राजस्थान के भौतिक प्रदेश Geography of Rajasthan in Hindi

नमस्कार आज हम राजस्थान के भूगोल के महत्वपूर्ण अध्याय यानि राजस्थान के भौतिक प्रदेश (Geography of Rajasthan in Hindi) के बारे मे अध्ययन करेंगे । इस अध्ययन के दौरान हम विभिन्न बिंदुओ पर चर्चा करेंगे जैसे राजस्थान को कितने भौगोलिक क्षेत्र में बांटा गया है? भौतिक प्रदेश कितने हैं? इत्यादि के विषय मे विस्तार पूर्वक अध्ययन करेंगे।

यहाँ पर आपको राजस्थान के भौतिक प्रदेश से समबंधित विभिन्न प्रकार की जानकारी समावेशित किया गया है जो आपको परीक्षा की तैयारी को और भी अच्छा और बेहतरीन करने मे मदद करेगा । जैसे राजस्थान के भौतिक प्रदेश का मानचित्र, राजस्थान के भौतिक प्रदेश के प्रश्न, राजस्थान के भौतिक प्रदेश PDF, राजस्थान के भौतिक प्रदेशों का कालक्रम एवं सभी प्रकार के नए तथ्यों से अपडेटेड राजस्थान के भौतिक प्रदेश के नोट्स भी आपको यहाँ पर उपलब्ध करवाए गए है जिनकी सहायता से आप अपनी तैयारी को उच्चतम स्तर तक ले जा सकते हो ।

भौतिक प्रदेश से तात्पर्य

स्थल मंडल पर स्थित भौगोलिक उच्चावच (पर्वत, पठार, मैदान, झील, नदियाँ), प्राकृतिक वनस्पति, वन, प्राकृतिक संसाधन आदि का किसी क्षेत्र विशेष के संदर्भ में अध्ययन भौतिक प्रदेश कहलाता है।

भौतिक प्रदेश के विभाजन का आधार

1. स्थल स्वरूप, जैसे – पर्वत, पठार, मैदान, मरुस्थल।
2. भौगोलिक दशाएँ, जैसे – जलवायु, मृदा, प्राकृतिक वनस्पति, वर्षा की मात्रा।
3. विशिष्ट आर्थिक लक्षण, जैसे – खनिज संसाधन, ऊर्जा संसाधन, औद्योगिक क्षेत्र एवं विकास।
4. कृषि एवं फसल प्रतिरूप।
5. जनसंख्या वितरण तथा परिवहन के साधन इत्यादि।

राजस्थान के भौतिक प्रदेश

• राजस्थान के भौतिक प्रदेशों का वर्गीकरण सर्वप्रथम वर्ष 1967 में प्रो. वी.सी. मिश्रा ने अपनी पुस्तक ‘राजस्थान का भूगोल’ में किया, जिसका प्रकाशन वर्ष 1968 में नेशनल बुक ट्रस्ट के द्वारा किया गया।
• प्रो. वी.सी. मिश्रा ने स्थल स्वरूप, भौगोलिक दशा, कृषि तथा फसल प्रतिरूप तथा विशिष्ट आर्थिक लक्षणों के आधार पर राजस्थान को सात भौगोलिक प्रदेशों में विभाजित किया
 1.  नहरी क्षेत्र– श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़
 2.  पश्चिमी शुष्क क्षेत्र– जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर
 3.  अर्द्ध शुष्क क्षेत्र– जालोर, पाली, नागौर, सीकर, झुंझुनूं, चूरू
 4.  दक्षिणपूर्वी कृषि प्रदेश– कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, बाँसवाड़ा
 5. चंबल बीहड़ प्रदेश– सवाईमाधोपुर, करौली, धौलपुर
 6. अरावली प्रदेश– उदयपुर, डूंगरपुर, सिरोही
 7.  पूर्वी कृषि, औद्योगिक प्रदेश– जयपुर, अजमेर, भीलवाड़ा, अलवर, भरतपुर, टोंक, दौसा  
• सन् 1971 में डॉरामलोचन सिंह ने राजस्थान को भौगोलिक दृष्टि से तीन श्रेणियों में विभक्त किया
1. दो वृहत् प्रदेश– अरावली पर्वतीय प्रदेशदक्षिणपूर्वी पठारी प्रदेश
2. चार उप प्रदेश– पश्चिमी राजस्थानपश्चिमी मरुस्थलपूर्वी राजस्थानपूर्वी मैदान
3. बारह लघु प्रदेश
• सन् 1994 में डॉ. हरिमोहन सक्सेना  प्रो. तिवारी ने ‘राजस्थान का प्रादेशिक भूगोल’ नामक पुस्तक में उच्चावच एवं भौगोलिक संरचना के आधार पर राजस्थान को चार भौतिक प्रदेशों में विभाजित किया –
1. पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश (थार का मरुस्थल)
2. अरावली पर्वतीय प्रदेश
3. पूर्वी मैदानी प्रदेश
4. दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश (हाड़ौती का पठार)

