इस लेख में हम स्वर संधि (Swar Sandhi) के बारे में चर्चा करेंगे। एंव विभिन सवालो के जवाब जानेंगे जैसे स्वर संधि किसे कहते है। स्वर संधि के भेद एंव स्वर संधि के उदाहरण क्या है। स्वर संधि के कितने भेद होते है। swar sandhi ke kitne bhed hote hain विभिन परीक्षा की दृष्टि से यहा नोट्स पीडीऍफ़ भी दी गयी है जिसे अप्प डाउनलोड कर सकते है।
स्वर संधि की परिभाषा (Swar Sandhi ki Paribhasha)
दो स्वरों के मेल से उत्पन्न हुआ विकार स्वर संधि कहलाता है।
यह विकार छह रूपों में आ सकता है इसलिए स्वर-संधि के छह प्रकार हैं- (1) दीर्घ संधि, (2) गुण संधि वधि संधि, (4) यण संधि, (5) अयादि संधि, (6) स्वर संधि के कुछ विशेष रूप।
स्वर संधि के भेद (Swar Sandhi ke Bhed)
1. दीर्घ संधि :-
जब एक ही स्वर के दो रूप ह्रस्व (अ, इ उ) और दीर्घ (आ, ई, ऊ ) एक दूसरे के बाद आ जाएँ तो दोनों मिलकर उसका दीर्घवाला स्वर (अर्थात् आ, ई, ऊ) हो जाता है।
अ/आ + अ/आ = आ (ा)
- युग + अंतर = युगांतर
- दिव्य + अस्त्र = दिव्यास्त्र
- हस्त + अंतरण = हस्तांतरण
- राष्ट्र + अध्यक्ष = राष्ट्राध्यक्ष
- आग्नेय + अस्त्र = आग्नेयास्त्र
- दिवस + अंत = दिवसांत
- उदय + अचल = उदयाचल
- अस्त + अचल = अस्ताचल
- लोहित + अंग = लोहितांग (मंगल ग्रह)
- उप + अध्याय (अधि + आय) = उपाध्याय
- ध्वंस + अवशेष = ध्वंसावशेष
- नयन + अभिराम = नयनाभिराम
इ/ई + इ/ई = ई ( ी)
- प्राप्ति + इच्छा = प्राप्तीच्छा
- अति + इंद्रिय = अतींद्रिय
- प्रति + इत = प्रतीत
- गिरि + इंद्र = गिरींद्र
- रवि + इंद्र = रवींद्र
- मणि + इंद्र = मणींद्र
- कवि + इंद्र = कवींद्र
- मुनि + इंद्र = मुनींद्र
- योगिन् + ईश्वर = योगीश्वर (न का लोप)
- हरि + ईश = हरीश
- अभि + ईप्सा = अभीप्सा (इच्छा)
- प्रति + ईक्षित = प्रतीक्षित
- परि + ईक्षित = परीक्षित
उ/ऊ + उ/ऊ = ऊ ( ू )
- कटु + उक्ति = कटूक्ति
- सु + उक्ति = सूक्ति
- लघु + उत्तम = लघूत्तम
- गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
- सिंधु + ऊर्मि = सिंधूमि (समुद्र की लहर)
- लघु + ऊर्मि = लघूर्मि
- वधू + उक्ति = वधूक्ति
- सरयू + ऊर्मि = सरयूमि
दीर्घ संधि के बारे मे विस्तार से पढे?
2. गुण संधि-
गुण संधि में दो भिन्न-भिन्न स्थानों से उच्चारित होने वाले स्वरों के बीच संधि होती है और उसका परिणाम यह होता है कि मिलनेवाले दो स्वरों से भिन्न गुणवाला एक नया ही स्वर उत्पन्न हो जाता है। यदि अ आ के बाद इ ई आए तो ए, अ आ के बाद उ ऊ आए तो ओ तथा अ आ के बाद ऋ आए तो अर् हो जाता है।
दरअसल जब जीभ को अ आ के बाद इ ई उच्चारित का करना पड़े तो अ आ और इ ई के बीच पड़नेवाले ए को उच्चारित कर देती है।
इसी प्रकार का प्रयत्न अ आ (खुले होंठ) और उ ऊ (गोल होंठ) के बीच ओ (कुछ कम गोल होंठ) के उच्चारण में होता है।
अ आ और ऋके संयोग से अर बनता है जिसमें ऋ स्वर तो र व्यंजन में बदल जाता है ।
- देव + इन्द्र = देवेन्द्र
- देव + ऋषि = देवर्षि
- महा + ऋषि = महर्षि
- देव + ईश = देवेश
- सूर्य + उदय = सूर्योदय
- नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा
- मृग + इन्द्र = मृगेन्द्र
- हित + उपदेश = हितोपदेश
- वार्षिक + उत्सव = वार्षिकोत्सव
- मानव + उचित = मानवोचित
- वीर + उचित = वीरोचित
- पाठ + उपयोगी = पाठोपयोगी
- महा + इन्द्र = महेन्द्र
- चन्द्र + उदय = चन्द्रोदय
- समुद्र + ऊर्मि = समुद्रोर्मि
- रमा + ईश = रमेश
- नर + ईश = नरेश
गुण संधि के बारे मे विस्तार से पढ़े?
