नमस्कार आज हम भूगोल के बारे में अध्ययन कर रहे है और इस बार हम एक महत्वूर्ण अध्याय पर चर्चा करेंगे जिसका नाम है भूकंप (Bhukamp). इस अध्ययन के दौरान हम भूकम्प किसे कहते हैं? भूकम्प के प्रकार, भूकम्प के कारण, भूकम्प के प्रभाव, भूकम्प के उपाय Bhukamp kise kahate Hain इत्यादि के बारे में चर्चा करेंगे।
वैसे तो यह टॉपिक परीक्षा की दिर्ष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है इसलिए इसके बारे में हम बहुत गहन अध्ययन करेंगे। साथ यहाँ पर आपको ज्वालामुखी के बारे में भी बताया गया है ताकि आसानी और विस्तार पूर्वक अध्ययन कर सके।
भूकम्प किसे कहते हैं?
पृथ्वी के भूपटल में जब अंतर्जात व बहिर्जात बल के कारण आकस्मिक कंपन उत्पन्न होता है तो उसे भूकंप कहते हैं।
भूकंप की उत्पत्ति के कारण
धरातल की संतुलन अवस्था में असंतुलन विभिन्न कारकों की वजह से होता है। भूकंप उत्पत्ति के निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं‒
1. भ्रंशन‒
अंतर्जात/बहिर्जात बल के कारण धरातलीय चट्टानों पर दबाव पड़ता है परिणामस्वरूप उनमें भ्रंशन पड़ने से भूकंप आता है।
2. ज्वालामुखी क्रिया‒
ज्वालामुखी उद̖गार के समय पृथ्वी के आंतरिक भाग से गैस तीव्र वेग से बाहर निकलती है जिससे पृथ्वी के धरातल में कंपन पैदा होने से भूकंप आता है।
3. जलीय भार‒
धरातल पर अत्यधिक मात्रा में जल का भार होने से पृथ्वी के आंतरिक भाग में चट्टानों पर दबाव पड़ता है व चट्टानें अपने स्थान से हटने लगती हैं परिणामस्वरूप भूकंप आता है। उदाहरण – कोयना जलाशय के कारण (महाराष्ट्र में)।
4. भूपटल का संकुचन‒
पृथ्वी के तापक्रम में निरंतर परिवर्तन व तापमान में ह्रास के कारण भूपटल संकुचित होने लगता है, इससे भूकंप आते हैं।
5. समस्थिति समायोजन‒
नदियों द्वारा समुद्र में निक्षेपित पदार्थों के कारण समुद्री क्षेत्रों में अत्यधिक भार के कारण असंतुलन हो जाता है व भूकंप की उत्पत्ति का कारक बनता है।
6. प्लेट विवर्तनिकी‒
पृथ्वी के आंतरिक भाग में प्लेटें निरंतर गतिमान रहती हैं जिससे गतिशील क्रियाओं के दौरान पृथ्वी के धरातल में हलचल होने से भूकंप आते हैं।
7. मानवीय कारण‒
जैसे‒ परमाणु विस्फोट, गहरे छिद्रण इत्यादि से भी सीमित प्रभाव वाले भूकंप उत्पन्न होते हैं।
भूकंप के प्रकार
सामान्य विशेषताओं के आधार पर भूकम्पों को निम्नलिखित प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है‒
भूकंप के प्रकार | ||
कृत्रिम भूकंप | प्राकृतिक भूकंप | स्थिति के अनुसार भूकंप |
ज्वालामुखी विवर्तनिक संतुलन मूलक प्लूटोनिक | स्थलीय सामुद्रिक |
कृत्रिम भूकंप‒
