भारतीय संविधान की विशेषताएं पीडीएफ नोट्स – Features of Indian Constitution in Hindi

नमस्कार आज हम भारतीय संविधान की विशेषताएं की जानकारी के बारे में अध्ययन करेंगे जिसमे हम इससे जुडी विभिन जानकारी के बारे में चर्चा करेंगे। आपको तो ही होगा की भारतीय संविधान की विशेषताएं परीक्षा की दृष्टि से कितनी महत्वपूर्ण है इसलिए आपको इसके अध्ययन मे कोई कमी नहीं रखनी चाहिए । अगर आप इस टॉपिक से संबंधित अन्य जानकारी जैसे की भारतीय संविधान की विशेषताएं पीडीएफ नोट्स – Features of Indian Constitution in Hindi प्रपात करना चाहते है तो वो भी आपको इसी अध्ययन के दौरान ही प्राप्त होगी । तो आइए शुरू करते है भारतीय संविधान की विशेषताएं पीडीएफ नोट्स – Features of Indian Constitution in Hindi का अध्ययन ।

भारत के संविधान निर्माताओं ने देश की ऐतिहासिक, सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक परिस्थितियों को दृष्टिगत रखकर संविधान का निर्माण किया। भारत के संविधान की अपनी विशेषताएँ हैं जो विश्व के अन्य संविधानों से अलग करती हैं यद्यपि इसमें विश्व के महत्त्वपूर्ण संविधान के सर्वश्रेष्ठ गुणों को समाहित किया गया है तथापि इसमें भारतीय परिस्थितियों के अनुसार आवश्यक परिवर्तन के साथ ही अन्य संविधानों के लक्षणों का समावेश भी किया गया। भारत के संविधान निर्माता डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि भारतीय संविधान में व्यावहारिक परिवर्तन की क्षमता है और इसमें शांति काल में, युद्ध काल में, देश की एकता को बनाए रखने का भी सामर्थ्य हैं।

भारतीय संविधान की विशेषताएं पीडीएफ नोट्स - Features of Indian Constitution in Hindi
भारतीय संविधान की विशेषताएं

भारतीय संविधान की विशेषताएं

भारतीय संविधान की विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

1.  लोकप्रिय प्रभुसत्ता पर आधारित संविधान – भारत का संविधान लोकप्रिय प्रभुसत्ता पर आधारित संविधान है अर्थात् भारतीय संविधान द्वारा अंतिम शक्ति भारतीय जनता में निहित होती है। संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि  हम भारत के लोग, दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर, 1949 को एतद‌्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं इस प्रकार भारत का संविधान भारत शासन अधिनियम 1935 की तरह बाहरी शक्ति की कृति नहीं वरन् भारतीय जनता द्वारा निर्मित, अधिनियमित, अंगीकृत है।

2.  उद्देशिका (प्रस्तावना) – भारत के संविधान के मौलिक उद्देश्य एवं लक्ष्य को संविधान की प्रस्तावना में दर्शाया गया है। डॉ. के.एम. मुंशी ने संविधान की प्रस्तावना को राजनीतिक कुंडली तथा इसके महत्त्व के कारण इसे संविधान की आत्मा कहा है। मूल प्रस्तावना में समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखण्डता शब्दों को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के द्वारा जोड़ा गया। डॉ. के.एम. मुंशी ने संविधान की प्रस्तावना की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि इसमें राष्ट्र की एकता और व्यक्ति की गरिमा को विशेष महत्त्व दिया गया है।

3. विश्व का सबसे विस्तृत संविधान

– संविधान को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है– जैसे- लिखित और अलिखित। अमेरिकी संविधान (लिखित) और ब्रिटेन का संविधान (अलिखित)। भारत का संविधान विश्व का सबसे लंबा व लिखित संविधान है। यह बहुत समृद्ध और विस्तृत दस्तावेज है।