 राजस्थान का उच्चावच प्रारूप के अनुसार भौगोलिक प्रदेश –
(i) 51% मैदानी प्रदेश
 (ii) 31% उच्च पठारी प्रदेश
 (iii) 11% निम्न भूमि क्षेत्र
 (iv) 6% पर्वत श्रृंखला
 (v) 1% उच्च पर्वत शिखर

राजस्थान के भौतिक प्रदेश Geography of Rajasthan in Hindi

राजस्थान के भौतिक प्रदेश का मानचित्र

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1. पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश

पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश (थार का मरुस्थल) की उत्पत्ति-
• राजस्थान में अरावली पर्वतमाला के पश्चिम में स्थित विशिष्ट भौगोलिक प्रदेश पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश (थार का मरुस्थल) की उत्पत्ति नूतन महाकल्प (नियोजोइक एरा, चतुर्थक युग) के प्लीस्टोसीन काल में टेथिस सागर के अवशेष के रूप में हुई है।
• सर सिरिल फॉक्स तथा बैलेण्ड फोर्ड के अनुसार – टर्शियरी काल (सिनोजोइक एरा- तृतीयक महाकल्प) तक थार का मरुस्थल समुद्र के नीचे था। चतुर्थक महाकल्प के प्लीस्टोसीन काल में समुद्र के निरंतर पीछे हटने, सूखने, मानवीय क्रियाकलापों जैसे – अतिचारण, निर्वनीकरण, मृदा एवं जल का अनुचित प्रबंधन के कारण मरुस्थलीय दशाओं का विकास हुआ।
❍ थार का मरुस्थल टेथिस सागर का अवशेष है जिसके प्रमाण निम्नलिखित है –
• (i) पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश में स्थित खारे पानी की झीलें
• (ii) टर्शियरी कालीन अवसादी चट्‌टानों में जीवाश्म खनिज जैसे – कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस के भण्डार।
• (iii) जैसलमेर के कुलधरा गाँव से व्हेल मछली के अवशेष मिले।
• कुछ भूगोल विशेषज्ञों की मान्यता है कि थार का मरुस्थल सहारा मरुस्थल का भाग है परन्तु यह मान्यता असत्य है क्योंकि –
• (1) थार के मरुस्थल में माइकोशिस्ट चट्‌टान मिलती है, जबकि सहारा मरुस्थल में माइकोशिस्ट चट्टानों का अभाव हैं। (माइकोशिस्ट चट्‌टान – इन चट्‌टानों में मैग्नीशियम, पोटैशियम, ब्रोमियम, कैल्शियम आदि तत्त्व पाए जाते हैं। ये तत्व जल के संपर्क में आकर जल उत्प्लावन विधि द्वारा भूमि के ऊपरी भाग में आ जाते हैं, जिसके कारण मृदा में लवणता बढ़ जाती है और इससे खारे पानी की झीलों का निर्माण होता है।)
• (2) जैसलमेर के आकल गाँव (राष्ट्रीय जीवाश्म पार्क) में जुरैसिक कालीन प्राकृतिक वनस्पति के अवशेष मिले, जबकि सहारा के मरुस्थल में ऐसे कोई प्रमाण नहीं मिले।
❍ थार का मरुस्थल, ग्रेट पेलिओ आर्कटिक अफ्रीका मरुस्थल का पूर्वी भाग है-
• ग्रेट पेलिओ आर्कटिक अफ्रीका मरुस्थल को उत्तरी अफ्रीका में सहारा मरुस्थल, अरब-ईरान देशों में कबीर, पाकिस्तान में चेलिस्तान तथा भारत में थार का मरुस्थल कहा जाता है।
❍ थार के मरुस्थल का विस्तार-
• थार का मरुस्थल क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व में 17 वाँ बड़ा मरुस्थल है, जिसका विस्तार भारत तथा पाकिस्तान में हैं।
• थार का मरुस्थल भारत के उत्तर – पश्चिमी राज्यों (हरियाणा- पंजाब – गुजरात – राजस्थान) में विस्तृत है।