मानवीय क्रियाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले भूकंप कृत्रिम भूकंप होते हैं। इनकी तीव्रता बहुत कम होने के कारण प्रभाव सीमित होता है जैसे‒ भूमिगत आण्विक परीक्षण।
प्राकृतिक भूकंप‒
ये निम्न प्रकार के होते हैं‒
1. ज्वालामुखी भूकंप
2. विवर्तनिक भूकंप
3. संतुलनमूलक भूकंप
4. प्लूटोनिक भूकंप
1. ज्वालामुखी भूकंप‒
ज्वालामुखी क्रिया से उत्पन्न भूकंप इसके अंतर्गत आते हैं जैसे‒ विसूवियस, एटना के उद̖गार के समय उत्पन्न भूकंप।
2. विवर्तनिक भूकंप‒
ये भूकंप धरातल के निकट उत्पन्न होते हैं। जब भूगर्भ की विवर्तनिक हलचलों से धरातल में कंपन होता है उसे विवर्तनिक भूकंप कहते हैं।
3. संतुलन मूलक भूकंप‒
ये प्राय: वहाँ आते हैं जहाँ धरातल अस्थिर होता है जिससे भूपटल की संतुलन व्यवस्था में असंतुलन उत्पन्न हो जाता है।
उदाहरण‒ हिमालय क्षेत्र में आने वाले भूकंप।
4. प्लूटोनिक भूकंप‒
अत्यधिक गहराई में उत्पन्न होने के कारण इन्हें पातालीय भूकंप भी कहते हैं धरातल पर इनका न्यून प्रभाव होता है।
स्थिति के अनुसार भूकंप‒
इन्हें दो रूपों में वर्गीकृत किया जाता है‒
1. स्थलीय भूकंप‒
स्थल पर आने वाले भूकंप।
उदाहरण‒ मध्य महाद्वीपीय पेटी के भूकंप।
2. सामुद्रिक भूकंप‒
अंत: सागरीय भूकंप इसके अंतर्गत आते हैं। इनके परिणामस्वरूप ऊँची सागरीय लहरें उत्पन्न होती हैं, जिन्हें ‘सुनामी’ कहते हैं।
भूकंपीय तरंगें
तरंगों की गति व चलने की विधि के अनुसार मुख्यत: भूकंपीय तरंगों को तीन भागों में विभाजित किया जाता है‒
पी-तरंगें‒
भूकंप मूल से उत्पन्न होने के बाद ये तरंगें धरातल पर सबसे पहले पहुँचती हैं अत: इन्हें प्राथमिक तरंगें भी कहते हैं। यह अनुधैर्ध्य तरंगे होती है साथ ही यह ध्वनि तरंगों की भाँति चलती है एवं सवा्रधिक तीव्र गति होने के कारण यह ठोस, द्रव व गैस सभी माध्यमों में गति करती हैं। इनकी औसत गति 6 से 13 किलोमीटर/सैकंड होती है।
एस तरंगें‒
शैल से इन तरंगों के गुजरने पर शैल कणों की गति तरंग की दिशा में समकोण पर होती है। ये तरंगें केवल ठोस भाग में संचरण करती है। इनकी औसत गति 4 से 7 किलोमीटर/सैकंड होती है।
एल तरंगें‒
ये तरंगें अधिकेंद्र के चारों ओर केवल धरातल पर फैलती हैं परिणामस्वरूप इस प्रकार की तरंगों से धरातल पर सर्वाधिक विनाश होता है। इनकी गति 3 किलोमीटर/सैकंड होती है।
भूकंप का विश्व वितरण
विश्व के अधिकांश भूकंप समुद्री तटीय क्षेत्रों, नवीन वलित पर्वतों जैसे अव्यवस्थित भूपटल पर आते हैं।
विश्व में भूकम्पों की निम्नलिखित पेटियाँ हैं‒
भूकंप का वितरण | ||
परिप्रशांत पेटी | मध्य महाद्वीपीय पेटी | मध्य अटलांटिक पेटी |
1. परिप्रशांत पेटी‒
यहाँ विश्व के दो‒तहाई भूकंप आते हैं। यह प्रशांत महासागर के चारों ओर वृत्ताकार में सभी द्वीपों व महाद्वीपों पर स्थित हैं।
