मानव नेत्र क्या हैं – परिभाषा, संरचना, कार्य, भाग, आरेख, दोष

नमस्कार आज हम विज्ञान के महत्वपूर्ण अध्याय में से एक मानव नेत्र के विषय में अध्ययन करेंगे। इस अध्ययन के दौरान हम मानव आँख से सम्बंधित विभिन्न प्रमुख बिंदुओं पर विस्तार पूर्वक चर्चा करेंगे जैसे मानव नेत्र क्या हैं? मानव नेत्र की परिभाषा, नेत्र की संरचना, मानव आँख के कार्य, भाग, आरेख, दोष इत्यादि। इस दौरान आपको विशेष प्रकार के प्रश्न भी दिए जायेंगे जिनके माध्यम से आप अपनी तैयारी और समझ को और अधिक अच्छा कर पाओगे।

मानव नेत्र की बात करे अगर परीक्षा की दिर्ष्टि से तो यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक है जो आये दिन बहुत से एग्जाम में पूछा जाता हैं। अगर आपने कोई परीक्षा दी है तो आपको तो पता ही होगा की सामान्य विज्ञान और बायोलॉजी दोनों केटेगरी में इस टॉपिक से प्रश्न पूछे जाता हैं। इन प्रश्नो की संख्या आये दिन बढ़ती ही जा रही है जिसके कारन इस अध्याय का अध्ययन करना और अधिक जरुरी हो गया हैं।

मानव नेत्र क्या हैं?

नेत्र हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। हम अपने चारों ओर के दृश्यों को नेत्रों से देखकर अनुभव करते हैं। हमारी आँख (नेत्र) में भी माँसपेशियों से बना लचीला उत्तल लेंस होता है। इसी लेंस के कारण वस्तुओं का रेटिना पर प्रतिबिम्ब बनता है और वस्तुएँ दिखाई देती हैं।

मानव नेत्र की परिभाषा

नेत्र हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। हम अपने चारों ओर के दृश्यों को नेत्रों से देखकर अनुभव करते हैं। हमारी आँख (नेत्र) में भी माँसपेशियों से बना लचीला उत्तल लेंस होता है। इसी लेंस के कारण वस्तुओं का रेटिना पर प्रतिबिम्ब बनता है और वस्तुएँ दिखाई देती हैं।

नेत्र की संरचना

मानव नेत्र की संरचना
मानव नेत्र की सरंचना

● मानव नेत्र की कार्यप्रणाली एक अत्याधुनिक ऑटोफोकस कैमरे की तरह होती है।
● नेत्र लगभग 2.5 cm व्यास का एक गोलाकार अंग है।

मानव नेत्र के प्रमुख भाग

1. श्वेत पटल (Sclera) –

नेत्र के चारों ओर एक श्वेत सुरक्षा कवच बना होता है जो अपारदर्शी होता है। इसे श्वेत पटल कहते हैं।

2. कॉर्निया (Cornea) –

नेत्र के सामने श्वेत पटल के मध्य में थोड़ा उभरा हुआ भाग पारदर्शी होता है। प्रकाश की किरणें इसी भाग से अपरिवर्तित होकर नेत्र में प्रवेश करती हैं।

3. पारितारिक (Iris) –

यह कॉर्निया के पीछे एक अपारदर्शी माँसपेशीय रेशों की संरचना है जिसके बीच में छिद्र होता है। इसका रंग अधिकांशत: काला होता है। ये रेटिना तक पहुँचने वाले प्रकाश को नियंत्रित करता है।

4. पुतली (Pupil) –

पारितारिक के बीच वाले छिद्र को पुतली कहते हैं। पारितारिक की माँसपेशियों के संकुचन व विस्तारण से आवश्यकतानुसार पुतली का आकार कम या ज्यादा होता रहता है।
● तीव्र प्रकाश में पुतली का आकार छोटा हो जाता है एवं कम प्रकाश में इसका आकार बढ़ जाता है।
● यही कारण है कि जब हम तीव्र प्रकाश से मन्द प्रकाश की ओर जाते हैं तो कुछ समय तक नेत्र ठीक से देख नहीं पाते हैं। थोड़ी देर बाद पुतली का आकार बढ़ जाता है एवं हमें दिखाई देने लगता है।

5. नेत्र लेंस (Eye lens) –

पारितारिक के पीछे एक लचीले पारदर्शी पदार्थ का लेंस होता है जो माँसपेशियों की सहायता से अपने स्थान पर रहता है। कॉर्निया से अपवर्तित किरणों को रेटिना पर केन्द्रित करने के लिए माँसपेशियों के दबाव से इस लेंस की वक्रता की त्रिज्या में थोड़ा परिवर्तन होता है। इससे बनने वाला प्रतिबिम्ब छोटा, उल्टा व वास्तविक होता है।