• भारत में थार के मरुस्थल का सर्वाधिक विस्तार राजस्थान में तथा न्यूनतम विस्तार हरियाणा राज्य में है।
• राजस्थान में थार के मरुस्थल का विस्तार राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का 61.11% (238,254 वर्ग कि.मी.) है जबकि राजस्थान में मुख्य मरुस्थल 1,75,000 वर्ग कि.मी. है।
• राजस्थान में थार के मरुस्थल का अक्षांशीय विस्तार 250 उत्तरी अंक्षाश से 300 उत्तरी अंक्षाश के मध्य है।
• राजस्थान में थार के मरुस्थल का देशांतरीय विस्तार 69030′ पूर्वी देशांतर से 70º45’पूर्वी देशांतर के मध्य है।
• थार के मरुस्थल की लंबाई 640 कि.मी. तथा चौड़ाई 300 से 360 कि.मी. तक है।
• थार के मरुस्थल का ढाल उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम है।
• थार के मरुस्थल की समुद्र तल से औसत ऊँचाई 250 मीटर है जबकि उत्तर-पूर्व की औसत ऊँचाई 300 मीटर तथा दक्षिण की ऊँचाई 150 मीटर है।
• प्रशासनिक दृष्टि से थार के मरुस्थल में राजस्थान के 12 जिले अवस्थित है। (श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू, झुंझुनूं, सीकर, नागौर, जोधपुर, पाली, जालोर, बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर)
• थार के मरुस्थल की उत्तरी सीमा पंजाब-हरियाणा, दक्षिणी सीमा गुजरात, पूर्वी सीमा अरावली पर्वतीय प्रदेश के समान्तर गुजरने वाली 50 से.मी. वर्षा रेखा, पश्चिमी सीमा रेडक्लिफ रेखा द्वारा निर्धारित होती है।
• क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा मरुस्थलीय जिला जैसलमेर तथा सबसे छोटा मरुस्थलीय जिला झुंझुनूं है।
❍ थार के मरुस्थल की विशेषताएं-
• थार के मरुस्थल का जनसंख्या, जनघनत्व एवं जैव विविधता की दृष्टि से विश्व में प्रथम स्थान है, इस कारण इसे ‘धनी मरुस्थल’ कहा जाता है।
• थार के मरुस्थल का क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व में 17वाँ, उपोष्णता की दृष्टि से 9वाँ स्थान है।
• थार के मरुस्थल में परंपरागत ऊर्जा संसाधनों (कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस) एवं गैर-परंपरागत ऊर्जा संसाधनों (सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोमास) की संभावना के कारण इसे ‘विश्व का शक्तिगृह’ (World Power House) की संज्ञा दी गई है। (थार के मरुस्थल में ग्रीष्म ऋतु में निकलने वाली रेडॉन गैस नमी को अवशोषित कर न्यून वायुदाब केंद्र का निर्माण करती है, जो मानसून को आकर्षित करने में सहायक होती है।)
• थार का मरुस्थल भारत में स्थित निम्न वायुदाब का केंद्र है।
• थार का मरुस्थल भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून को आकर्षित करता है तथा ऋतु चक्र को नियमित करता है।
• थार का मरुस्थल क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा भौतिक प्रदेश है।
• राजस्थान में थार का मरुस्थल न्यूनतम जनघनत्व वाला भौतिक प्रदेश है।
• थार के मरुस्थल में टर्शियरी कालीन अवसादी चट्‌टानों की प्रधानता है, जिसमें जीवाश्म खनिज (कोयला, पेट्रोलियम पदार्थ, प्राकृतिक गैस, चूनापत्थर) आदि के भण्डार हैं।
1. बाड़मेर का गुढ़ामालानी क्षेत्र – पेट्रोलियम पदार्थ।
