नमस्कार आज हम भारतीय भूगोल के महत्वपूर्ण अध्यायों में से एक भारत की प्रमुख नदियां (Bharat ki Nadiya) के विषय में अध्ययन करेंगे।
अपवाह तंत्र किसे कहते हैं?
निश्चित वाहिकाओं के माध्यम से हो रहे जलप्रवाह को ‘अपवाह’ कहते हैं। इन वाहिकाओं के जाल को ‘अपवाह तंत्र’ कहा जाता है। किसी क्षेत्र का अपवाह तंत्र वहाँ के भूवैज्ञानिक समयावधि, चट्टानों की प्रकृति एवं संरचना, स्थलाकृति, ढाल, बहते जल की मात्रा और बहाव की अवधि का परिणाम है।
- नदी अपने क्षेत्र का जल ढाल के अनुरूप बहाकर ले जाती है एवं अंत में किसी झील, खाड़ी या समुद्र में जाकर मिल जाती है।
- नदी जिस क्षेत्र से जल ग्रहण करती है उसे उस नदी का जल ग्रहण क्षेत्र या Catchment Area कहते हैं।
- एक नदी विशिष्ट क्षेत्र से अपना जल बहाकर लाती है, जिसे ‘जलग्रहण’ (Catchment) क्षेत्र कहा जाता है।
एक नदी एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा अपवाहित क्षेत्र को ‘अपवाह द्रोणी’ कहते हैं। एक अपवाह द्रोणी को दूसरे से अलग करने वाली सीमा को ‘जल विभाजक’ या ‘जल-संभर’ (Watershed) कहते हैं। बड़ी नदियों के जलग्रहण क्षेत्र को नदी द्रोणी जबकि छोटी नदियों व नालों द्वारा अपवाहित क्षेत्र को ‘जल-संभर’ ही कहा जाता है। नदी द्रोणी का आकार बड़ा होता है, जबकि जल-संभर का आकार छोटा होता है।
मुख्य अपवाह प्रतिरूप 1. जो अपवाह प्रतिरूप पेड़ की शाखाओं के अनुरूप हो,उसे वृक्षाकार (Dendritic) प्रतिरूप कहा जाता है, जैसे उत्तरी मैदान की नदियाँ।2. जब नदियाँ किसी पर्वत से निकलकर सभी दिशाओं में बहती हैं, तो इसे अरीय (Radial) प्रतिरूप कहा जाता है। अमरकंटक पर्वत शृंखला से निकलने वाली नदियाँ इस अपवाह प्रतिरूप के अच्छे उदाहरण हैं।3. जब मुख्य नदियाँ एक-दूसरे के समांतर बहती हों तथा सहायक नदियाँ उनसे समकोण पर मिलती हों, तो ऐसे प्रतिरूप को जालीनुमा (Trellis) अपवाह प्रतिरूप कहते हैं।4. जब सभी दिशाओं से नदियाँ बहकर किसी झील या गर्त में विसर्जित होती हैं, तो ऐसे अपवाह प्रतिरूप को अभिकेंद्री (Centripetal) प्रतिरूप कहते हैं। |
भारतीय अपवाह तंत्र को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है। समुद्र में जल विसर्जन के आधार पर इसे दो समूहों में बाँटा जा सकता है (i) अरब सागर का अपवाह तंत्र व (ii) बंगाल की खाड़ी का अपवाह तंत्र। ये अपवाह तंत्र दिल्ली कटक, अरावली एवं सह्याद्रि द्वारा विलग किए गए हैं, कुल अपवाह क्षेत्र का लगभग 77 प्रतिशत भाग, जिसमें गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, कृष्णा आदि नदियाँ शामिल हैं, बंगाल की खाड़ी में जल विसर्जित करती हैं जबकि 23 प्रतिशत क्षेत्र, जिसमें सिंधु, नर्मदा, तापी, माही व पेरियार नदियाँ हैं, अपना जल अरब सागर में गिराती हैं।
जल-संभर क्षेत्र के आकार के आधार पर भारतीय अपवाह द्रोणियों को तीन भागों में बाँटा गया है : (1) प्रमुख नदी द्रोणी, जिनका अपवाह क्षेत्र 20,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक है। इसमें 14 नदी द्रोणियाँ शामिल हैं, जैसे – गंगा, बह्मपुत्र, कृष्णा, तापी, नर्मदा, माही, पेन्नार, साबरमती, बराक आदि। (2) मध्यम नदी द्रोणी जिनका अपवाह क्षेत्र 2,000 से 20,000 वर्ग किलोमीटर है। इसमें 44 नदी द्रोणियाँ हैं, जैसे – कालिंदी, पेरियार, मेघना आदि। (3) लघु नदी द्रोणी, जिनका अपवाह क्षेत्र 2,000 वर्ग किलोमीटर से कम है। |
भारतीय अपवाह तंत्र को हिमालयी अपवाह तंत्र व प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र में विभाजित किया जाता है।
Map भारत की प्रमुख नदियां मानचित्र
हिमालयी व प्रायद्वीपीय नदियों की तुलना
क्र.सं. | पक्ष | हिमालयी नदी | प्रायद्वीपीय नदी |
1. | उद्गम | हिम नदियों से ढके हिमालय पर्वत | प्रायद्वीपीय पठार व मध्य उच्चभूमि |
2. | प्रवाह प्रवृत्ति | बारहमासी: हिमनद व वर्षा से जल प्राप्ति | मौसमी; मानसून वर्षा पर निर्भर |
3. | अपवाह के प्रकार | पूर्ववती व अनुवर्ती; मैदानी भाग में वृक्षाकार प्रारूप | अध्यारोपित, पुनर्युवनित नदियाँ, अरीय व आयताकार प्रारूप बनाती हुई |
4. | नदी की प्रकृति | लंबा मार्ग, उबड़-खाबड़ पर्वतों से गुजरती नदियाँ, अभिशीर्ष अपरदन नदी, अपहरण, मैदानों में जल मार्ग बदलना तथा विसर्प बनाना | सुसमायोजित घाटियों के साथ छोटे, निश्चित मार्ग |
5. | जलग्रहण क्षेत्र | बहुत बड़ी द्रोणी | अपेक्षाकृत छोटी द्रोणी |
6. | नदी की आयु | युवा, क्रियाशील व घाटियों का गहरा करना | प्रवणित परिच्छेदिका वाली प्रौढ़ नदियाँ, जो अपने आधार तल जा पहुँची हैं। |
भारत के अपवाह तंत्र/ भारत की प्रमुख नदियां
भारतीय अपवाह तंत्र में अनेक छोटी-बड़ी नदियाँ शामिल हैं। ये तीन बड़ी भू-आकृतिक इकाइयों की उद्-विकास प्रक्रिया तथा वर्षण की प्रकृति व लक्षणों के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई हैं।
हिमालयी अपवाह
हिमालयी अपवाह तंत्र भूगर्भिक इतिहास के एक लंबे दौर में विकसित हुआ है। इसमें मुख्यतः गंगा, सिंधु व बह्मपुत्र नदी द्रोणियाँ जैसी भारत की प्रमुख नदियां शामिल हैं। यहाँ की नदियाँ बारहमासी हैं क्योंकि ये बर्फ पिघलने तथा वर्षण दोनों पर निर्भर हैं। ये नदियाँ गहरे महाखड्डों (Gorges) से गुजरती हैं, जो हिमालय के उत्थान के साथ-साथ अपरदन क्रिया द्वारा निर्मित हैं। महाखड्डों के अतिरिक्त ये भारत की प्रमुख नदियां अपने पर्वतीय मार्ग में V-आकार की घाटियाँ, क्षिप्रिकाएँ व जलप्रपात भी बनाती हैं। जब ये मैदान में प्रवेश करती हैं, तो निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियाँ जैसे समतल घाटियों, गोखुर झीलें, बाढ़कृत मैदान, गुंफित वाहिकाएँ और नदी के मुहाने पर डेल्टा का निर्माण करती हैं। हिमालय क्षेत्र में इन नदियों का रास्ता टेढ़ा-मेढ़ा है, परंतु मैदानी क्षेत्र में इनमें सर्पाकार मार्ग में बहने की प्रवृत्ति पाई जाती है और अपना रास्ता बदलती रहती हैं। कोसी नदी, जिसे बिहार का शोक (Sorrow of Bihar) कहते हैं, अपना मार्ग बदलने के लिए कुख्यात रही है। यह नदी पर्वतों के ऊपरी क्षेत्रों से भारी मात्रा में अवसाद लाकर मैदानी भाग में जमा करती है। इससे नदी मार्ग अवरुद्ध हो जाता है और परिणामस्वरूप नदी अपना मार्ग बदल लेती है।
हिमालय पर्वतीय अपवाह तंत्र का विकास
– हिमालय पर्वतीय नदियों के विकास के बारे में मतभेद है। मायोसीन कल्प में (लगभग 2.4 करोड़ से 50 लाख वर्ष पहले) एक विशाल नदी, जिसे शिवालिक या इंडो-ब्रह्म कहा गया है, हिमालय के संपूर्ण अनुदैर्ध्य विस्तार के साथ असम से पंजाब तक बहती थी और अंत में निचले पंजाब के पास सिंध की खाड़ी से अपना पानी विसर्जित करती थी शिवालिक पहाड़ियों की असाधारण निरंतरता, इनका सरोवरी उद्गम और इनका जलोढ़ निक्षेप से बना होना जिसमें रेत, मृत्तिका, चिकनी मिट्टी, गोलाश्म व कोंगलोमेरेट शामिल है।
– कालांतर में इंडो-ब्रह्म नदी तीन मुख्य अपवाह तंत्रों में बँट गई:
(1) पश्चिम में सिंध और इसकी पाँच सहायक नदियाँ,
(2) मध्य में गंगा और हिमालय से निकलने वाली इसकी सहायक नदियाँ और
(3) पूर्व में बह्मपुत्र का भाग व हिमालय से निकलने वाली इसकी सहायक नदियाँ।
हिमालयी अपवाह तंत्र की नदियाँ
