वैदिक सभ्यता | Vedic Civilization in Hindi | Vedic Sabhyata

नमस्कार आज हम इतिहास के महत्वपूर्ण अध्याय में से एक “वैदिक सभ्यता | Vedic Civilization in Hindi | Vedic Sabhyata” के बारे में अध्ययन करेंगे।

वैदिक सभ्यता का उदय

सिन्धु घाटी सभ्यता के पतन के बाद जिस सभ्यता का उदय हुआ उसे वैदिक अथवा आर्य सभ्यता के नाम से जाना जाता है।

वैदिक सभ्यता की जानकारी के स्रोत वेद हैं जिनमें ऋग्वेद सबसे प्राचीन है व सबसे बड़ा स्रोत है।

यह भारत की प्रथम ग्रामीण सभ्यता मानी गई है।(लौह युगीन)

वेदों में इस सभ्यता के संस्थापकों को आर्य कहा गया है।

आर्य :-

आर्य संस्कृत भाषा का शब्द है जो “अरि+य” से मिलकर बना है।

आर्य भाषा सूचक शब्द है यह प्रजाति सूचक शब्द नहीं है।

आर्य का शब्दिक अर्थ है सुसंस्कृत /उच्च कुल में उत्पन्न व्यक्ति।/श्रेष्ठ।

आर्य किस प्रदेश के मूल निवासी थे, यह इतिहासकारों के बीच एक विवादास्पद प्रश्न है।

हाल में लिखित पुस्तक जो जर्मनी में लिखित शोध पर आधारित है, में विद्वान भगवान दास गिड़वानी ने पुस्तक “Return of the Aryans” में आर्यों का मूल निवास स्थान भारत को माना है।

आर्यों का मूल स्थान :- 

विद्वानमत
बाल गंगाधर तिलकउत्तरी ध्रुव
दयानंद सरस्वतीतिब्बत
मैक्समूलर (जर्मनी के विद्वान)मध्य एशिया (सबसे प्रमाणित मत माना जाता है।)
गंगानाथ झाब्रह्मऋषि प्रदेश
अविनाश चन्द्रसप्तसैंधव प्रदेश
राजबली पाण्डेयमध्य प्रदेश
गाइल्सहंगरी या डेन्यूब नदी घाटी
पेंका व हर्टजर्मनी

वैदिक साहित्य :-

–  वैदिक काल में सम्पूर्ण जानकारी वैदिक साहित्य से प्राप्त होती है।

वेद :-

–  वेद शब्द “विद्” धातु “धञ” प्रत्यय से बना है। जिसका शब्दिक अर्थ– ज्ञानराशि / ज्ञान का भंडार है।

–  वेदों के रचनाकार : अपौरुषेय (अर्थात् वेदों की रचना किसी पुरुष विशेष के द्वारा नहीं की गई)

–  वेदों को दैव्य ज्ञान का अंश माना गया है।

–  इसका संकलन – महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास।

वेद चार प्रकार के होते हैं-

1. ऋग्वेद

2. यजुर्वेद

3. सामवेद

4. अथर्ववेद

–  ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद को वेदत्रयी भी कहा जाता है।

–  यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद ये उत्तरवैदिक काल की रचनाएँ हैं।

ऋग्वेद :

–  यह आर्यों का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है।

–  ऋग्वेद की ऋचाएँ  सामान्यतया अग्नि देवता को संबोधित हैं इन ऋचाओं को दस पुस्तकों अथवा ‘मंडलों’ में विभाजित किया जाता है। 

–  ऋग्वेद देवताओं की स्तुति से संबंधित रचनाओं का संग्रह है।

–  यह 10 मंडलों में विभक्त है। प्रथम एवं दशम मंडल सबसे अन्त में जोड़े गए हैं तथा 2 से 7 मंडल ‘वंश मंडल’ के नाम भी  जाने जाते हैं।

–   इसमें कुल 1028 सूक्त हैं तथा 10562 मंत्र हैं (लगभग 10600)।

–  इसकी भाषा पद्यात्मक है।

–  ‘गायत्री मंत्र’ सविता (सवितृ) देवता को समर्पित है। इसका उल्लेख ऋग्वेद के तीसरे मंडल में है। इसके रचनाकार विश्वामित्र हैं।

–  ऋग्वेद में राजा को ‘गोप्ता जनस्य’ तथा ‘पुराभेत्ता’ अर्थात् नगरों पर विजय पाने वाला कहा गया है।

–  सोमरस को पेय पदार्थों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है, जिसका उल्लेख ऋग्वेद के 9वें मण्डल में है।

–  ऋग्वेद के मंत्रों का उच्चारण करने वाला ऋषि या पुरोहित “होता” (होतृ) कहलाता था।

–  ऋग्वेद के 10 वें मंडल में पुरुष सुक्त में पहली बार चार वर्णों का उल्लेख आता है।

–  ऋग्वेद की पाँच शाखाएँ हैं-

1.  शाकल

2.  माण्डुक्य

3.  वाष्कल

4.  आश्वलायन

5.  शांखायन

–  ऋग्वेद के दो ब्राह्मण-ग्रन्थ ऐतरेय व कौषीतकी।

–  वर्तमान में केवल शाकल शाखा ही शेष है बाकी लुप्तप्राय हैं।

यजुर्वेद :

