नमस्कार आज हम भूगोल विषय के भाग भारतीय भूगोल के महत्वपूर्ण अध्याय भारत का भौतिक विभाजन के विषय में विस्तार पूर्वक अध्ययन करेंगे। यहां आपको Physical divisions of India के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देने का प्रयास किया गया हैं।
किसी स्थान की भू-आकृति उसकी संरचना, प्रक्रिया और विकास की अवस्था का परिणाम है। भारत में धरातलीय विभिन्नताएँ बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।
इसके उत्तर में एक बड़े क्षेत्र में उबड़-खाबड़ स्थलाकृति है। इसमें हिमालय पर्वत शृंखलाएँ हैं, जिसमें अनेक चोटियाँ, सुंदर घाटियाँ तथा महाखड्ड हैं।
दक्षिण भारत एक स्थिर परंतु कटा-फटा पठार है जहाँ अपरदित चट्टानी खंड और कगारों की भरमार है। इन दोनों के बीच उत्तर भारत का विशाल मैदान है।
भारत का भौतिक विभाजन
मोटे तौर पर भारत को निम्नलिखित भू-आकृतिक खंडों में बाँटा जा सकता है-
मैदानी भाग | 43% |
पठारी क्षेत्र | 27.7% |
पहाड़ियाँ | 18.6% |
पर्वत | 10.7% |
भारत में भौगोलिक लक्षणों एवं स्थलाकृतियों के दृष्टिकोण से अत्यधिक विविधता एवं असमरूपता पाई जाती है। यहाँ पर कहीं अत्यधिक ऊँची पर्वत श्रेणियाँ है तो अन्य स्थान पर समतल मैदान और वृहद पठारी प्रदेश है।
संस्तरण एवं विवर्तनिक इतिहास, उच्चावचीय, विशेषताओं एवं अपरदन प्रक्रमों के आधार पर भारत को निम्नलिखित वृहद प्रदेशों में विभाजित किया गया है–
1. | हिमालय पर्वतमाला |
2. | उत्तर का विशाल मैदान |
3. | प्रायद्वीपीय पठारी भाग |
4. | भारतीय मरुस्थल |
5. | तटीय मैदान/प्रदेश |
6. | भारतीय द्वीप समूह |
हिमालय पर्वतमाला
● विश्व का नवीनतम मोड़दार पर्वत, जिसका निर्माण टर्शियरी काल में परतदार चट्टानों के रूप में हुआ है। हिमालय पर्वतमाला भारत के उत्तर में स्थित है।
● लगभग 2400 किमी. लम्बी इस पर्वतमाला का निर्माण एक लंबे भूगर्भिक ऐतिहासिक काल से गुजरकर संपन्न हुआ है।
● धनुषाकार रूप में फैली इस पर्वत श्रेणी की चौड़ाई पश्चिम की तुलना में पूर्व में कम है अर्थात् कश्मीर में चौड़ाई 500 किमी. तक, वही अरूणाचल प्रदेश में चौड़ाई 200 किमी. तक है। परंतु पश्चिम से पूर्व की ओर जाने पर ऊँचाई बढ़ती है एवं ढाल तीव्र होते जाते है।
हिमालय पर्वतमाला निर्माण संबंधित सिद्धांत–
1. | भू–सन्नति सिद्धांत–कोबर |
2. | प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत– मोर्गन–आइजैक |
● हालांकि हिमालय पर्वत स्थिर नहीं है और अभी भी उत्थान की स्थिति में है। वर्तमान समय में हिमालय एक–दूसरे के समानान्तर फैली पर्वतमालाओं का समूह है, जिनमें चार श्रेणियों को निश्चित रूप से पहचाना गया है।
(i) ट्रांस हिमालय क्षेत्र
(ii) वृहद् हिमालय
(iii) लघु या मध्य हिमालय
(iv) शिवालिक या बाह्य हिमालाय
(i) ट्रांस हिमालय क्षेत्र–
● यह हिमालय का उत्तरतम क्षेत्र है, जिसका निर्माण हिमालय से भी पहले हो चुका है तथा इसका अधिकांश भाग तिब्बत में स्थित है, अत: इसे ‘तिब्बत हिमालय’ भी कहते है।
● इस श्रेणी की औसत ऊँचाई 3100 मीटर है एवं लम्बाई लगभग 1000 किमी. तक फैली है। काराकोरम, लद्दाख व जास्कर इस क्षेत्र की प्रमुख श्रेणियाँ है।
● ट्रांस हिमालय ‘सिंधु–सांग्पो शचर जोन’ द्वारा वृहद् हिमालय से अलग होता है।
(ii) वृहद् हिमालय–
● इस पर्वत श्रेणी के आंतरिक भाग अजैविक चट्टानों से बने हुए हैं, जिसके ऊपर परतदार चट्टानों की परत थी जो कालान्तर में अपरदन के कारण नष्ट हो गई।
● 7 करोड़ वर्ष पूर्व निर्मित इस श्रेणी को हिमाद्री, महान हिमालय एवं आंतरिक हिमालय के नाम से जाना जाता है। यहाँ हिमालय की सबसे ऊँची चोटियाँ हैं।
● यह श्रेणी सिंधु नदी के मोड़ से ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक लगभग 2400 किमी. लम्बी है।
● हिमालय की इस श्रेणी में न केवल विश्व के सर्वोच्च पर्वत शिखर है अपितु भारत में सामरिक दृष्टिकोण से अति महत्त्वपूर्ण दर्रें भी स्थित है।
● वृहद् हिमालय, लघु हिमालय से ‘मेन सेंट्रल थ्रस्ट’ (Main Central Thrust) द्वारा अलग होता है।
वृहद् हिमालय की प्रमुख चोटियाँ–
क्र.सं. | चोटी का नाम | समुद्र तल से ऊँचाई(मीटर में) | प्रदेश |
1. | माउंट एवरेस्ट | 8848–50 | नेपाल हिमालय |
2. | कंचनजंगा | 8598 | नेपाल हिमालय |
3. | मकालू | 8481 | नेपाल हिमालय |
4. | धौलागिरी | 8172 | नेपाल हिमालय |
5. | मनसालु | 8156 | नेपाल हिमालय |
जोजिला दर्रा जम्मू-कश्मीर | श्रीनगर से लेह को जोड़ता है। |
बुर्जिल दर्रा जम्मू-कश्मीर | श्रीनगर से गिलगित को जोड़ता है। |
बनिहाल जम्मू-कश्मीर | जम्मू को कश्मीर से जोड़ता है। |
काराकोरम दर्रा जम्मू-कश्मीर | श्रीनगर से यारकन्द को जोड़ता है। भारत का सबसे अधिक ऊँचाई पर स्थित दर्रा है। |
शिपकी ला दर्रा (हिमाचल प्रदेश) | भारत-तिब्बत मार्ग, शिमला से गार्टोक (तिब्बत) को जोड़ता है। |
बारा लाचला (हिमाचल प्रदेश) | लेह को कुल्लू मनाली, कैलांग से जोड़ता है। |
रोहतांग दर्रा (हिमाचल प्रदेश) | लाहौल स्फीति को लेह लद्दाख से जोड़ता है। |
माना और नीति दर्रा (उत्तराखंड) | इससे मानसरोवर और कैलाश घाटी की ओर मार्ग जाता है। |
लिपुलेख (उत्तराखंड) | यह कुमायूँ क्षेत्र को तिब्बत के तकला कोटा (पुरंग) शहर को जोड़ता है। |
नाथुला एवं जेलेप ला (सिक्किम) | भारत तिब्बत मार्ग, (कालिंपोंग से ल्हासा तक जाता है) चुम्बी घाटी से होकर जाता है। |
बोमडिला दर्रा (अरुणाचल प्रदेश) | भारत को चीन से जोड़ता है। |
यांग्याप दर्रा (अरुणाचल प्रदेश) | भारत को चीन से जोड़ता है। |
दिफू दर्रा (अरुणाचल प्रदेश) | भारत को चीन से जोड़ता है। |
पांगसांड दर्रा (अरुणाचल प्रदेश) | भारत को म्यांमार से जोड़ता है। |
तुजू दर्रा (मणिपुर) | भारत को म्यांमार से जोड़ता है। |
दर्रा–
● पर्वतों एवं पहाड़ों के मध्यम पाए जाने वाले आवागमन के प्राकृतिक मार्ग जिनमें पहाड़ों को पार किया जाता है, दर्रे कहलाते हैं।
काराकोरम दर्रा–
● भारत का सबसे ऊँचा दर्रा (5654 मीटर) जो काराकोरम पर्वत श्रेणी का भाग है। यह दर्रा पाक अधिकृत कश्मीर और चीन को जोड़ता है।
(iii) लघु हिमालय–
● हिमालय पर्वतमाला की इस श्रेणी को मध्य हिमालय या हिमाचल श्रेणी के नाम से भी जाना जाता है।
● इस श्रेणी की औसत चौड़ाई 60 से 90 किमी. तथा ऊँचाई सामान्यत: 3500 से 4500 मीटर है। लघु हिमालय का दक्षिणी ढाल उत्तरी ढाल की अपेक्षा अधिक तीव्र है।
● हिमालय के इस भाग में पीरपंजाल श्रेणी (4000 मीटर ऊँची) सबसे महत्त्वपूर्ण है। धौलाधर, मसूरी, नाग टिब्बा एवं महाभारत श्रेणियाँ इसी पर्वत श्रेणी का भाग है।
