ = चार पैरों का समूह (द्विगु समास) चौराहा = चार राहों का समूह द्विगु समास:- (i) द्विगु समास ने प्राय: पूर्व पद संख्या वाचक होता है तो कभी – कभी परपद भी संख्यावाचक देखा जा सकता है।
(ii) द्विगु समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह का बोध कराती है अन्य अर्थ का नहीं, जैसे कि बहुव्रीहि समास में देखा जाता है।
जैसे:- अठन्नी = आठ आनों का समूह
विशेष:- एक से लेकर दस और दस से भाज्य संख्याओं में द्विगु।
Q.6
निम्नलिखित में कौन-सा विकल्प सुमेलित है?
1
नवरस = नौ रसों का समूह
2
सतसई = सात सौ का समूह
3
शताब्दी = 10 वर्षों का समूह
4
अठवारा = आठ बाजारों का समूह
Solution
नवरस = नौ रसों का समूह (द्विगु समास) द्विगु समास:-
(i) द्विगु समास ने प्राय: पूर्व पद संख्या वाचक होता है तो कभी – कभी परपद भी संख्यावाचक देखा जा सकता है।
(ii) द्विगु समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह का बोध कराती है अन्य अर्थ का नहीं, जैसे कि बहुव्रीहि समास में देखा जाता है।
जैसे:- नवरात्र = नौ विशेष रात्रियों का समूह।
- सतसई = सात सौ दोहों का समूह
- शताब्दी = सौ वर्षों का समूह
- अठवाश = आठवें वार को लगने वाला बाजार दशाब्दी = 10 वर्षों का समूह
(तीनों शब्द द्विगु समास के उदाहरण हैं।)
विशेष:- एक से लेकर दस और दस से भाज्य संख्याओं में द्विगु समास होगा।
Q.7
निम्नलिखित में से कौन-सा विकल्प सुमेलित नहीं है?
1
न बहुत ठंडा न बहुत गर्म – समशीतोष्ण
2
जिसने अभी-अभी बच्चे को जन्म दिया है – सद्यप्रसता
3
सभी देशों/स्थानों से संबंध रखने वाला – समदर्शी
4
आकार से युक्त (मूर्तिमान) – साकार
Solution
- सभी देशों/स्थानों से सम्बन्ध रखने वाला – सार्वदेशिक
- समदर्शी – सब को समान भाव से देखने वाला।
- शेष विकल्प 1, 2 व 4 तीनों सही है।
Q.8
‘मनोज’ शब्द में कौन-सा समास है?
1
कर्मधारय समास
2
बहुव्रीहि समास
3
तत्पुरुष समास
4
द्वंद्व समास
Solution
मनोज = मन में जन्म लेने वाला = कामदेव (बहुव्रीहि समास)/बहुव्रीहि समास – अन्य पद प्रधान बहुव्रीहि समास का कोई भी पद प्रधान नहीं होता बल्कि दोनों पद मिलकर किसी अन्य पद की प्रधानता का बोध कराते हैं। जैसे – कपीश्वर, रघुपति आदि।
Q.9
अव्ययीभाव समास के बारे में सत्य कथन है-
1
प्रथम पद अव्यय
2
प्रथम पद प्रधान
3
उपसर्ग युक्त व शब्दों की पुनरावृत्ति
4
उपर्युक्त सभी
Solution
अव्ययीभाव समास:-
(i) पहला पद प्रधान होता है।
(ii) पहला पद या पूरा पद अव्यय होता है।
(वे शब्द जो लिंग, वचन, कारक के अनुसार नहीं बदलते, उन्हें अव्यय कहते हैं।)
(iii) यदि एक शब्द की पुनरावृत्ति हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यय की तरह प्रयुक्त हो, वहाँ भी अव्ययी भाव समास होता है।
(iv) संस्कृत के उपसर्ग युक्त पद भी अव्ययीभाव समास होते हैं।
अव्ययीभाव के बारे में ये सभी कथन सत्य है।
जैसे – यथाक्रम – क्रम के अनुसार
उपसर्ग = यथा
मूल शब्द = क्रम
Q.10
पद की प्रधानता के आधार पर समास के भेद हैं-
1
5
2
3
3
4
4
6
Solution
- पद की प्रधानता के आधार पर समास के 4 भेद हैं।
- पहला पद प्रधान – अव्ययीभाव समास
- दूसरा पद प्रधान – द्विगु, तत्पुरुष, कर्मधारय समास
- दोनों पद प्रधान – द्वंद्व समास
- अन्य पद प्रधान – बहुव्रीहि समास
Q.11
‘सपरिवार’ का सही समास-विग्रह है-
1
परिवार के साथ
2
परिवार ही परिवार
3
संयुक्त परिवार
4
केवल परिवार
Solution
- सपरिवार का सही समास-विग्रह है :- परिवार के साथ (अव्ययीभाव समास)
अव्ययीभाव समास :-
(i) पहला पद प्रधान होता है।
(ii) पहला पद या पूरा पद अव्यय होता है।
(वे शब्द जो लिंग, वचन, कारक के अनुसार नहीं बदलते, उन्हें ‘अव्यय’ कहते हैं।)
(iii) यदि एक शब्द की पुनरावृत्ति हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यय की तरह प्रयुक्त हो, वहाँ भी अव्ययी समास होता है।
(iv) संस्कृत के उपसर्ग युक्त पद भी अव्ययीभाव समास होते हैं।
जैसे – यथायोग्य, धड़ाधड़ आदि।
Q.12
‘दिन के बाद दिन’ समास-विग्रह का समास रूप होगा-
1
प्रत्येक दिन
2
दिनों-दिन
3
दिन ही दिन
4
केवल दिन
Q.13
‘आप – बीती’ का समास विग्रह है-
1
अपने आप करना
2
आप पर बीती
3
आपका दु:ख
4
केवल अपना सोचना
Solution
- आप – बीती- आप पर बीती (अधिकरण तत्पुरुष समास)।
अधिकरण तत्पुरुष समास- अधिकरण कारक चिह्न- ‘में, पर’ के लोप से बनने वाले समास; जैसे- कविराज= कवियों में राजा।
Q.14
किस विकल्प में कर्मधारय समास नहीं है-
1
महापुरुष
2
अधमरा
3
महात्मा
4
वनवास
Q.15
निम्नलिखित में से द्विगु समास का उदाहरण है-
1
पंचानन
2
त्रिनेत्र
3
पंचामृत
4
षडानन