भारत के भौतिक प्रदेश। Physical Region of India in Hindi

नमस्कार आज हम भूगोल विषय के भाग भारतीय भूगोल के महत्वपूर्ण अध्यायों में से एक भारत के भौतिक प्रदेश के विषय में अध्ययन करेंगे। साथ ही हम जानेंगे की भारत के भौतिक प्रदेश का मानचित्र क्या हैं, भारत के भौतिक प्रदेश के महत्वपूर्ण प्रश्न क्या हैं? एवं भारत का भौतिक विभाजन (Physical Region of India in Hindi) के बारे में विस्तार से जानकारी देने का प्रयास किया गया है।

प्रस्तावना:- भारत के भौतिक प्रदेश

पृथ्वी के धरातल पर चट्टानों व मिट्टियों में भिन्नता धरातलीय स्वरूप के अनुसार पाई जाती है। वर्तमान अनुमान के आधार पर पृथ्वी की आयु लगभग 46 करोड़ वर्ष (4.6 अरब) है। इतने लम्बे समय में अंतर्जात व बहिर्जात बलों से अनेक परिवर्तन हुए हैं।

करोड़ों वर्षों के दौरान, यह प्लेट काफी हिस्सों में टूट गई और ऑस्ट्रेलियन प्लेट दक्षिण-पूर्व तथा इंडियन प्लेट उत्तर दिशा में खिसकने लगी।

दो भूखण्डों का मिलन (Meeting of two land masses)

bharat ke bhautik pradesh

भारतीय उप-महाद्वीप का वर्तमान भौगोलिक स्वरूप गोंडवानालैण्ड और अंगारालैण्ड के मिलन की कहानी से संबंध रखता है।

दक्षिणी भूखंड गोंडवाना भूमि पुराजीव महाकल्प समाप्त होने पर खंडित हो गया और उत्तरी भूखंड अंगारा भूमि की ओर धीरे-धीरे बढ़ने लगा।

bharat ke bhautik pradesh1

•  इन दोनों भूखंडों के बीच विस्तृत सागर के रूप में टेथिस सागर था।

•  महाद्वीपों का अपने स्थान से हटते रहना, दो प्लेटों का बड़े पैमाने पर गतिमान होने का परिणाम है।

•  लगभग 20 करोड़ वर्ष पूर्व गोंडवाना भूमि के खंडित होकर उत्तर की ओर खिसकने के फलस्वरूप भारत वर्तमान रूप में विकसित हुआ है।

•  हिमालय पर्वतमाला और उत्तर के विशाल मैदान विस्तृत टेथिस सागर में पैदा हुए संपीड़न के उपरांत निर्मित हुए।

•  इस प्रकार भारत का निर्माण टेथिस सागर और गोंडवाना लैंड से हुआ।

भूगर्भीय संरचना का इतिहास (History of geological structure)

•  किसी भी देश की भूगर्भिक संरचना के अध्ययन द्वारा उस देश के विभिन्न भागों में मिलने वाली चट्टानों की प्रकृति एवं उसके स्वरूप की जानकारी प्राप्त होती है।

•  मिट्टियों की बनावट एवं खनिज पदार्थों की उपस्थिति चट्टानों की संरचना पर निर्भर करती है।

•  तलछट के जमाव से निर्मित भूमि में परतदार चट्टानें पाई जाती है। इससे उपजाऊ मृदा का निर्माण होता है।

•  भारत की भू-गर्भिक संरचना में नवीनतम और प्राचीनतम दोनों प्रकार की चट्टानों का निर्माण होता है।

•  भारतीय उपमहाद्वीप की वर्तमान भू-वैज्ञानिक संरचना व इसके क्रियाशील भू-आकृतिक प्रक्रम मुख्यतः अंतर्जनित व बहिर्जनिक बलों व प्लेट के क्षैतिज संचरण की अंतः क्रिया के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आए हैं।

भारत के भौतिक प्रदेश

भू-वैज्ञानिक संरचना व शैल समूह की भिन्नता के आधार पर भारत को तीन भू-वैज्ञानिक खंडों में विभाजित किया जाता है, जो भौतिक लक्षणों पर आधारित हैं-