6. जलीय द्रव (aqueous fluid) –

नेत्र लेंस व कॉर्निया के बीच एक पारदर्शी पतला द्रव भरा रहता है जिसे जलीय द्रव कहते है। यह द्रव इस भाग में उचित दबाव बनाए रखता है ताकि आँख लगभग गोल बनी रहे।
● साथ ही यह कॉर्निया व अन्य भागों को पोषण भी देता रहता है।

7. रक्त पटल (Choroid) –

नेत्र के श्वेत पटल के नीचे एक झिल्लीनुमा संरचना होती है जो रेटिना को ऑक्सीजन एवं पोषण प्रदान करती है। साथ ही आँख में आने वाले प्रकाश का अवशोषण करके भीतरी दीवारों से प्रकाश के परावर्तन को अवरुद्ध करती है।

8. दृष्टिपटल (Retina) –

रक्त पटल के नीचे एक पारदर्शी झिल्ली होती है जिसे दृष्टिपटल कहते हैं। वस्तु से आने वाली प्रकाश किरणें कॉर्निया एवं नेत्र लेंस से अपवर्तित होकर रेटिना पर केन्द्रित होती है। रेटिना में अनेक प्रकाश सुग्राही कोशिकाएं होती हैं जो प्रकाश मिलते ही सक्रिय हो जाती है एवं विद्युत सिग्नल उत्पन्न करती हैं। रेटिना से उत्पन्न प्रतिबिम्ब के विद्युत सिग्नल प्रकाश शिराओं नाड़ी द्वारा मस्तिष्क को प्रेषित होता है।
● मस्तिष्क वस्तु के उल्टे प्रतिबिम्ब का उचित संयोजन करके उसे हमें सीधा दिखाता है।

9. काचाभ द्रव (Vitreous Humor) –

नेत्र लेंस व रेटिना के बीच एक पारदर्शी द्रव भरा होता है जिसे काचाभ द्रव कहते हैं।
● नेत्र जब सामान्य अवस्था में होता है तो अनन्त दूरी पर रखी वस्तुओं का प्रतिबिम्ब रेटिना पर स्पष्ट बन जाता है।
● जब वस्तु नेत्र के निकट होती है तो नेत्र लेंस की माँसपेशियाँ स्वत: एक तनाव उत्पन्न करती हैं जिससे नेत्र लेंस बीच में से मोटा हो जाता है।
 इससे नेत्र लेंस की फोकस दूरी कम हो जाती है एवं निकट की वस्तु का प्रतिबिम्ब पुन: रेटिना पर बन जाता है। लेंस की फोकस दूरी में होने वाले इस परिवर्तन की क्षमता को नेत्र की समंजन क्षमता कहा जाता है।
 वस्तु की नेत्र से वह न्यूनतम दूरी जहाँ से वस्तु को स्पष्ट देख सकते हैं, नेत्र का निकट बिन्दु कहलाता है।
● सामान्य व्यक्ति के लिए यह दूरी 25 सेमी. होती है।
● इस प्रकार नेत्र से वह अधिकतम दूरी जहाँ तक वस्तु को स्पष्ट देखा जा सकता है, नेत्र का दूर बिन्दु कहलता है।
● सामान्य नेत्रों की यह दूरी अनन्त होती है।
● निकट बिंदु से दूर बिंदु के बीच की दूरी दृष्टि-परास कहलाती है।

दृष्टि दोष एवं उनका निराकरण

● उम्र बढ़ने के साथ माँसपेशियों में समंजन क्षमता कम होने से, चोट लगने से, नेत्रों पर अत्यधिक तनाव आदि अनेक कारणों से नेत्रों की समंजन क्षमता में कमी आ जाती है, या उनकी ये क्षमता समाप्त हो जाती है अथवा नेत्र लेंस की पारदर्शिता खत्म हो जाती है।

नेत्र में दृष्टि संबंधी निम्न दोष

1. निकटदृष्टि दोष (Myopia)

● निकटदृष्टि दोष में व्यक्ति को निकट की वस्तुएँ तो स्पष्ट दिखाई देती है किंतु दूर की वस्तुएँ धुँधली दिखाई देने लगती हैं।
● इस दृष्टि दोष का मुख्य कारण नेत्र लेंस की वक्रता का बढ़ जाना है।
● इस दोष से पीड़ित व्यक्ति के नेत्रों में दूर रखी वस्तुओं का प्रतिबिम्ब रेटिना से पहले ही बन जाता है जबकि कुछ दूरी पर रखी वस्तुओं का प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है। एक प्रकार से उस व्यक्ति का दूर बिन्दु अनन्त पर न होकर निकट आ जाता है।
● इस दोष के निवारण के लिए उचित क्षमता का अवतल लेंस नेत्रों के आगे लगाया जाता है।