यह एशिया के कमचटका प्रायद्वीप से पूर्वी एशियाई द्वीपों यथा‒क्यूराइल, अलास्का, चिली, न्यजीलैंड, जापान आदि के साथ उत्तरी व दक्षिण अमेरिका के पश्चिम तटीय क्षेत्रों तक विस्तृत हैं।
2. मध्य महाद्वीपीय पेटी‒
यहाँ विश्व के 21 प्रतिशत भूकंप आते हैं। भारत का भूकंपीय क्षेत्र भी इसके अंतर्गत ही आता है। यह पुर्तगाल से लेकर हिमालय, तिब्बत व दक्षिणी‒पूर्वी द्वीपसमूह तक विस्तृत है।
3. मध्य अटलांटिक पेटी‒
यह अटलांटिक महासागर में पश्चिम द्वीप समूह से लेकर दक्षिण में बोवेट द्वीप तक विस्तृत है। अफ्रीका की महान भ्रंश घाटी इसके अंतर्गत आती है। यहाँ भूकंप ज्वालामुखी क्रियाओं व प्लेट विवर्तनिकी के कारण आते हैं।
भूकंप के प्रभाव
भूकंप के प्रभाव | |
विनाशकारी | लाभदायक |
1. जनधन की अत्यधिक क्षति। | 1. समुद्री क्षेत्रों में जलमग्न भूमि के ऊपर उठ जाने से नए द्वीप या मैदान का निर्माण। |
2. संरचनात्मक क्षति, जैसे मकान, बाँध आदि टूट जाते हैं। | 2. नवीन पर्वतों का निर्माण। |
3. बाँध आदि के टूटने पर बाढ़ की समस्या। | 3. पृथ्वी की आंतरिक संरचना समझने में सहायक। |
4. सुनामी के कारण तटीय क्षेत्र जलमग्न हो जाते हैं। | |
5. पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन। |
अन्य –
जिन सवेदनशील यंत्रों द्वारा भूकम्पीय तरंगों की तीव्रता मापी जाती है उन्हें भूकम्प लेखी या सीस्मोग्राफ कहते है इनके तीन स्केल होते है, रौसी, मरकेली, रिक्टर
ज्वालामुखी
पृथ्वी के अंतर्जात बलों के कारण होने वाली वह आकस्मिक क्रिया, जिससे भूपटल पर शैल पदार्थ, गैस व तरल मैग्मा का उदˎगार होता है, उसे ज्वालामुखी कहते हैं।
ज्वालामुखी क्रिया के कारण
1. भूगर्भिक असंतुलन‒
पृथ्वी के आंतरिक भाग में संरचनात्मक परिवर्तन के कारण ज्वालामुखी क्रिया होती है।
2. भूगर्भ में तापमान में वृद्धि‒
भूगर्भ में रेडियोधर्मी पदार्थों का निरंतर विखंडन होता है। इस विखंडन से निकले ताप से चट्टानें पिघल जाती हैं व दरारों से लावा के रूप में बाहर निकलती हैं।
3. गैसों की उत्पत्ति‒
जब दरारों से जल पृथ्वी के आंतरिक भाग में जाता है तो अत्यधिक तापमान के कारण वाष्प में परिवर्तित हो जाता है व धरातल पर बल डालता है।
4. दाब में कमी‒
भूगर्भ की शैलों पर दबाव कम पड़ने से शैलें पिघल जाती हैं व ज्वालामुखी क्रिया को प्रोत्साहित करती हैं।
5. प्लेट विवर्तनिकी‒
प्लेटों की संचरण क्रिया भी ज्वालामुखी क्रिया में सहायक है।
ज्वालामुखी के प्रकार
ज्वालामुखी के प्रकार | |
उदˎगार की अवधि के आधार पर | उदˎगार के स्वरूप के आधार पर |
सक्रिय ज्वालामुखी | केंद्रीय उदˎगार ज्वालामुखी |
सुषुप्त ज्वालामुखी | दरारी उदˎगार ज्वालामुखी |
