गुरुत्वाकर्षण बल किसे कहते हैं? परिभाषा, सूत्र, नियम, Gravitational force in hindi

नमस्कार आज हम भौतिक विज्ञान के बहुत ही महत्वपूर्ण अध्याय में से एक गुरुत्वाकर्षण बल के विषय में अध्ययन करेंगे इस अध्ययन के दौरान हम इस टॉपिक से जुड़े बहुत से महत्वपूर्ण बिन्दुओ पर गौर करेंगे। यहां पर आपको गुरुत्वाकर्षण बल की परिभाषा, नियम, सूत्र एवं बहुत से अन्य बिन्दुओ पर विस्तारपूर्वक बताया गया हैं।

गुरुत्वाकर्षण बल का परिचय (Gurutvakarshan Bal)

मनुष्य ने सदैव आकाशीय पिंडों का अध्ययन करने का प्रयत्न किया है । इसी के संदर्भ में टॉलमी (Ptolemy) ने द्वितीय शताब्दी में परिकल्पना की थी कि पृथ्वी, सौर मण्डल के केंद्र पर स्थित है तथा बुध, शुक्र, बृहस्पति, तथा शनि इसके चारों तरफ चक्कर लगाते है।
कोपरनिकस (Copernicus) ने सोलहवीं शताब्दी में सौर मण्डल का सूर्य केंद्रित मॉडल दिया जिसके अनुसार सूर्य के चारों ओर सभी ग्रह अपनी – अपनी कक्षाओं में गति करते है।

टाइको ब्रेह ने कोपरनिकस द्वारा दिए गए मॉडल का अध्ययन कर ग्रहों को स्थिति के बारे में विभिन्न आंकड़े
प्रस्तुत किए जिन्हें आधार मानकर केप्लर ने ग्रहों की गति के तीन नियम प्रस्तुत किए। उपरोक्त सभी परिकल्पनाए ग्रहों की गति को बनाए रखने के लिए आवश्यक बल की व्याख्या करने में असफल रही।

गुरुत्वाकर्षण बल किसे कहते हैं?

किसी वस्तु की विराम अथवा गति की अवस्था में जो परिवर्तन करता है या परिवर्तन करने का प्रयास करता है, उस कारक को बल कहते हैं।

गुरुत्वाकर्षण बल की परिभाषा

कोई भी दो द्रव्यमान वाले कण एक-दूसरे को एक निश्चित बल से आकर्षित करते हैं। इस बल को गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं।

● इस प्रकार दो कणों के बीच आकर्षण बल ही गुरुत्वाकर्षण बल है। इसकी परास अनन्त होती है।
● विशाल खगोलीय पिंडों के बीच उनके अत्यधिक द्रव्यमान के कारण यह बल इतना प्रभावी हो जाता है कि वे पिण्ड संतुलन में बने रहते हैं।
● यह बल अंतरिक्ष में उपस्थित सभी वस्तुओं को संचालित करता है। उदाहरण के लिए, सौर मण्डल के ग्रह सूर्य के चारों ओर एवं चंद्रमा उपग्रह पृथ्वी के चारों ओर गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ही चक्कर लगाते हैं।

गुरुत्वाकर्षण बल का सूत्र

गुरुत्वाकर्षण बल का सूत्र ( formula of Gravity in hindi) :-

F = Gm1m2 / r2

केप्लर के नियम – 

केप्लर ने सूर्य के चारों ओर गति करने वाले ग्रहों के लिए निम्नलिखित तीन नियम दिए-
1. कक्षाओं का नियम – सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर एक दीर्घ वृत्ताकार कक्षा में परिक्रमा करते हैं तथा सूर्य इसकी नाभि पर स्थित होता है।
● यह नियम कोपरनिकस के मॉडल से अलग था जिसमें ग्रह केवल वृत्तीय कक्षाओं में ही गति कर सकते हैं।

गुरुत्वाकर्षण बल किसे कहते हैं? परिभाषा, सूत्र, नियम, Gravitational force in hindi

2. क्षेत्रफलों का नियम – किसी भी ग्रह को सूर्य से मिलाने वाली रेखा समान समय में समान क्षेत्रफल (दूरी) तय करती है। अर्थात जो ग्रह सूर्य से अधिक दूरी पर होते हैं तब वे धीमी गति करते प्रतीत होते हैं।
● सूर्य के निकट होने पर ग्रहों की गति अपेक्षाकृत तीव्र होती है।
● केप्लर का द्वितीय नियम ‘कोणीय संवेग संरक्षण नियम’ पर आधारित है।