● हिमालय की इस श्रेणी में अल्पाइन चारागाह पाए जाते है, जिन्हें कश्मीर में मर्ग (सोनमर्ग, गुलमर्ग) तथा उत्तराखण्ड में बुग्याल कहते है। पीरपंजाल तथा बनिहाल इस श्रेणी के दो प्रमुख दर्रे है।
● लघु हिमालय, शिवालिक हिमालय से मेन बाउन्ड्री फॉल्ट (Main Boundary Fault) के द्वारा अलग होता है। हिमालय के इस भाग में विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल जैसे शिमला, कुल्लू, मनाली, मसूरी, दार्जिलिंग आदि पाए जाते है।
● लघु हिमालय में पाई जाने वाली प्रमुख घाटियाँ–
कश्मीर घाटी | पीरपंजाल एवं महान हिमालय के बीच |
काठमांडू घाटी | नेपाल |
कांगड़ा घाटी | हिमाचल प्रदेश |
कुल्लु घाटी | हिमाचल प्रदेश |
घाटी– दो या दो से अधिक पहाड़ों के बीच का गहरा भाग जहाँ आमतौर पर नदी का प्रवाह पाया जाता है।
(iv) शिवालिक या बाह्य हिमालाय–
● हिमालय के इस भाग को उप–हिमालय के नाम से भी जाना जाता है। यह हिमालय की सबसे नवीन एवं दक्षिणतम श्रृंखला है जो 15 से 50 किमी. चौड़ी तथा 900 से 1200 मीटर ऊँची है।
● इस श्रृंखला में बालू, कंकड़ तथा शैलखण्ड मिलते है जो वृहद् हिमालय से निकलने वाली नदियों द्वारा जमा किए गए है।
● शिवालिक और लघु हिमलाय के मध्य कई घाटियाँ पाई जाती है। जैसे– काठमांडू घाटी। पश्चिम में इन्हीं घाटियों को दून या द्वार कहते है। जैसे– देहरादून और हरिद्वार।
● शिवालिक का दक्षिणी भाग तराई क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। ‘वृहद सीमावर्ती भ्रंश’ (Great Boundary Fault) के द्वारा शिवालिक एवं तराई क्षेत्र अलग होते है।
पूर्वांचल (उत्तरी–पूर्वी भारत)-
● मुख्य हिमालय से पूर्व में स्थित पहाड़ियों को पूर्वांचल के नाम से जाना जाता है। ब्रह्मपुत्र नदी के दिहांग गॉर्ज को पार करने के पश्चात हिमालय पर्वत श्रेणी दक्षिण दिशा की ओर मुड़ जाती है और पूर्वांचल पहाड़ियों की श्रृंखला का निर्माण करती है। ये पहाड़ियाँ अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम, मणिपुर, त्रिपुरा और असम में फैली है।
● अरुणाचल प्रदेश में मिश्मी तथा पटकाई बूम पहाड़ियाँ स्थित हैं। मिश्मी पहाड़ी की सर्वोच्च चोटी का नाम काडाफा बूम है। यह चोटी समुद्र तल से 4578 मीटर ऊँची हैं। पटकाई बूम पहाड़ी अरुणाचल प्रदेश तथा म्यांमार (भारत-म्यांमार) के मध्य अंतर्राष्ट्रीय सीमा बनाती है। पटकाई बूम श्रेणी की ऊँचाई 2000 से 3000 मीटर के मध्य है।
● नागालैंड में नागा श्रेणी स्थित है जो पटकाई बूम के दक्षिण में स्थित है। नागा श्रेणी नागालैंड तथा म्यांमार (भारत-म्यांमार) के मध्य अंतर्राष्ट्रीय सीमा बनाती है। इस श्रेणी की सबसे ऊँची चोटी का नाम सारामति है। यह समुद्र तल से 3826 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। नागालैंड के दक्षिण में कोहिमा पहाड़ी स्थित है।
● मणिपुर में नागा तथा कोहिमा श्रेणियों के दक्षिण में मणिपुर पहाड़ियाँ स्थित हैं। ये पहाड़ियाँ मणिपुर एवं म्यांमार के मध्य अंतर्राष्ट्रीय सीमा का निर्धारण करती है। मणिपुर पहाड़ियों की औसत ऊँचाई 2500 मीटर है। बरेल श्रेणी नागा तथा मणिपुर पहाड़ियों को एक-दूसरे से पृथक करती हैं।
● मिजोरम में मिजो पहाड़ी अवस्थित है तथा यह पहाड़ी पूर्वांचल के दक्षिणी भाग में स्थित है।
● त्रिपुरा में मिजो पहाड़ियों, लुशाई पहाड़ियाँ के पश्चिम में त्रिपुरा पहाड़ियाँ स्थित हैं। त्रिपुरा तीन ओर से बांग्लादेश द्वारा घिरा हुआ है।
● मेघालय प्रदेश के पूर्वी भाग में जयन्तिया, पश्चिम भाग में गारो तथा जयन्तिया एवं गारों के मध्य खासी पहाड़ी प्रदेश स्थित है। खासी पहाड़ी के दक्षिणी भाग में चेरापूंजी का पठार है। इस भाग में सुरमा नदी का मैदान भी स्थित है।
हिमालय का प्रादेशिक विभाजन–
● हिमालय क्षेत्र की पूर्ववर्ती नदियों (सिंधु, सतलज, ब्रह्मपुत्र) द्वारा गॉर्ज, कैनियन व गहरी घाटियों का निर्माण किया गया।
● इस प्रकार सर सिडनी बुरार्ड ने नदीय आधार पर हिमालय को निम्नलिखित प्राकृतिक भागों में विभाजित किया है–
(i) पंजाब/कश्मीर हिमालय
(ii) कुमायूं हिमालय
(iii) नेपाल हिमालय
(iv) असम हिमालय
(i) पंजाब/कश्मीर हिमालय–
● सिन्धु नदी से सतलुज नदी के बीच 560 किमी. की लम्बाई में फैले पर्वतीय भाग को पंजाब/ कश्मीर हिमालय कहते है।
● यह हिमालय मुख्यत: जम्मू–कश्मीर हिमालय प्रदेश में फैला हुआ है। काराकोरम, लद्दाख, जास्कर, पीरपंजाल एवं धौलाधार श्रेणियाँ इसी हिमालय का भाग है।
● पंजाब हिमालय की ऊँचाई पूर्व से पश्चिम की ओर क्रमिक रूप से कम होती जाती है एवं यहाँ समतल भू–भाग तथा झीलें मिलती है।
● पंजाब हिमालय में ही जोजिला दर्रा स्थित है, जिसकी ऊँचाई 3444 मीटर है।
करेवा→कश्मीर हिमालय में चिकनी मिट्टी और पदार्थों का हिमोढ़ पर मोटी परत के रूप में जमाव। यह केसर की खेती के लिए उपयोगी होती है। |
(ii) कुमायूं हिमालय–
● इसका विस्तार सतलुज एवं काली नदी के बीच 320 किमी. (सबसे छोटा) तक है। यह हिमालय पंजाब हिमालय के अपेक्षाकृत अधिक ऊँचा है। नंदादेवी (7817 मीटर) कुमायूं हिमालय की सबसे ऊँची चोटी है।
● यहाँ अन्य चोटी– कामेट (7756 मीटर), त्रिशुल (7140मीटर), बद्रीनाथ (7138 मीटर), केदारनाथ (6945 मीटर) तथा गंगोत्री (6510 मीटर) हैं।
● गंगा–यमुना का उद्गम भी कुमायूं हिमालय से होता है। यहाँ मध्य हिमालय तथा शिवालिक के बीच दून घाटियाँ पाई जाती है।
● प्रमुख झीलें– नैनीताल, भीमताल, सामताल।
● कुमायूं हिमालय का पश्चिमी भाग गढ़वाल हिमालय पूर्वी भाग–कुमायूं हिमाचल के नाम से जाना जाता है।
नाम | स्थिति | मध्यवर्ती दूरी |
पंजाब हिमालय | सिन्धु से सतलुज नदी के मध्य | 560 किमी. |
कुमायूँ हिमालय | सतलुज से काली नदी के मध्य | 320 किमी. |
नेपाल हिमालय | काली से तिस्ता नदी के मध्य | 800 किमी. |
असम हिमालय | तिस्ता से ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य | 750 किमी. |
(iii) नेपाल हिमालय–
● इसका विस्तार कालीनदी से तिस्ता नदी के बीच 800 किमी. (सबसे लंबा) तक है। यह हिमालय का सबसे ऊँचा भाग, जिसकी सबसे ऊँची चोटी माउण्ट एवरेस्ट (8848/50 मीटर) है।
● यह चोटी नेपाल तथा तिब्बत की सीमा पर स्थित है। इस हिमालय का अधिकांश भाग नेपाल में स्थित है। इसलिए इसे नेपाल हिमालय के नाम से भी जाना जाता है।
अन्य चोटियाँ– कंचनजंगा–I (8598 मीटर), मकालू (8481मीटर), कंचनजंगा–II (8473 मीटर), धौलागिरी (8172 मीटर), चो यू (8153 मीटर) तथा अन्नपूर्णा (8078 मीटर) है।