3. वृद्धि संधि :-
यदि अ आ के बाद ए ऐ आए तो ऐ तथा अ आ के बाद ओ औ आये तो औ हो जाता है। ऐ तथा औ स्वर वृद्धि स्वर कहलाते हैं अत: यह संधि वृद्धि संधि कहलाती है।
अ/आ + ए/ऐ = ऐ ( ै)
- पुत्र + एषणा = पुत्रैषणा
- वित्त + एषणा= वित्तैषणा
- लोक + एषणा = लोकैषणा
- सदा + एव = सदैव
- वसुधा + एव (ही) = वसुधैव
- तथा + एव = तथैव
- मत + ऐक्य = मतैक्य
- विश्व + ऐक्य = विश्वैक्य
- विचार + ऐक्य = विचारैक्य
अ/आ + ओ/औ = औ (ौ)
- जल + ओघ = जलौघ (जल का प्रवाह)
- जल+ ओक = जलौक (जल की अंजलि)
- परम + ओजस्वी = परमौजस्वी
- अधर + ओष्ठ = अधरोष्ठ (अपवाद)
- दंत + ओष्ठ्य/औष्ठ्य = दंतोष्ठ्य (अपवाद)
- शुद्ध + ओदन (भोजन) = शुद्धोदन
- बिंब + ओष्ठ = बिंबौष्ठ
वृद्धि संधि के बारे मे विस्तार से पढ़े?
4. यण संधि-
कुछ स्वर आपस में संधि करने पर किसी स्वर में बदलने के बजाय य व र आदि व्यंजनों में बदल जाते हैं। ऐसी संधियों को य् के नाम पर यण संधि कहा जाता है। दरअसल य का उच्चारण स्थान एवं उच्चारण प्रयत्न इ, ई के तथा व् के उच्चारण स्थान एंव उच्चारण प्रयत्न उ, ऊ के बहुत निकट है। इसी तरह ऋ और र में भी बहुत समीपता है। इसलिए इ ई उ ऊ और ऋ के बाद कोई भिन्न (असवर्ण) स्वर आए तो इ ई का य तथा उ, ऊ का व् एंव ऋ का र हो जाता है।
यहाँ यह ध्यातव्य है कि इ/ई स्वर तो य में बदल जाता है किंतु इ/ई स्वर जिस व्यंजन के लगा होता है वह संधि होने पर स्वर-रहित हो जाता है । इसलिए यण संधि में य व् र के पहले के व्यंजन स्वर-रहित रहते हैं जैसे-अभि + अर्थी = अभ्यर्थी । अभ्यर्थी पहले भ् स्वर-रहित है। प्रायः य् व् र् से पहले स्वर रहित व्यंजन का होना या पहचान है।
- अभि + अंतर = अभ्यंतर
- वि + अग्र = व्यग्र
- अधि + अक्षर = अध्यक्षर
- प्रति + अपकार = प्रत्यपकार
- नि + अस्त = न्यस्त
- मति + अनुसार = मत्यनुसार
- अति + अधिक = अत्यधिक
- जाति + अभिमान = जात्यभिमान
- अभि + अर्थना = अभ्यर्थना
- गति + अवरोध = गत्यवरोध
- त्रि + अंबक (आँख) = त्र्यंबक (शिव)
- अति + अल्प = अत्यल्प
- आदि + अंत = आयंत
- स्वस्ति + अयन = स्वस्त्ययन (कल्याण का मार्ग)
- गति + अनुसार = गत्यनुसार
- अधि + अक्ष = अध्यक्ष
- रीति + अनुसार = रीत्यनुसार
- अभि + अंतर = अभ्यंतर
- परि + अंक = पर्यंक (पलंग)
- परि + अंत = पर्यंत
- रीति + अनुसार = रीत्यनुसार
- परि + अटन = पर्यटन
- परि + अवेक्षक (अव + ईक्षक) =पर्यवेक्षक
यण संधि के बारे मे विस्तार से पढ़े?