1.विशाल नदी द्रोणियाँ (Large Rivers Basins):-
हिमालय की नदियाँ
हिमालय की नदियाँ तीन मुख्य तंत्रों में विभाजित हैं सिंधु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र।
- ये नदियाँ तिब्बत के पठार की दक्षिणी ढालों से निकलकर हिमालय के मुख्य अक्ष के समानान्तर अनुदैर्ध्य द्रोणियों में बहती हैं।
- वे अचानक दक्षिण की ओर मुड़ती हैं तथा अनंत पर्वतों के शृंगों को भेदकर उत्तरी मैदान में पहुँचती हैं।
- सिंधु, सतलज, अलकनंदा, गंडक, बह्मपुत्र एवं कोसी के गहरे गॉर्ज के दिखने से स्पष्ट है कि ये नदियाँ हिमालय पर्वतों की अपेक्षा पुरानी हैं।
- ये नदियाँ हिमालय के बनने की सभी अवस्थाओं में बहती रही हैं जिससे उनके किनारे ऊपर उठते गए, जबकि उनका तल गहरा होता गया तथा गॉर्ज की परिच्छेदिका में परिवर्तित हो गया।
उत्तरभारत की प्रमुख नदियां –
– शिवालिक पहाड़ियों के निर्माण के फलस्वरूप भारत का अपवाह तन्त्र तीन भागों में विभक्त हो गया-
(1) सिन्धु नदी तंत्र
(2) गंगा नदी तंत्र एवं
(3) ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र।
सिन्धु नदी तन्त्र
– यह विश्व के सबसे बड़े नदी द्रोणियों में से एक है।
– जिसका क्षेत्रफल 11 लाख, 65 हजार वर्ग किलोमीटर है।
– भारत में इसका क्षेत्रफल 3, 21, 289 वर्ग कि.मी. है।
– इसकी कुल लंबाई 2,880 कि.मी. है और भारत में इसकी लंबाई 1, 114 किलोमीटर है।
– भारत में यह हिमालय की नदियों में सबसे पश्चिमी है।
– सिन्धु तन्त्र की नदियाँ ब्रह्मपुत्र नदी से ठीक उल्टी ओर बहती है।
– यह नदी जम्मू-कश्मीर राज्य में विशाल गॉर्ज बनाती है।
– इसका उद्गम तिब्बती क्षेत्र में कैलाश पर्वत श्रेणी में बोखर चू (Bokhar chu) के निकट एक हिमनद (31°15′ और 80°40′ पू.) से होता है, जो 4,164 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
– तिब्बत में इसे सिंगी खंबान (Singi khamban) अथवा शेर मुख कहते हैं।
– भारत में यह दमचौक नामक स्थान से प्रवेश करती है।
– लद्दाख व जास्कर श्रेणियों के बीच से उत्तर-पश्चिमी दिशा में बहती हुई यह लद्दाख और ब्लूचिस्तान से गुजरती है।
– लद्दाख श्रेणी को काटते हुए यह नदी जम्मू और कश्मीर में गिलगित के समीप एक दर्शनीय महाखड्ड का निर्माण करती है।
– यह पाकिस्तान में चिल्लड़ के निकट दरदिस्तान प्रदेश में प्रवेश करती है।
– इसकी सहायक नदियाँ सतलज, झेलम, चेनाब, रावी एवं व्यास हैं।
– पंजाब की पाँच प्रसिद्ध नदियों सतलज, व्यास, रावी, चेनाब तथा झेलम का सामूहिक प्रवाह पंचनद कहलाता है, जो सिंधु नदी की मुख्यधारा से मीठानकोट के पहले मिलता है।
– पाकिस्तान से हुए सिंधु जल समझौते के अन्तर्गत भारत इस नदी के जल का लगभग 20 प्रतिशत उपयोग कर सकता है।
– दक्षिण की ओर सिंधु नदी से मिलने वाली महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ कुर्रम, तोचो तथा झोब-गोमल हैं।
– पंजाब में सिंधु की सहायक नदियों में से झेलम का पीर पंजाल तथा व्यास का हिमाचल के पर्वतों से उद्गम हुआ है।
– सिंधु नदी की बहुत-सी सहायक नदियाँ हिमालय पर्वत से निकलती हैं जैसे – शयोक, गिलगित, जास्कर, हुंजा, नुबरा, शिगार गास्टिंग व द्रास। अंततः यह नदी अटक के निकट पहाड़ियों से बाहर निकलती है, जहाँ दाहिने तट पर काबुल नदी इसमें मिलती है।
– इसके दाहिने तट पर मिलने वाली अन्य मुख्य सहायक नदियाँ खुर्रम, तोची, गोमल, विबोआ और संगर हैं।
– ये सभी नदियाँ सुलेमान श्रेणियों से निकलती हैं।
- यह नदी दक्षिण की ओर बहती हुई मीठानकोट के निकट पंचनद का जल प्राप्त करती है।
पंचनद नाम पंजाब की पाँच मुख्य नदियों सतलज, व्यास, रावी, चेनाब और झेलम को दिया गया है। अंत में सिंधु नदी कराची के पूर्व में अरब सागर में जा गिरती है। भारत में सिंधु, केवल लेह जिले में बहती है।
नदी | प्राचीन नाम | स्त्रोत | स्थान |
सिंधु नदी | सिंधु (Indus) इण्डस | मानसरोवर झील के निकट चेमायांगडुंग ग्लेशियर | तिब्बत |
झेलम नदी | वितस्ता नदी | शेषनाग झील | जम्मू कश्मीर |
चेनाब नदी | अस्किनी नदी | बारालाचला दर्रा | हिमाचल प्रदेश |
रावी नदी | परुष्णी नदी | रोहतांग दर्रा | हिमाचल प्रदेश |
व्यास नदी | विपास नदी | व्यास कुण्ड | हिमाचल प्रदेश |
सतलज नदी | शुतद्री नदी | राक्षस ताल | तिब्बत |
सिंधु नदी की सहायक नदियाँ
लम नदी (वितस्ता)-
– यह नदी सिंधु की महत्त्वपूर्ण सहायक नदी है, जो कश्मीर घाटी के दक्षिण-पूर्वी भाग में पीर पंजाल गिरिपद में स्थित वेरीनाग झरने से निकलती है।
– झेलम नदी कश्मीर घाटी का निर्माण करती है।
– पाकिस्तान में प्रवेश करने से पहले यह नदी श्रीनगर और वूलर झील में बहते हुए तंग व गहरे महाखड्ड से गुजरती है पाकिस्तान में झंग के निकट यह चेनाब नदी में मिलती है।
– वूलर झील का निर्माण भारत की प्रमुख नदियां में से एक झेलम नदी करती है।
– भारत की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील है।
– वूलर झील एक गोखुर (Oxbow) झील का उदाहरण है।
– झेलम नदी में अनंतनाग से बारामूला तक नौगमन होता है।
– झेलम नदी भारत-पाक की सीमा बनाती है।
– झेलम नदी की सहायक नदी – किशनगंगा नदी – पाक – नीलम नदी
· उरी परियोजना, तुलबुल परियोजना झेलम नदी पर जम्मू और कश्मीर में स्थित है।
रावी नदी (परुष्णी नदी) :- 725 किमी.
– यह नदी हिमाचल प्रदेश की कुल्लू पहाड़ियों में रोहतांग दर्रे के पश्चिम से निकलती है और राज्य की चंबा घाटी से बहती है।
– रावी नदी जम्मू घाटी का निर्माण करती है।
– पाकिस्तान में प्रवेश करने व सराय सिंधु के निकट चेनाब नदी में मिलने से पहले यह नदी पीर पंजाल के दक्षिण-पूर्वी भाग व धौलाधर के बीच प्रदेश से प्रवाहित होती है।
– जम्मू तथा लाहौर शहर रावी नदी के तट पर स्थित है।
चेनाब नदी (अस्किनी नदी):- 1180 किमी
– सिंधु नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है।
– चेनाब नदी को हिमाचल प्रदेश में ‘चन्द्र-भागा’ नदी के नाम से जाना जाता है।
– चन्द्र और भागा हिमाचल प्रदेश में केलाँग के निकट तांडी में आपस में मिलती है। इसलिए इसे चन्द्रभागा के नाम से जाना जाता है।
– चेनाब नदी हिमाचल प्रदेश में बारालाचला दर्रे से निकलती है।
– पाकिस्तान में प्रवेश करने से पहले यह नदी 1,180किमी. बहती है।
– दुलहस्ती परियोजना, सलाल परियोजना, बगलीहार परियोजना – चेनाब नदी पर जम्मू-कश्मीर में स्थित है।
– रावी नदी के तट पर 26 जनवरी, 1930 पूर्ण स्वराज्य की माँग की गई थी, कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में।
– रोहतांग दर्रा – मनाली को लेह से जोड़ता है। (अटल सुरंग)
व्यास नदी (विपास)-
– व्यास नदी भारत की प्रमुख नदियां में से एक है। हिमाचल प्रदेश में नैना देवी के समीप गहरे गॉर्ज का निर्माण करती है।
– यह नदी समुद्र तल से 4000 मीटर ऊँचाई पर रोहतांग दर्रे के निकट व्यास कुंड से निकलती है।
– यह नदी कुल्लू घाटी से गुजरती है और धौलाधर श्रेणी में काती और लारगी में महाखड्ड का निर्माण करती है।
– यह पंजाब के मैदान में प्रवेश करती है जहाँ हरिके, के पास सतलज नदी में जाकर मिलती है।
– पौंग बाँध हिमाचल प्रदेश में व्यास नदी पर स्थित है।
सतलज नदी:– (शतुद्री नदी)
– कुल लम्बाई – 1450 किमी.