(iv) असम हिमालय–
● इसका विस्तार तिस्ता नदी से ब्रह्मपुत्र नदी के बीच 750 मीटर तक है। असम हिमालय की महत्त्वपूर्ण चोटियाँ– नामचा बरवा (7755 मीटर), कुला कांगड़ी (7554 मीटर), चोमोलहारी (7327 मीटर) है।
● यह नेपाल हिमालय की तुलना में कम ऊँचा है एवं विस्तार असम, सिक्किम तथा अरूणाचल प्रदेश में है।
प्रमुख नदियाँ– लोहित, दिहांग, दिबांग है।
एस.पी. चटर्जी ने हिमालय को 3 मध्यम स्तरीय भू–आकृतिक प्रदेशों में बांटा है–
(i) पश्चिम हिमालय
(ii) मध्य हिमालय
(iii) पूर्वी हिमालय
(i) पश्चिम हिमालय–
● सिंधु नदी से काली नदी तक 880 किमी. की लंबाई में विस्तार है।
● यह तीनों राज्यों (जम्मू–कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड) का लगभग 4,33,000 वर्ग किमी. क्षेत्र में स्थित है।
● पश्चिम हिमालय को तीन भू–आकृतिक प्रान्तों– कश्मीर हिमालय, हिमाचल हिमालय, कुमायूं हिमालय में बांटा गया है।
(ii) मध्य हिमालय–
● काली नदी से तिस्ता नदी तक 800 किमी. की लम्बाई में विस्तार है।
● भारत में हिमालय के इस भाग का विस्तार दार्जिलिंग(पश्चिम बंगाल) एवं सिक्किम में 116800 वर्ग किमी. क्षेत्र पर है। (इस हिमालय का अधिकांश विस्तार नेपाल में है।)
● विश्व की सर्वोच्च चोटियाँ इसी हिमालय का भाग है। (माउंट एवरेस्ट, कंचनजंगा, मकालू आदि।)
(iii) पूर्वी हिमालय–
● तिस्ता नदी से ब्रह्मपुत्र नदी तक 720 किमी. लंबाई तक विस्तृत क्षेत्र है। 67500 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैले इस भाग का विस्तार उत्तरी–पूर्वी भारत एवं भूटान में है।
● नमचाबरवा पर्वत श्रेणी के उपरांत हिमालय की श्रेणियों की दिशा मुड़कर म्यांमार–भारत सीमा के सहारे उत्तर से दक्षिण दिशा में हो जाती है। पूर्वी हिमालय को असम हिमालय के नाम से भी जाना जाता है।
हिमालय के हिमनद–
● हिमनद– क्रिस्टलीय हिम, चट्टान एवं जल से निर्मित क्षेत्र जहाँ पर वर्षभर बर्फ जमी रहती है, हिमनद कहलाती है।
● अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण व भार के परिणामस्वरूप हिमनद ढलान की ओर प्रवाहित रहते हैं। पृथ्वी पर कुल जल की मात्रा का 2.1% जल हिमनदों के रूप में है।
हिमालय के प्रमुख हिमनद –
क्र.सं. | नाम | अवस्थिति | लंबाई (किमी. में) |
1. | सियाचीन | काराकोरम श्रेणी | 76 |
2. | बाल्टोरो | काराकोरम श्रेणी | 58 |
3. | हिस्पर | काराकोरम श्रेणी | 61 |
4. | बियाफो | काराकोरम श्रेणी | 60 |
5. | गंगोत्री | कुमायूं | 26 |
6. | केदारनाथ | कुमायूं | 14 |
7. | कंचनजंघा | नेपाल/सिक्किम | 16 |
8. | सासाइनी | काराकोरम श्रेणी | 158 |
दर्रे – पर्वतों के आर-पार विस्तृत संकरे और प्राकृतिक मार्ग जिससे होकर पर्वतों को पार किया जाता है, दर्रे कहलाते हैं।
हिमालय के प्रमुख दर्रे | |
जम्मू एवं कश्मीर | बनिहाल दर्रा, सियाला (सियाचिन हिमनद), बिलाफोडला (सियाचिन हिमनद) जोजिला, ग्योगं ला (सियाचिन हिमनद) |
लद्दाख | तगंलागं ला, स्पंगुर ला, शिंगो ला, सासेर ला, रेजांग ला, पेसी ला, नामिक ला, मार्सिमिक ला, लुगांला चाला, काराकोरम, लनक ला, कोंग्का, खारडुंग ला, फोटू ला, देहरा कम्पास, चांग ला |
हिमाचल प्रदेश | बारालाचा ला, शिपकी ला, चसंल, देब्सा, इन्द्रहार, कुजुंम, रोहतांग दर्रा |
उत्तराखण्ड | थागंला, माना दर्रा, नीति दर्रा, सिनला, लिपुलेख दर्रा, धूमधर कंडी दर्रा |
सिक्किम | नाथूला, जेलेपला, गोएचा ला |
अरुणाचल प्रदेश | बोमडिला, दिफू दर्रा, यांग्याप दर्रा |
मणिपुर | तुजु दर्रा |
पश्चिमी हिमालय तथा पूर्वी हिमालय में अन्तर
पश्चिमी हिमालय | पूर्वी हिमालय |
1. पश्चिम में सिन्धु नदी से काली नदी तक विस्तृत है। | 1. पूर्व में तिस्ता नदी से ब्रह्मपुत्र नदी तक विस्तृत है। |
2. औसत वार्षिक वर्षा 100 सेमी. से कम होती है। | 2. औसत वार्षिक वर्षा 200 सेमी. से अधिक होती है। |
3. यहाँ हिमालय की ऊँचाई धीरे–धीरे श्रृंखलाओं के क्रम में बढ़ती है। | 3. यहाँ हिमालय की ऊँचाई बिहार तथा पश्चिमी बंगाल के मैदान से एकदम बढ़ जाती है। |
4. यहाँ हिमालय की सर्वोच्च चोटियाँ – K2 गॉडविन ऑस्टिन और नंगा पर्वत स्थित है। | 4. यहाँ हिमालय की सर्वोच्च चोटियाँ– माउंट एवरेस्ट, कंचनजंगा स्थित है। |
5. यहाँ अल्पाईन तथा शंकुल आकार के वन/वनस्पति पाई जाती है। | 5. इस क्षेत्र में घने एवं सदाबहार वन पाए जाते है। |
उत्तर का विशाल मैदान
● मैदान (Plains)– भूपटल पर निचले और समतल क्षेत्र को मैदान कहते है। सामान्यत: मैदान समुद्र तल से 150 मीटर ऊँचे भू-भाग हैं, जिनका ऊपरी धरातल प्राय: समतल तथा सपाट होता है।
● भारत का विशाल मैदान उत्तर के पर्वत (हिमालय) और दक्षिण की प्रायद्वीपीय उच्च भूमि प्रदेश के मध्य एक संक्रमण का क्षेत्र है।
● उत्तर का विशाल मैदान सिन्धु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदियों के अवसादों के निक्षेपण का परिणाम है। अत: इस मैदान को सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान भी कहते हैं।
● गंगा व सिंधु नदी के मुहाने के बीच पूर्व-पश्चिम दिशा में इसकी लंबाई लगभग 3200 किलोमीटर विस्तृत है तथा रावी एवं सतलुज के किनारे से गंगा नदी के डेल्टा/मुहाने तक इसकी लंबाई 2400 किलोमीटर है।
● 7.5 लाख वर्ग किलोमीटर में विस्तृत इस मैदान की चौड़ाई 150 किमी से 300 किमी. तक है। अलग-अलग स्थानों पर इस मैदान की चौड़ाई में असमानता है। जैसे असम में यह मैदान संकरा होकर 90 से 100 किमी. की चौड़ाई तक सीमित हो जाता है। वहीं पश्चिमी भाग में यह मैदान 500 किमी. तक चौड़ा है।
● शताब्दियों से हिमालय की सदानीरा नदियों द्वारा यहां निक्षेपण की प्रक्रिया अनवरत जारी है। परिणामस्वरूप उत्तर के विशाल मैदानों में कांप मिट्टी (Alluvial Soil) की बहुत मोटी परतों का जमाव हो गया परन्तु कांप मिट्टी परत की मोटाई सभी स्थानों पर भिन्न-भिन्न पाई जाती है।
● उत्तर का विशाल मैदान एक समतल भू-भाग है जिसकी समुद्र तल से औसत ऊँचाई लगभग 200 मीटर है। हालांकि अंबाला एवं सहारनपुर के बीच इसकी ऊँचाई 291 मीटर (अधिकतम) है। अम्बाला-सहारनपुर भाग उत्तर के विशाल मैदान का जल विभाजक है।● जल विभाजक इसलिए क्योंकि इसके पूर्व की ओर गंगा तथा इसकी सहायक नदियाँ पूर्व दिशा में प्रवाहित होती हुए अपना जल बंगाल की खाड़ी में विसर्जित करती है। वहीं सिन्धु एवं उसकी सहायक नदियाँ अपना जल अरब सागर में गिराती है।
उत्तर के विशाल मैदान की स्थलाकृतियाँ–