2. जैसलमेर का शाहगढ़ सब बेसिन – प्राकृतिक गैस।
3. बीकानेर – नागौर बेसिन (पूनम क्षेत्र) – पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस।
4. जैसलमेर का सोनू क्षेत्र – चूना पत्थर।
• थार के मरुस्थल में कहीं-कहीं विंध्य क्रम, रायलोक्रम, देहलीक्रम, बुन्देलखण्ड नीस, क्रिटेशियसकालीन चट्‌टानें भी पाई जाती हैं।
• थार के मरुस्थल में रेतीली बलुई मृदा का विस्तार है। मृदा के वैज्ञानिक वर्गीकरण के अनुसार एन्टीसोल तथा एरिडोसोल मृदा पाई जाती है।
• थार के मरुस्थल में मरुद्भिद वनस्पति (जीरोफाइट्स) पाई जाती है, जिनमें आक, नागफनी, खजूर, कंटीली झाड़ियाँ, मरुस्थलीय घास प्रमुख हैं।
• पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश में सिंचाई का प्रमुख साधन नहरें हैं तथा प्रमुख नहर इंदिरा गाँधी नहर, जिसे मरुगंगा की संज्ञा दी गई।
• जैसलमेर के कुलधरा गाँव में कैक्टस गार्डन तथा बीकानेर में मरुस्थलीय वनस्पति हेतु मरुधरा जैविक उद्यान की स्थापना की गई है।
• थार के मरुस्थल में 50 से.मी.से कम वर्षा होती है इस कारण यहाँ शुष्क एवं अर्द्धशुष्क, दोनों प्रकार की जलवायु पाई जाती है।
• थार के मरुस्थल में मुख्यत: खरीफ की फसल का अधिक उत्पादन किया जाता है
• थार के मरुस्थल की मुख्य नदी, लूनी है।
❍ थार के मरुस्थल से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिंदु
• थली – थार के मरुस्थल का स्थानीय नाम।
• धोरे- मरुस्थल में पाई जाने वाली रेतीली बलुई मृदा से निर्मित लहरदार स्थलाकृति को स्थानीय भाषा में धोरे कहा जाता है।
• स्थानीय पवन- तापमान तथा वायुदाब में विषमता के कारण किसी स्थान विशेष से चलने वाली पवन।
स्थानीय पवन, दो प्रकार की होती हैगर्म एवं ठण्डी।
• लू- थार के मरुस्थल में ग्रीष्म ऋतु में चलने वाली गर्म एवं शुष्क पवनजो स्थानीय गर्म पवन का उदाहरण है।
• भभूल्या-थार के मरुस्थल में आकस्मिक आने वाले वायु के चक्रवात को स्थानीय भाषा में भभूल्या कहा जाता है।
• चक्रवात- ग्रीष्म ऋतु में केंद्र में अधिक तापमान एवं निम्न वायुदाब के कारण पवन तीव्रगति से परिधि (बाहर) से केंद्र की ओर गति करती है तथा गर्म होकर ऊपर उठती हैइस अवस्था को चक्रवात कहा जाता है।
• पुरवइया- ग्रीष्मकालीन दक्षिण पश्चिम-मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा में आने वाली मानसूनी हवाओं को स्थानीय भाषा में पुरवइया कहा जाता है।
• पुरवइया, राजस्थान में अधिकांश जिलों में 90% वर्षा करती हैं।
• मावठ- थार के मरुस्थल में शीत ऋतु में भूमध्य सागरीय पश्चिमी विक्षोभों से होने वाली वर्षा, मावठ कहलाती है।
• मावठ, रबी की फसल (गेहूँ) के लिए अधिक उपयोगी है। इस कारण महावट (मावठ) को गोल्डन ड्रॉप्स (सुनहरी बूँदें) कहा जाता है।
• रन- बालुका स्तूपों के मध्य स्थित दलदली क्षेत्र रन/टाट/तल्ली/ अभिनति कहलाता है। राजस्थान में सर्वाधिक रन जैसलमेर में है।
 जैसे -पोकरण, बरमसर, कानोत, भाकरी, लवा (जैसलमेर) थोब (बाड़मेर), बाप (जोधपुर)
• थोब‘ रन क्षेत्रफल की दृष्टि से थार के मरुस्थल का सबसे बड़ा रन है।
• बॉलसन- प्लाया के सूखने से निर्मित मैदान बॉलसन कहलाता है।