–  यजु का अर्थ होता है यज्ञ।

–  यजुर्वेद में कुल – 40 अध्याय व  1990 मंत्र संकलित हैं।

–  यजुर्वेद में यज्ञ विधियों का वर्णन किया गया है।

–  यजुर्वेद की भाषा पद्यात्मक तथा गद्यात्मक दोनों हैं। इसमें संस्कृत गद्य की कुछ प्राचीनतम रचनाएँ हैं।

–  यजुर्वेद के कर्मकांडों को सम्पन्न कराने वाला पुरोहित  “अध्वर्यु” कहलाता है।

     ब्राह्मण ग्रन्थ (1) शुक्ल यजुर्वेद – शतपथ (2) कृष्ण यजुर्वेद – तैतिरीय

–  यजुर्वेद के दो भाग हैं:-

1. शुक्ल यजुर्वेद –

     – यह वेद केवल मंत्र पद्य में है।

     – उत्तर भारत में प्रचलित है।

     – यह सबसे प्रामाणिक शाखा है।    

 2. कृष्ण यजुर्वेद –

     – यह वेद पद्य और गद्य दोनों में है।

     – दक्षिण भारत में सर्वाधिक मान्यता है।

     – इसे वाजसनेयी संहिता भी कहा जाता है।

सामवेद :

–  सामवेद की रचना ऋग्वेद में दिए गए मंत्रों को गाने योग्य बनाने के उद्देश्य से की गई थी।

–  “साम ” का अर्थ है- “गायन”

–  सामवेद के मंत्रों का उच्चारण करने वाला “उद्गाता” कहलाता है।

–  कुल मंत्रों की संख्या – 1549 है तथा मूल मंत्र 75 हैं।

–  ब्राह्मण ग्रन्थ – तांड्य  (पचंविश), षड्विश, जैमीनीय

–  सामवेद को भारत की प्रथम संगीतात्मक पुस्तक होने का गौरव प्राप्त है  इसे “भारतीय संगीत का जनक” भी कहते हैं।

–  सामवेद में ऋग्वेद से लिए गए मंत्र हैं जिन्हें धुन की आवश्यकता के अनुसार क्रम दिया गया है।

–  सूर्य की स्तुति इसी वेद में है।

अथर्ववेद :

–  अथर्ववेद की रचना अथर्वा ऋषि ने की थी।

–  इसमें रोग तथा उसके निवारण के साधन के रूप में जादू, टोनों आदि की जानकारी दी गई है।

–  ये अनार्यों की कृति मानी जाती है।

–  आरण्यक ग्रंथों की रचना जंगलों में ऋषियों द्वारा की गई थी।

–  इस वेद में कुल 5849 मंत्र एवं 20 कांड हैं।

–  उपनिषद् प्राचीनतम दार्शनिक विचारों का संग्रह है।

–  ‘सत्यमेव जयते’ वाक्यांश मुण्डकोपनिषद् से लिया गया है।

–  इसे अक्सर लोक विश्वासों और व्यवहारों की अंतरंग जानकारी देने वाला ग्रंथ माना जाता है।

वेदपुरोहित
ऋग्वेदहोतृ
यजुर्वेदअध्वर्यु
सामवेदउद्गाता
अथर्ववेदब्रह्म
वेदपुरोहित
ऋग्वेदहोतृ
यजुर्वेदअध्वर्यु
सामवेदउद्गाता
अथर्ववेदब्रह्म

वेदों के चार उपवेद हैं-

वेदउपवेदरचयिता
ऋग्वेदआयुर्वेदधनवन्तरी
यजुर्वेदधनुर्वेदविश्वामित्र
सामवेदगन्धर्ववेदभरतमुनि
अथर्ववेदशिल्पवेद(स्थापत्यवेद)विश्वकर्मा

–  श्रुति :- एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में सुनकर (बोलकर) हस्तांतरित वेदों को श्रुति कहा जाता है।

–  स्मृतियाँ :-  वेदों को याद करके एक से दूसरों को सुनाना। स्मृतियाँ वेदों के अनुपूरक ग्रंथ हैं।

–  इन्हें वैदिक साहित्य में शामिल नहीं किया गया है।

–  प्राचीनतम स्मृति – मनु स्मृति है।

–  आरण्यक :– वानप्रस्थ आश्रम के दौरान लिखे गए ग्रंथ आरण्यक ग्रंथ कहलाए। इन्हें “वन पुस्तक” भी कहा जाता है।

–  ब्राह्मण ग्रंथ :- वेदों की विशेष व्याख्या  करने वाले ग्रंथ।   

–  उपनिषद् :- तीन शब्दों से मिलकर बना है-

        उप      +         नि         +        षद्
       समीप         ध्यानपूर्वक            बैठना

–  इनका शब्दिक अर्थ गुरु के समीप ध्यान पूर्वक बैठना।

–  उपनिषदों के साथ ही वेदों का अन्त हो गया अत: इसे वेदान्त भी कहा जाता है।

–  उपनिषदों में मुख्यतया “आत्मा” और “ब्रह्य” का वर्णन है।

     कुल उपनिषद् – 108

     प्रमुख उपनिषद् – 12

     प्रमुख 12 उपनिषद् – ईश, कठ, केन, प्रश्न, मुण्डक, माडुक्य, तैतिरीय, छान्दोग्य, कौषीतिकी, वृहद्, श्वेताश्वतर, ऐतरेय