● उत्तर का विशाल मैदान पूर्णतया सपाट एवं समतल मैदान है, इसका आंकलन इन तथ्यों के आधार पर किया जा सकता है कि सहारनपुर से कोलकाता तक लगभग 1500 किलोमीटर की लंबाई में इसका औसत ढाल मात्र 20 सेमी. प्रति वर्ग किलोमीटर है।
जैसे-पूर्व की ओर बढ़ते हैं यह ढाल और भी मंद (15 सेंटीमीटर प्रति वर्ग किलोमीटर) रह जाता है।
● धरातलीय प्रवणता, जलोढ़क की विशेषताओं, अपवाह वाहिकाओं और क्षेत्रीय विशेषकों के आधार पर उत्तर के विशाल मैदान को निम्नलिखित लघु इकाइयों में विभक्त किया जा सकता है-
(i) भाबर प्रदेश/मैदान
(ii) तराई प्रदेश/मैदान
(iii) बांगर प्रदेश/मैदान
(iv) खादर प्रदेश/मैदान
(i) भाबर प्रदेश –
● भाबर शिवालिक के गिरिपाद प्रदेश में सिन्धु से तिस्ता नदी तक 8 से 16 किमी. चौड़ाई में विस्तृत एक संकरी पट्टी है।
● गिरिपाद में स्थित होने के कारण तथा नदियों का ढाल अचानक भंग होने के कारण नदियाँ भाबर प्रदेश में बड़ी मात्रा में भारी पत्थर, कंकड़, बजरी आदि अवसाद के रूप में लाकर जमा कर देती है। परिणामस्वरूप पारगम्य चट्टानों का निर्माण होता है।
● अत: भाबर क्षेत्र में पहुंचने पर अनेक छोटी नदियाँ भूमिगत होकर अदृश्य हो जाती है। बड़े–बड़े पत्थरों एवं कंकड़ों की उपस्थिति के कारण यह क्षेत्र कृषि कार्यों हेतु लगभग अनुपयोगी होता है।
(ii) तराई प्रदेश –
● भाबर के दक्षिण में 15 से 30 किलोमीटर चौड़े दलदली क्षेत्र को तराई प्रदेश कहते हैं, क्योंकि भाबर क्षेत्र में लुप्त नदियाँ जिससे भूपटल पर दृश्यगत होने लगती हैं।
● तराई क्षेत्र में अधिकांश भाग दलदली होता है तथा यह जलोढ़ भाबर प्रदेश के बड़े पत्थरों/कंकड़ों की तुलना में छोटे होते हैं।
तराई प्रदेश का निर्माण बारीक कंकड़, पत्थर, चिकनी मिट्टी तथा रेत से हुआ है। दलदल की उपस्थिति तथा नमी की अधिकता के कारण तराई प्रदेश में घने वन तथा विभिन्न प्रकार के वन्य जीव पाए जाते हैं।
● भाबर की तुलना में तराई प्रदेश को साफ करके कृषि (गन्ना, गेहूं, चावल) योग्य बनाया जा सकता है।
भाबर | तराई |
1. यह शिवालिक के दक्षिण में सिन्धु से तिस्ता नदी तक विस्तृत है। | 1. यह भाबर प्रदेश के दक्षिण में समानान्तर रूप से फैला हुआ है। |
2. चौड़ाई– 8 से 16 किमी. | 2. चौड़ाई– 15 से 30 किमी. |
3. भारी पत्थर एवं कंकड जमाव के कारण पारगम्य चट्टानों का निर्माण होता है। | 3. यह बारीक कणों वाले जलोढ़क से बना वनाच्छादित प्रदेश है। |
4. पारगम्य चट्टानों के कारण यहाँ नदियाँ भूमिगत होकर अदृश्य हो जाती है। | 4. भाबर प्रदेश की भूमिगत एवं अदृश्य नदियाँ पुन: धरातल पर दृष्टिगत होती है। |
5. यह प्रदेश कृषि हेतु अनुपयुक्त है। | 5. इस प्रदेश में वनों को साफ करके कृषि योग्य बनाया जा सकता है। |
(iii) बांगड़ प्रदेश –
● बांगड़ प्रदेश पुरानी जलोढ़ मिट्टी द्वारा निर्मित वह ऊँचा भाग है, जहाँ नदियों की बाढ़ का जल नहीं पहुँचता है। कहीं-कहीं बांगड़ प्रदेश की ऊँचाई 30 मीटर तक होती है।
● सामान्य दृष्टि से देखने पर बांगड़ तथा खादर में बहुत कम अन्तर स्पष्ट दिखाई देता है। बांगड़ प्रदेश में चिकनी मिट्टी की प्रधानता है जो कहीं-कहीं दुमट एवं रेतीली दुमट में परिणत हो गई है।
● बांगड़ प्रदेश का विस्तार सतलुज के मैदान तथा गंगा के ऊपरी मैदान में विशेष रूप से देखने को मिलता है।
(iv) खादर प्रदेश–
● नवीन कांप मिट्टी द्वारा निर्मित नदियों के बाढ़ के मैदान को खादर कहते हैं। खादर अपेक्षाकृत नीचा भाग है, जहाँ नदियों के बाढ़ का जल प्रतिवर्ष पहुँचता है।
● प्रतिवर्ष नई मिट्टी के जमाव के कारण यह प्रदेश अत्यधिक उपजाऊ होते हैं। खादर प्रदेश में जलोढ़क हल्के रंग की होते हैं, जिसमें चूनेदार पदार्थों की कमी पाई जाती है। यह प्रदेश बालू तथा कंकड़ से युक्त होता है।
बांगड़ | खादर |
1. पुरानी जलोढ़ मिट्टी से बना उच्च भाग। | 1. निम्न जलोढ़ मिट्टी से बना निम्न प्रदेश है। |
2. बांगड़ प्रदेश बाढ़ के तल से ऊँचा होता है। | 2. प्रतिवर्ष बाढ़ से नवीन जलोढ़ की परत बिछ जाती है। |
3. यह कृषि कार्यों हेतु अनुपयोगी है। | 3. यहाँ गहन कृषि की जाती है। |
4. बांगड़ को पंजाब के मैदान में ‘धाया’ कहते है। | 4. खादर को पंजाब के मैदान में ‘बेट’ कहते है। |
5. यहाँ मिट्टी चूना तत्वों की प्रधानता होती है। | 5. यह मुख्यत: चिका मिट्टी से बना हुआ प्रदेश है। |
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य–
● भूड़ (Bhur)– बांगड़ प्रदेश के कुछ भागों में अपक्षय एवं अपरदन के कारण ऊपरी मुलायम मिट्टी नष्ट हो जाती है एवं कंकरीली भूमि दृष्टिगोचर होती है, ऐसी भूमि को ‘भूड़‘ कहते हैं। गंगा नदी के प्रवाह क्षेत्र में भूड़ का जमाव मुख्यत: देखने को मिलता है।
● रेह (Reh)– बांगड़ प्रदेशों में अपेक्षाकृत अधिक सिंचाई के कारण यत्र-तत्र भूमि पर एक नमकीन सफेद परत का जमाव होता है, इसे ही रेह या कल्लर कहते हैं। हरियाणा और उत्तर प्रदेश के शुष्क भागों में यह मुख्यत: देखने को मिलती है।
● डेल्टा मैदान– डेल्टा प्रदेश, खादर प्रदेश का ही विस्तृत रूप माना जाता है। जहाँ गंगा एवं ब्रह्मपुत्र नदियाँ अपने मुहाने के निकट विशाल डेल्टा का निर्माण करती है जो भारत बांग्लादेश में विस्तृत है।
● डेल्टा प्रदेश में मुख्यत: पुराना पंक, नया पंक एवं दलदल सम्मिलित है। डेल्टाई क्षेत्र की उच्च भूमि को ’चार’ (Char) तथा दलदली क्षेत्र को बिल (Bil) के नाम से जाना जाता है।
उत्तर के विशाल मैदान का प्रादेशिक विभाजन–
● पश्चिम में राजस्थान से पूर्व में असम तक प्रादेशिक विशेषताओं के आधार पर गंगा मैदान को निम्नलिखित चार भागों में विभक्त किया गया है–
1. राजस्थान मैदान
2. पंजाब–हरियाणा मैदान
3. गंगा मैदान
4. ब्रह्मपुत्र मैदान
1. राजस्थान मैदान-
● मुख्य रूप से इसका विस्तार राजस्थान के पश्चिमी भाग में अरावली पहाड़ियों से भारत–पाकिस्तान की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा तक है।
● यह मैदान 1.75 लाख किमी. क्षेत्र में विस्तृत है, जिसकी औसत चौड़ाई लगभग 300 किमी. तथा विस्तार 60 किमी. तक है। राजस्थान मैदान के निर्माण में पवन क्रिया का प्रमुख योगदान है।
● इस मैदान को दो भागों में बांटा गया है–
(i) मरूस्थली
(ii) राजस्थान बांगर
(i) मरूस्थली–
● इस भाग में बालू अधिकता के कारण बालूका स्तूपों की संख्या अधिक है। इस भाग में कहीं–कहीं धरातल पर ग्रेनाइट एवं नीस की चट्टानें भी दिखाई देती है।
● सामान्य रूप से यह भाग शुष्क मरूस्थल (25 सेमी. वार्षिक वर्षा) है परंतु सिंचाई सुविधाओं का विस्तार करके यहाँ गेहूँ, ज्वार, बाजरा आदि की कृषि की जा सकती है।