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3. आवर्त कालों का नियम – किसी भी ग्रह का सूर्य के चारों ओर परिक्रमण काल का वर्ग किसी भी ग्रह की दीर्घवृत्ताकार कक्षा के अर्द्ध दीर्घ अक्ष के तृतीय घात के समानुपाती होता है।

न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम – 

सर्वप्रथम न्यूटन ने 1686 में बताया कि विश्व के प्रत्येक पदार्थ का प्रत्येक कण, दूसरे कण को अपनी ओर एक बल से आकर्षित करता रहता है। इस बल को गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं।
● “इस विश्व में प्रत्येक पिंड हर दूसरे पिंड को एक बल द्वारा आकर्षित करता है जिसका परिमाण दोनों पिंडों के द्रव्यमानों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है”।
● यह परिभाषा न्यूटन के शोध प्रबंध प्रिंसिपिया से प्राप्त होती है।
● माना कि दो पिंड जिनके द्रव्यमान m1 एवं m2 हैं, एक-दूसरे से r दूरी पर स्थित हैं तो न्यूटन के नियमानुसार उनके मध्य लगने वाला आकर्षण बल उनके द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाती होता है।

गुरुत्वाकर्षण बल किसे कहते हैं? परिभाषा, सूत्र, नियम, Gravitational force in hindi

● यहाँ G एक नियतांक है।
● इसे सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक कहते हैं।
● G का मान =6.67×10−11 है।

पृथ्वी का गुरुत्वीय त्वरण

गुरुत्व वह आकर्षण बल है जिससे पृथ्वी किसी वस्तु को अपने केन्द्र की ओर खींचती है। इस बल के कारण जो त्वरण उत्पन्न होता है, उसे गुरुत्व जनित त्वरण (g) कहते हैं।
● g का मान  होता है।

माना कि पृथ्वी का द्रव्यमान M तथा त्रिज्या R है तथा पृथ्वी का कुल द्रव्यमान उसके केंद्र पर संकेंद्रित है। अब यदि m द्रव्यमान की वस्तु पृथ्वी के केंद्र से r दूरी पर हो तो वस्तु पर कार्यरत गुरुत्वाकर्षण बल

F = GMm/r2

g = GM/R2

SI पद्धति में –
G = 6.67 × 10 -11 न्यूटन×मी.2/किग्रा.2

CGS पद्धति में :- G = 6.67×10 -8 डा इन – सेमी 2 / ग्राम 2

विमा :-

[M-1L 3T-2]

g के मान का परिकलन –

इसका मान ज्ञात करने के लिए समीकरण में GM तथा R के मान रखने होंगे।
● सार्वत्रिक गुरुत्वीय नियंताक G = 6.7×10-11Nm2Kg-2
● पृथ्वी का द्रव्यमान M = 6×1024Kg
● पृथ्वी की त्रिज्या R = 6.4×106m
● g = G ��2
=6.7×10−11��2��−2×6×1024��(6.4×106�)2
=9.8��−2

● पृथ्वी के गुरुत्वीय त्वरण का मान
�=9.8��−2

● समुद्री सतह से भूमध्य रेखा पर पृथ्वी की त्रिज्या ध्रुवों की त्रिज्या से लगभग 20 किमी. अधिक होती है। क्योंकि g का मान पृथ्वी की त्रिज्या के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है अर्थात भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर पृथ्वी की त्रिज्या का मान कम होता जाता है और गुरुत्वीय त्वरण (g) का मान बढ़ता जाता है।

● यदि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमना बंद कर दे तो ध्रुवों के अलावा प्रत्येक स्थान पर g के मान में वृद्धि हो जाएगी तथा विषुवत रेखा पर मान में सर्वाधिक वृद्धि होगी।
● यदि पृथ्वी अपने अक्ष पर और तेजी से घूमना प्रारंभ कर दे तो g का मान घट जाएगा।
● पृथ्वी तल से ऊपर जाने पर g का मान घटता है।
● पृथ्वी तल से नीचे जाने पर g का मान घटता है। अत: g के मान में परितर्वन के अनुसार उस वस्तु का भार भूमध्य रेखा पर न्यूनतम तथा ध्रुवों पर अधिकतम होता है। साथ ही, अगर वस्तु पृथ्वी तल से ऊपर जाए या तल के नीचे जाए, उसका भार तल की अपेक्षा कम ही होगा।
उदाहरण –
● यदि एक वस्तु का द्रव्यमान 10kg है। पृथ्वी पर इसका भार कितना होगा?
● द्रव्यमान m = 10kg
● गुरुत्वीय त्वरण �=9.8��−2
w=m×g
N = न्यूटन
�=10��×9.8��−2=98�
● वस्तु का भार 98N है।

गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र :-

किसी द्रव्य कण अथवा द्रव्य कण तंत्र के चारो ओर स्थित क्षेत्र में अन्य द्रव्य कण को गुरुत्वाकर्षण बल का अनुभव होता है। इस क्षेत्र को हम उस द्रव्य कण तंत्र का गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र कहते है।
सैद्धांतिक रूप से गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र की परास अंनत तक होती है , लेकिन प्रायोगिक रूप से किसी विशिष्ट सीमा के
पश्चात गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र बहुत क्षीण हो जाता है।

गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र की तीव्रता (I) :-

किसी गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में किसी बिंदु पर गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र की तीव्रता को इस बिंदु पर रखे एकांक द्रव्यमान पर आरोपित
गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा परिभाषित किया जाता है।

I = F/m

गुरूत्वीय स्थितिज ऊर्जा (Gravitational potential Energy)

किसी गुरूत्वीय क्षेत्र में एक बिंदु पर रखे कण की गुरूत्वीय स्थीतिज ऊर्जा को गतिज ऊर्जा में परिवर्तन किए बिना अंनत से उस बिंदु तक लाने में आवश्यक कार्य की मात्रा द्वारा परिभाषित किया जाता है।

गुरुत्वाकर्षण विभव (Gravitational Potential in hindi )

किसी द्रव्यमान पिंड के चारो ओर गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र को केवल गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र की तीव्रता से ही व्यक्त नहीं किया जा सकता है बल्कि
एक अदिश फलन से भी व्यक्त किया जा सकता है। जिसे गुरुत्वाकर्षण विभव V कहते है।

किसी एकांक द्रव्यमान को उसकी गतिज ऊर्जा में परिवर्तन किए बिना अनंत से किसी बिंदु तक लाने में किया गया कार्य
उस बिंदु पर गुरुत्वाकर्षण विभव कहलाता है।

पलायन चाल/वेग – 

पलायन वेग वह न्यूनतम वेग है जिससे किसी वस्तु को पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर फेंके जाने पर वह गुरुत्वीय क्षेत्र को पार कर जाती है तथा पृथ्वी पर कभी लौटकर नहीं आती है।

● यदि हम अपने हाथों से किसी पत्थर को फेंकते हैं, तो हम पाते है कि पत्थर वापस पृथ्वी पर गिर जाता है। यदि वेग को अत्यधिक बढ़ा दिया जाए तो वस्तु गुरुत्वीय क्षेत्र से बाहर निकल जाती है।
● पलायन वेग (��)=2�����=2���
● G= सर्वात्रिक गुरुत्वीय नियंताक
● Me= पृथ्वी का द्रव्यमान
● Re= पृथ्वी की त्रिज्या

● पलायन वेग (��) का मान 11.2 km/s प्राप्त होता है। अर्थात 11.2 km/s या इससे अधिक के वेग से ऊर्ध्वाधर दिशा में फेंकी गई वस्तु पृथ्वी पर कभी लौटकर नही आएगी।

चंद्रमा पर वायुमंडल की अनुपस्थिति

● चंद्रमा पर गुरुत्वीय त्वरण 1.61�/�2 होता है जो पृथ्वी पर गुरुत्वीय त्वरण 9.8�/�2 से 16गुणा है, अत: चंद्रमा पर किसी वस्तु का भार पृथ्वी के भार का 16गुणा होगा।
● चंद्रमा की त्रिज्या लगभग 1.74×106 मीटर है तथा चंद्रमा पर पलायन वेग का मान मात्र 2.38 किमी./सैकण्ड ही है।
● चंद्रमा पर वायुमंडल नहीं पाया जाता है। क्योंकि गैसों के अणुओं का औसत वेग इससे अधिक होने के कारण चंद्रमा पर गैसों के अणु ठहर नहीं पाते हैं।

विभिन्न ग्रहों पर गुरुत्वीय त्वरण –

● किसी भी ग्रह का गुरुत्वीय त्वरण उस ग्रह के द्रव्यमान एवं व्यास पर निर्भर करता है, जो ग्रह जितना भारी होगा उसका गुरुत्वीय त्वरण तुलनात्मक रूप से उतना ही अधिक होगा।