– भारत में लम्बाई – 1050 किमी.
– सतलज नदी भारत की प्रमुख नदियां में से एक है। तिब्बत में 4,555 मीटर की ऊँचाई पर मानसरोवर के निकट राक्षस ताल से निकलती है, जहाँ इसे लॉगचेन खंबाब के नाम से जाना जाता है।
– यह भारत में प्रवेश करने से पहले यह लगभग 400 किमी. तक सिंधु नदी के समांतर बहती है और रोपण में एक महाखड्ड से निकलती है।
– सतलज नदी भारत में शिपकी ला दर्रे से प्रवेश करती है।
– सतलज नदी हिमाचल प्रदेश तथा पंजाब में बहती हुई पाकिस्तान में प्रवेश करती है।
– यह एक पूर्ववर्ती नदी है यह एक अत्यंत सहायक नदी है क्योंकि यह भाखड़ा-नांगल परियोजना के नहर तंत्र का पोषण करती है।
– पंजाब + हिमाचल प्रदेश
– जलाशय – गोविन्द सागर (हिमाचल प्रदेश)
गंगा नदी तंत्र:
– भारत का सबसे बड़ा तथा सबसे महत्त्वपूर्ण नदी बेसिन क्षेत्र है।
– यह नदी भारत की प्रमुख नदियां में से एक है। उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी जिले में गोमुख के निकट गंगोत्री हिमनद से 3,900 मीटर की ऊँचाई से निकलती है।
– यहाँ यह भागीरथी के नाम से जानी जाती है।
– यह मध्य व लघु हिमालय श्रेणियों को काटकर तंग महाखड्डों से गुजरती है।
– देवप्रयाग में भागीरथी अलकनंदा से मिलती है और इसके बाद गंगा कहलाती है।
– अलकनंदा नदी का स्त्रोत बद्रीनाथ के ऊपर सतोपथ हिमनद है।
– यह अलकनंदा धौली और विष्णु गंगा धाराओं से मिलकर बनती है। जो जोशीमठ या विष्णुप्रयाग में मिलती है।
– अलकनंदा की अन्य सहायक नदी पिंडार है। जो इससे कर्ण प्रयाग में मिलती है जबकि मंदाकिनी या काली गंगा इससे रुद्र प्रयाग में मिलती है।
– गंगा नदी हरिद्वार में मैदान में प्रवेश करती है यहाँ से यह दक्षिण की ओर, फिर दक्षिण-पूर्व की ओर फिर पूर्व की ओर बहती है।
– इस नदी की कुल लंबाई 2,525 किमी. है जिसमें से उत्तर प्रदेश में 1,450 किमी., बिहार में 445 किमी. तथा पश्चिम बंगाल में 520 किमी. है।
– गंगा द्रोणी केवल भारत में लगभग 8.6 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र में फैली हुई है।
– यह भारत का सबसे बड़ा अपवाह तंत्र है जिससे उत्तर में हिमालय से निकलने वाली बारहमासी व अनित्यवाही नदियाँ और दक्षिण में प्रायद्वीप से निकलने वाली अनित्यवाही नदियाँ शामिल है।
– गंगा उत्तराखण्ड के हिमालय क्षेत्र से निकलती है।
– दाहिने तट की मुख्य नदियाँ यमुना, सोन, पुनपुन तथा टोंस हैं।
– गंगा के बाएँ तट से मिलने वाली प्रमुख नदियाँ हैं – रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी तथा महानंदा।
फरक्का के बाद गंगा की मुख्यधारा पूर्व-दक्षिण-पूर्व की ओर बहती हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती है, जहाँ इसे पद्मा के नाम से जाना जाता है।
– यहाँ से गंगा कई धाराओं में बँटकर डेल्टाई मैदान में दक्षिण की ओर बहती हुई समुद्र से मिल जाती है।
– इस हिस्से में यह नदी भागीरथी-हुगली के नाम से जानी जाती है तथा छोटी-छोटी पठारी नदियाँ जैसे-द्वारका, अजय, रूपनारायण तथा हल्दी आदि इसमें आकर मिलती हैं।
बांग्लादेश में चाँदपुर के पास बंगाल की खाड़ी से मिलने से पहले पद्मा से ब्रह्मपुत्र आकर मिलती हैं जिसे यहाँ जमुना तथा दक्षिणी बांग्लादेश में मेघना के नाम से पुकारा जाता है।
प्रयाग – नदी
1. विष्णु प्रयाग – अलकनंदा नदी + धौली गंगा
2. नंद प्रयाग नदी – अलकनंदा नदी + नंदाकिनी
3. कर्ण प्रयाग – अलकनंदा नदी + पिंडारी नदी
4. रुद्र प्रयाग नदी – अलकनंदा नदी + मंदाकिनी
5. देव प्रयाग – अलकनंदा नदी + भागीरथी
– गंगा नदी → उत्तराखण्ड → उत्तर प्रदेश → बिहार → झारखण्ड → पश्चिम बंगाल
– गंगा नदी के तट पर स्थित शहर
उत्तराखंड – ऋषिकेश, हरिद्वार
उत्तर प्रदेश – कन्नौज, कानपुर, इलाहाबाद, बनारस
बिहार – बक्सर, छपरा, पटना, भागलपुर
पश्चिम बंगाल – मुर्शिदाबाद, फरक्खा, बैराज
कोलकाता – हुगली नदी के किनारे अवस्थित है।
ढाका – पद्मा नदी के किनारे अवस्थित है।
गंगा नदी की सहायक नदी
– बाएँ तट पर मिलने वाली सहायक नदियां – रामगंगा → गोमती → घाघरा नदी → गण्डक नदी → कोसी नदी → महानंदा नदी
– दाएँ तट पर मिलने वाली सहायक नदियाँ –
यमुना → टोंस/तमशा → कर्मनाशा नदी → सोन नदी → पुनपुन नदी
यमुना नदी
– यमुना नदी गंगा नदी की सबसे पश्चिमी और सबसे लम्बी सहायक नदी है।
– यमुना नदी उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले में बन्दर पूँछ चोटी पर स्थित यमुनोत्री हिमनद से निकलती है।
– प्रयागराज (इलाहाबाद) में इसका गंगा से संगम होता है।
– प्रायद्वीपीय पठार से निकलने वाली चम्बल, बेतवा व केन इसके दाहिने तट पर मिलती है जबकि हिंडन, रिंद, सेंगर, वरुणा आदि नदियाँ इसके बाएँ तट पर मिलती है।
– यमुना नदी – उत्तराखण्ड – हिमाचल प्रदेश – हरियाणा – दिल्ली – उत्तरप्रदेश में प्रयागराज में गंगा नदी से मिल जाती है।
दिल्ली – मथुरा – आगरा शहर यमुना नदी के तट पर स्थित है।
यमुना नदी की सहायक नदियाँ
– बाएँ तट पर – टोंस, हिंडन, रिंद, सेंगर, वरुणा
– दाएँ तट पर – चम्बल, सिंध, बेतवा, केन
चम्बल नदी
– चम्बल नदी भारत की प्रमुख नदियां में से एक है। यह नदी यमुना नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है।
– चम्बल नदी मध्य प्रदेश के मालवा पठार में महु के निकट जानापाओ की पहाड़ियों से निकलती है और उत्तरमुखी होकर एक महाखड्ड से बहती हुई राजस्थान में कोटा पहुँचती है, जहाँ इस पर गाँधी सागर बाँध बनाया गया है।
– कोटा से यह बूँदी, सवाई माधोपुर और धौलपुर होती हुई उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में यमुना नदी में मिल जाती है।
– चम्बल नदी मध्यप्रदेश – राजस्थान – उत्तर प्रदेश तीन राज्यों से होकर बहती है।
– चम्बल नदी बुन्देलखण्ड पठार में उत्खात भूमि (बीहड़) Ban land topography तथा अवनालिका अपरदन (Gully Erosion) के लिए प्रसिद्ध है।
चम्बल नदी की सहायक नदियाँ – क्षिप्रा नदी, पार्वती नदी, कालीसिंध नदी, बनास नदी।
रामगंगा नदी
– रामगंगा नदी भारत की प्रमुख नदियां में से एक है। यह गंगा की सबसे पहली हिमालयी सहायक नदी है।
– रामगंगा नदी उत्तराखण्ड में नैनीताल जिले से निकलती है।
– रामगंगा नदी गैरसेन के निकट गढ़वाल की पहाड़ियों से निकलने वाली अपेक्षाकृत छोटी नदी है।
– शिवालिक को पार करने के बाद यह अपना मार्ग दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर बनाती है और उत्तर प्रदेश में नज़ीबाबाद के निकट मैदान में प्रवेश करती है अंत में कन्नौज के निकट यह गंगा में मिल जाती है। कन्नौज को छत्र नगरी भी कहते हैं।
– जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान/हेमिस राष्ट्रीय उद्यान – रामगंगा नदी के तट पर स्थित है।
– भारत का पहला टाइगर रिजर्व जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान है।
– ब्रह्मगंगा नदी जल परियोजना – उत्तराखण्ड में स्थित है।
गोमती नदी
– गोमती नदी भारत की प्रमुख नदियां में से एक है। यह उत्तर प्रदेश के पीलीभित्ति जिले में फुल्हर झील से निकलती है।
– पीलीभित्ति (तराई क्षेत्र)