     उपनिषद् बह्मसूत्र व गीता को सम्मलित रूप से “प्रस्थान-त्रयी” कहा जाता है।

–  इन वेदों की रचना और इनका संकलन एक लंबी अवधि में लगभग 1500 ई.पू. के बाद से एक हजार वर्ष तक हुआ था। ऋग्वेद को एक प्रारंभिक वैदिक ग्रंथ माना जाता है, जिसने लगभग 1000 ई.पू. तक अंतिम आकार ग्रहण कर लिया था, जबकि अन्य तीन वेदों को बाद के काल का माना जाता है। वेदों के बाद अन्य ग्रंथों में “ब्राह्मण ग्रन्थ” जिनमें मिथक और दंतकथाएँ हैं तथा कर्मकांड की व्याख्या और परिभाषा स्वरूप वेदों पर की गई व्यापक टिप्पणियाँ अथवा टीकाएँ हैं। प्रमुख तौर पर दार्शनिक ग्रंथ “आरण्यक” और “उपनिषदों” को भी बाद के वैदिक काल का माना जाता है। इनमें से प्राचीनतम ग्रंथ की रचना लगभग 1000-600 ई.पू. के बीच हुई थी। उपनिषदों की संख्या 108 है।

वेदांग और सूत्र साहित्य:-

–  वेदांगों की संख्या छह है – शिक्षा, व्याकरण, कल्प, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।

–  सूत्र साहित्य वैदिक साहित्य का अंग न होने के बावजूद उसे समझने में सहायक हैं-

–  जिसके तीन उपविभाजन हैं-

     (1) श्रोत सूत्र- इनमें अश्वमेघ और राजसूय जैसे यज्ञों का विवरण है,

     (2) गृह्य सूत्र- इनमें अंतिम संस्कार सहित घरेलू कर्मकांडों के नियम दिए गए हैं।

     (3) धर्म सूत्र- इनमें सामाजिक नियम दिए गए हैं,

–  सुल्व सूत्र- रेखागणित के सिद्धांत दिए गए हैं।

ऋग्वैदिक काल :

–  इस काल की सम्पूर्ण जानकारी हमें ऋग्वेद से मिलती है।

–  ऋग्वेद में आर्य निवास के लिए सर्वत्र सप्त सैंधव शब्द का प्रयोग हुआ है जिसका अर्थ है – सात नदियों का क्षेत्र। ये नदियाँ हैं – सिंधु, सरस्वती, परुष्णी (रावी), वितस्ता (झेलम), शतुद्रि (सतलज), अस्किनी (चिनाब) और विपासा (व्यास)।  

–  आर्यों का भौगोलिक विस्तार पंजाब, अफगानिस्तान, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश या यमुना नदी के पश्चिम भाग तक था।

–  दशराज्ञ युद्ध परुष्णी (रावी) नदी के किनारे हुआ था।

–  सिंधु सभ्यता के विपरीत वैदिक सभ्यता मूलत: ग्रामीण थी। आर्यों का आरंभिक जीवन पशु चारण पर आधारित था।

राजनीतिक अवस्था :

–  ऋग्वैदिक काल में सामान्यतः राजतंत्र का प्रचलन था परन्तु राजा का पद दैव्य नहीं माना जाता था।

–  ऋग्वैदिक समाज कबीलाई व्यवस्था पर आधारित था। कबीले का एक राजा होता था, जिसे ‘गोप’ कहा जाता था।

दासराज्ञ युद्ध

–  ऋग्वेद के सातवें मण्डल में दासराज्ञ युद्ध का वर्णन आता है।

–  यह युद्ध परुष्णी (रावी नदी) के किनारे लड़ा गया था। यह युद्ध भरतवंश के राजा सुदास तथा दस अन्य जनों (5 आर्य व आर्यतर) के मध्य लड़ा गया था।

–  दासराज्ञ युद्ध में भरत जन के राजा सुदास का पुरोहित वशिष्ठ था तथा पराजित राजा का पूरोहित विश्वमित्र था।

पाँच आर्यजन में पुरु, यदु, तुर्वस, अनु, द्रहयु प्रमुख थे।

पाँच आर्यतर जनों में शिव, पक्था, अलिन, भलना तथा विषाणिन थे।

–  कबीलाई सभा द्वारा राजा को चुने जाने की सूचना मिलती है। सभा, समिति व विदथ का ऋग्वेद में उल्लेख है।

–  सभा व समिति राजा पर नियंत्रण कार्य करती थी।

–  सभा श्रेष्ठ जनों की संस्था थी जबकि समिति आम जन – प्रतिनिधि सभा थी, जिसमें जन के समस्त लोग सम्मिलित होते थे।

–  समिति का अध्यक्ष  “ईशान” कहलाता था।

–  इस काल में कोई नियमित कर व्यवस्था नहीं थी।

–  सभा व समिति राजा पर नियंत्रण का कार्य करती थी।

–  ऋग्वेद में सबसे प्राचीन संख्या “विदथ” थी।

–  “विदथ” सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संस्था थी

–  राज्य का मूल आधार कुल या परिवार था। परिवार का मुखिया ‘कुलप’ कहलाता था। एक ग्राम में अनेक कुलों का निवास होता था। गाँव का मुखिया ‘ग्रामिक’ होता था।

–  सभा और समिति जन प्रतिनिधित्व की संस्था थी, जिसमें श्रेष्ठ वर्ग के लोग थे, जिनका कार्य राजा को सलाह देना था। 

सामाजिक स्थिति :

–  ऋग्वैदिक समाज की सबसे छोटी इकाई ‘परिवार’ थी। कई ‘परिवार’ मिलकर ‘ग्राम’ तथा कई ग्राम मिलकर ‘विश’ एवं कई ‘विश’ मिलकर ‘जन’ का निर्माण करते थे।