शांत ज्वालामुखी |
उदˎगार की अवधि के आधार पर‒
इस आधार पर ज्वालामुखी को तीन रूपों में वर्गीकृत किया जाता है‒
1. सक्रिय ज्वालामुखी‒
इनमें निरंतर उदˎगार होते रहते हैं। उदाहरण‒ इटली का एटना, स्टॉम्बॉली (भारत के एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी बैरन द्वीप है)
2. सुषुप्त ज्वालामुखी‒
इनमें कुछ समय शांत रहने के बाद पुन: उदˎगार होता है।
उदाहरण‒ इटली का विसूवियस, नारकोडम द्वीप।
3. मृत ज्वालामुखी‒
इनमें दीर्घकाल तक कोई उदˎगार नहीं होता व क्रेटर में जलादि भर जाता है।
उदाहरण‒ म्यांमार का माउंट पोपा, पुष्कर झील (राजस्थान), का किलमंजारों (अफ्रीका), एडीज का एंकाकगुआ।
उदˎगार के स्वरूप के आधार पर‒
केंद्रीय उदˎगार वाले ज्वालामुखी‒
वे ज्वालामुखी, जिनमें उदˎगार मुख्य द्रोणी व एक मुख से होता है। इन्हें निम्नलिखित प्रकारों में विभाजित किया जाता हैं‒
1. हवाई तुल्य ज्वालामुखी‒
इनमें लावा तरल व गैसों की तीव्रता कम होती है अत: उदˎगार शांत ढंग से होता है। हवाई द्वीप में मिलने के कारण हवाई तुल्य कहते हैं।
2. स्ट्रॉम्बली तुल्य ज्वालामुखी‒
इसमें लावा गाढ़ा होने के कारण अपेक्षाकृत अधिक तीव्रता से उदˎगार होता है। इटली के स्ट्रॉम्बली ज्वालामुखी के नाम पर इनका नामकरण हुआ है।
3. वल्केनो तुल्य ज्वालामुखी‒
इसमें लावा अत्यधिक गाढ़ा व गैसों के अति दबाव के कारण उदˎगार विस्फोटक रूप में होता है। विस्फोट के पश्चात धूल व गैस ऊँचाई तक ऊपर उठ जाती है।
4. पीलियन तुल्य ज्वालामुखी‒
ये सर्वाधिक विनाशकारी होते हैं क्योंकि इनमें उदˎगार अधिक विस्फोटक होता है। साथ ही सिलिका की अधिकता के कारण मैग्मो अत्यधिक चिपचिपा एवं अम्लीय होता है। पश्चिमी द्वीप समूह की पीलियन ज्वालामुखी के नाम पर इन्हें पीलियन तुल्य भी कहते हैं।
5. दरारी उदˎगार वाले ज्वालामुखी‒
इनमें लावा दरारों के माध्यम से शांतिपूर्वक निकलता है। इसमें लावा तरल होने के कारण दूर तक फैल जाता है व लावा पठार का निर्माण करता है।
उदाहरण‒
कोलम्बिया के पठार व भारत में दक्कन का पठार, दरारी उदˎगार वाले पठार हैं।
ज्वालामुखी का विश्व वितरण
विश्व में ज्वालामुखी का वितरण इस प्रकार है‒
1. परिप्रशांत महासागरीय मेखला‒
यह प्रशांत महासागर के चारों ओर फैली ज्वालामुखी पेटी है। इसमें जापान का फ्यूजीयामा, अमेरिका का शास्ता व रेनियर आदि ज्वालामुखी पर्वत स्थित हैं। यह अंटार्कटिका के एरबस पर्वत से आरम्भ होकर उत्तरी व दक्षिणी अमेरिका होती हुई दक्षिणी‒पूर्वी तटीय भागों के किनारे होती हुई मध्य महाद्वीपीय पेटी तक विस्तृत है। इसमें विश्व के दो‒तिहाई ज्वालामुखी आते हैं।
2. मध्य महाद्वीपीय मेखला‒