– भारत का संविधान विश्व का सर्वाधिक व्यापक संविधान है। मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, 8 अनुसूचियाँ (वर्तमान में 12 अनुसूचियाँ) एवं 22 भाग थे।

– संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के संविधान में 7, कनाडा के संविधान में 147, ऑस्ट्रेलिया के संविधान में 128, दक्षिण अफ्रीका के संविधान में 153, स्विट्जरलैंड के संविधान में 195 अनुच्छेद है।

भारत के संविधान को विस्तृत बनाने के पीछे निम्न चार कारण हैं-

– भौगोलिक कारण, भारत का विस्तार और विविधता।

– ऐतिहासिक, इसके उदाहरण के रूप में भारत शासन अधिनियम, 1935 के प्रभाव को देखा जा सकता है। यह अधिनियम बहुत विस्तृत था। जम्मू-कश्मीर को छोड़कर केंद्र और राज्यों के लिए एकल संविधान।

– संविधान सभा में कानून एक्सपर्ट का प्रभुत्व।

4. लिखित एवं निर्मित संविधान

– समय- 2 वर्ष 11माह 18 दिन

5. सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य

– संविधान में स्पष्ट किया गया है कि भारत अपने आंतरिक और बाह्य मामलों में संपूर्ण रूप से स्वतंत्र प्रभुसत्ता संपन्न देश है। देश की प्रभुसत्ता जनता में निहित होती है। शासन जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए चलाया जाता है। भारत में लोकतांत्रिक पद्धति को अपनाया गया है। भारत गणराज्य है क्योंकि यहाँ का राष्ट्राध्यक्ष वंशानुगत नहीं वरन जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से एक निश्चित अवधि के लिए निर्वाचित किया जाता है।

6. संसदीय शासन व्यवस्था

– भारत में इंग्लैंड की वेस्टमिंस्टर प्रणाली को अपनाया गया है इस प्रणाली में कार्यपालिका व्यवस्थापिका के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है। देश के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद गरिमा एवं प्रतिष्ठा का होता है परंतु इसकी स्थिति संवैधानिक प्रधान की होती है। वास्तविक शक्तियों का प्रयोग मंत्रिमण्डल द्वारा किया जाता है, संसद का विश्वास समाप्त हो जाने पर मंत्रिमण्डल को त्यागपत्र देना होता है। इस व्यवस्था में प्रधानमंत्री मंत्रिमण्डल का नेतृत्व करता है, भारत में संसदीय व्यवस्था को केंद्र के साथ राज्य में भी अपनाया गया है। राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है।

7. मौलिक अधिकार तथा मौलिक कर्तव्य

– मानवोचित जीवन तथा व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए भारत के संविधान निर्माताओं ने देश के नागरिकों को सात मौलिक अधिकार प्रदान किए थे किंतु 44वें संविधान संशोधन, 1978 के बाद अब इनकी संख्या 6 रह गई है–

समानता का अधिकार
स्वतंत्रता का अधिकार
शोषण के विरुद्ध अधिकार
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार
संवैधानिक उपचारों का अधिकार
संपत्ति का अधिकार
(44वें संविधान संशोधन द्वारा निरस्त कर दिया गया)

– संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकारों में सम्मिलित था किंतु अब यह कानूनी अधिकार है। 

– सभी अधिकार वाद योग्य है तथा इनका हनन होने पर नागरिक न्यायालय की शरण ले सकते हैं यह अधिकार विधान मण्डल एवं कार्यपालिका की शक्तियों को सीमित करते हैं।

– ‘सरदार स्वर्ण सिंह’ समिति की अनुशंसा के प्रश्चात् 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के द्वारा मूल कर्तव्यों को सम्मिलित किया गया [भाग-4 (क) अनुच्छेद-51 (क)]। इसमें संविधान का पालन करना, भारत की संप्रभुता एकता व अखण्डता की रक्षा करना, समान भ्रातृत्व भाव रखना, प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करना। 86 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा प्रदान करने संबंधी मूल कर्तव्य को जोड़ा गया।