  इकाई    →    परिवार  →    कुल  →    ग्राम   →   विश   →   जन

–  पितृसत्तात्मक परिवार वैदिककालीन सामाजिक जीवन का केन्द्र बिन्दु था।

–  प्रारम्भ में इस काल का समाज वर्ग-विभेद से रहित था।

–  ऋग्वेद में वर्ण शब्द कहीं – कहीं रंग तथा कहीं – कहीं व्यवसाय के रूप में प्रयुक्त हुआ है।

–  स्त्रियाँ सभा  व विदथ में भाग लेती थीं।

–  विधवा विवाह, नियोग प्रथा, अंतर्जातीय विवाह, बहुपत्नीत्व, बहुपतित्व प्रथा का प्रचलन था।

–  बाल विवाह, सती प्रथा तथा पर्दा प्रथा का प्रचलन नहीं था।

–  आजीवन अविवाहित रहने वाली कन्या को ‘अमाजू’ कहते थे। 

–  ऋग्वेद काल में दास प्रथा विद्यमान थी।

–  आर्य शाकाहारी भोजन करते थे।

–  आर्यों में विवाह एक पवित्र संस्कार माना जाता था।

वर्ण व्यवस्था :-

–  वर्ण व्यवस्था का उल्लेख ऋग्वेद के 10 वें मण्डल पुरुष सूक्त में मिलता है।

–  ऋग्वेद के दशम मंडल के ‘पुरुष सूक्त’ के अनुसार ब्राह्मण की उत्पत्ति मुख से, क्षत्रिय की भुजा से, वैश्य की जांघ से तथा शूद्र की पैरों से हुई है। पहली बार चारों वर्णों का  उल्लेख आता है।

–  ऋग्वैदिक वर्ण व्यवस्था कर्म पर आधारित थी।

वर्णउत्पत्तिकार्य
ब्राह्मणमुख सेयज्ञ, हवन, मंत्रोच्चारण आदि
क्षत्रियभुजाओं सेशासन, अन्य वर्णों की रक्षा
वैश्यजांघों सेव्यापार, वाणिज्य
शुद्रपैरों सेइस वर्ग के कार्य उपर्युक्त 3 वर्णों की सेवा

आश्रम व्यवस्था :-

–  सम्पूर्ण मानव जीवन को 100 वर्ष का मानते हुए इसे 4 बराबर भागों में विभाजित किया है।

–  सर्वप्रथम ‘छान्दोग्य उपनिषद्’ में प्रारंभिक 3 आश्रमों का उल्लेख मिलता है परन्तु चारों आश्रमों का उल्लेख ‘जाबालोपनिषद’ में मिलता है।

–  आश्रम व्यवस्था पूर्ण रूप से उत्तरवैदिक काल में विकसित हुई।

ब्रह्मचर्य आश्रम0-25 वर्ष
गृहस्थ आश्रम26 – 50 वर्ष
वानप्रस्थ आश्रम51-75 वर्ष
संन्यास आश्रम76-100 वर्ष

आर्थिक स्थिति :

–  ऋग्वेद काल में आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। ऋग्वेद सभ्यता ग्रामीण सभ्यता थी।

–  इस काल में गाय को पवित्र पशु माना गया है। साथ ही इसका उपयोग विनिमय के साधन के रूप में भी होता था। गाय को अघन्या (न मारे जाने योग्य पशु) माना जाता था। गाय को मारने पर कठोर दंड का प्रावधान था।

–  कृषि कार्यों की जानकारी लोगों को थी। ऋग्वेद के चौथे मण्डल में कृषि का उल्लेख है। आर्य एक ही अनाज यव (जौ) की खेती करते थे।

–  हल को लाँगल व बैल को ‘वृक’ कहा जाता था।

–  हल चलाने वाले व्यक्ति को ‘कीवाश’ कहा जाता था।

–  ऋगवैदिक काल में सिंचाई दो प्रकार से की जाती थी-

     1. स्वयंजा – वर्षा के पानी / तालाब के माध्यम से सिंचाई

     2. खत्रिनमा – कृत्रिम साधनों से जैसे कुएँ से सिंचाई

–  संभवत: ताँबे या काँसे के लिए ‘अयस’ शब्द का प्रयोग हुआ है।

–  ऋग्वेद के 10वें मंडल में खेती की प्रक्रिया का  वर्णन मिलता है।

–  इस काल के लोग लोहे से अपरिचित थे।

–  हल से बनी नालिया ‘सीता’ कहलाती थी।

धार्मिक स्थिति :

–  ऋगवैदिक आर्य बहुदेववादी थे तथा प्रकृति की पूजा करते थे।

–  सर्वप्रथम पृथ्वी व धौंस (आकाशीय देवता) की पूजा प्रारंभ की। तीसरे पूजक (देवता) के रूप में वरुण की पूजा करते है।

–  वरुण –  इसे सम्पूर्ण जलनिधि का स्वामी व असुर देवता बताया गया है।

–  इन्द्र – ऋग्वैदिक काल के सबसे लोकप्रिय देवता माने जाते हैं। इन्द्र हेतु 250 सूक्त

–  अग्नि – इन्हें धौंसपुत्र व आहुतियों का देवता माना जाता है। 200 सूक्त मिलते हैं। ये देवताओं व मानवों के मध्यस्थ थे।