(1)  प्रायद्वीपीय खंड (The Peninsular Block)

•  प्रायद्वीपीय खंड की उत्तरी सीमा कटी-फटी है, जो कच्छ से आरंभ होकर अरावली पहाड़ियों के पश्चिम से गुजरती हुई दिल्ली तक और फिर यमुना व गंगा नदी के समानांतर राजमहल की पहाड़ियों व गंगा डेल्टा तक जाती है।

 

प्रायद्वीपीय खंड

•  इसके अतिरिक्त उत्तरपूर्व में कर्बी ऐंगलॉग (Karbi Anglong) तथा मेघालय का पठार इसी खंड का विस्तार हैं।

•  पश्चिम बंगाल में मालदा भ्रंश उत्तरी-पूर्वी भाग में स्थित मेघालय तथा कर्बी ऐंगलॉग पठार को छोटा नागपुर पठार से अलग करता है। राजस्थान में यह प्रायद्वीपीय खंड मरुस्थल व मरुस्थल सदृश्य स्थलाकृतियों से ढका हुआ है।

•  प्रायद्वीप खंड मुख्यतः प्राचीन नाइस  ग्रेनाइट से बना है। कैम्ब्रियन कल्प से यह भूखंड एक कठोर खंड के रूप में खड़ा है। अपवाद स्वरूप पश्चिमी तट समुद्र में डूबा होने और कुछ हिस्से विवर्तनिक क्रियाओं से परिवर्तित होने के उपरान्त भी इस भूखंड के वास्तविक आधार तल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

•  इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट का हिस्सा होने के कारण ऊर्ध्वाधर हलचलों और खंड भ्रंश से संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान प्रभावित है। नर्मदा, तापी और महानदी की रिफ्ट घाटियाँ और सतपुड़ा ब्लॉक पर्वत इसके उदाहरण हैं।

•  प्रायद्वीप में मुख्यतः अवशिष्ट पहाड़ियाँ शामिल हैं, जैसे – अरावली, नल्लामाला, जावादी, वेलीकोण्डा, पालकोण्डा श्रेणी और महेंद्रगिरी पहाड़ियाँ आदि। यहाँ की नदी घाटियाँ उथली और उनकी प्रवणता कम होती है।

•  पूर्व की ओर बहने वाली अधिकांश नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले डेल्टा निर्माण करती हैं। महानदी, गोदावरी और कृष्णा नदी द्वारा निर्मित डेल्टा इसके उदाहरण हैं।

•  भारत का प्रायद्वीपीय पठार प्राचीनतम स्थलखण्ड पैंजिया का एक भाग है। कार्बोनिफेरस काल से ही प्रायद्वीपीय भारत का उत्तर एवं उत्तर-पूर्व दिशा की ओर स्थानांतरण जारी है।

•  यह गोंडवानालैण्ड का ही एक भाग है, यह आर्कियन युग के आग्नेय चट्टानों से निर्मित है जो नीस व सिस्ट के रूप में अत्यधिक स्थानान्तरित हो चुकी है।

प्रायद्वीपीय भारत की संरचना में चट्टानों का वर्गीकरण-

(A)  आर्कियन क्रम (Archaean Rock System)

•  इन चट्टानों का निर्माण गर्म पृथ्वी के ठण्डा होने के फलस्वरूप हुआ है।

•  ये प्राचीनतम एवं प्राथमिक चट्टानें हैं।

•  ये नीस एवं सिस्ट प्रकार की चट्टानें हैं एवं इनमें जीवाश्म नहीं पाए जाते है।

•  प्रायद्वीपीय भारत का दो तिहाई भाग आर्कियन चट्टानों से बना है।

•  प्रायद्वीपीय भारत में आर्कियन चट्टानों के तीन प्रकार हैं-

1.  बंगाल नीस (Bengal Gneiss)

2.  बुंदेलखण्ड नीस (Bundelkhand Gneiss)

3.  नीलगिरि नीस (Nilgiri Gneiss)