– वर्तमान में 11 मूल कर्तव्य हैं।

नोट :- सरदार स्वर्ण सिंह समिति का गठन 26 फरवरी, 1976 को किया गया जो 12 सदस्यीय थी और इस समिति ने 8 मूल कर्तव्यों को शामिल करने का सुझाव दिया था।

8. राज्य के नीति निदेशक तत्त्व

– राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत आयरलैंड के संविधान से प्रेरित होकर लिए गए हैं।

– संविधान के भाग-4 में अनुच्छेद-36 से 51 तक नीति निदेशक तत्त्वों का समावेश किया गया है। सामाजिक, आर्थिक विकास, न्याय एवं समता के उद्देश्यों को सामने रखते हुए निदेशक तत्त्व सरकार के लिए प्रेरणा का कार्य करते हैं। नीति निदेशक तत्त्व के क्रियान्वयन के लिए सरकार को बाध्य नहीं किया जा सकता, ये वाद-योग्य नहीं है। ये सरकार के लिए सकारात्मक निर्देश है जिनकी उपेक्षा किसी भी सरकार के लिए संभव नहीं है, यह लोक कल्याणकारी राज्य के लिए आवश्यक तत्त्व हैं।

9. समाजवादी राज्य

– 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा भारत को ‘समाजवादी गणराज्य’ घोषित किया गया है। मूल संविधान में इस शब्द का प्रयोग नहीं किया गया था क्योंकि संविधान निर्माता भावी पीढ़ियों पर किसी विचारधारा को आरोपित नहीं करना चाहते थे।

10.  पंथ निरपेक्ष राज्य

– धार्मिक मामलों में राज्य ने एक तटस्थ दृष्टिकोण अपनाया है यह न तो किसी धर्म विशेष को ‘राज्य धर्म’ मानता है न ही किसी समुदाय विशेष को धार्मिक आश्रय देता है धर्म के क्षेत्र में प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता प्रदान करता है। अनुच्छेद-25 में प्रत्येक नागरिक को यह स्वतंत्रता है कि वह किसी भी धर्म को माने या उसका पालन करें। राज्य धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करता है। राज्य की दृष्टि में सभी धर्म समान है संविधान सभा ने मूल संविधान में पंथनिरपेक्ष शब्द प्रयुक्त नहीं किया था किंतु 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द जोड़ दिया गया।

11.  कठोरता व लचीलापन का सम्मिश्रण

– संविधान संशोधन की प्रक्रिया द्वारा उसके कठोर और लचीलेपन का निर्धारण किया जाता है। भारत में दोनों प्रक्रियाओं को अपनाया गया है। संविधान के कुछ भागों का संशोधन सरल व कुछ भागों का जटिल है। संविधान संशोधन का उल्लेख अनुच्छेद 368 में वर्णित है।

– संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकारों में सम्मिलित था किंतु अब यह कानूनी अधिकार है। 

– सभी अधिकार वाद योग्य है तथा इनका हनन होने पर नागरिक न्यायालय की शरण ले सकते हैं यह अधिकार विधान मण्डल एवं कार्यपालिका की शक्तियों को सीमित करते हैं।

– ‘सरदार स्वर्ण सिंह’ समिति की अनुशंसा के प्रश्चात् 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के द्वारा मूल कर्तव्यों को सम्मिलित किया गया [भाग-4 (क) अनुच्छेद-51 (क)]। इसमें संविधान का पालन करना, भारत की संप्रभुता एकता व अखण्डता की रक्षा करना, समान भ्रातृत्व भाव रखना, प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करना। 86 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा प्रदान करने संबंधी मूल कर्तव्य को जोड़ा गया।