–  इस काल में लोगों ने प्राकृतिक शक्ति का मानवीकरण कर पूजा की।

–  ऋग्वैदिक आर्यों  की देवमंडली तीन भागों में विभाजित थी।

1. आकाश के देवता

2. पृथ्वी के देवता

3. अन्तरिक्ष के देवता

–  ऋग्वैदिक काल में इन्द्र सबसे प्रमुख देवता था। ऋग्वेद के 250 सूक्त इन्द्र को समर्पित हैं। यह युद्ध, बादल एवं वर्षा का देवता था इसे पुरंदर कहा गया है।

–  बोगजकोई अभिलेख में वैदिक देवता इन्द्र, मित्र, वरुण और नासत्य का उल्लेख हैं।

–  सोम वनस्पति का देवता था।

उत्तर वैदिक काल :

–  जिस काल में यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, आरण्यक तथा उपनिषद् की रचना हुई उसे उत्तरवैदिक काल (1000-600 ई.पू.) कहते हैं।

–  इस काल से लौह प्रौद्योगिकी युग की शुरुआत  हुई।

नदियों के प्राचीन एवं नवीन नाम:-

प्राचीन नामआधुनिक नाम
वितस्ताझेलम
अस्किनीचिनाब
विपासा (विपाशा)व्यास
परुष्णीरावी
शतुद्रिसतलज
कुभाकाबुल
क्रुमु (क्रुभु)कुर्रम
गोमतीगोमल
दृषद्वतीघग्घर/रक्षी/चितंग

–  शतपथ ब्राह्मण में रेवा (नर्मदा) और गण्डक नदियों का उल्लेख मिलता है साथ ही इसका केन्द्र पंजाब से बढ़कर गंगा यमुना दोआब तक हो गया था।

राजनीतिक स्थिति :

–  कई कबीलों ने मिलकर राष्ट्रों या जनपदों का निर्माण किया। इस काल में कबीले मिलकर क्षेत्रीय राज्यों के रूप में उभरने लगे थे। राष्ट्र शब्द जो प्रदेश का सूचक है, पहली बार इस काल में प्रकट हुआ था।

–  उत्तर वैदिक काल में शासन तंत्र का आधार राजतंत्र था। इस काल में राजा का पद वंशानुगत हो गया था।

–  राजा को देवताओं के प्रतिनिधि के रूप में पूजा जाता था।

–  प्रशासनिक तंत्र को सुव्यवस्थित करने हेतु राजा ने एक तंत्र स्थापित किया जिसमें राजा के रथकार से लेकर पटरानी तक के लोग शामिल थे, इन्हें रत्निन कहा गया।

–  क्षेत्रीय राज्यों के उदय होने से अब ‘राजन्’ शब्द का प्रयोग किसी क्षेत्र विशेष के प्रधान के लिए किया जाने लगा।

–  राजा का मुख्य कार्य सैनिक और न्याय संबंधी होते थे।

–  छोटे राजाओं को ‘राजक’ कहते थे।

रत्निन का नामरत्निन का कार्य
राजा (सम्राट)सर्वोच्च प्रशासक
पुरोहितराजा का प्रमुख सलाहकार जिसे कर से मुक्ति प्राप्त थी।
महिषिराजा की सबसे प्रिय रानी (पटरानी)
युवराजराजा का उत्तराधिकारी
सूतराजा का रथवान (सारथी) युद्ध के समय राजा का उत्साहवर्धक
सेनानीप्रमुख सेनापति (सबसे प्रमुख रत्निन)
संगृहीताकोषाध्यक्ष
अक्षवापपासा विभाग का अध्यक्ष
पालागलराजा का मित्र, विदूषक
गोविकर्तनगाय विभाग का प्रमुख अध्यक्ष
भागदुककर संग्रहकर्ता
क्षत्रिराजप्रसाद का रक्षक

–  रत्निन – राज्य के उच्च पदाधिकारी (मंत्री)

–  शतपथ ब्राह्मण में 12 रत्नियों का उल्लेख आता हैं।

सामाजिक स्थिति :

–  संयुक्त एवं पितृसत्तात्मक परिवार की प्रथा इस काल में भी बनी रही।

–  समाज वर्णव्यवस्था पर आधारित था तथा वर्ण अब जाति का रूप लेने लगा था। वर्णों का आधार कर्म पर आधारित न होकर जन्म पर आधारित होने लगा था तथा व्यवसाय भी आनुवंशिक होने लगे थे।

–  ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तीनों वर्णों को ‘द्विज’ कहा जाता था। ‘ऐतरेय ब्राह्मण’ में चारों वर्णों के कर्तव्यों का वर्णन मिलता है। इस काल में केवल वैश्य ही कर चुकाते थे, क्रम में सबसे निचला वर्ण शूद्र था, जिसका कार्य अन्य तीनों  वर्णों की सेवा करना था।

–  उत्तरवैदिक काल में नारियों की स्थिति में ऋग्वेदकाल की अपेक्षा गिरावट आई। स्त्रियाँ, सभा और समिति जैसी राजनीतिक संस्थाओं में भाग नहीं ले सकती थी और उनके अधिकार सीमित हो गए थे। शतपथ ब्राह्मण में कुछ विदुषी महिलाओं का उल्लेख मिलता है जैसे – मैत्रेयी, गार्गी, लोपामुद्रा, वेदवती, कशकृत्सनी आदि। स्त्रियों से इस काल में संपत्ति का अधिकार छिन गया था। वृहदारण्यक उपनिषद् में जनक की सभा में गार्गी और याज्ञवल्क्य के बीच वाद-विवाद का उल्लेख किया गया है।