● यह भाग मारवाड़ मैदान का अंग है एवं यहाँ छोटी–छोटी झीलें है जो अधिकांश सूखी हुई है।
(ii) राजस्थान बांगर–
● इस स्थान पर टीले/बालूका स्तूप बहुत कम पाए जाते है। यहाँ मिट्टी अपेक्षाकृत अधिक उपजाऊ है।
● राजस्थान बांगड में उत्तरी तथा पूर्वी उच्च भाग प्रदेश सम्मिलित है। इस भाग का पश्चिमी विस्तार 25 सेमी. वार्षिक वर्षा की समवर्षा रेखा का निर्धारण करता है।
● लूनी नदी यहाँ की प्रमुख मौसमी नदी है जो दक्षिण–पश्चिम दिशा में कच्छ के रन की ओर प्रवाहित होती है।
2. पंजाब-हरियाणा मैदान-
● सतलुज, व्यास एवं रावी नदियों द्वारा अवसाद निक्षेपण इस मैदान की उत्त्पति का प्रमुख कारण रहा है। इस मैदान का ढाल पश्चिम दिशा में सिंधु नदी की ओर एवं दक्षिण दिशा में कच्छ की खाड़ी की ओर है।
● पंजाब–हरियाणा मैदान एक चौरस मैदान है। इसका विस्तार 1.75 लाख वर्ग किमी. है। उत्तर–पूर्व से दक्षिण–पश्चिम दिशा में इसकी लम्बाई 640 किमी. है तथा पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर इसकी चौड़ाई 300 किमी. है।
● यह क्षेत्र शिवालिक से जुड़ा हुआ है तथा इसके उत्तरी भाग में अनेक छोटी–छोटी नदियाँ है जिन्हें चोस (Chos) कहते है। चोस द्वारा इस मैदान के उत्तरी भाग में काफी अपरदन भी हुआ है। इस भाग की प्रमुख स्थलाकृति धाया (Dhaya) एवं बेट (Bet) है।
● सतलुज, व्यास, रावी, चिनाब तथा झेलम इन पाँच नदियों से बना पंजाब का मैदान इस मैदान को दोआब निर्मित मैदान के रूप में भी जानते है।
● दोआब– दो नदियों के बीच के उपजाऊ क्षेत्र को दोआब कहते है।
● पंजाब–हरियाणा मैदान के पाँच दोआब निम्नलिखित है–
(i) | सतलुज एवं व्यास नदी के बीच | बिस्त दोआब |
(ii) | व्यास एवं रावी नदी के बीच | बारी दोआब |
(iii) | रावी एवं चिनाब नदी के बीच | रेचना दोआब |
(iv) | चिनाब एवं झेलम नदी के बीच | चाज दोआब |
(v) | झेलम–चिनाब एवं सिन्धु नदी के बीच | सिन्ध सागर दोआब |
3. गंगा मैदान-
● यह मैदान उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल (बांग्लादेश की पश्चिमी सीमा) तक स्थिति है। गंगा मैदान 1400 किमी. की लम्बाई में एवं शिवालिक एवं प्रायद्वीपीय उच्च भूमि के बीच लगभग 300 किमी. की चौड़ाई में फैला है।
● गंगा नदी का डेल्टा विश्व में सबसे बड़ा डेल्टा है। इस मैदान का निर्माण हिमालय से निकलने वाली गंगा एवं दूसरी सहायक नदियों द्वारा लाए गए अवसादों की निक्षेपण क्रिया द्वारा हुआ है।
● गंगा के मैदान निर्माण में गंगा नदी अपवाह के अतिरिक्त दक्षिण से बहने वाली नदियाँ जैसे– चम्बल, केन बेतवा तथा सोन का भी योगदान रहा है।
● गंगा के संपूर्ण मैदान का सामान्य ढाल दक्षिण–पूर्व की ओर रहा है। इस आधार पर ओ.एच.के. स्पेट एवं आर.एल. सिंह ने गंगा के मैदान को निम्नलिखित तीन लघु भू–आकृतिक इकाइयों में विभाजित किया–
(i) ऊपरी गंगा का मैदान।
(ii) मध्य गंगा का मैदान।
(iii) निम्न गंगा का मैदान।
(i) ऊपरी गंगा का मैदान–
● यह गंगा के मैदान का ऊपरी भाग है। इस मैदान की उत्तरी सीमा का निर्धारण शिवालिक पहाड़ियों द्वारा किया जाता है। वहीं दक्षिणी सीमा प्रायद्वीप पठार तथा पश्चिमी सीमा यमुना नदी निर्धारित करती है।
● गंगा मैदान से पूर्व की ओर वार्षिक वर्षा 100 से.मी. से अधिक तथा पश्चिम की ओर वर्षा 100 से.मी. से कम होती है। गंगा के मैदान का विस्तार उत्तर प्रदेश के लगभग दो–तिहाई भाग में है।
● उत्तरी गंगा मैदान का विस्तार 1.49 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर है। यह मैदान पूर्व–पश्चिम दिशा में 55 किमी. तथा उत्तर–दक्षिण दिशा में 380 किमी. क्षेत्र में विस्तृत है।
● समुद्रतल से इस मैदान की ऊँचाई 100 से 300 मीटर तक है तथा गंगा मैदान के उत्तरी भाग के ढाल दक्षिण के अपेक्षाकृत तीव्र है।
● गंगा मैदान के पश्चिम दिशा में गंगा–यमुना दोआब स्थित है जो अपेक्षाकृत उच्च प्रदेश है। रूहेलखण्ड का मैदान जो 35 हजार वर्ग किमी. क्षेत्र पर फैला हुआ है वह उत्तरी गंगा के मैदान का ही भाग है।
(ii) मध्य गंगा का मैदान–
● यह प्रदेश बिहार के साथ–साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश में विस्तृत है। इसका विस्तार लगभग 1.45 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर है। पूर्व पश्चिम दिशा में यह 330 किमी. चौड़ा है।
● प्रायद्वीपीय पठार की उत्तरी सीमा मध्य गंगा मैदान की दक्षिणी सीमा का निर्धारण करती है तथा हिमालय का गिरिपाद (शिवालिक) इसकी उत्तरी सीमा का निर्धारण करती है।
● इस मैदान में जलोढ़क की औसत मोटाई 1300 से 1400 मीटर के बीच पाई जाती है जो हिमालय के गिरिपाद भाग में बढ़कर 10,000 मीटर तक हो जाती है।
● गंगा की सहायक नदियाँ घाघरा, गंडक तथा कोसी इस मैदान में प्रवाहित होने वाली प्रमुख नदियाँ है। यहाँ प्रवाहित होने वाली सभी नदियाँ अपने मार्ग परिवर्तन के लिए कुख्यात है। क्योंकि हिमालय नदियाँ अपने साथ भारी मात्रा में अवसाद वहन करती है। परंतु अचानक तीव्र ढाल भंग होने के कारण अवसादों का तीव्र गति से अधिक मात्रा में जमाव होता है परिणामस्वरूप नदी नितल ऊपर उठता है तथा जलमार्ग परिवर्तित हो जाता है।
● बिहार की कोसी नदी भयंकर बाढ़ के लिए जानी जाती है, इसलिए इसे ‘बिहार का शोक’ भी कहा जाता है।
● दक्षिण भारतीय नदियों द्वारा भी इस क्षेत्र के मैदानों का निर्माण किया गया है, जिनसे सोन नदी सबसे अधिक प्रसिद्ध है।
● मध्य गंगा मैदान के प्रसिद्ध दोआब है– गंगा–घाघरा दोआब, घाघरा–गंडक–कोसी दोआब है।
(iii) निम्न गंगा का मैदान–
● पश्चिमी बंगाल में विस्तृत इस मैदान का विस्तार हिमालय की तलहटी से गंगा नदी के मुहाने/डेल्टा तक है। 81 हजार वर्ग किमी. में फैले इस मैदान की लम्बाई उत्तर से दक्षिण में 580 किमी. है तथा पूर्व–पश्चिम दिशा में इस मैदान की चौड़ाई अधिकतम है।
● निम्न गंगा के मैदान का निर्माण तिस्ता एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा लाए गए अवसादों के निक्षेपण से भी हुआ है।
● पश्चिमी बंगाल का पर्वत पादीय एवं तराई क्षेत्र दुआर (Duar) के नाम से जाना जाता है। वहीं यहाँ पर पाए जाने वाले निम्न भू–भाग को बिल (Bill) के नाम से जाना जाता है।
● राजमहल की पहाड़ियों (राजमहल गारोगैप) तथा बांग्लादेश की सीमा के बीच यह मैदान अत्यधिक संकरा (16 किमी. चौड़ा) रह जाता है।
● इस मैदान के डेल्टाई भागों में गंगा नदी अनेक जल वितरिकाओं में बह जाती है तथा यहाँ पर भूमि का ढाल बहुत ही मन्द है। (2 सेमी. /किमी.)