निकटदृष्टि दोष (Myopia)

● अवतल लेंस अनन्त पर स्थित वस्तु से आने वाली समानांतर किरणों को इतना अपसारित करता है कि वे किरणें उस बिन्दु से आती हुई प्रतीत हो जो दोषयुक्त नेत्रों के स्पष्ट देखने का दूर बिन्दु है।
● वर्तमान में लेजर तकनीक का उपयोग करके भी निकटदृष्टि दोष का निवारण किया जाता है।

2. दूरदृष्टि दोष (Hypermetropia)

● दूर दृष्टि दोष में व्यक्ति को दूर की वस्तुएँ तो स्पष्ट दिखाई देती हैं परंतु निकट की वस्तुएँ स्पष्ट दिखाई नहीं देती हैं।
● इस दोष में व्यक्ति को सामान्य निकट बिंदु (25 सेमी.) से वस्तुएँ धुंधली दिखती हैं, लेकिन जैसे-जैसे वस्तु को 25 सेमी. से दूर ले जाते हैं वस्तु स्पष्ट दिखने लगती हैं। एक प्रकार से दूर दृष्टि दोष में व्यक्ति का निकट बिंदु दूर हो जाता है।

दूरदृष्टि दोष (Hypermetropia)

● दूर दृष्टि दोष के निवारण के लिए उचित क्षमता का उत्तल लेंस नेत्रों के आगे लगाया जाता है। यह लेंस निकट की वस्तु का आभासी प्रतिबिम्ब उतना दूर बनाता है जितना कि दृष्टि युक्त नेत्र का निकट बिंदु है।
● इससे नेत्र को निकट की वस्तुएँ पुन: स्पष्ट दिखाई देने लगती है।

3. जरादृष्टि दोष (Presbyopia)

● आयु बढ़ने के साथ नेत्र लेंस एवं माँसपेशियों का लचीलापन कम होने से नेत्र की समंजन क्षमता कम हो जाती है। इस कारण उन्हें दूरदृष्टि दोष हो जाता है एवं वे निकट की वस्तुओं को स्पष्ट नहीं देख पाते हैं।
● कई बार उम्र के साथ व्यक्तियों को दूर की वस्तुएँ भी धुँधली दिखाई देने लगती हैं। इस तरह के दोषों में व्यक्ति को दूर व निकट दोनों ही वस्तुओं को स्पष्ट देखने में दिक्कत आने लगती है। इसका निवारण करने के लिए द्वि-फोकसी लेंस प्रयुक्त किए जाते हैं।
● इन लेंसों का ऊपरी भाग अवतल लेंस व नीचे का भाग उत्तल लेंस होता है।

4. दृष्टिवैषम्य दोष (Astigmatism)

● दृष्टि – वैषम्य दोष या अबिन्दुकता दोष कॉर्निया की गोलाई में अनियमितता के कारण होता है। इसमें व्यक्ति को समान दूरी पर रखी ऊर्ध्वाधर व क्षैतिज रेखाएँ एक साथ स्पष्ट दिखाई नहीं देती हैं। बेलनाकार लेंस का उपयोग करके इस दोष का निवारण किया जाता है।

5. मोतियाबिन्द (Cotaract)

● व्यक्ति की आयु बढ़ने के साथ नेत्र लेंस की पारदर्शिता खत्म होने लगती है एवं उसका लचीलापन कम होने लगता है। इस कारण लेंस प्रकाश का परावर्तन करने लगता है एवं वस्तु स्पष्ट दिखाई नहीं देती है। इस दोष को मोतियाबिंद कहते हैं।
● पूर्व में शल्य चिकित्सा द्वारा मोतियाबिंद को निकाल दिया जाता था। आधुनिक विधि में मोतियाबिंद युक्त नेत्र लेंस को हटाकार एक कृत्रिम लेंस लगा दिया जाता है जिसे इन्ट्रा आंक्युलर (Nyctalopia) लेंस कहते हैं।

6. रतौंधी रोग (Nightblindness)

● इस रोग में व्यक्ति को रात के समय दिखाई नहीं देता है।
● Vitamin –A की कमी से रोडोप्सिन वर्णक का संश्लेषण नहीं हो पाता है।

7. वर्णान्धता (Colourblindness)