–  चार आश्रमों की व्यवस्था की जानकारी जाबालोपनिषद् से मिलती है। यह आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास थे।

–  ‘मनुस्मृति में विवाह के आठ प्रकारों का उल्लेख किया गया है- 

    1. ब्रह्म विवाह :   कन्या के वयस्क होने पर उसके माता-पिता द्वारा योग्य वर खोजकर, उससे अपनी कन्या का विवाह करना। (सर्वाधिक मान्य व प्रचलित विवाह)

    2.  आर्ष विवाह :   कन्या के पिता द्वारा यज्ञ कार्य हेतु एक अथवा दो गायों के बदले में अपनी कन्या का विवाह करना।

    3.  दैव विवाह :   यज्ञ करने वाले पुरोहित के साथ कन्या का विवाह।

    4.  गंधर्व विवाह कन्या तथा पुरुष प्रेम अथवा कामुकता के वशीभूत होकर विवाह करते थे। (प्रेम – विवाह)

    5.  असुर विवाह :  कन्या के पिता द्वारा धन के बदले में कन्या का विक्रय।

    6.  प्रजापत्य विवाह :  वर स्वयं कन्या के पिता से कन्या मांगकर विवाह करता था।

    7.  राक्षस विवाह :    बलपूर्वक कन्या को छीनकर उससे विवाह करना।

    8.  पैशाच विवाह :    सोई हुई अथवा विक्षिप्त कन्या के साथ सहवास कर विवाह करना।

–  स्मृतिकारों ने संस्कारों की संख्या 16 बताई है-

सोलह संस्कार
1. गर्भाधान2. पुंसवन
3. सीमन्तोन्नयन4. जातकर्म
5. नामकरण6. निष्क्रमण
7. अन्नप्राशन8. चूड़ाकर्म
9. कर्ण भेद10. विद्यारंभ
11. उपनयन12. वेदारंभ
13.केशांत अथवा गोदान14. समावर्तन
15. विवाह16. अन्त्येष्टि

आर्थिक स्थिति :

–  कृषि तथा विभिन्न शिल्पों के विकास के कारण जीवन स्थायी हो गया हालाँकि पशुपालन अभी भी व्यापक पैमाने पर जारी था, परन्तु अब खेती उनका मुख्य धंधा बन गया।

–  अथर्ववेद के अनुसार पृथुवैन्य ने सर्वप्रथम हल और कृषि को जन्म दिया।

–  लौहे का प्रयोग  विस्तृत पैमाने पर होने के कारण अब कृषि का महत्व बहुत अधिक बढ़ गया।

–  लौहे को श्याम अयस् अथवा कृष्ण अयस् कहा गया।

–  इस काल में कृषि के क्षेत्र में क्रांन्ति आ गई (लौहे के प्रयोग)

–  लोहे का उपयोग पहले शस्त्र निर्माण तथा बाद में कृषि यंत्रों के निर्माण में किया गया।

–  शतपथ ब्राह्मण में कृषि की चारों क्रियाओं – जुताई, बुवाई, कटाई एवं मड़ाई का उल्लेख हुआ है।

–  गाय, बैल, घोड़ा, हाथी, भैंस, बकरी, गधा, ऊँट, सूअर आदि मुख्य पशु थे।

–  कपास का उल्लेख नहीं हुआ है। इसकी जगह उर्णा (ऊन) शब्द का उल्लेख कई बार आया है।

–  आर्य लोग ताँबे के अतिरिक्त सोना, चाँदी, सीसा, टिन, पीतल, रांगा आदि धातुओं से परिचित हो चुके थे।

–  व्यावसायिक संगठन के लिए ऐतरेय ब्राह्मण में ‘श्रेष्ठी’ तथा वाजसनेयी संहिता में ‘गण’ एवं ‘गणपति’ शब्द का उल्लेख हुआ है।

–  मुख्यतः वस्तु विनिमय प्रणाली प्रचलित थी।

धार्मिक स्थिति :

–  उत्तर वैदिक काल में यज्ञ अनुष्ठान एवं कर्मकांडीय गतिविधियों में वृद्धि हुई।

–  लोगों को पंच महायज्ञ करने के भी धार्मिक आदेश थे-

     1. ब्रह्म यज्ञ – अध्ययन एवं अध्यापन।

     2. देव यज्ञ – हवन कर देवताओं की स्तुति।

     3. पितृ यज्ञ – पितरों को तर्पण करना।

     4. मनुष्य यज्ञ – अतिथि सत्कार तथा मनुष्य के कल्याण की कामना

     5. भूत यज्ञ – जीवधारियों का पालन।

–  तीन ऋण थे – देव ऋण (देवताओं तथा भौतिक शक्तियों के प्रति दायित्व), ऋषि ऋण और पितृ ऋण (पूर्वजों के प्रति दायित्व)।

–  शतपथ ब्राह्मण में पहली बार पुनर्जन्म के सिद्धान्त का उल्लेख आता है।

–  चार पुरुषार्थ – धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ।

–  उत्तर वैदिक काल में ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव प्रमुख देवता हो गए।

–  इन्द्र, अग्नि, वरुण तथा अन्य ऋग्वैदिक देवताओं का महत्त्व कम हो गया।

–  उत्तरवैदिक काल के अंतिम दौर में यज्ञ, पशु बलि तथा कर्मकांड के प्रति तीव्र प्रतिक्रिया हुई।

–  वृहदारण्यक उपनिषद् में पहली बार पुनर्जन्म के सिद्धान्त को मान्यता प्रदान की गई।

उत्तर वैदिक काल में कई दर्शनों का उद्भव हुआ

प्रमुख दर्शन एवं उनके प्रवर्तक

दर्शनप्रवर्तक
न्यायगौतम
योगपतंजलि (योगसूत्र)
सांख्यकपिल
वैशेषिककणाद या उलूक
पूर्वी मीमांसाजैमिनी
उत्तर मीमांसाबादरायण
चार्वाकचार्वाक

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वैदिक सभ्यता से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न

वैदिक सभ्यता क्या होती है?