❍ राजस्थान में मरुस्थल के प्रकार-
 1. हम्मादा- चट्टानी/पथरीला मरुस्थल – पोकरण (जैसलमेर), फलोदी (जोधपुर), बालोतरा (बाड़मेर)।
 2. रैग- यह एक मिश्रित मरुस्थल है, जो हम्मादा के चारों ओर पाया जाता है। यह जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर में आता हैं।
 3. इर्ग- इसे संपूर्ण मरुस्थल व महान् मरुस्थल कहा जाता है। इसमें जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, नागौर, चूरू, सीकर, झुंझुनूं क्षेत्र आते हैं।
❍ थार के मरुस्थल का वर्गीकरण-
 जलवायु के आधार पर-
 1. शुष्क रेतीला प्रदेश- 0-25 से.मी. वर्षा
 2.अर्द्ध शुष्क प्रदेश- 25-50 से.मी. वर्षा
• शुष्क रेतीला व अर्द्ध शुष्क प्रदेश को 25 से.मी. वर्षा रेखा विभाजित करती है।
(1) शुष्क रेतीला प्रदेश-
• 25 से.मी. वर्षा रेखा शुष्क रेतीले प्रदेश की पूर्वी सीमा का निर्धारण करती है।
• 25 से.मी. वर्षा रेखा के पश्चिम में स्थित प्रदेश जहाँ 25 से.मी.से कम वर्षा होती है।
शुष्क मरुस्थल को पुन: दो भागों में विभाजित किया गया है-
(अ) बालुका स्तूप मुक्त प्रदेश – 41.50 प्रतिशत।
(ब) बालुका स्तूप युक्त प्रदेश – 58.50 प्रतिशत।
(अ) बालुका स्तूप मुक्त प्रदेश-
• शुष्क रेतीले प्रदेश का वह भाग जहाँ बालुका स्तूप (धोरे) नहीं पाए जाते हैं।
• इसमें परतदार (अवसादी) चट्टानें पाई जाती है।
• यह शुष्क रेतीले प्रदेश का 41.50 प्रतिशत है।
• बालुका स्तूप मुक्त प्रदेश का विस्तार जैसलमेर (सर्वाधिक), बाड़मेर, जोधपुर में है।
• हम्मादा, रैग, मगरा, लाठी सीरीज, चांदन नलकूप, आकलगाँव जीवाश्म पार्क और कुलधरा गाँव।
❍ मगरा-
• बालोतरा (बाड़मेर) से पोकरण (जैसलमेर) के मध्य स्थित अवशिष्ट पहाड़ियाँ।
❍ लाठी सीरीज-
• जैसलमेर से मोहनगढ़ तक 64 कि.मी. क्षेत्र में फैली एक भूगर्भीय जल पट्टी है।
• जैसलमेर में ट्रियासिक युगीन अवसादी चट्टानों का जमाव है, जो मीठे जल की पट्टी  स्टील ग्रेड चूना पत्थर के लिए प्रसिद्ध है।
• लाठी सीरीज में सेवण घास पाई जाती है, जो प्रोटीन युक्त घास है।
• सेवण घास का वैज्ञानिक नाम लसियुरिस सिडीकुस है, सेवण घास को स्थानीय भाषा में लीलोण कहा जाता है।
• सेवण घास के मैदान में अधात्विक खनिज भण्डार रॉक फॉस्फेट (बिरामानिया) पाया जाता है।
• पश्चिमी राजस्थान में पारिस्थितिकी संतुलन का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण लाठी सीरीज है।
• सेवण घास के मैदान में सर्वाधिक गोडावण पक्षी निवास करते हैं।
❍ चांदन नलकूप-
• इसे ‘थार का घड़ा’ भी कहा जाता है। यह एक भूगर्भीय जल पट्‌टी का उदाहरण है।
• लाठी सीरीज में जैसलमेर में चांदन नामक स्थान पर स्थित नलकूप जहाँ से आस-पास के क्षेत्र में जलापूर्ति होती है।
❍ आकल गाँव जीवाश्म पार्क-
• जैसलमेर में राष्ट्रीय मरु उद्यान में आकल गाँव में स्थित जीवाश्म पार्क, जहाँ पर जुरैसिक कालीन प्राकृतिक वनस्पति के अवशेष मिले हैं-
 ट्रियासिक काल – रेंगने वाले जीवों का काल।
 जुरैसिक काल – घने जंगलों का विकास।
 क्रिटेशियस काल – ज्वालामुखी क्रिया।
❍ कुलधरा गाँव-