● इस रोग से ग्रसित व्यक्ति लाल व हरे रंग में विभेद नहीं कर पाता है।
● यह एक आनुवांशिक रोग है।
● यह x- सहलग्न अप्रभावी रोग है।
● सामान्यत: महिलाएँ इस रोग की वाहक होती है।

8. फोटोफोबिया (Photophobia)

● तीव्र प्रकाश में डर लगना फोटोफोबिया कहलाता है।

9. जैरोफ्थेल्मिया (Xerophthalmia)

● इस रोग में आँखों में सूखापन होता है।
● इस रोग में व्यक्ति के शरीर में विटामिन – A की कमी हो जाती है।

आँखों में पाई जाने वाली ग्रंथियाँ

1. लेक्राइमल ग्रंथि (अश्रु ग्रंथि) – 

आँसु इसी ग्रंथि के कारण आते हैं।
● लाइसोजाइम एन्जाइम आँखों में उपस्थित सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देता है।
2. टार्सल ग्रंथियाँ
3. मोल ग्रंथियाँ
4. जीस ग्रंथियाँ

• तथ्य –
● सबसे बड़ी आँखे घोड़े तथा हिरण की होती हैं।
● सबसे तेज दृष्टि बाज पक्षी की होती है।

1. पीत बिंदु (Yellow spot)

● पीत-बिंदु जो दृष्टि अक्ष पर स्थित होता है, वह स्थान है जहाँ सामान्य आँख में सबसे अच्छा दिखाई पड़ता है।
● इसमें संवेदी कोशिकाएं और उनमें भी शंकु कोशिकाएं सर्वाधिक संख्या में पाई जाती हैं।

2. अंध बिंदु (Blind spot)

● पीत बिंदु के ठीक नीचे अंध बिंदु होता है। यह वह स्थान है जहाँ पर रेटिना की समस्त संवेदी कोशिकाओं से आने वाले तंत्रिका-तंतु एक साथ इकट्ठे होकर दृक-तंत्रिका बनाते हैं।
● अंध बिंदु पर शंकु तथा शलाका दोनों अनुपस्थित रहती हैं।

नेत्र की समंजन क्षमता (Power of Accomodation of Eye)

● रेटिना पर प्रतिबिंब के फोकस किए जाने को समंजन या फोकसन कहते हैं। फोकस करने का अर्थ है प्रत्यास्थ लेंस की वक्रता में परिवर्तन लाना।
● निकट स्थित वस्तु एवं दूर स्थित वस्तु सभी का प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनाने के लिए नेत्र लेंस की फोकस दूरी में होने वाले अधिकतम परिवर्तन करने की क्षमता नेत्र की समंजन क्षमता कहलाती है।

• निकट बिंदु – वह न्यूनतम दूरी जिस पर रखी कोई वस्तु को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, नेत्र का निकट बिंदु कहलाता है। किसी वस्तु को स्पष्ट देखने के लिए अपने नेत्रों से न्यूनतम 25 सेमी. की दूरी आवश्यक है।

• दूर बिंदु – वह दूरतम बिन्दु जिस तक कोई नेत्र वस्तुओं को स्पष्ट रूप से देख सकता है, नेत्र का दूर बिन्दु कहलाता है।
● एक स्वस्थ नेत्र की समंजन क्षमता 4 डायोप्टर (4D) होती है।

• लेसिक (LASIK)
● आँख की सर्जरी के लिए LASIK तकनीक का प्रयोग किया जाता हैं। LASIK तकनीक में कॉर्निया की वक्रता में परिवर्तन करने हेतु उसके ऊतकों का फ्लैप तैयार कर उसे ऊपर उठाकर कॉर्निया की आंतरिक परतों में लेजर की सहायता से आवश्यक परिवर्तन कर दिया जाता है तथा बाद में उस फलैप को कॉर्निया के ऊपर रख दिया जाता है, वर्तमान में LASIK तकनीक का ही अधिक उपयोग होता है।

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महत्वपूर्ण प्रश्न

मानव नेत्र क्या होता है?

नेत्र हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। हम अपने चारों ओर के दृश्यों को नेत्रों से देखकर अनुभव करते हैं। हमारी आँख (नेत्र) में भी माँसपेशियों से बना लचीला उत्तल लेंस होता है। इसी लेंस के कारण वस्तुओं का रेटिना पर प्रतिबिम्ब बनता है और वस्तुएँ दिखाई देती हैं।

मानव नेत्र का लेंस कौन सा होता है?

कॉर्निया आगे से उत्तल और पीछे से अवतल होता है।

मानव नेत्र के कितने भाग होते हैं?

नेत्र गोलक दो खंडों में बंटा होता है ।

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