वैदिक काल प्राचीन भारतीय संस्कृति का एक काल खंड है. उस दौरान वेदों की रचना हुई थी. हड़प्पा संस्कृति के पतन के बाद भारत में एक नई सभ्यता का आविर्भाव हुआ. इस सभ्यता की जानकारी के स्रोत वेदों के आधार पर इसे वैदिक सभ्यता का नाम दिया गया.

वैदिक सभ्यता के संस्थापक कौन थे?

वैदिक संस्कृति का संस्थापक आर्यों को माना जाता है।

वैदिक सभ्यता की मुख्य विशेषताएं क्या थी?

प्रारंभिक वैदिक समाज एक अर्ध-खानाबदोश समाज था जिसकी विशेषता पशुचारण अर्थव्यवस्था थी

वैदिक सभ्यता का दूसरा नाम क्या है?

सिंधु घाटी सभ्यता के बाद भारत में आर्य सभ्यता या पूर्व वैदिक काल

वैदिक सभ्यता MCQ

Q.1
वृहदारण्यक उपनिषद में ब्रह्म से संबंधित महावाक्य है-

1
अयं आत्म ब्रह्म

2
प्रज्ञान ब्रह्म

3
अहम् ब्रह्मास्मि

4
सर्वं खलु इदं ब्रह्म

Q.2
निम्नलिखित में से किसे सही अर्थों में ब्राह्मण ग्रंथ कहा जाता है?

1
वेदों के मूल पाठ

2
वैदिक धार्मिक प्रार्थनाओं एवं यज्ञ अनुष्ठान पद्धति से संबंधित व्याख्यात्मक गद्य रचनाएँ।

3
अरण्यों में निवास करने वाले संन्यासियों एवं ऋषियों के चिंतन, मनन एवं आराधना से संबंधित ग्रंथ।

4
आरण्यक ग्रंथों के साथ दार्शनिक विषयों से संबंधित टीकाएँ।

Q.3
ऋग्वेदकालीन दसराज्ञ युद्ध में निम्नलिखित में से कौन-सी जनजाति दस जनजातियों के परिसंघ में शामिल नहीं थी?

1
अनु

2
द्रह्यु

3
पक्थ

4
मत्स्य

Q.4
छान्दोग्य उपनिषद् के सन्दर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
1.छान्दोग्य उपनिषद् में सत्यकाम जाबाल की कथा का उल्लेख हुआ है।
2.इसमें एक दुर्भिक्ष का उल्लेख है जो टिड्डियों द्वारा किए गए कृषि विनाश के कारण पड़ा था।
3.आरुणि उद्दालक और श्वतेकेतु के मध्य संवाद का उल्लेख हुआ है।
4.यम व नचिकेता की कहानी का उल्लेख हुआ है।
कूट:-

1
1, 2, 3 व 4

2
केवल 1, 3 व 4

3
केवल 1 व 3

4
केवल 1, 2 व 3

Q.5
प्रसिद्ध वैदिक उक्ति – “युद्ध का आरम्भ मनुष्यों के मस्तिष्क में होता है”, किस ग्रंथ में उल्लिखित है?

1
ऋग्वेद

2
सामवेद

3
अथर्ववेद

4
मुण्डक उपनिषद्

Q.6
निम्नलिखित साहित्यों पर विचार कीजिए-
1.वृहदारण्यक उपनिषद्
2.आचारांग सूत्र
3.शतपथ ब्राह्मण
4.विनयपिटक
उपर्युक्त में से कौन-सा/से वैदिक साहित्य से संबंधित नहीं हैं?
कूट:

1
केवल 4

2
केवल 1 व 2

3
केवल 2 व 3

4
केवल 2 व 4

Q.7
निम्नलिखित में से किस पाठ का संबंध अथर्ववेद से है?

1
कौथुम

2
राणायनीय

3
शौनकीय

4
जैमिनीय

Q.8
ऋग्वेद में ‘हजारों स्तम्भों वाले महल’ में निवास करने का सम्बन्ध किस देवता से हैं?

1
इन्द्र व द्यौंस

2
विष्णु व अग्नि

3
वरुण व मित्र

4
इन्द्र व नासत्य

Q.9
उत्तर वैदिक काल में समाज के विभाजन का आधार क्या था?

1
श्रम-विभाजन

2
वर्ण व्यवस्था

3
आश्रम व्यवस्था

4
उपर्युक्त सभी

Q.10
निम्नलिखित में से ऋग्वेद काल के लोग इन्द्र का आह्वान करते थे-

1
भौतिक सुख एवं विजय

2
ज्ञान प्राप्ति

3
मरणोपरान्त जीवन

4
जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति

Q.11
बोगजकोई अभिलेख में उल्लेख है-

1
इन्द्र, वरुण, मित्र, अग्नि

2
इन्द्र, मित्र, वरुण, नासत्य

3
इन्द्र, वरुण, अग्नि, सूर्य

4
इन्द्र, मित्र, वरुण, विष्णु

Q.12
वासुदेव श्रीकृष्ण का उल्लेख सर्वप्रथम किस उपनिषद् में मिलता हैं?