•  ये चट्टानें मुख्यत: कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश ओडिशा, बिहार के छोटानागपुर, दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में पाई जाती हैं।

(B)  धारवाड़ क्रम (Dharwar System)

•  धारवाड़ क्रम की चट्‌टानों का निर्माण आर्कियन चट्‌टानों के अपरदन और निक्षेपण से हुआ है।

•  इस क्रम की शैलों में न केवल धात्विक खनिज बल्कि संगमरमर जैसी कायान्तरित शैलें भी पाई जाती हैं।

•  ये परतदार चट्टानें प्राचीनतम है, जो अत्यंत ही रूपांतरित एवं विरूपित हो चुकी है एवं इनमें जीवाश्म नहीं मिलते हैं।

•  ये चट्टानें कर्नाटक के धारवाड़, शिमोगा एवं बेल्लारी जिलों में पाई जाती है जहाँ से इनका विस्तार तमिलनाडु तथा मदुरई जिलों तक है।

•  इनका विस्तार छोटानागपुर, मेघालय पठार तथा मिकिर पहाड़ियों में भी हैं।

•  भारत के सर्वाधिक खनिज भंडार इसी क्रम की चट्टानों में मिलते हैं।

•  लौह-अयस्क, ताँबा, स्वर्ण इन चट्टानों में पाए जाने वाले प्रमुख खनिज हैं।

•  पदार्थों के निक्षेप से तलछट शैलों की रचना हुई। यहीं धारवाड़ क्रम की प्राचीनतम तलछट शैलें हैं।

•  भारत में सोना मुख्यत: धारवाड़ क्रम की चट्‌टानों के अंतर्गत कोलार एवं हट्टी की खान में पाया जाता है।

(C)  कुडप्पा क्रम की चट्टानें (Cuddapah System)

•  इनका निर्माण धारवाड़ क्रम की चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण से हुआ है। ये भी परतदार चट्टानें हैं।

•  इनका रूपान्तरण धारवाड़ चट्टानों की तुलना में कम हुआ है।

•  इन चट्टानों में जीवाश्म का अभाव पाया जाता है।

•  इन चट्टानों का नामकरण आंध्र प्रदेश के कुडप्पा जिले के नाम पर किया गया है।

•  इन चट्टानों का विस्तार अर्द्ध-चन्द्राकार रूप में है।

•  ये चट्टानें चूना-पत्थर, बलुआ पत्थर, संगमरमर, एस्बेस्टॉस आदि के लिए प्रसिद्ध हैं। इनमें स्लेट, क्वार्ट्जाइट तथा चूने पत्थर के जमाव मिलते हैं।

•  कृष्णा श्रेणी, अन्नामलाई श्रेणी, पापाघानी, चेयार घाटी, मध्यप्रदेश का उत्तरी भाग तथा राजस्थान आदि में ये चट्टानें मिलती हैं।

(D)  विंध्यन क्रम की चट्टानें (Vindhyan System)

•  कुडप्पा क्रम के बाद इन चट्टानों का निर्माण हुआ है।

•  इन चट्टानों का विस्तार राजस्थान के चित्तौड़गढ़ से बिहार के सासाराम क्षेत्र तक है।

•  ये परतदार चट्टानें है, इनका निर्माण जल निक्षेपों द्वारा हुआ है।

•  इन चट्टानों में बालुका पत्थर, शैल, क्वार्टज़ाइट व चूना पत्थर मिलते हैं तथा में पन्ना (मध्यप्रदेश), अनन्तपुर एवं गोलकुण्डा (आंध्रप्रदेश) के हीरे भी प्राप्त होते हैं।

•  इस क्रम में विभिन्न रंगों के बालुका पत्थर तथा सीमेन्ट बनाने के काम में आने वाला चूना पत्थर मिलता है।

•  विंध्यन संरचना भी अवसादी चट्टान से निर्मित संरचना है। जिसमें कहीं-कहीं जीवाश्म के भी प्रमाण मिलते हैं।