– गोमती नदी लखनऊ –सुल्तानपुर- (जौनपुर) से बहती हुई उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में गंगा नदी में मिलती है।
घाघरा नदी
– घाघरा नदी मापचाचुंगो हिमनद से निकलती है तथा तिला, सेती व बेरी नामक सहायक नदियों का जलग्रहण करने के उपरांत यह शीशापानी में एक गहरे महाखड्ड का निर्माण करते हुए पर्वत से बाहर निकलती है। शारदा नदी से मैदान में मिलती है और अंतत: छपरा (बिहार) में यह गंगा में विलीन हो जाती है।
– घाघरा नदी को नेपाल में कसैली नदी कहा जाता है।
घाघरा की सहायक नदियाँ
1. काली/शारदा/चौका
2. ताप्ती नदी गोरखपुर
3. सरयू नदी अयोध्या
– उत्तराखण्ड में मिलान हिमनद से निकलती है।
– उत्तराखण्ड तथा नेपाल की सीमा बनाती है।
– काला-पानी – लिपुलेख विवाद
– भारत-नेपाल से संबंधित विवाद है।
गंडक नदी
– गंडक नदी भारत की प्रमुख नदियां में से एक है। यह दो धाराओं काली गंडक और त्रिशुल गंगा के मिलने से बनती है।
– यह नेपाल हिमालय में धौलागिरी व माउंट एवरेस्ट के बीच निकलती है।
– नेपाल में इसे नारायणी नदी कहते हैं।
– बिहार के चंपारन जिले में यह गंगा नदी में प्रवेश करती है और पटना के निकट सोनपुर (बिहार) में गंगा नदी जा मिलती है।
कोसी नदी (बिहार का शोक)
– कोसी नदी भारत की प्रमुख नदियां में से एक है। यह नेपाल में गोसाई धाम पर्वत से निकलती है।
– यह एक पूर्ववर्ती नदी है जिसका स्त्रोत तिब्बत में माउंट एवरेस्ट के उत्तर में है। जहाँ से इसकी मुख्य धारा अरुण निकलती है। नेपाल में मध्य हिमालय को पार करने के बाद इसमें पश्चिम से सोन, कोसी, और पूर्व से तमुर कोसी मिलती है।
– अरुण नदी से निकलकर यह नदी नेपाल में सप्तकोसी के नाम से जानी जाती है।
– कोसी नदी मार्ग परिवर्तन के लिए कुख्यात है। इसलिए इसे विश्वासघाती नदी भी कहते हैं।
– कोसी नदी बिहार के कुरूसेला में गंगा नदी में मिल जाती है।
दामोदर नदी:-
– छोटा नागपुर के पठार के पूर्वी किनारे पर दामोदर नदी बहती है और भ्रंश घाटी से होती हुई हुगली नदी में गिरती है।
– बराकर इसकी एक मुख्य सहायक नदी है कभी बंगाल का शोक कहीं जाने वाली इस नदी को दामोदर घाटी कॉर्पोरेशन नामक एक बहुउद्देशीय परियोजना है।
महानंदा नदी
– गंगा की अंतिम हिमालयी सहायक नदी है।
– महानंदा नदी भारत की प्रमुख नदियां में से एक है। यह दार्जिलिंग हिमालय से निकलती है तथा पश्चिम बंगाल में फरक्खा के समीप गंगा नदी में मिल जाती है।
सिंध नदी
– सिंध नदी भारत की प्रमुख नदियां में से एक है। यह मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में मालवा पठार से निकलती है।
– मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश राज्यों में बहती है।
– उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में यमुना नदी में मिल जाती है।
बेतवा नदी
– मध्य प्रदेश में विंध्याचल से निकलती है।
– बेतवा नदी मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश की सीमा बनाती है।
– उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में यमुना नदी में मिल जाती है।
– माता टीला बाँध (बेतवा नदी) पर मध्य प्रदेश + उत्तर प्रदेश की एक संयुक्त परियोजना है।
केन नदी
– केन नदी मध्य प्रदेश में कैमुर पहाड़ियों से निकलती है।
– मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश में बहती हुई, उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में यमुना नदी में मिल जाती है।
हिण्डन नदी
भारत की प्रमुख नदियां में से एक है।
– बाएँ तट की सहायक नदी।
– गाजियाबाद जिला हिण्डन नदी के तट पर स्थित है।
तमसा/टोन्स नदी :-
– तमसा नदी मध्य प्रदेश में विंध्याचल से निकलती है तथा उत्तर की ओर बहती हुई इलाहाबाद के समीप सिरसा नामक स्थान पर गंगा नदी में मिल जाती है।
कर्मनाशा नदी
– कर्मनाशा नदी भारत की प्रमुख नदियां में से एक है। यह मध्य प्रदेश त्रिशंकु पहाड़ियों से निकलती है तथा बिहार के चौसा में गंगा में मिल जाती है।
सोन नदी
– सोन नदी भारत की प्रमुख नदियां में से एक है। इसकी घाटी में स्वर्ण के कण पाए जाते हैं। इसलिए इस नदी को सोन नदी कहते हैं।
– स्वर्ण के कण प्लेसर भण्डार
– सोन नदी मध्य प्रदेश में अमरकंटक पहाड़ियों से निकलती है।
– सोन नदी बिहार के दानापुर में गंगा नदी में मिल जाता है।
– बाण सागर परियोजना – सोन नदी पर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा बिहार की एक संयुक्त परियोजना है।
रिहन्द नदी
– सोन नदी की सहायक नदी है।
– रिहन्द बाँध:- उत्तरप्रदेश के सोनभद्र जिले में स्थित है।
– जलाशय/झील:- गोविन्द वल्लभ पंत सागर, भारत की सबसे बड़ी कृत्रिम या मानव निर्मित झील है।
पुनपुन नदी :-
– गंगा में दाएँ तट पर मिलने वाली अंतिम सहायक नदी है।
– यह नदी झारखण्ड के पलामू जिले से निकलती है तथा बिहार के गया में गंगा नदी में मिल जाती है।
3. ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र
– विश्व की सबसे बड़ी नदियों में से एक ब्रह्मपुत्र का उद्गम कैलाश पर्वत में मानसरोवर झील के निकट चेमायुंगडुंग हिमनद में है।
– यहाँ से यह पूर्व दिशा में अनुदैर्ध्य रूप में बहती हुई दक्षिण तिब्बत के शुष्क व समतल मैदान में लगभग 1200 किमी. की दूरी तय करती है। जहाँ इसे सांग्पो के नाम से जाना जाता है। इसका अर्थ ‘शोधक’ है।
– इसकी सम्पूर्ण लंबाई 2,900 किमी. है। ब्रह्मपुत्र गंगा में मिलने वाली नदियों में सबसे बड़ी नदी है।
– ब्रह्मपुत्र जिस स्थान पर हिमालय को काटती है वहाँ इसे ‘दिहांग’ कहते हैं।
– तिब्बत में रागोंसांग्पो नदी इसके दाहिने तट पर एक सहायक नदी है।
– मध्य हिमालय में नमचा बरवा (7755 मीटर) के निकट यह एक गहरे महाखड्ड का निर्माण करती हुई यह एक प्रक्षुब्ध व तेज बहाव वाली नदी के रूप में बाहर निकलती है।
– हिमालय के गिरीपद में यह सिशंग या दिशंग के नाम से निकलती है।
– अरुणाचल प्रदेश में सादिया कस्बे के पश्चिम में यह नदी भारत में प्रवेश करती है।
– दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहते हुए इसके बाएँ तट पर इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ दिबांग या सिकांग और लोहित मिलती है और इसके बाद यह नदी ब्रह्मपुत्र के नाम से जानी जाती है।
– असम घाटी में अपनी 750 किमी. की यात्रा में ब्रह्मपुत्र में असंख्य सहायक नदियाँ आकर मिलती है। इसके बाएँ तट की प्रमुख सहायक नदियाँ बूढ़ी दिहिंग और धनसरी (दक्षिण)है। जबकि इसके दाएँ तट की सहायक नदियाँ सुबनसिरी, कामेग,मानस व संकोश है।
– ब्रह्मपुत्र नदी बांग्लादेश में प्रवेश करती है तिस्ता नदी इसके दाहिने किनारे पर मिलती है और इसके बाद यह जमुना कहलाती है। अंत में, यह नदी पद्मा के साथ मिलकर बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है।
– सुरमा नदी के मिलान के बाद इसको मेघना कहते हैं।
– अन्त में पद्मा और जमुना दोनों नदियाँ इसमें चाँदपुर के निकट आकर मिलती है।
– ये संयुक्त धाराएँ बहुत विस्तृत डेल्टा बनाती है, जिसमें बहुत से प्रसिद्ध द्वीप हैं।
– एशिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप माजुली है, जो ब्रह्मपुत्र नदी में स्थित है।