1
छान्दोग्य उपनिषद्

2
केनोपनिषद्

3
श्वेताश्वर उपनिषद्

4
वृहदारण्यक उपनिषद्

Q.13
निम्नलिखित में से वैदिक साहित्य का सही क्रम कौन-सा है?

1
वैदिक संहिताएँ, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्

2
वैदिक संहिताएँ, उपनिषद्, आरण्यक, ब्राह्मण

3
वैदिक संहिताएँ, आरण्यक, ब्राह्मण, उपनिषद्

4
वैदिक संहिताएँ, वेदांग, आरण्यक, स्मृतियाँ

Q.14
नचिकेता और यम के बीच सुप्रसिद्ध संवाद उल्लिखित है-

1
छांदोग्योनिषद् में

2
मुंडकोपनिषद् में

3
कठ उपनिषद्

4
केनोपिषद् में

Q.15
उद्दालक-आरुणि तथा उनके पुत्र श्वेतकेतु के बीच संवाद किस उपनिषद् में है?

1
श्वेताश्वतर

2
छान्दोग्य

3
मुण्डक

4
माण्डूक्य

Q.16
निम्नलिखित में से कौन सी विदुषी महिला वैदिक मंत्रों की रचयिता नहीं थी?

1
विश्ववारा

2
अपाला

3
गार्गी

4
घोषा

Q.17
ऋग्वेद संहिता के मंत्रों का एक चौथाई निम्नलिखित में से किस देवता को समर्पित है?

1
रुद्र

2
अग्नि

3
इन्द्र

4
मरुत

Q.18
याज्ञवल्क्य एवं मैत्रेयी का दार्शनिक संवाद किस उपनिषद् में वर्णित है?

1
वृहदारण्यक

2
श्वेताश्वतर

3
छांदोग्य

4
कौषीतकि

Q.19
प्रसिद्ध गायत्री मंत्र किस वेद में है?

1
ऋग्वेद

2
यजुर्वेद

3
सामवेद

4
अथर्ववेद

Q.20
‘बालखिल्य’ का संबंध किस वेद से है?

1
ऋग्वेद

2
सामवेद

3
यजुर्वेद

4
अथर्ववेद

Q.21
आर्यों की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी कौनसी थी?

1
सरस्वती

2
विपासा

3
परुष्णी

4
सिंधु

Q.22
ऋग्वैदिक काल में गण के मुखिया को क्या कहा जाता था?

1
गृहपति

2
कुलप

3
गणस्य गोप्ता

4
विशपति

Q.23
सतलज तथा चिनाब का ऋग्वैदिक कालीन नाम क्रमश: हैं-

1
अस्किनी, शतुद्रि

2
शतुद्रि, अस्किनी

3
वितस्ता, विपाशा

4
विपाशा, वितस्ता

Q.24
गंगा नदी का जिक्र ऋग्वेद में कितनी बार आया है?

1
1

2
2

3
3

4
4

Q.25
अपने पुरोहित गौतम राहुगण के साथ विदेह माधव के पूर्व की ओर प्रव्रजन की कथा किसमें वर्णित हैं?

1
ऐतरेय ब्राह्मण

2
शतपथ ब्राह्मण

3
गोपथ ब्राह्मण

4
वृहदारण्यक उपनिषद

Q.26
वह जनजाति जो ऋग्वैदिक आर्यो के पंचजन से संबंधित नहीं हैं?

1
यदु

2
पुरु

3
तुर्वस

4
विषाणिनी

Q.27
निम्नलिखित में से कौन-सा प्रस्थान त्रयी में शामिल नहीं हैं?

1
उपनिषद्

2
वेदांग

3
भगवत् गीता

4
ब्रह्मसूत्र

Q.28
निम्नलिखित में से किस में 24 बैलों द्वारा कृषि का उल्लेख मिलता है?

1
अथर्ववेद

2
कठोपनिषद्

3
वृद्धारण्यक

4
छांदोग्य उपनिषद्

Q.29
उत्तर वैदिक काल में राजा को उपज का कौन-सा भाग कर के रूप में दिया जाता था?

1
12
1
2
भाग

2
14
1
4
भाग

3
16
1
6
भाग

4
18
1
8
भाग

Q.30
चारों वर्णों की उत्पत्ति का उल्लेख किस मण्डल से मिलता है?

1
7वें मण्डल में

2
5वें मण्डल में

3
9वें मण्डल में

4
10वें मण्डल में

Q.31
विष्णु का प्राचीनतम उल्लेख कहाँ मिलता है?

1
ऋग्वेद

2
सामवेद

3
शतपथ ब्राह्मण

4
गोपथ ब्राह्मण

Q.32
मनुस्मृति में सरस्वती और ‘दृशद्वती’ नदियों के बीच के प्रदेश को पुकारा जाता था–

1
आर्यावर्त

2
सप्त सैन्धव

3
ब्रह्मवर्त

4
ब्रह्मर्षिदेश

नमस्कार, मैं कुलदीप सिंह पठतु प्लेटफार्म पर शिक्षा जगत से संबंधित लेख लिखने का कार्य करता हूं। मैंने इतिहास विषय से स्नातकोत्तर किया है और वर्तमान में पीएचडी कर रहा हु। यहां इस प्लेटफार्म पर मैं आपको बहुत सी जरूरी जानकारी देने का प्रयास करूंगा जो की शिक्षा जगत से जुड़ी हो।

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