ग्रहों के नामद्रव्यमान ×1124(Kg)व्यास (Km)गुरुत्वीय त्वरण (M/S2)
बुध (Mercury)0.3348793.7
शुक्र (Venus)4.87121148.9
पृथ्वी (Earth)5.97127569.8
मंगल (Mars)0.64267923.7
बृहस्पति (Jupitar)189814298423.1
शनि (Saturn)5681205369.0
अरुण (Uranus)86.8511188.7
वरुण (Neptune)102495.2811
प्लूटो (Plato)0.01423700.7

लिफ्ट में किसी वस्तु का भार

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● यदि लिफ्ट a त्वरण ऊपर की ओर जाती है तो किसी वस्तु का आभासी भार अपने वास्तविक भार से अधिक लगता है।
�′=�(�+�)

● यदि लिफ्ट a त्वरण से नीचे की ओर जाती है तो किसी वस्तु का आभासी भार अपने वास्तविक भार से कम लगता है।
�′=�(�−�)
● यदि नीचे आते वक्त लिफ्ट की डोरी टूट जाए तो वह मुक्त वस्तु की भाँति नीचे गिरेगी।
● जब लिफ्ट एक समान वेग (त्वरण a=0) से ऊपर या नीचे जाती है, तो व्यक्ति के अपने भार में कोई परिवर्तन नहीं प्रतीत होगा।

 उपग्रह  

वे आकाशीय पिंड जो ग्रहों के चारों ओर परिक्रमण करते रहते हैं, उपग्रह कहलाते हैं।
● भू-उपग्रह – 

भू –उपग्रह वे पिंड है, जो पृथ्वी के चारों और परिक्रमण करते हैं। इनकी गतियाँ ग्रहों की सूर्य के परित: गतियों के बहुत समान होती है।
● इन उपग्रहों की पृथ्वी के चारों ओर कक्षाएं वृत्ताकार अथवा दीर्घवृत्ताकार होती है।
● पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा कर रहा कृत्रिम उपग्रह इसलिए पृथ्वी पर नीचे नहीं गिरता क्योंकि पृथ्वी का आकर्षण बल कृत्रिम उपग्रह की गति के लिए आवश्यक त्वरण प्रदान करता है।
● पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा है, जिसकी कक्षा लगभग वृत्ताकार है। मानव निर्मित भू-उपग्रह कक्षाओं की स्थिति के अनुसार मुख्यत: दो प्रकार के है –

1. ध्रुवीय उपग्रह (Polar Satellite)
● पृथ्वी के ध्रुवों के चारों ओर उत्तर-दक्षिण दिशा में परिक्रमण करने वाले उपग्रहों को ‘ध्रुवीय उपग्रह’ कहते है।
ध्रुवीय उपग्रहों का आवर्तकाल लगभग 100 मिनट होता है।
ध्रुवीय उपग्रहों की ऊँचाई लगभग 550 से 800 किमी. होती है।
● ध्रुवीय उपग्रहों का प्रयोग विषुवतीय एवं ध्रुवीय क्षेत्रों के सर्वेक्षण में मौसम विज्ञान, सुदूर-संवेदन (Remote Sensing) इत्यादि में किया जाता है।

 2. भू-तुल्यकालिक उपग्रह (Geosynchronous Satellite)
● यदि किसी कृत्रिम उपग्रह की पृथ्वी तल से ऊँचाई इतनी हो कि उसका परिक्रमण काल, पृथ्वी की अक्षीय गति के आवर्तकाल के समान हो तो ऐसे उपग्रह को ‘भू-तुल्यकालिक उपग्रह’ कहते है।
● भूस्थिर उपग्रह को परिक्रमण काल पृथ्वी के घूर्णनकाल (24 घंटे) के बराबर होता है। अत: भूस्थिर उपग्रह भी पृथ्वी की भाँति पश्चिम से पूर्व की ओर 24 घंटे में पृथ्वी का अपने अक्ष में एक चक्कर लगाता है। इसलिए पृथ्वी से देखने पर वह स्थिर दिखाई देता है।

● भूस्थिर उपग्रह को संचार उपग्रह (Communication Satellite) भी कहते है।
● किसी वस्तु के सीधे संपर्क में आए बिना उस वस्तु के संबंध में जानकारी प्राप्त करना सुदूर संवेदन कहलाता है।
● भू-तुल्यकालिक एवं भू-स्थिर कक्षाओं की ऊँचाई लगभग 35,786 किमी. होती है।