5. अयादि संधि :-
ए, ऐ , ओ , औ के बाद कोई (असवर्ण) स्वर आए तो वह अय ,आय ,अव ,आव हो जाता है।
- ऐ + अ = आय
- नै + अक = नायक
- विधै + अक = विधायक
- विनै + अक = विनायक
- गै + अन = गायन
- नै + इका = नायिका
6. स्वर-संधि के कुछ विशेष रूप
(i) पहले शब्द के अंतिम स्वर का दीर्धीकरण-संस्कृत में कुछ शब्दों की संधि में पहले राब्द के अंतिम शब्द पर बल बढ़ जाता है और उसका ह्रस्व स्वर दीर्घ स्वर में बदल जाता है।
जैसे =
मूसल + धार= मूसलाधार
विश्व + मित्र = विश्वामित्र
प्रति + घात= प्रतिघात/प्रतीघात ।
स्वर संधि के उदाहरण (Swar Sandhi Udaharn)
यहाँ स्वर संधि के उदाहरण दिए गए है। जिनकी सहायता आप कुछ अभ्यास कर सकते है।
- नव + रात्रि = नवरात्र
- प्रति + अक्षि = प्रत्यक्ष
- दिवा + रात्रि = दिवारात्र
- सहस्र + अक्षि = सहस्राक्ष (इंद्र)
- अहन् + रात्रि = अहोरात्र
- अहन् + निशा = अहर्निश
- प्र+ भू = प्रभु
- पतत् + अंजलि = पतंजलि
- सार + अंग = सारंग (पशु, पक्षी)
- अप + अंग = अपांग (आँख की के
- मार्त (भस्म) + अंड = मार्तड
- व्यवहार + इक = व्यावहारिक
- दंपती + य = दांपत्य
- मनु + अ = मानव
- दशरथ + इ = दाशरथि
- गंगा + एय = गांगेय
- प्रयोग + इक = प्रायोगिक
- स्वस्थ + य = स्वास्थ्य
- रघु + अ = राघव
- दांड्य + आयन = दांड्यायन
- वसुदेव + अ = वासुदेव
- दिति + य = दैत्य
- ईश्वर + य = ऐश्वर्य
- नीति + इक = नैतिक
- एक + य = ऐक्य
- वेद + इक = वैदिक
- देव + इक = दैविक
- धन + उपार्जन = धनोपार्जन
- अन्य + उदर = अन्योदर
- आत्म+उत्सगे (उद्+सर्ग) = आत्मोत्सर्ग
- हित + उपदेश = हितोपदेश
- रस + उद्रेक = रसोद्रेक
- सह + उदर = सहोदर
- मत्र + उच्चार (उद् + चार) = मंत्रोच्चार
- स्वातंत्र्य (स्व+तंत्र्य) + उत्तर= स्वातंत्र्योत्तर
- ध्याय (उप + अधि + आय) =
- स + उदाहरण (उद + आहरण) =सोदाहरण
- कथ + उपकथन = कथोपकथन
- सर्व + उत्तम = सर्वोत्तम
- अतिशय + उक्ति = अतिशयोक्ति
- बाल + उचित = बालोचित
- पद + उन्नति (उद् + नति) = पदोन्नति
- चित्र + उपम = चित्रोपम
- समास + उक्ति = समासोक्ति
- लंब + उदर = लंबोदर
- कठ+उपनिषद् (उपनि+ सद्) = कठोपनिषद्
- मानव + उचित = मानवोचित
- यज्ञ + उपवीत = यज्ञोपवीत
- नव + उत्पल (उद् + पल) = नवोत्पल
- धीर + उदात्त = धीरोदात्त
- धीर + उद्धत (उद् + हत) = धीरोद्धत
- पर + उपकार = परोपकार
- प्रवेश + उत्सव (उद् + सव) = प्रवेशोत्सव
- लोक + उक्ति = लोकोक्ति
- जन + उपयोगी = जनोपयोगी
- हर्ष + उल्लास (उद् + लास) = हर्षोल्लास
- स + उल्लास (उद् + लास) = सोल्लास
- स + उत्साह (उद् + साह) = सोत्साहस
- सूर्य + उदय = सूर्योदय
- नील + उत्पल (उद् + पल)= नीलोत्पल (नीला कमल)
- मास + उत्तम = मासोत्तम
- दलित + उत्थान (उद् + स्थान) =दलितोत्थान
- दर्शन + उत्सुक (उद् + सुक) = दर्शनोत्सुक
- ईश+ उपनिषद् (उपनि+ सद) = ईशोपनिषद्
- रहस्य + उद्घाटन = रहस्योद्घाटन
- भाग्य + उदय = भाग्योदय
- मित्र + उचित = मित्रोचित ।
- प्राण + उत्सर्ग (उद + सर्ग) = प्राणोत्सर्ग
- भाव + उद्रेक = भावोद्रेक
- सर्व + उपरि = सर्वोपरि
- नव + उन्मेष (उद + मेष) = नवोन्मेष
- पुष्प + उद्यान = पुष्पोद्यान
- दीप + उत्सव (उद् + सव) = दीपोत्सव
- भाव + उद्दीप्त = भावोद्दीप्त
स्वर संधि किसे है ?
दो स्वरों के मेल से उत्पन्न हुआ विकार स्वर संधि कहलाता है।