प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ
– प्रायद्वीपीय क्षेत्र का मुख्य जल-विभाजक पश्चिमी घाट है।
– प्रायद्वीपीय भारत की प्रमुख नदियां में से एक है। घाटियों में से होकर बहती हैं, जो लगभग पूरी तरह संतुलित हो चुकी हैं।
– इन नदियों की समतली अनुदैर्ध्य परिच्छेदिका से यह संकेत मिलता है कि अब इनके द्वारा अपरदन की क्रिया किए जाने की गुंजाइश बहुत कम है।
– इनमें से बहुत सी नदियाँ मौसमी हैं, क्योंकि उनका प्रवाह केवल वर्षा पर निर्भर रहता है।
– पठार का दृढ़-शैलाधार तथा धरातल का सामान्यतः जलोढ़हीन चरित्र इन नदियों में विसर्पण नहीं होने देता।
– यही कारण है कि प्रायद्वीपीय नदियों का मार्ग-सीधा तथा सामान्यतः रैखिक हैं।
– ये नदियाँ नौकागम्य भी नहीं है।
– यहाँ की प्रमुख नदियाँ इस प्रकार हैं-
बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली भारत की प्रमुख नदियां
महानदी
– महानदी भारत की प्रमुख नदियां में से एक है। यह छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में सिहावा के निकट से निकलती है और ओडिशा से बहती हुई अपना जल बंगाल की खाड़ी में विसर्जित करती है।
– यह 851 किमी. लम्बी है इसका जलग्रहण क्षेत्र लगभग 1.42 लाख वर्ग किमी. है।
– इस नदी की अपवाह द्रोणी का 53 प्रतिशत भाग मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में और 47 प्रतिशत भाग ओडिशा राज्य में विस्तृत है।
– शिवनाथ, हंसदेव, मांड बाएँ तट पर, तथा जोंक, उग तथा तेल इसके दाहिने तट पर मिलने वाली सहायक नदियाँ हैं।
– गंगा तथा महानदी के मध्य अंतरास्थापित सुवर्णरेखा तथा ब्राह्मणी के दो छोटे बेसिन हैं।
– इनका अपवहन बेसिन झारखंड, ओडिशा, पश्चिमी बंगाल तथा छत्तीसगढ़ में विस्तृत है।
– हीराकुण्ड बाँध का निर्माण महानदी पर किया गया है।
गोदावरी नदी:-
– प्रायद्वीप की यह सबसे बड़ी तथा देश में गंगा के बाद दूसरी सबसे बड़ी नदी है। इसे दक्षिण की गंगा के नाम से जाना जाता है।
– जिसकी लंबाई 1465 किमी. है।
– यह महाराष्ट्र के नासिक जिले से निकलती है।
– इसका संपूर्ण अपवहन क्षेत्र 312,812 वर्ग किमी. है, जिसमें से लगभग 49 प्रतिशत महाराष्ट्र, 20 प्रतिशत भाग मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में और शेष भाग आंध्र प्रदेश में पड़ता है।
– महाराष्ट्र के अतिरिक्त इसका अपवहन क्षेत्र मध्यप्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़ एवं आंध्रप्रदेश में भी पाया जाता है।
– इसके विशाल आकार एवं विस्तार के कारण गोदावरी को वृद्धगंगा के नाम से भी पुकारा जाता है।
– उत्तर में इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ प्राणहिता, पेनगंगा, वर्धा, वेनगंगा, इन्द्रावती, मंजरा तथा साबरी हैं।
– दक्षिण में मंजीरा नदी प्रमुख है, जो हैदराबाद के निकट इसमें मिलती है।
– गोदावरी एक सुदृश्य प्रपात की रचना करती है इसके डेल्टाई भाग में नौसंचालन संभव है।
– राजामुंद्री के बाद यह नदी कही धाराओं में विभक्त होकर एक वृहद् डेल्टा का निर्माण करती है।
कृष्णा नदी
– कृष्णा नदी पूर्व दिशा में बहने वाली दूसरी बड़ी प्रायद्वीपीय नदी है।
– कृष्णा नदी का उद्गम महाबलेश्वर के निकट पश्चिमी घाट के उदग्र पार्श्व में है।
– यह प्रायद्वीपीय भारत की दूसरी बड़ी नदी है। इसकी कुल लंबाई 1,401 किमी. है।
– इस नदी के कुल जलग्रहण क्षेत्र का 27 प्रतिशत भाग महाराष्ट्र में, 44 प्रतिशत भाग कर्नाटक में और 29 प्रतिशत भाग आंध्र प्रदेश में पड़ता है।
– यह महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश से होकर बहती है।
– कोयना, घाटप्रभा, मालाप्रभा, भीमा, तुंगभद्रा, मूसी तथा मुनेरु आदि अपनी सहायक नदियों समेत कृष्णा का कुल अपवहन क्षेत्र 258,948 वर्ग किमी. है।
– हैदराबाद मूसी नदी के किनारे स्थित है।
– कृष्णा नदी के किनारे विजयवाड़ा स्थित है।
– कृष्णा के मुहाने पर दो आब क्षेत्र – शोलापुर & रायपुर
कावेरी
– कावेरी नदी ‘दक्षिण की गंगा’ कहलाती है।
– कावेरी नदी कर्नाटक के कोगाडु जिले में ब्रह्मगिरी पहाड़ियों (1341मीटर) से निकलती है। इसकी लंबाई 800 किमी. है और यह 81,155वर्ग किमी. क्षेत्र को अपवाहित करती है। प्रायद्वीप की अन्य नदियों की अपेक्षा कम उतार-चढ़ाव के साथ यह नदी लगभग वर्ष भर बहती है।
– इस नदी की द्रोणी का 3 प्रतिशत भाग केरल में, 41 प्रतिशत भाग कर्नाटक में और 56 प्रतिशत भाग तमिलनाडु में पड़ता है।
– इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ उत्तर में हेमावती, लाकेपावनी, शिमसा व अर्कावती तथा दक्षिण में लक्ष्मण-तीर्थ, काबीनी, सुवर्णवती, भवानी और अमरावती हैं।
– यह शिवसमुद्रम नामक प्रसिद्ध जलप्रपात बनाती है।
– कावेरी तथा कृष्णा के मध्य पेन्नार बेसिन है, जिसका अधिकांश भाग कर्नाटक में हैं।
– कावेरी जल विवाद तमिलनाडु, कर्नाटक, पुडुचेरी और केरल चार पक्षों के बीच में था।
– मैसूर से 20 किमी. ऊपर से नदी पर बाँध बनाकर कृष्णा सागर जलाशय का निर्माण किया गया है।
(B) अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ
सिंधु नदी तंत्र
1.झेलम
– यह सिंधु की महत्त्वपूर्ण सहायक नदी है।
– यह बेरीनाग झरने से निकलती है, जो कश्मीर घाटी के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में स्थित है।
2. चेनाब
– चेनाब का उद्गम हिमाचल प्रदेश के बारालाचला दर्रे से होता है।
– भारत में इसकी लम्बाई 1180 किमी. है।
– चेनाब नदी पर सलाल, दुलहस्ती, बगलियार जैसी महत्त्वपूर्ण पन-बिजलीघर परियोजनाएँ हैं।
3. रावी
– रावी का उद्गम रोहतांग दर्रे से होता है।
– भारत में इसकी लम्बाई 725 किमी. है, जो 6957 वर्ग किमी. के जल को अपवाहित करती है।
– गुरुदासपुर एवं अमृतसर में भारत-पाक सीमा बनाती हुई लाहौर की ओर प्रस्थान करती है।
4. व्यास
– हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे में स्थित व्यास कुण्ड से उद्गम होता है।
– यह पंजाब के कपूरथला एवं अमृतसर के जनपदों में बहती हुई हरिके स्थान पर सतलज नदी में मिल जाती है।
– व्यास नदी की कुल लम्बाई 465 किमी. है।
5. सतलज
– सतलज नदी का उद्गम तिब्बत में कैलाश पर्वत के दक्षिण में स्थित राक्षस झील से होता है।
– यह एक पूर्ववर्ती नदी है, जिसकी आयु हिमालय पर्वत से अधिक है।
– तिब्बत में सतलज नदी को लांगचेन खम्बाब कहते हैं।
– इस नदी पर भाखड़ा गाँव के पास बहुउद्देशीय भाखड़ा बाँध का निर्माण किया गया है।
– सतलज नदी की लम्बाई 1050 किमी. है, जो 28090 वर्ग किमी. क्षेत्र को अपवाहित करती है।
6. लूणी
– लूणी नदी का उद्गम स्थान अजमेर (राजस्थान) के पास नाग से पहाड़ है।
– लूणी नदी की लम्बाई 495 किमी. है, जो कच्छ के रण में जाकर समाप्त होती है।
– लूणी नदी का पानी बालोतरा से आगे खारा हो जाता है इसलिए इसे आधी – खारी व आधी मीठी नदी कहा जाता है।
– बाण्डी, सुकड़ी, जवाई, जोजड़ी, मिठड़ी, खारी, सागी आदि सहायक नदियाँ हैं।
7.पश्चिम बनास
– उद्गम अरावली की पहाडियों से नया सानवरा गाँव (सिरोही) से होता है।