4. ब्रह्मपुत्र का मैदान-
● इस मैदान का निर्माण ब्रह्मपुत्र एवं उसकी सहायक नदियों के द्वारा किया गया है। इस मैदान को ब्रह्मपुत्र की घाटी के नाम से भी जानते है। साथ ही इस मैदान का समस्त भाग असम में स्थित है। अत: इसे ‘असम का मैदान’ भी कहते है।
● यह 800 किमी. लम्बा एवं 60 से 90 किमी. चौड़ा एक लम्बा एवं सँकरा मैदान है, जिसका कुल क्षेत्रफल लगभग 56 हजार वर्ग किमी. है।
● ब्रह्मपुत्र मैदान तीनों ओर से पर्वत/पहाड़ों से घिरा हुआ है। जहाँ उत्तर में हिमालय पर्वतमाला, दक्षिण में गारों, खासी व जयन्तियां एवं पूर्व में पटकाई बूम व नागा श्रेणियाँ स्थित है। इस मैदान के पश्चिम में भारत–बांग्लादेश की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा तथा निम्न गंगा का मैदान इसकी पश्चिमी सीमा का निर्धारण करता है।
● सामान्यत: इस मैदान का ढाल दक्षिण–पश्चिम दिशा की ओर बंगाल की खाड़ी शाखा की तरफ पाया जात है परंतु यहाँ ढाल प्रवणता कम है। ढाल प्रवणता कम होने के कारण ब्रह्मपुत्र एक गुंफित नदी बन गई है। परिणामस्वरूप इस नदी में अनेक नदीय द्वीप बन गए है।
(माजुली द्वीप विश्व का सबसे बड़ा 929 वर्ग किमी. का नदीय द्वीप है, यह ब्रह्मपुत्र नदी में स्थित है।)
● इस मैदान का औसत ढाल 12 सेमी./किमी. है एवं ढाल उत्तर–पूर्व से दक्षिण–पश्चिम दिशा में है। मैदान के उत्तरी भाग में ब्रह्मपुत्र एवं उसकी सहायक नदियों ने जलोढ़ पंखों का निर्माण किया है।
● ढाल के कम होने के कारण इस मैदान में नदियों ने नदी–विसर्प बनाए है जिससे निम्न भूमि का निर्माण होता है।
प्रायद्वीपीय पठारी भाग
● यह भाग लगभग 16 लाख वर्ग किलोमीटर (भारत का क्षेत्र में सबसे बड़ा भौतिक प्रदेश) विस्तृत एक अनियमित त्रिभुजाकार आकृति है जिसकी सामान्य ऊँचाई 600-900 मीटर है। इसका आधार उत्तर में दिल्ली कटक से राजमहल पहाड़ियों तक तथा दक्षिण में शीर्ष कन्याकुमारी के पास स्थित है।
● यह पठार तीन ओर से पर्वतों द्वारा घिरा हुआ है। प्रायद्वीप के उत्तर में अरावली, सतपुड़ा, विंध्याचल व राजमहल की पहाड़ियाँ स्थित है, पश्चिम में पश्चिमी घाट तथा पूर्व में पूर्वी घाट स्थित है।
● उत्तर से दक्षिण दिशा में इसकी लंबाई 1600 किमी. है तथा पूर्व-पश्चिम दिशा में इसकी चौड़ाई 1400 किमी. है। 22° उत्तरी अक्षांश के दक्षिण में पश्चिमी घाट इसकी पश्चिमी सीमा का निर्धारण करता है एवं पूर्वी घाट इसकी पूर्वी सीमा बनाता है। पूर्वी घाट तथा पश्चिमी घाट नीलगिरि पहाड़ियों के समीप एक दूसरे से मिल जाते है
● इस विस्तृत पठार के अंतर्गत दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान, मध्यप्रदेश, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, केरल तथा गुजरात राज्यों के भूखण्ड आते है। इसके अतिरिक्त मेघालय पठार को भी प्रायद्वीपीय पठार का ही उत्तरी-पूर्वी अग्र भाग माना जाना गया है।
● संपूर्ण प्रायद्वीपीय पठार गोंडवाना लैण्ड का एक भाग है। यहाँ की प्रमुख नदियाँ कृष्णा, गोदावरी, महानदी तथा कावेरी है। इन नदियों के दिशा प्रवाह से इस बात का प्रमाण मिलता है कि प्रायद्वीपीय पठार का सामान्य ढाल पश्चिम दिशा से पूर्व दिशा की ओर है। जबकि नर्मदा तथा ताप्ती नदियों के पश्चिम दिशा में प्रवाहित होने से इस भाग का ढाल पूर्व से पश्चिम की ओर होने के भी प्रमाण माने जाते है।
● प्रायद्वीपीय पठार अपने इतिहास के अधिकांश समय में समुद्रतल से ऊपर स्थित रहा है, परिणामस्वरूप लाखों वर्षों से अनाच्छादन एवं अपरदन बलों का अबाध गति से कार्य होता रहा है। यह क्षेत्र विच्छिन्न पहाड़ियों, शिखर मैदानों, संकरी घाटियों, श्रृंखलाबद्ध पठारों एवं समप्राय मैदानों का एक प्राकृतिक भू–दृश्य है।
● प्रायद्वीपीय पठार में कई नदियाँ है जो इस पठार को छोटे-छोटे अन्य पठारों में बाँट देती है, जिसका विवरण निम्नलिखित है –
(i) दक्कन ट्रेप–
● यह पठार ताप्ती नदी के दक्षिण दिशा में त्रिभुजाकार रूप में फैला हुआ है। दक्कन ट्रेप के उत्तर-पश्चिम में सतपुड़ा-विंध्याचल, उत्तर में मकालू तथा महादेव पर्वतखण्ड, पूर्व में पूर्वी घाट तथा पश्चिम में व पश्चिमी घाट दक्कन ट्रेप की सीमाओं का निर्धारण करती है।
● दक्कन ट्रेप 5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला विशाल भू-भाग है, जिसका ढाल पश्चिम दिशा से पूर्व दिशा की ओर है।
● लावा निर्मित इस पठार की औसत ऊँचाई 600 मीटर है। उत्तर दिशा की तुलना में इस पठार की ऊँचाई दक्षिण दिशा में अधिक है। (उत्तर में 500 मीटर, दक्षिण में 1000 मीटर)
● महानदी, कृष्णा, गोदावरी तथा कावेरी नदियों ने इस क्षेत्र में पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होते हुए यहाँ की नदी-घाटियों को काफी गहरा कर दिया है। परिणामस्वरूप समूचा दक्कन ट्रेप अनेक छोटे-छोटे पठारों में विभक्त हो गया है जैसे कर्नाटक पठार, आंध्रप्रदेश पठार, महाराष्ट्र पठार।
(ii) मालवा का पठार–
● त्रिभुजाकार आकृति वाला यह पठार नर्मदा एवं ताप्ती नदियों तथा विंध्याचल पर्वत के उत्तर-पश्चिम दिशा में विस्तृत है। इस पठार के उत्तर-पश्चिम में अरावली पर्वत तथा उत्तर-पूर्व दिशा में गंगा का मैदान स्थित है।
● 800 मीटर की ऊँचाई वाला यह पठार ग्रेनाइट जैसी कठोर चट्टानों से निर्मित है। इस पठार का सामान्य ढाल उत्तर-पूर्व दिशा की ओर है। अत: इस पठार में बहने वाली नदियाँ उत्तर-पूर्व दिशा की ओर प्रवाहित होते हुए यमुना नदी में जाकर मिल जाती है।
● यहाँ प्रवाहित होने वाली नदियों ने इस पठार को अनेक स्थानों पर उबड़-खाबड़ बना दिया है जिन्हें बीहड़ (Ranines) के नाम से जाना जाता हैं।
● चंबल नदी द्वारा उबड़-खाबड़ बनाया गया एक विस्तृत क्षेत्र बीहड़ के रूप में प्रसिद्ध है। बीहड़ प्रदेश कृषि कार्यों हेतु अयोग्य होते है। छोटा नागपुर का पठार, बुन्देलखण्ड पठार एवं रूहेलखण्ड पठार मालवा के पठार का ही पूर्वी विस्तार है।
(iii) छोटा नागपुर पठार–
● इस पठार के उत्तर-पश्चिम में सोन नदी बहती है जो गंगा की सहायक नदी है। दामोदर नदी इस पठार के मध्य भाग में भ्रंश घाटी से गुजरती हुई पूर्व-पश्चिम दिशा में बहती है। इस पठार में गोंडवाना युग के कोयला भंडार है जो भारत के संपूर्ण कोयले का तीन-चौथाई है।
● यह पठार झारखण्ड राज्य में स्थित है। यह पठार छोटे-छोटे पठारों में विभक्त है। इस पठार के उत्तर में हजारीबाग का पठार है तथा दक्षिण में राँची का पठार स्थित है।
(iv) मेघालय का पठार–
● इस पठार को शिलांग का पठार नाम से भी जाना जाता है। यह राजमहल पहाड़ियों के पार उत्तर-पूर्व तक प्रायद्वीपीय पठार का ही विस्तृत रूप है।
● मेघालय का पठार भारत के मुख्य पठार (प्रायद्वीपीय पठार) से निम्न काँप मिट्टी के मैदान द्वारा अलग किया गया है। इसे राजमहल-गारो गैप (Ramahal-Garo Gap) कहते हैं। इस गैप (खड्ड) का निर्माण भू-पृष्ठ में भ्रंश पड़ने से हुआ था, इस भ्रंश को गंगा नदी के निक्षेपों द्वारा भर दिया गया।
● मेघालय पठार के पश्चिम भाग में गारो पहाड़ियाँ, मध्यवर्ती भाग में जयन्तिया एवं खासी पहाड़ियाँ स्थिर है। मध्यवर्ती भाग मेघालय पठार का सबसे ऊँचा भाग है। इस पठार का ढाल अत्यधिक तीव्र है एवं यही ब्रह्मपुत्र नदी बहती है।
● गारो पहाड़ियों की ऊँचाई 900 मीटर है एवं खासी-जयन्तिया पहाड़ियों की ऊँचाई 1500 मीटर है। खासी पहाड़ियों के दक्षिण में चेरापूंजी (सर्वाधिक वर्षा) स्थित है।
प्रायद्वीपीय पठार के अन्य महत्वपूर्ण पर्वत या पहाड़ियाँ –
(i) अरावली पहाड़ियाँ –
● मालवा पठार के उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित ये पहाड़ियाँ दक्षिण-पश्चिम में अहमदाबाद से उत्तर-पूर्व में दिल्ली तक 800 किमी. की लंबाई में विस्तृत है।
● अरावली पहाड़ी कठोर क्वार्टजाइट, शिस्ट तथा नीस शैलों से बनी है। यह एक प्राचीन वलित पर्वतमाला है, जिसका कालक्रमानुसार अत्यधिक अपरदन हुआ। अत: वर्तमान में यह अवशिष्ट पर्वत का उदाहरण है।