• बालुका मुक्त प्रदेश में स्थित जैसलमेर का वह गाँव जहाँ से व्हेल मछली या डायनासोर के अवशेष मिले हैं।
• राजस्थान के पहले कैक्टस गार्डन की स्थापना कुलधरा गाँव में की गई है।
(ब) बालुका स्तूप युक्त प्रदेश-
• थार के मरुस्थल बालू रेत (रेतीली बलुई) मृदा से निर्मित लहरदार स्थलाकृति, बालुका स्तूप कहलाती है।
• शुष्क रेतीले प्रदेश में स्थित वह क्षेत्र जहाँ बालुका स्तूपों की प्रधानता होती है।
• बालुका स्तूपों के मध्य मार्ग को कारवां (घासी) कहा जाता है जहाँ से ऊँटों का समूह गुजरता है।
• यह जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, दक्षिणी श्रीगंगानगर क्षेत्र में पाए जाते हैं।
• विशेषता – इर्ग, बालुका स्तूप, खड़ीन।
❍ बालुका स्तूपों का वर्गीकरण-
• वेगनोल्ड ने सन् 1933 में बालुका स्तूपों को दो भागों में विभाजित किया-
1. बरखान
2. सीफ
• हैकी ने सन् 1941 में बालुका स्तूपों को तीन भागों में विभाजित किया-
1. अनुदैर्ध्य
2. अनुप्रस्थ
3. पैराबोलिक
• मैकी ने सन् 1979 में बालुका स्तूपों को 8 भागों में विभाजित किया-
(i) अनुदैर्ध्य बालुका स्तूप
(ii) अनुप्रस्थ बालुका स्तूप
(iii) बरखान
(iv) तारा बालुका स्तूप
(v) पैराबोलिक बालुका स्तूप
(vi) सब्र काफिज
(vii) नेटवर्क बालुका स्तूप
(viii) अवरोधी बालुका स्तूप
(i) अनुदैर्ध्य/पवनानुवर्ती/रेखीय बालुका स्तूप-
• पवन की दिशा के समांतर या अनुदिश निर्मित होने वाले बालुका स्तूप, अनुदैर्ध्य बालुका स्तूप कहलाते हैं।
• इसे रेखीय बालुका स्तूप भी कहा जाता है।
• ये जैसलमेर, बीकानेर, सूरतगढ़ (श्रीगंगानगर) क्षेत्र में पाए जाते हैं।
(ii) अनुप्रस्थ बालुका स्तूप-
• पवन की दिशा के लम्बवत् या समकोण पर पवन के मार्ग में अवरोध आने से निर्मित बालुका स्तूप अनुप्रस्थ बालुका स्तूप कहलाते हैं।
• इन्हें समकोणीय बालुका स्तूप भी कहा जाता है।
• ये पोकरण (जैसलमेर), बालोतरा (बाड़मेर), नागौर, बीकानेर, जोधपुर क्षेत्र में पाए जाते हैं।
(iii) बरखान या बरच्छान-
• वायु भंवर के कारण गतिशील या अस्थिर अर्द्धचंद्राकार बालुका स्तूप बरखान या बरच्छान कहलाता है।
• ये भालेरी (चूरू), ओसियाँ (जोधपुर), सीकर, झुंझुनूं क्षेत्र में पाए जाते हैं।
(iv) तारा बालुका स्तूप-
• वे बालुका स्तूप जो तारे के समान दिखाई देते हैं तारा बालुका स्तूप कहलाते हैं।
• ये सूरतगढ़ (श्रीगंगानगर), मोहनगढ़ (जैसलमेर)क्षेत्र में पाए जाते हैं।
(v) पैराबोलिक बालुका स्तूप-
• ये बालुका स्तूप संपूर्ण मरुस्थल में पाए जाते हैं।
• इनकी आकृति परवलयाकार (अर्द्धचंद्राकार) होती है।
• ये बालुका स्तूप सर्वाधिक बीकानेर जिले में बनते हैं।
(vi) सब्र काफिज-
• छोटी झाड़ियों के सहारे बनने वाले बालुका स्तूपों को सब्र काफिज कहा जाता है।
• ये सबसे छोटे बालुका स्तूप होते हैं।
• यह संपूर्ण मरुस्थल में पाए जाते हैं।
• ये बालुका स्तूप सर्वाधिक बीकानेर जिले में बनते हैं।
(vii) नेटवर्क बालुका स्तूप-
• हनुमानगढ़ से हरियाणा के मध्य एक श्रृंखला में पाए जाने वाले बालुका स्तूप नेटवर्क बालुका स्तूप कहलाते हैं।
(viii) अवरोधी बालुका स्तूप-
• अवरोधी बालुका स्तूप किसी अवरोध के कारण बनते हैं।
प्लाया झील-