– बहाव क्षेत्र बनासकांठा गुजरात में प्रवेश फिर लिटिल रण (कच्छ के रण) में विलुप्त हो जाती है।
– डीसा नगर इसी नदी के किनारे पर स्थित है।
8.साबरमती
– इसका उद्गम स्थल उदयपुर के पास स्थित जयसमंद झील है।
– यह नदी अरावली के दक्षिण ढलान को अपवाहित करती हुई, खंभात की खाड़ी में जाकर गिरती है।
9.माही
– माही मध्यप्रदेश के विंध्याचल पहाड़ से निकलती है, जिसकी लम्बाई 576 किमी. है।
– माही कर्क रेखा को दो बार काटती है।
– सोम, जाखम, चाप, अनास, मोरेन तथा इरू इसकी सहायक नदियाँ हैं।
– इसका अपवाह क्षेत्र 34,842 वर्ग किमी. है जो मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात राज्यों में फैला हुआ है।
10. नर्मदा नदी
– नर्मदा मध्य प्रदेश में अमरकंटक की पहाड़ियों से निकलती है तथा पश्चिम-दक्षिण की ओर 1,312 किमी. बहने के बाद भड़ोच के पास एश्चुअरी का निर्माण कर खंभात की खाड़ी में गिरती है।
– इसका अधिकांश भाग मध्य प्रदेश में पाया जाता है।
– इसके कुल अपवहन क्षेत्र का केवल दसवाँ भाग गुजरात में है।
– नर्मदा का महत्त्वपूर्ण लक्षण इसकी सहायक नदियों की कमी है।
– इसकी कोई भी सहायक नदी 200 किमी. से अधिक लंबी नहीं है।
– केवल ओरसन एक अपवाद है, जिसकी लंबाई 300 किमी. है।
– मध्यप्रदेश में संगमरमर की चट्टानों में नर्मदा का रमणीक प्रपात धुआँधार प्रपात प्रसिद्ध है।
– नर्मदा के उत्तर में विंध्याचल और दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत है।
11. ताप्ती नदी
– यह मध्य प्रदेश के बैतूल जिले से निकलकर पश्चिम की ओर 724 किमी. की लंबाई में नर्मदा के लगभग समानांतर एक द्रोणी बेसिन में बहती है।
– यह मध्य प्रदेश महाराष्ट्र तथा गुजरात से होकर बहती है।
– इसके अपवाह क्षेत्र का 79 प्रतिशत भाग महाराष्ट्र में, 15 प्रतिशत भाग मध्य प्रदेश में और शेष 6 प्रतिशत भाग गुजरात में पड़ता है।
– ताप्ती के बाएँ तट पर मिलने वाली नदियों में पूर्णा, बेघर, गिरना, बोरी, तथा पंझरा एवं दाहिने तट पर मिलने वाली नदी मनेर मुख्य है।
– इसके मुहाने पर सूरत नगर स्थित है।
12. वैतरणा नदी
– नासिक पहाड़ियों में त्रियबंक पहाड़ियों में 670 किमी. ऊँचाई पर वैतरणा नदी निकलती है।
13. शरावती नदी
– शरावती पश्चिमी की ओर बहने वाली कर्नाटक की एक अन्य महत्त्वपूर्ण नदी है, शरावती कर्नाटक के शिमोगा जिले से निकलती है और इसका जलग्रहण क्षेत्र 2,209 वर्ग किमी. है।
14. पेरियार नदी
– पेरियार केरल की दूसरी सबसे बड़ी नदी है इसका जलग्रहण क्षेत्र 5,243 वर्ग किमी. है।
भारत के प्रमुख जलप्रपात
जलप्रपात | स्थान | नदी |
महात्मा गांधी या जोग | कर्नाटक | शरावती |
हुंडरू जलप्रताप | झारखंड | स्वर्णरेखा |
चित्रकुट जलप्रपात | छत्तीसगढ़ | इन्द्रावती |
दूधसागर जलप्रपात | गोवा-कर्नाटक | मांडवी |
कुंचीकल | कर्नाटक | वाराही |
हिमालयी तथा प्रायद्वीपीय नदियों में अन्तर
हिमालयी नदियाँ | प्रायद्वीपीय नदियाँ |
प्रायद्वीपीय भारत की नदियों की तुलना में हिमालय की नदियाँ अधिक लम्बी हैं। | प्रायद्वीपीय नदियाँ लम्बाई में हिमालय नदियों की तुलना में अपेक्षाकृत छोटी हैं। |
हिमालय की नदियों के द्वारा अपेक्षाकृत विशाल डेल्टा का निर्माण किया जाता हैं। | प्रायद्वीपीय नदियाँ अपेक्षाकृत छोटे डेल्टा एवं ज्वारनदमुख का निर्माण करती हैं। |
हिमालय की नदियाँ मार्ग परिवर्तित करने के लिए कुख्यात हैं । | प्रायद्वीपीय नदियाँ सुनिश्चित एवं स्थायी मार्ग में बहती हैं। |
हिमालय की नदियाँ युवावस्था में हैं। | प्रायद्वीपीय नदियाँ प्रौढ़ा अवस्था में होती हैं। |
हिमालय की नदियाँ पूर्ववर्ती नदियाँ हैं । | प्रायद्वीपीय नदियाँ परवर्ती नदियाँ हैं । |
अपवाह तंत्र के प्रकार
1.पूर्ववती अपवाह- हिमालय की अधिकांश नदियाँ जैसे – ब्रह्मपुत्र, सिंधु, तिस्ता एवं भागीरथी।
2.अनुगामी अपवाह- दक्षिण भारत का अपवाह तंत्र मुख्यत: अनुगामी अपवाह तंत्र है। पेरियार, पोन्जानी, शरावती नदियाँ, पश्चिमी घाट से निकलकर पूरब की ओर बहती है। नर्मदा और ताप्ती नदियां भ्रंश क्षेत्रों से होकर बहती है।
• कोई नदी जब धरातलीय ढाल की दिशा में प्रवाहित होती है, तब इस अपवाह का विकास होता है। दक्षिण भारत का अपवाह तंत्र मुख्यत: अनुगामी अपवाह तंत्र है।
• पेरियार, पोन्जानी, शरावती नदियाँ, पश्चिमी घाट से निकलकर पूरब की ओर बहती है। नर्मदा और ताप्ती नदियां भ्रंश क्षेत्रों से होकर बहती है।
3.अनुवर्ती अपवाह – दक्षिण प्रायद्वीप के उत्तर भाग का ढाल उत्तर की ओर है, इसलिए विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वत क्रम से निकलने वाली नदियाँ उत्तर की ओर बहती हुई यमुना व गंगा में मिल जाती हैं। इनमें चंबल, केन, सिंधु, बेतवा और सोन नदियाँ उल्लेखनीय है। ये नदियाँ अनुवर्ती अपवाह बनाती है।
4. आयताकार अपवाह- एक प्रकार की प्रवाह प्रणाली जिसमें सहायक नदियां मुख्य नदी से और उपसहायक नदियां सहायक नदी से लगभग समकोण पर (लम्बवत्) मिलती हैं।
5.समानांतर अपवाह-
यह प्रतिरूप तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों में विकसित होता है। इसमें प्रमुख एवं सहायक नदियाँ आपस में विलय से पूर्व काफी हद तक एक दूसरे से समान अंतर पर बहती है।
गंगा के ऊपरी मैदान की नदियाँ।
उदाहरण– पश्चिमी घाट से निकलने वाली नदियाँ, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, तुंगभद्रा तथा गंगा के ऊपरी मैदान की नदियाँ।
• अंत:स्थलीय अपवाह– जब नदियाँ किसी सागर या महासागर में न गिरकर अन्दर ही आन्तरिक भागों में समा जाती है वह अन्तः स्थलीय अपवाह तन्त्र कहलाती हैं। राजस्थान की रूपनारायण, मेढ़ा।
• खंडित अपवाह– भारत के मैदान में सभी नदियाँ लुप्त हो जाती है और बाद में पुन: धरातल पर बहने लगती है इस प्रकार ये खंडित अपवाह का निर्माण करती है।
• अभ्यारोपित अपवाह– एक विशिष्ट प्रकार का अपवाह जिसका विकास पहले ऊपरी शैल संस्तर पर होता है और बाद में उसके नीचे स्थित शैल संस्तर पर भी हो जाता है। नदी घाटी का विकास पहले ऊपरी आवरण शैल पर होता है।
• दामोदर, स्वर्ण रेखा, चंबल तथा बनास नदियाँ अध्यारोपित जल अपवाह का निर्माण करती है।
• जालीनुमा प्रतिरूप– जब प्रमुख नदियाँ एक दूसरे के समान्तर प्रवाहित हो एवं सहायक नदियाँ उनसे समकोण पर काटे अर्थात् जब मुख्य नदियों की प्राथमिक सहायक नदियाँ एक दूसरे के समानान्तर बहती है एवं द्वितीयक सहायक नदियाँ समकोण पर उनसे मिलती हैं तो जालीनुमा प्रतिरूप का निर्माण होता है।
उदाहरण– सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र।
वृक्षनुमा अपवाह – इसमें प्रमुख नदी वृक्ष के तने के समान एवं सहायक नदियाँ वृक्ष की शाखाओं के समान होती है। ये नदियाँ सपाट एवं चौरस धरातल पर प्रवाहित होते हुए एक मुख्य नदी की धारा में मिलती है। उदाहरण– छोटा नागपुर पठार एवं दक्षिण भारतीय नदियाँ जैसे- कृष्णा व गोदावरी नदी।