● मुख्यत: इस पहाड़ी का विस्तार राजस्थान में है तथा राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी भाग में इसकी सर्वोच्च चोटी गुरुशिखर (1722 मीटर) है।
● राजस्थान के अतिरिक्त इसका विस्तार हरियाणा एवं दिल्ली में भी है। दिल्ली में अरावली की ऊँचाई न्यूनतम हो जाती है। अंतत: यह पहाड़ी मैदान में विलुप्त हो जाती है।
(ii) सतपुड़ा पर्वतमाला –
● इसका विस्तार नर्मदा एवं ताप्ती नदियों के बीच है। पश्चिम में यह पर्वतमाला राजपीपला की पहाड़ियों से शुरू होती है तथा उत्तर-पूर्व दिशा में मैकाल तथा महादेव पहाड़ियों के रूप में अमरकंटक तक फैली है।
● बेसाल्ट और ग्रेफाइट चट्टानों से बनी इस पर्वतमाला की लंबाई लगभग 900 किमी. है। इसकी औसत ऊँचाई 760 मीटर है।
● इस पर्वतमाला की सबसे ऊँची चोटी धूपगढ़ (1350 मीटर) है जो पंचमढ़ी के निकट स्थित है।
● नर्मदा यहाँ अमरकंटक की चोटी (1127 मीटर) से निकलती है तथा इसी नदी पर स्थित प्रसिद्ध धुआंधार जलप्रपात स्थित है।
(iii) विंध्याचल पर्वतमाला –
● यह नर्मदा नदी के उत्तर दिशा में नदी के समानांतर पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर विस्तृत है। यह पर्वतमाला आगे चलकर उत्तर-पूर्व दिशा में मुड़ जाती है जहाँ यह कैमूर श्रेणी के नाम से जानी जाती है।
● यह पर्वतमाला लगभग 1200 किमी. लंबी है तथा 500 मीटर से 600 मीटर ऊँची है। विंध्याचल पर्वतमाला गंगानदी क्रम को दक्षिणी भारत के नदी क्रम से अलग करती है।
(iv) पश्चिमी घाट या सह्याद्रि –
● पश्चिमी घाट प्रायद्वीपीय भारत की पश्चिमी सीमा का निर्धारण करता है। यह ताप्ती नदी से प्रारंभ होकर दक्षिण दिशा में कन्याकुमारी तक लगभग 1500 किमी. लंबाई में विस्तृत है।
● यह पश्चिमी तट के समानांतर उत्तर से दक्षिण दिशा में फैला हुआ है। उत्तरी भाग में इसकी चौड़ाई दक्षिणी भाग की तुलना में कम (उत्तरी भाग – 50 किमी. दक्षिणी भाग 80 किमी.) है।
● इसकी औसत ऊँचाई 1000 मीटर से 1200 मीटर है। पश्चिमी घाट का पश्चिमी ढाल पूर्वी ढाल की तुलना में अधिक तीव्र है। अत: यह कहा जा सकता है कि यह पर्वत एक दीवार की भाँति खड़ा है एवं इसे पार करना कठिन है अत: इन्हें दर्रों के माध्यम से पार किया जाता है।
पश्चिमी घाट के तीन प्रमुख दर्रे निम्नलिखित है –
(i) थालघाट–
● यह मुंबई तथा कोलकाता के मध्य सड़क मार्ग प्रदान करता है। इसकी ऊँचाई 581 मीटर है।
(ii) भोरघाट–
● यह मुंबई और चेन्नई के बीच यातायात प्रदान करता है। इसकी ऊँचाई 630 मीटर है।
(iii) पालघाट–
● यह एक दरारी घाटी के रूप में है, जिसकी चौड़ाई 24 किमी. तक है। इसके बीच में से कोच्चि-चेन्नई रेलमार्ग गुजरता है। इसकी ऊँचाई 144 मीटर है।
(iv) सेनकोटा दर्रा –
● तिरूवंतपुरम् को मदुरै से जोड़ता है।
थाल घाट | नासिक-मुंबई |
भोर घाट | मुंबई-पुणे |
पाल घाट | कोच्चि-चेन्नई |
सेनकोट्टा दर्रा | तिरूअन्तपुरम्-मदुरै |
● नीलगिरि, अन्नामलाई, पालनी, इलायची आदि पश्चिमी घाट की महत्वपूर्ण पर्वत श्रृंखलाएं है।
● अनाईमुडी दक्षिणी भारत की सबसे ऊँची चोटी है, जिसकी ऊँचाई 2695 मीटर है नीलगिरि स्थित डोडा बेट्टा दूसरी सबसे ऊँची (2637 मीटर) चोटी है।
(v) पूर्वी घाट–
● यह भाग प्रायद्वीपीय पठार के पूर्वी किनारे पर स्थित है जो उत्तरी-पूर्वी भाग में उड़ीसा (महानदी घाटी) से आरंभ होकर दक्षिण में नीलगिरि पहाड़ियों तक विस्तृत है।
● पूर्वी घाट की लंबाई 1300 किमी. है तथा इसकी चौड़ाई दक्षिण की तुलना में उत्तरी भाग में अधिक है अर्थात् उत्तर में 200 किमी. तथा दक्षिण में 100 किमी. चौड़ा है।
● पूर्वी घाट की औसत ऊँचाई 600 मीटर है।
(पश्चिमी घाट – 1000 – 1200 मीटर)
● पूर्वी घाट एक टूटी-फूटी अवशिष्ट श्रृंखला के रूप में है क्योंकि कृष्णा, कावेरी, महानदी तथा गोदावरी में इस घाट को काटकर अपने मार्ग बना लिए है।
● पूर्वी घाट को पालकोंडा, जावदी, शेवराय, नल्लामलाई, वेली कोंडा आदि नामों से भी जाना जाता है। तिमाईगिरि पूर्वी घाट की सबसे ऊँची (1515 मीटर) चोटी है।
● दक्षिण में नीलगिरि की पहाड़ियों के निकट यह पश्चिमी घाट के साथ मिल जाती है अर्थात नीलगिरि की पहाड़ियों पर पूर्वी और पश्चिमी घाट आपस में मिल जाते है।
पश्चिमी तथा पूर्वी घाट में अंतर-
पश्चिमी घाट | पूर्वी घाट |
1. संरचना के दृष्टिकोण से यह एकरूप एवं संपूर्ण इकाई है। | 1. संरचना के दृष्टिकोण से इसमें एकरूपता नहीं दिखाई देती है। |
2. औसत ऊँचाई 900 से 1200 मीटर है। | 2. औसत ऊँचाई पश्चिमी घाट से कम (600 मीटर) है। |
3. यह दीवार की भाँति खड़ा है, जिसे दर्रों द्वारा ही पार किया जा सकता है। | 3. इसे नदियों ने कई भागों में बांटकर पारगम्य बना दिया है। |
4. यह प्रायद्वीपीय पठार में बहने वाली सभी बड़ी नदियों का स्रोत है। | 4. पूर्वी घाट किसी बड़ी नदी का उद्गम स्रोत नहीं है। |
5. औसत चौड़ाई 50–85 किमी. है। | 5. औसत चौड़ाई 100–200 किमी. (पश्चिमी घाट से अधिक चौड़ा) है। |
6. यह अरब सागर से आने वाली मानसूनी पवनों (दक्षिणी–पश्चिमी) के लम्बवत है। अत: तटीय मैदानों में भारी वर्षा कराता है। | 6. यह बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसूनी पवनों (दक्षिणी–पश्चिमी) के लगभग समानान्तर है। अत: अधिक वर्षा नहीं कराता है। |
प्रायद्वीपीय पठार तथा हिमालय पर्वत में अन्तर –
प्रायद्वीपीय पठार | हिमालय पर्वत |
1. यह पठार कठोर एवं प्राचीन शैलों से निर्मित भू–खण्ड है। | 1. यह पर्वत मुलायम एवं नवीन शैलों से निर्मित है। |
2. इस प्रदेश का धरातल ऊबड–खाबड एवं अनियमित है, जिसमें नदियों ने गहरी घाटियाँ बना डाली है। | 2. इस प्रदेश में नदियों ने अपरदन उपरांत गहरी सँकरी (U आकार की) घाटियाँ बना डाली है। |
3. इस पठार में प्राचीन वलन पर्वत स्थिति है। (जैसे– अरावली) | 3. इस प्रदेश नवीन प्रदेश श्रेणियाँ स्थिति है। जो विश्व के सर्वोच्च पर्वत शिखरों हेतु प्रसिद्ध है। |
4. इस पठार में अधिकांशत: आग्नेय चट्टाने (लावा निर्मित) पाई जाती हैं। | 4. इस पर्वत में अधिकतर तलछटी चट्टाने पाई जाती है। |
5. यह पठार त्रिभुजाकार आकृति का है। | 5. यह पर्वत एक वृहद चाप (2400 किमी.) के रूप में है। |
6. इस पठार का निर्माण एक उत्त्खण्ड के रूप में हुआ है। (दक्कन ट्रेप) | 6. यह एक मोड़दार पर्वत जो विभिन्न भूगर्भिक हलचलों का परिणाम है। |
तटीय मैदान
● पश्चिमी में कच्छ के रन से पूर्व में गंगा-ब्रह्मपुत्र के डेल्टा तक लगभग 6000 किमी. तक विस्तृत है।
● पश्चिमी घाट एवं पश्चिमी तटरेखा के मध्य पश्चिमी तटीय मैदान स्थित है तथा पूर्वी घाट एवं पूर्वी तटरेखा के मध्य पूर्वी तटीय मैदान स्थित है।
● ये मैदान प्रायद्वीप पठार के पश्चिमी एवं पूर्वी सीमा (भारतीय तटरेखा) के बीच सँकरें मैदानों के रूप में विस्तृत है।
● इन तटीय मैदानों का निर्माण समुद्र क्रिया या नदियों द्वारा निक्षेपण से हुआ है। इन मैदानों को धरातलीय संरचना और भू-आकृतिक तौर पर निम्नलिखित दो भागों में बांटा गया है–
(i) पश्चिमी तटीय मैदान
(ii) पूर्वी तटीय मैदान
(i) पश्चिमी तटीय मैदान–
● इस मैदान का विस्तार पश्चिमी घाट में कच्छ की खाड़ी से कन्याकुमारी तक लगभग 1500 किमी. की दूरी तक है।
● पश्चिमी तटीय मैदान का क्षेत्रफल लगभग 65 हजार वर्ग किमी. हैं।
● पश्चिमी तटीय मैदान सँकरा मैदान है, जिसकी पश्चिमी घाट तथा पश्चिमी तट के बीच औसत चौड़ाई लगभग 64 किमी. है। इस मैदान की चौड़ाई उत्तरी भाग में अधिक मध्य भाग में कम तथा दक्षिणी भाग में पुन: अधिक हो जाती है।
● भू आकृतिक संरचना की दृष्टि से समूचे पश्चिमी तटीय मैदान को कई उपभागों में बांटा गया है-
● मुम्बई के उत्तर में इसे – कच्छ प्रायद्वीप/ काठियावाड़/ गुजरात मैदान के नाम से जानते है।
● कोंकण तट– मुम्बई से गोवा तक (500 किमी.)