– वर्तमान में 11 मूल कर्तव्य हैं।

नोट :- सरदार स्वर्ण सिंह समिति का गठन 26 फरवरी, 1976 को किया गया जो 12 सदस्यीय थी और इस समिति ने 8 मूल कर्तव्यों को शामिल करने का सुझाव दिया था।

8. राज्य के नीति निदेशक तत्त्व

– राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत आयरलैंड के संविधान से प्रेरित होकर लिए गए हैं।

– संविधान के भाग-4 में अनुच्छेद-36 से 51 तक नीति निदेशक तत्त्वों का समावेश किया गया है। सामाजिक, आर्थिक विकास, न्याय एवं समता के उद्देश्यों को सामने रखते हुए निदेशक तत्त्व सरकार के लिए प्रेरणा का कार्य करते हैं। नीति निदेशक तत्त्व के क्रियान्वयन के लिए सरकार को बाध्य नहीं किया जा सकता, ये वाद-योग्य नहीं है। ये सरकार के लिए सकारात्मक निर्देश है जिनकी उपेक्षा किसी भी सरकार के लिए संभव नहीं है, यह लोक कल्याणकारी राज्य के लिए आवश्यक तत्त्व हैं।

9. समाजवादी राज्य

– 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा भारत को ‘समाजवादी गणराज्य’ घोषित किया गया है। मूल संविधान में इस शब्द का प्रयोग नहीं किया गया था क्योंकि संविधान निर्माता भावी पीढ़ियों पर किसी विचारधारा को आरोपित नहीं करना चाहते थे।

10.  पंथ निरपेक्ष राज्य

– धार्मिक मामलों में राज्य ने एक तटस्थ दृष्टिकोण अपनाया है यह न तो किसी धर्म विशेष को ‘राज्य धर्म’ मानता है न ही किसी समुदाय विशेष को धार्मिक आश्रय देता है धर्म के क्षेत्र में प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता प्रदान करता है। अनुच्छेद-25 में प्रत्येक नागरिक को यह स्वतंत्रता है कि वह किसी भी धर्म को माने या उसका पालन करें। राज्य धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करता है। राज्य की दृष्टि में सभी धर्म समान है संविधान सभा ने मूल संविधान में पंथनिरपेक्ष शब्द प्रयुक्त नहीं किया था किंतु 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द जोड़ दिया गया।

11.  कठोरता व लचीलापन का सम्मिश्रण

– संविधान संशोधन की प्रक्रिया द्वारा उसके कठोर और लचीलेपन का निर्धारण किया जाता है। भारत में दोनों प्रक्रियाओं को अपनाया गया है। संविधान के कुछ भागों का संशोधन सरल व कुछ भागों का जटिल है। संविधान संशोधन का उल्लेख अनुच्छेद 368 में वर्णित है।

अन्य अध्ययन सामग्री

यहाँ पर आपको भारतीय संविधान की विशेषताएं पीडीएफ नोट्स के साथ इस अध्याय से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण अध्ययन सामग्री भी दी गई है जो आपके भारतीय संविधान की विशेषताएं की समझ को और अधिक विस्तृत तौर पर समझने मे मदद करेगी ।

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महत्वपूर्ण प्रश्न

भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषता क्या है?

धर्मनिरपेक्ष राज्य, संघवाद, संसदीय सरकार 

भारतीय संविधान की कितनी विशेषताएं हैं?

18

भारतीय संविधान का अर्थ क्या है?

भारत का संविधान भारत का सर्वोच्च कानून है

निष्कर्ष

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नमस्कार, मैं कुलदीप सिंह पठतु प्लेटफार्म पर शिक्षा जगत से संबंधित लेख लिखने का कार्य करता हूं। मैंने इतिहास विषय से स्नातकोत्तर किया है और वर्तमान में पीएचडी कर रहा हु। यहां इस प्लेटफार्म पर मैं आपको बहुत सी जरूरी जानकारी देने का प्रयास करूंगा जो की शिक्षा जगत से जुड़ी हो।

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