नमामी गंगे परियोजना एक एकीकृत संरक्षण मिशन है, जिसे जून 2014 में केंद्र सरकार द्वारा ‘प्रमुख कार्यक्रम’ के रूप में अनुमोदित किया गया। इसमें राष्ट्रीय नदी गंगा से संबंधित दो उद्देश्य हैं – प्रदूषण के प्रभाव को कम करना तथा उसके संरक्षण और कायाकल्प को पूरा करना। नमामी गंगे कार्यक्रम के मुख्य स्तंभ हैं 1.सीवेज ट्रीटमेंट व्यवस्था 2.नदी-किनारे का विकास 3.नदी सतह सफ़ाई 4.जैव विविधता 5.वनीकरण 6.जन जागरूकता 7.औद्योगिक अपशिष्ट निगरानी |
भारत की प्रमुख झीलें
झील से तात्पर्य– झील जल का वह स्थिर भाग है जो चारों तरफ से स्थलखंडों से घिरा होता है। झील की दूसरी विशेषता उसका स्थायित्व है।
भारत में झीलों को दो भागों में वगीगर्त किया गया है-
1. मानव निर्मित झील
2. प्राकृतिक झील
1. मानव निर्मित झील – मानवनिर्मित झीलें प्राय: बहुद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं के अंतर्गत बनाए गए जलागारों (reservoir) के रूप में स्थित है।
2. प्राकृतिक झील – प्राकृतिक झीलों को निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत किया गया है–
विवर्तनिक झीलें
इन झीलों का निर्माण धरातल के धँसने अथवा उठने से होता है। जैसे- वूलर झील (कश्मीर) तथा कुमायूँ हिमालय की झीलें। इन झीलों को प्लाया झीलें भी कहा जाता है। राजस्थान में अधिकतर इस प्रकार की झीलें पाई जाती है। जैसे – सांभर, डीडवाना, पचपदरा, लूणकरणसर आदि हैं।
हिमानी निर्मित झीलें
• इन झीलों का निर्माण हिमानी अथवा हिमनद के अपरदन से होता है। जैसे कुमायूँ हिमालय की झीलें तथा उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड की नैनीताल, भीमताल, राकसताल, नौकुचियाताल, समताल, पूनाताल, मालवाताल, खुरपाताल आदि झीलें।
वायु द्वारा निर्मित झीलें –
इन झीलों का निर्माण वायु के तेज प्रवाह से होने वाले अपरदन के कारण होता है। इन झीलों को प्लाया झीलें भी कहा जाता है। राजस्थान में अधिकतर इस प्रकार की झीलें पाई जाती है। जैसे – सांभर, डीडवाना, पचपदरा, लूणकरणसर आदि हैं।
लैंगून व अनूप झीलें
– इन झीलों का निर्माण समुद्र जल का कुछ भाग चट्टान, बालू अथवा प्रवालभित्तियों के द्वारा मुख्य जल से अलग हो जाता है। जिससे कुछ झीलें सँकरे जलीय भागों द्वारा समुद्र से जुड़ जाते है उन्हें लैंगून या अनूप झीलें कहा जाता है। जैसे – चिल्का झील, पुलीकट झील, कोलेरू झील, तथा केरल राज्य की झीलें।
ज्वालामुखी झीलें लोनार झील (महाराष्ट्र) में एक क्रेटर झील है।
डेल्टाई झीलें
– इन झीलों का निर्माण डेल्टाई प्रदेशों में नदी धाराओं से होता है जैसे कोलेरू झील (कृष्णा-गोदावरी डेल्टा)।
वूलर झील– भारत की ताजे जल की सबसे बड़ी झील है।- जम्मू एवं कश्मीर संघ राज्य क्षेत्र में स्थित भारत की ताजे जल की वृहत्तम झील है। – वूलर झील, झेलम नदी पर निर्मित गोखुर झील का उदाहरण है। |
डल झील
– हिमानी निर्मित श्रीनगर (जम्मू व कश्मीर) में ताजे जल की झील है।
– यह झील 8 किमी. लम्बी तथा 3 किमी. चौड़ी है। कई स्थानों में दलदल होने के कारण यह कम गहरी है।
कोलेरू झील
– आंध्र प्रदेश में कृष्णा-गोदावरी डेल्टा के मध्य स्थित ताजे जल की झील है।
पुलिकट झील
– यह आंध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु की सीमा पर स्थित खारे जल की लैगून झील है।
– श्रीहरिकोटा द्वीप इस झील को बंगाल की खाड़ी से अलग करता है। ‘सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र’ इसी द्वीप पर अवस्थित है।
– इसका निर्माण समुद्र से बालू की भित्ति अलग होने से हुआ है।
लोकटक झील– यह झील पूर्वोतर भारत की सबसे बड़ी झील है।- यह उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर में स्थित एक मीठे पानी की झील है, जिस पर जल विद्युत केन्द्र भी है।- यह झील विश्व में तैरती द्वीपीय झील (फुण्डी) के रूप में प्रसिद्ध है।- इस झील में केईबुल लामजाओ नामक राष्ट्रीय पार्क है।- अपनी उत्पादकता एवं जैव-विविधता के कारण मणिपुर की जीवन रेखा कहलाती है।- यह रामसर आर्द्र भूमि सूची तथा ‘मोंट्रेक्स रिकॉर्ड’ के अंतर्गत शामिल है। |
लोनार झील
– महाराष्ट्र में बुलढ़ाना जिले में स्थित ज्वालामुखी/उल्कापात द्वारा निर्मित झील है।
रेणुका झील
– हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में स्थित ताजे जल की झील है। यहीं पर चिड़ियाघर एवं लायन सफारी पार्क स्थित है।
रूपकुंड झील
– उत्तराखंड के मध्य हिमालय में स्थित ताजे जल की प्राकृतिक झील है।
चिल्का झील– यह झील भारत की सबसे बड़ी लैंगून झील है।- यह उत्तरी सरकार तट (ओडिशा) में अवस्थित भारत की सबसे बड़ी लैंगून एवं खारे पानी की झील है।- उत्तरी सरकार तट (ओडिशा) राज्य में स्थित है, जो भारत की खारे पानी की वृहत्तम लैंगून झील है।- यह झींगा मछली के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। यह रामसर आर्द्र भूमि सूची के अंतर्गत शामिल है। |
सस्थम कोट्टा झील
– केरल के कोल्लम जिले में स्थित ताजे पानी की वृहत्तम झील।
सतताल या सत्ता झील
– यह उत्तराखंड के कुमायूँ प्रखंड में झीलमताल नगर के निकट कई झीलों का समूह है।
सूरजताल
– हिमाचल प्रदेश में बाड़ालाचा दर्रे के निकट स्थित ताजे जल की झील है।
तवावोहर झील
– मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में नर्मदा नदी पर बाँध बनाकर इसे निर्मित किया गया है।
सोंगमो झील
– सिक्किम के गंगटोक जिले में स्थित ताज़े पानी की झील है।
अष्टमुदी झील
– केरल के कोल्लम जिले में स्थित लैंगून/कयाल झील है, जिसकी 8 शाखाएँ है।
– रामसर समझौते द्वारा इसे अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्र भूमि घोषित किया गया है।
भीमताल झील
– यह उत्तराखंड के कुमायूँ क्षेत्र में स्थित मीठे पानी की झील है, जिसके केंद्र में एक छोटा द्वीप भी है। यह राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन हेतु प्रसिद्ध है।
वेंबनाद झील– केरल तट पर स्थित खारे जल की लैंगून झील है।- यह भारत की सबसे लंबी झील मानी जाती है, जिसकी लंबाई लगभग 96 किमी. है।- वेंबनाद झील में दो द्वीप वेंलिंगटन तथा वल्लारपदम् हैं। नेहरू ट्रॉफी नौकायन प्रतियोगिता प्रतिवर्ष ओणम पर्व के अवसर पर आयोजित की जाती है जिसे स्थानीय भाषा में ‘वल्लामकली’ कहते हैं।- यह रामसर आर्द्र भूमि की सूची के अंतर्गत सम्मिलित है। इस झील में केरल की लगभग 10 नदियाँ अपना मुहाना बनाती है, जिसमें पंबा और पेरियार प्रमुख है।- भारत का सबसे छोटा राष्ट्रीय राजमार्ग NH-47A वेलिंगटन द्वीप से होकर गुजरता है। |
चेम्बरमबक्कम झील
– यह तमिलनाडु के चिंगपट्टु जिले में चेन्नई से 40 किमी. दक्षिण में अवस्थित है।
– इस झील से अड्यार नदी का उद्गम होता है।
चो-ल्हामू झील
– यह सिक्किम के उत्तरी भाग में 18000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है, जो भारत की सबसे ऊँची झील है।
– तीस्ता नदी का उद्गम यहीं से होता है।
राज्य एवं प्रमुख झीलें |