यह मेखला आल्पस व हिमालय पर्वत श्रृंखला में विस्तृत है। इसमें बैरन, एटना, एल्बूर्ज, माउंट पोपा आदि ज्वालामुखी आते हैं। भूमध्यसागरीय ज्वालामुखी इसके अंतर्गत आते हैं।
3. मध्य अटलांटिक मेखला‒
यह उत्तर में आइलैंड द्वीप से लेकर अटलांटिक कटक के सहारे दक्षिण में अंटार्कटिका महाद्वीप तक विस्तृत है।
हैकला, कटला आदि प्रमुख ज्वालामुखी।
4. पूर्वी अफ्रीका मेखला‒
यह इजरायल व लाल सागर से होते हुए पूर्वी अफ्रीकी भ्रंश घाटी व मेडागास्कर तक विस्तृत है।
ज्वालामुखी क्रिया के प्रभाव
ज्वालामुखी क्रिया के प्रभाव | |
विनाशकारी | लाभदायक |
1. जन-धन की हानि | 1. ज्वालामुखी उदˎगार से निसृत राख से मृदा में ऊपजाऊपन। |
2. उदˎगार के समय नि:सृत पदार्थों से पर्यावरण प्रदूषण। | 2. विभिन्न प्रकार के खनिज पटि्टयों का विकास। |
3. तटीय क्षेत्रों में जलप्लावन से जीव‒जंतुओं के जीवन को खतरा होता है। | |
4. पर्यटन व सांस्कृतिक स्थलों को हानि। |
विशेष शब्दावली‒
अधिकेंद्र‒
भूकंप मूल के ठीक ऊपर धरातलीय सतह पर स्थित वह केंद्र है जहाँ भूकंपीय लहरों का ज्ञान सर्वप्रथम होता है अधिकेंद्र कहलाता है।
सिंडर शंकु‒
ज्वालामुखी क्रिया से निर्मित शंकु, इनका निर्माण उदˎगार के समय निकली राख व अन्य विखंडित पदार्थों से होता है। इनका झुकाव अवतल व क्रेटर चौड़ा होता है।
क्रेटर‒
ज्वालामुखी द्रोणी के ऊपर स्थित गर्त, जिसकी आकृति कीपाकार होती है उसे क्रेटर कहते हैं। इनका आकार ज्वालामुखी उदˎगार की तीव्रता पर निर्भर करता है। उदा. – महाराष्ट्र में बुलडाना जिले में लोनार झील।
काल्डेरा‒
अपेक्षाकृत क्रेटर का बड़ा भाग काल्डेरा कहलाता है। इसका निर्माण विस्फोटक उदˎगार या क्रेटर के धँसाव से होता है। उदा. – अमेरिका का क्रेटर लेख एवं हवाई द्वीप।
अन्य
DOART – डार्ट – (Deep Ocean Assement and Reporting of tsunmi) – यह एक खास तकनीक है जिसके माध्यम से सुनामी का पता लगने के बाद उचित जगहों पर शीघ्र सुचनाएँ भेजी जाती है। डार्ट के दो प्रमुख हिस्से होते है- सुनामीटर, सिग्नलिग एंड कम्यूनेकेटिंग उपकरण।
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महत्वपूर्ण प्रश्न
भुकम्प के कारण क्या है?
भूकंप पृथ्वी के भीतर दोषों के साथ अचानक होने वाली हलचल का परिणाम है। इस हलचल से भूकंपीय तरंगों के रूप में संग्रहीत ‘इलास्टिक स्ट्रेन’ ऊर्जा निकलती है, जो पृथ्वी के माध्यम से फैलती है और जमीन की सतह को हिला देती है।
भूकंप की सरल परिभाषा क्या है?
पृथ्वी के भूपटल में जब अंतर्जात व बहिर्जात बल के कारण आकस्मिक कंपन उत्पन्न होता है तो उसे भूकंप कहते हैं।
भूकंप में कितने प्रकार होते हैं?
भूकंप के प्रकार: फाल्ट ज़ोन, विवर्तनिक भूकंप, ज्वालामुखी भूकंप, मानव प्रेरित भूकंप।