•  साँची का स्तूप, दिल्ली का लाल किला, सिकंदरा में अकबर का मकबरा तथा फतेहपुर सीकरी इत्यादि स्थापत्य इन्हीं पत्थरों से निर्मित हैं।

•  इन चट्टानों का एक बड़ा भाग दक्कन ट्रैप से ढका है।

(E)  गोंडवाना क्रम की चट्टानें (Gondwana System)

•  ये चट्टानें कोयले के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। भारत का 90 प्रतिशत कोयला इन्हीं चट्टानों में पाया जाता है।

•  गोंड क्षेत्र (मध्यप्रदेश) में सर्वप्रथम इस क्रम की चट्टानों का पता लगा है। इनका निर्माण ऊपरी कार्बोनिफेरस से लेकर जुरैसिक युग के बीच हुआ है।

•  ये परतदार चट्टानें हैं एवं इनमें मछलियों व रेंगने वाले जीवों के अवशेष मिलते हैं।

•  दामोदर, गोदावरी, महानदी व उनकी सहायक नदियों में इन चट्टानों का सर्वोत्तम रूप मिलता हैं।

•  ये चट्टानें मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़़, आंध्रप्रदेश, ओडिशा एवं महाराष्ट्र में पाई जाती हैं।

(F)  दक्कन ट्रैप (Deccan Trap)

•  मेसोजोइक युग के अंतिम काल में प्रायद्वीपीय भारत में ज्वालामुखी क्रिया प्रारंभ हुई और दरारों के माध्यम से लावा उद्गार के फलस्वरूप इन चट्‌टानों का निर्माण हुआ है।

•  5 लाख वर्ग किमी. का क्षेत्र इससे आच्छादित हो गया।

•  ये चट्टानें काफी कठोर हैं। इन चट्टानों के विखंडन से ही काली मृदा का निर्माण हुआ हैं। जिसे कपासी मृदा या रेगुर या ब्लैक चेर्नोजम के नाम से जाना जाता है।

•  लावा की मोटाई उत्तर-पश्चिम भाग में ज्यादा पाई जाती है, लेकिन पूर्व व दक्षिण की ओर जाते हैं लावा की मोटाई में कमी होती जाती है।

दक्कन ट्रैप

•  इस संरचना का विकास गुजरात के काठियावाड़, प्रायद्वीप कर्नाटक के बेंगलुरु-मैसूर पठार, तमिलनाडु के कोयम्बटूर, मदुरई पठार, आंध्रप्रदेश एवं तेलंगाना के पठार और छोटा नागपुर के राजमहल पर्वतीय क्षेत्र में भी मिलता है।

(G)  टर्शियरी क्रम की चट्‌टानें (Tertiary System)

•  इन चट्टानों का निर्माण इयोसीन युग से लेकर प्लायोसीन युग के बीच हुआ है इसी काल में हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ था।

•  इस काल की चट्टानों में उत्तर-पूर्वी भारत एवं जम्मू-कश्मीर में निम्नस्तरीय कोयले भी पाए जाते हैं।

•  इस संरचना में हिमालय प्रदेश एवं गढ़वाल हिमालय में चूना पत्थर के निक्षेप पाए जाते हैं।

•  इस संरचना का विस्तार कश्मीर से असम तक है।

(H)  नवजीवन संरचना (New life structure)

•  यह संरचना सिंधु एवं गंगा के मैदानी भाग में पाई जाती है।

•  प्लीस्टोसीन काल में हिमानीकरण का प्रमाण हिमालय क्षेत्र में काफी कम ऊँचाई पर पाया जाता है।

•  पश्चिम राजस्थान एवं थार के मरुस्थल में प्लीस्टोसीन काल के निक्षेप मिलते हैं।

•  कच्छ का रण, प्लीस्टोसीन काल के समुद्र का भाग था। प्लीस्टोसीन एवं होलोसीन काल के निक्षेप से यह भर गया है।

•  सतलुज, नर्मदा, ताप्ती, कृष्णा, गोदावरी आदि नदियों की घाटियों एवं तटीय क्षेत्रों में चतुर्थ कल्प निक्षेप पाया जाता हैं।