♦ कृत्रिम उपग्रह के उपयोग
● दूरसंचार के साधन जैसे – टेलीफोन, मोबाइल, टेलिविजन, इंटरनेट आदि में यह पृथ्वी के स्थान पर स्थित उपकरणों से तरंगे प्राप्त करता है और इन्हें पृथ्वी के अलग-अलग स्थानों पर भेजता है।
● भूमिगत पानी की खोज करके जल संसाधन का प्रबंधन करना।

♦ उपग्रहों में भारहीनता ─ कृत्रिम उपग्रह निरंतर पृथ्वी के केंद्र की ओर मुक्त रूप से गिरता है जिससे उसमें स्थित सभी वस्तुएं व जीव भारहीनता की अवस्था में रहते हैं।
● अंतरिक्ष में गुरुत्व का अभाव होने के कारण ही अंतरिक्ष यात्री निर्वात में सीधे खडे़ नही रह सकते हैं।
● भोजन को पेस्ट के रूप में ट्यूब में दबा कर अंदर प्रवेश कराना होता है।
● पानी से भरे गिलास को उल्टा करने पर पानी नहीं गिरेगा नहीं क्योंकि गिलास को टेढ़ा करते ही गिलास का पानी भारी होने के कारण बूँदों के रूप में तैरने लगता है। जिससे अंतरिक्ष यात्री गिलास से पानी नहीं पी सकते।
● यदि किसी वस्तु को उपग्रह पर डोरी से लटका दें तो डोरी में तनाव शून्य होता है।

महत्वपूर्ण तथ्य (गुरुत्वाकर्षण बल नोट्स)

  1. गुरुत्वाकर्षण बल सदैव आकर्षण प्रकृति का होता है।
  2. गुरुत्वाकर्षण बल क्रिया प्रतिक्रिया के युग्म के रूप में उपस्थित होता है अत न्यूटन की गति का तृतीय नियम लागू करना है।
  3. यह दोनों द्रव्यमानों के मध्य के माध्यम पर निर्भर नहीं करता है।
  4. गुरुत्वाकर्षण बल एक केन्द्रीय बल है जिसकी क्रिया रेखा दोनों वस्तुओं के केंद्र को मिलाने वाली रेखा के आनुदिश होती है।
  5. गुरुत्वाकर्षण बल क्षेत्र एक सरक्षी बल क्षेत्र है।
  6. यदि कोई कण गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में वृताकार पथ पर गति करता है, तो गुरूत्वाकर्षण बल द्वारा किया गया कार्य पूर्ण चक्कर में हमेशा शून्य होता है।
  7. G का मान बहुत कम होता है अत गुरूत्वीय बल, स्थिर वैधुत तथा नाभिकीय बलो की तुलना में दुर्बल होते है।
  8. गुरुत्वाकर्षण बल व्यापक दूरियों तक प्रभावी होता है यह दूरियों से लेकर अंत प्रमाणविय दूरियों तक प्रभावी होता है।
  9. ग्रह पर एक बल आरोपित होता है जिसकी दिशा सूर्य की ओर होती है।
  10. इस बल का परिणाम, ग्रह तथा सूर्य के बीच की दूरी के वर्ग के व्युतक्रमानुपाती होती है।
  11. यह बल ग्रह के द्रव्यमान के अनुक्रमनुपाती है, ग्रह पर लगने वाला यह बल,ग्रह तथा सूर्य के बीच एक पारस्परिक क्रिया – प्रतिक्रिया बल है अर्थात यह बल सूर्य द्वारा लगने वाला बल ग्रह के द्रव्यमान(m) के समानुपाति है।

अन्य अध्ययन सामग्री

सम्पूर्ण भौतिक विज्ञान

न्यूटन के गति के नियम क्या हैं?

महत्वपूर्ण प्रश्न

यहां पर आपको गुरुत्वाकर्षण बल से सम्बंधित विभिन्न प्रकार के महवत्पूर्ण प्रश्न दिए गए है जिनका अध्ययन करके आप अपनी समझ को और अधिक विकसित कर सकते हैं।

गुरुत्वाकर्षण बल कहाँ लगता है?

गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी की सतह पर लगता हैं।

गुरुत्वाकर्षण का सूत्र क्या होता है?

G = 6.67×10 -11 Nm 2 /kg 2

गुरुत्वाकर्षण बल की खोज कब हुई?

गुरुत्वाकर्षण की खोज आइजैक न्यूटन ने सन 1666 में की थी।

गुरुत्वाकर्षण की खोज किसने की थी?

गुरुत्वाकर्षण की खोज आइजैक न्यूटन ने सन 1666 में की थी।

निष्कर्ष

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