● कन्नड़ तट– गोवा से मंगलौर तक (225 किमी.)
● मालाबार तट– मंगलौर से कन्याकुमारी (500 किमी.)
● पश्चिमी तट के कटा-फटा होने के कारण यहाँ पर मुम्बई मंगलौर, मारमागोआ तथा कोच्चि जैसे बंदरगाहों का विकास हुआ है।
● पश्चिमी तटीय मैदान पर बालू पाई जाती है। परिणामस्वरूप यहाँ अनेक लैगून का निर्माण हुआ है। उदाहरणत: कोच्चि बंदरगाह भी एक लैगून पर ही स्थित है।
(ii) पूर्वी तटीय मैदान-
● इस मैदान का विस्तार पूर्वी घाट तथा पूर्वी तट के बीच हुआ है। स्वर्णरेखा नदी से (उड़ीसा व पश्चिमी बंगाल की सीमा) कन्याकुमारी तक विस्तृत है। इस मैदान का विस्तार लगभग 1 लाख वर्ग किमी. है।
पश्चिमी तथा पूर्वी तटीय मैदान की तुलना
पश्चिमी तटीय मैदान | पूर्वी तटीय मैदान |
1. यह संकरा मैदान है। (औसत चौड़ाई 65 किमी.) | 1. यह अपेक्षाकृत चौड़ा मैदान है। (औसत चौड़ाई 85–100 किमी.) |
2. इस मैदान में नदियाँ डेल्टा नहीं बनाती है। क्योंकि नदी छोटी एवं तीव्रगामी होती है। | 2. कृष्णा, गोदावरी, महानदी तथा कावेरी नदियों ने यहाँ बड़े–बड़े डेल्टा बनाए हैं। |
3. इस मैदान के दक्षिणी भागों में अनेक लैगून झीलें मिलती है। | 3. इन मैदानों में लैगून झीलों का अभाव या कम पाई जाती है। |
4. यह मैदान पश्चिमी घाट तथा अरब सागर के बीच स्थित है। | 4. यह मैदान पूर्वी घाट तथा बंगाल की खाड़ी के बीच स्थित है। |
5. यह तट अधिक कटा–फटा होने के कारण यहाँ पर बन्दरगाह निर्माण के आदर्श दशाएं विकसित हुई है। | 5. यह तट कम कटा–फटा होने के कारण यहाँ अपेक्षाकृत कम बन्दरगाहों का विकास हुआ है। |
भारतीय द्वीप समूह
● भारत के मुख्य स्थल भाग के अतिरिक्त हिन्द महासागर क्षेत्र में बहुत से द्वीप समूह है, जिन पर भारत का सम्पूर्ण आर्थिक एवं राजनीतिक अधिकार है।
● भारत में कुल 247 द्वीप समूह है, जिनमें से 204 द्वीप बंगाल की खाड़ी में तथा 43 द्वीप अरब सागर क्षेत्र में स्थित है। इसमें बंगाल की खाड़ी के द्वीप समूह म्यांमार की अराकानयोमा पर्वत श्रेणी का दक्षिणी विस्तार एवं निमज्जित श्रेणी के शिखर हैं वही अरब सागर के द्वीप प्रवाल भित्तियों के जमाव है जो ज्वालामुखी द्वीपों पर संग्रहीत है।
(A) बंगाल की खाड़ी के द्वीप (Islands of Bay of Bengal)
● इन द्वीपों की उत्पत्ति ज्वालामुखी उद्गारों से हुई है। बंगाल की खाड़ी के द्वीपों को दो भागों में रखा जाता हैं-
(1) तटवर्ती द्वीप (Coastal Islands)
● बंगाल की खाड़ी में ऐसे द्वीपों की संख्या गंगा के डेल्टाई भाग में अधिक है।
● गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टा पर ऐसे द्वीपों का अभाव है।
● भारत और श्रीलंका के बीच मन्नार की खाड़ी में पम्बन द्वीप है, जो आदम पुल का एक अंश है। यह चट्टानी धरातल रखता है।
● नेल्लौर के निकट श्रीहरिकोटा द्वीप महत्त्वपूर्ण है।
(2) दूरवर्ती द्वीप (Remote Islands)
इनमें अंडमान और निकोबार द्वीप शामिल हैं।
(a) अंडमान द्वीप समूह (Andaman Islands)
● अंडमान द्वीप समूह 8300 वर्ग किमी. में फैले हैं।
● यहाँ पर टर्शियरी काल की बलुआ पत्थर, चूना पत्थर तथा शैल चट्टानें पाई जाती हैं।
● यहाँ पर वनों की अधिकता पाई जाती हैं।
● पोर्ट ब्लेयर के उत्तर में दो ज्वालामुखी द्वीप-बैरन व नारकोंडम द्वीप पाए जाते हैं।
(b) निकोबार द्वीप समूह (Nicobar Islands)
● यह द्वीप-समूह अंडमान द्वीप समूह के छोटे अंडमान से 10o डिग्री चैनल द्वारा अलग है।
● यह 19 द्वीपों का समूह है जो 6o45′ से 9o30′ उत्तरी अक्षांशों के बीच फैले हैं।
● अंडमान-निकोबार द्वीप समूह निमग्न पर्वत की ऊपर उठी चोटियाँ हैं।
(B) अरब सागर के द्वीप (Arabian Sea Islands)
● अरब सागर के द्वीपों में लक्षद्वीप समूह सम्मिलित किए जाते हैं।
● ये केरल तट से दूर प्रवाल निक्षेपों (coral deposits) पर निर्मित हैं।
● इन द्वीपों में से सबसे दक्षिण में स्थित द्वीप मालदीव के ठीक उत्तर में स्थित है।
● इन द्वीपों में से सबसे बड़ा द्वीप लक्षद्वीप है।
● यह मुख्यतः प्रवाल भित्तियों से निर्मित है।
● कवरत्ती जो कि लक्षद्वीप की राजधानी है यहीं स्थित है।
● अमीनदीवी द्वीप समुह।
● मिनिकॉय दक्षिण में स्थित सबसे बड़ा द्वीप है। यह आठ अंक्षाश अंश पर स्थित है।
● इन द्वीपों पर नारियल के वृक्ष बहुतायत पाए जाते हैं।
भारत के प्रमुख जलप्रपात
जोग/गरसोपा/महात्मा गाँधी जलप्रपात (Jog/ Gersoppa/Mahatma Gandhi fall)
● कर्नाटक के शिमोगा जिले के शरावती नदी पर स्थित यह भारत में सबसे ऊँचा जलप्रपात है। यह कर्नाटक के पर्यटन में एक प्रमुख आकर्षण केन्द्र है।
शिवसमुद्रम जलप्रपात (Shivanasamudra Falls)
● यह कर्नाटक राज्य में कावेरी नदी पर स्थित जलप्रपात है।
● यह भारत में दूसरा सबसे ऊँचा जलप्रपात है।
धुआँधार जलप्रपात (Dhuandhar Falls)
● यह नर्मदा नदी पर मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले में अवस्थित है।
● यह जलप्रपात भेड़ाघाट क्षेत्र का प्रमुख दर्शनीय स्थल है।
● यहाँ नर्मदा की धारा 50 फीट ऊपर से गिरती है, जिसका जल सफेद धुएँ के समान उड़ने लगता है, इसी कारण इसे धुआँधार कहते हैं।
हुण्डरु जलप्रपात (Hundru Falls)
● स्वर्ण रेखा नदी पर झारखण्ड राज्य में राँची में स्थित जलप्रपात है।
यहाँ पर जल 320 फीट की ऊँचाई से गिरता है।
वसुधारा जलप्रपात (Vasudhara Falls)
● अलकनन्दा नदी पर उत्तराखण्ड राज्य में बद्रीनाथ के निकट स्थित है।
इसे रहस्यमयी जल प्रपात के नाम से भी जाना जाता है।
पानासम जलप्रपात (Papanasam Falls)
● ताम्रपर्णी नदी पर तमिलनाडु राज्य में स्थित जलप्रपात है।
चित्रकूट जलप्रपात (Chitrakote Falls)
● इन्द्रावती नदी पर छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित है।
● इस जलप्रपात की ऊँचाई 90 फीट हैं। 90 फीट की ऊँचाई से इन्द्रावती की ओजस्विनी धारा गर्जना करते हुए गिरती है।
दूधसागर जलप्रपात (Dudhsagar Falls)
● मांडवी नदी पर गोवा राज्य में स्थित है।
● यह एक पंक्तिबद्ध जलप्रपात है।
● इसकी ऊँचाई 310 मीटर (1017 फीट) है।
पायकारा जलप्रपात (Pykara Falls)
● पायकारा नदी पर तमिलनाडु राज्य में नीलगिरि पहाड़ियों पर स्थित जलप्रपात है।
● इस जलप्रपात पर जल विद्युत उत्पादन संयंत्र भी स्थापित है।
चूलिया जलप्रपात (Chulia Falls)
● चूलिया जलप्रपात चम्बल नदी पर भैंसरोड़गढ़ के निकट राजस्थान में स्थित है।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य –
8° चैनल | यह मिनिकॉय को मालदीव से पृथक करता है। |
9° चैनल | यह लक्षद्वीप को मिनिकॉय से पृथक करता है। |
10° चैनल | यह अंडमान और निकोबार को पृथक करता है। (दक्षिण अंडमान को कार निकोबार से पृथक) |
11° चैनल | यह उत्तर में अमीनी द्वीप और दक्षिण में कनानोरे द्वीप को पृथक करता है। |
कोको खाड़ी | यह कोको द्वीप (म्यामांर) को उत्तरी अंडमान से पृथक करता है। |
डकंन पास | यह दक्षिण अंडमान को लिटिल अंडमान से पृथक करता है। |