(2)  हिमालय पर्वतमाला (The Himalayas)

•  हिमालय पर्वत व उससे संबंधित नवीन मोड़दार पर्वत श्रेणियाँ, जिनमें दक्षिणी प्रायद्वीपीय भारत की अपेक्षा नई चट्टानें हैं।

•  थार का मरुस्थल टेथिस सागर में नदियों के तलछट के जमाव के परिणामस्वरूप बना। यह आर्कियन युग की आग्नेय चट्टानों से निर्मित है।

हिमालय पर्वतमाला

•  कठोर एवं स्थिर प्रायद्वीपीय खंड के विपरीत हिमालय और अतिरिक्त-प्रायद्वीपीय पर्वतमालाओं की भूवैज्ञानिक संरचना तरुण, दुर्बल और लचीली है।

•  ये पर्वत वर्तमान समय में भी बहिर्जनिक तथा अंतर्जनित बलों की अंतक्रियाओं से प्रभावित हैं। इसके परिणामस्वरूप इनमें वलन, भ्रंश और क्षेप (thrust) बनते हैं।

•  इन पर्वतों की उत्पत्ति विवर्तनिक हलचलों से जुड़ी हैं। तेज बहाव वाली नदियों से अपरदित ये पर्वत अभी भी युवा अवस्था में हैं। गॉर्ज, V-आकार की घाटियाँ, क्षिप्रिकाएँ व जल-प्रपात इत्यादि इसके प्रमाण हैं।

(3)  सिंधु-गंगा का मैदान (Indo-Ganga Plain)

•  भारत का तृतीय भूवैज्ञानिक खंड सिंधु, गंगा और बह्मपुत्र नदियों का मैदान है। मूलत: यह एक भू-अभिनति गर्त है जिसका निर्माण

•  मुख्य रूप से हिमालय पर्वतमाला निर्माण प्रक्रिया के तीसरे चरण में लगभग 6.4 करोड़ वर्ष पहले हुआ था। तब से इसे हिमालय और प्रायद्वीप से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ लाए हुए अवसादों से पाट रही हैं।

•  इन मैदानों में जलोढ़ की औसत गहराई 1000 से 2000 मीटर है।

•  इसका विस्तार सिंधु नदी घाटी से असम में ब्रह्मपुत्र नदी घाटी तक है। 

•  यह देश का नवीनतम भू-भाग है, जिसका निर्माण नव महाकल्प के अभिनूतन और नूतन कालों में हिमालयों के उत्थान के उपरांत निर्मित अग्रगर्त के अवसादन के कारण हुआ है।

•  इससे स्पष्ट होता है कि भारत के तीनों भौतिक प्रदेशों का निर्माण क्रमशः एक के बाद दूसरे से हुआ है।

•  भारतीय चट्टानों के कई उपसमूह पाए जाते हैं और कुछ उपसमूहों को मिलाकर समूह का निर्माण होता है।

भारत के भौतिक प्रदेश का मानचित्र

भारत के भौतिक प्रदेश के महत्वपूर्ण प्रश्न

भारत के भौतिक प्रदेश कौन कौन से हैं?

उत्तर का पर्वतीय भाग, उत्तरी मैदान, दक्षिणी पठार, तटीय मैदान व द्वीपीय भाग| 

भारत का सबसे छोटा भौतिक प्रदेश कौन सा है?

गोवा भारत का सबसे छोटा राज्य (भौगोलिक रूप से) है। गोवा का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल लगभग 1,429 वर्ग मील (3,702 वर्ग किमी) है।

Bharat Ke Bhautik Pradesh से सम्बंधित लेख

सम्पूर्ण भूगोल

भारत में ऊर्जा संसाधन  Power Resources in India in Hindi [PDF]

भारत के प्रमुख उद्योग एवं औद्योगिक प्रदेश (Industrial Regions of India)

भारत में परिवहन प्रणाली – Transport in India pdf notes in hindi

भारत का भूगोल एवं भारत की स्थिति एवं विस्तार

Leave a Comment