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गुजरात – नल सरोवर, नारायण सरोवर, कंकरिया, हमरिसर जम्मू-कश्मीर – डल, वूलर, अनंतनाग, नागीन, बेरीनाग, शेषनाग। राजस्थान – पिछोला, सांभर, पदपदरा, राजसमंद, जयसमंद, डीडवाना, पुष्कर, फतेह सागर, उदय सागर। हरियाणा – सूरजकुंड पंजाब – कांजलि, हरिके, रोपड लद्दाख – मैंगोंग सो, सोमोरिरी मणिपुर – लोकटक मिज़ोरम – पाला केरल – वेंबनाद, अष्टमुदी (लैगून झील), सस्थमकोट्टा। सिक्किम – गुरुडोंगमर, चोलामू कर्नाटक – बेलांदूर, पंपा, सरोवर तमिलनाडु – बेरीजाम, ऊटी, कोडाइकनाल, चेम्बरमबक्कम् असम – दिपोर बील, सोन बील, हॉफलांग। तेलंगाना – हुसैन सागर, उस्मानसागर, हिमायत सागर महाराष्ट्र – लोनार, पवई, गोरेवाड़ा, सलीम अली सरोवर आंध प्रदेश – कोलेरू |
राजस्थान की प्रमुख झीलें
राजस्थान की मीठे पानी की प्रमुख झीलें
राजसमंद झील (राजसमंद)
– राजसमंद झील का निर्माण महाराणा राजसिंह ने 1662 ई.में कांकरोली (नाथद्वारा) में गोमती, ताल तथा केलवा नदियों के पानी को रोककर करवाया।
– घेवर माता द्वारा नींव रखी जाने के कारण राजसमंद झील के किनारे घेवर माता का मंदिर है।
– राजसमंद झील के किनारे नौ चौकी की पाल पर विश्व की सबसे बड़ी प्रशस्ति – (राज प्रशस्ति) 25 शिलालेखों पर संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण हैं।
– राज प्रशस्ति के लेखक रणछोड़ भट्ट हैं।
– राज प्रशस्ति में मुगल-मेवाड़ संधि का भी उल्लेख है।
जयसमंद झील/ढेबर झील (उदयपुर)
– राजस्थान के उदयपुर में स्थित मीठे जल की झील जो नमक उत्पादन हेतु प्रसिद्ध है।
– जयसमंद झील भारत की दूसरी सबसे बड़ी मीठे पानी की कृत्रिम झील है।
– 17वीं शताब्दी में उदयपुर के राजा राणा जयसिंह ने इसे निर्मित कराया था।
– जयसमंद झील में 7 टापू हैं जिनमें सबसे बड़ा टापू-बाबा का मगरा/बाबा का भांगड़ा तथा सबसे छोटा टापू प्यारी है।
– जयसमंद झील के पास रूठी रानी का महल, चित्रित
– हवामहल, हाथी की पाषाण मूर्ति है।
– जयसमंद झील से श्यामपुर तथा भाट नामक 2 नहरें निकाली गई हैं।
पिछोला झील (उदयपुर)
– पिछोला झील का निर्माण (1387 ई.) में राणा लाखा के समय पिच्छू बंजारा द्वारा पिछोला गाँव (उदयपुर) में करवाया गया।
– पिछोला झील में शिशरमा नदी का जल आता है।
– पिछोला झील में दो महल बने हुए हैं।
1.जग मंदिर महल
– पिछोला झील में एक टापू पर बने जग मंदिर महल को ताजमहल का पूर्वगामी कहा जाता है।
– इसका निर्माण महाराणा कर्णसिंह ने प्रांरभ करवाया था किन्तु इसका पूरा कार्य महाराणा जगतसिंह प्रथम ने करवाया था।
– शाहजहाँ (खुर्रम) ने दक्षिण दौरे के समय यहाँ शरण ली थी और जग मंदिर महल को देखकर ही शाहजहाँ को ताजमहल बनाने की प्रेरणा मिली।
– 1857 ई. की क्रांति के दौरान महाराणा स्वरूप सिंह ने अंग्रेजों को शरण दी थी।
– पिछोला झील – राजस्थान की पहली झील है जहाँ सौर ऊर्जा संचालित नौका चलाई जा रही है।
2.जगनिवास महल – इस महल का निर्माण महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने करवाया था।
फतेह सागर झील (उदयपुर)
– फतेह सागर झील का निर्माण (1680 ई.) में महाराणा जयसिंह द्वारा देवली तालाब के रूप में करवाया गया।
– 1888/1889 ई. में महाराणा फतेह सिंह द्वारा इसका पुनर्निर्माण करवाया गया।
– फतेह सागर झील की नींव अंग्रेज अधिकारी ड्यूक ऑफ कनॉट द्वारा रखी गई। इसलिए फतेह सागर पर बने बाँध का नाम कनॉट बाँध रखा है।
– फतेह सागर के सबसे बड़े टापू पर नेहरू उद्यान, दूसरे टापू पर सौर वैधशाला और सबसे छोटे टापू पर जेट माउण्टेन स्थित है।
– भारत की सबसे बड़ी सौर वैधशाला फतेहसागर झील में लगी है।
– फतेहसागर झील को पिछोला झील से स्वरूप सागर नहर को जोड़ती है, जिस पर ‘नटनी का चबूतरा’ बना है।
आनासागर झील (अजमेर)
– आनासागर झील का निर्माण अजमेर चौहान शासक अर्णोराज द्वारा (1137 ई.) तुर्की सेना के रक्त से रंगी धरती को साफ करने हेतु करवाया गया।
– जहाँगीर ने आनासागर झील के किनारे दौलतबाग (सुभाष उद्यान) का निर्माण करवाया था।
– यहाँ पर जहाँगीर ने टॉमस रो से मुलाकात की थी।
– शाहजहाँ ने आनासागर झील पर बारहदरी का निर्माण करवाया। (पूर्णत: संगमरमर से बनी)
फॉय सागर झील (अजमेर)
– फॉय सागर झील का निर्माण अकाल राहत कार्य के दौरान अंग्रेज अधिकारी फॉय के निर्देशन में हुआ था।
बालसमन्द झील (जोधपुर)
– बालसमन्द झील का निर्माण गुर्जर प्रतिहार शासक बालक राव (बाऊक) ने करवाया था।
कायलाना झील – जोधपुर
– इसका निर्माण जोधपुर के महाराजा सर प्रताप सिंह ने अकाल राहत कार्य के दौरान करवाया था।
सिलीसेढ़ झील –अलवर
– सिलीसेढ़ झील का निर्माण अलवर के महाराजा विनय सिंह ने करवाया था।
· जैत सागर –बूँदी
· राम सागर – धौलपुर
· तालाब शाही – धौलपुर
· तेज सागर – प्रतापगढ़
· मूल सागर – जैसलमेर
· अमर सागर – जैसलमेर
· गजरूप सागर – जैसलमेर
· गढ़सीसर – जैसलमेर
· पन्नाशाह तालाब – झुंझुनूँ
राजस्थान की खारे पानी की झीलें
– उत्तर पश्चिम राजस्थान में मुख्यत: खारे पानी की झीलें पाई जाती है जो कि ‘टेथिस सागर’ का अवशेष है।
कावोद झील (जैसलमेर)
– राजस्थान की सर्वश्रेष्ठ नमक उत्पादन झील है।
लूणकरणसर झील (बीकानेर)
– राजस्थान/भारत की उत्तरतम खारे पानी की झील है।
डीडवाना (नागौर)
– इस झील के नमक में सोडियम सल्फेट ज्यादा पाया जाता है। अत: इस झील का नमक खाने योग्य नहीं होता है।
– इस झील का नमक चमड़ा उद्योग तथा रंगाई छपाई उद्योग में काम आता है।
– राजस्थान सरकार द्वारा डीडवाना में सोडियम सल्फेट बनाने का कारखाना लगाया है, जिसका उपयोग कृत्रिम कागज बनाने में किया जाता है।
पचपदरा झील (बाड़मेर)
– इस झील का नमक सर्वाधिक खाने योग्य होता है क्योंकि इसमें Nacl – 98% होता है और 2% आयोडीन पाया जाता है।
– पचपदरा झील में नमक खारवाल जाति के लोगमोरड़ी/मोरली झाड़ी का उपयोग करके बनाते हैं।
सांभर झील
– सांभर झील भारत में सबसे बड़ी आंतरिक नमक उत्पादन झील है।
– यह भारत के कुल नमक का 8.7% नमक उत्पादित करती है।
– सांभर झील में एल्गी/शैवाल/बैक्टीरिया पाया जाता है, जिसका उपयोग नाइट्रोजनयुक्त खाद बनाने में किया जाता है।
– सांभर झील का निर्माण शाकम्भरी के चौहान शासक ‘वासुदेव चौहान’ ने 551ई. में करवाया था।
– सांभर झील रामसर साइट की सूची में भी शामिल है।
– सांभर झील तीन जिलों में आती हैं – जयपुर, नागौर एवं अजमेर
मानव निर्मित झीलें
गोविन्द बल्लभ पंत सागर – सोन नदी की सहायक नदी रिहंद नदी पर निर्मित यह झील उत्तर प्रदेश के सोनभ्रद जनपद में स्थित है।
राणा प्रताप व जवाहर सागर (राजस्थान) तथा गाँधी सागर (मध्य प्रदेश) चंबल नदी पर निर्मित।
गोविंद सागर झील हिमाचल प्रदेश में भाखड़ा बाँध के पीछे सतलुज नदी पर निर्मित झील है।
पेरियार झील केरल में पेरियार नदी पर निर्मित है।
नागार्जुन सागर कृष्णा नदी पर आंध्रप्रदेश और तेलंगाना की सीमा पर अवस्थित है।
स्टेनले जलाशय तमिलनाडु में कावेरी नदी पर निर्मित मेट्टूर बाँध के पीछे बनी झील है।
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महत्वपूर्ण प्रश्न
भारत में लगभग कितनी नदियां बहती है?
भारत में छोटी-बड़ी लगभग 200 मुख्य नदियां हैं।
भारत की प्रमुख नदी का क्या नाम है?
यमुना, रामगंगा, घाघरा, गंडक, कोसी, महानंदा और सोन नदियां गंगा
भारत की सबसे छोटी नदी का नाम क्या है?
अरवरी नदी
हमारे देश की सबसे लंबी नदी कौन सी है?
गंगा