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• प्लाया, स्पेनिश भाषा का शब्द है, जिसका तात्पर्य है शुष्क प्रदेशों में उच्च भूमि से घिरी निम्न भूमि (बेसिन)।
• थार के मरुस्थल में बालुका स्तूपों के मध्य स्थित निम्न भूमि जहाँ वर्षा जल एकत्र होने से बनी अस्थाई झील का निर्माण होता है।
• राजस्थान में सर्वाधिक प्लाया झीलें जैसलमेर में हैं।
• खारे जल की प्लाया झील को ‘सैलीनास’ भी कहते हैं।
• प्लाया झीलों में वाष्पीकरण के कारण लवणों की मात्रा में वृद्धि वाले क्षेत्र क्षारीय क्षेत्र /कल्लर भूमि कहलाती है।
• प्लाया को अरब के रेगिस्तान में खबारी/ममलाहा और सहारा मरुस्थल में शट्ट कहा जाता है।
 (2) अर्द्ध शुष्क प्रदेश-
• अरावली के पश्चिमी किनारे से रेतीले शुष्क मैदान की सीमा तक लगभग 75,000 वर्ग कि.मी. क्षेत्र पर राजस्थान बांगड़ अथवा अर्द्ध शुष्क मैदान अवस्थित है। इस क्षेत्र के उत्तर में घग्घर नदी का क्षेत्र है, उत्तर-पूर्व में शेखावटी क्षेत्र, दक्षिण-पूर्वी भाग में लूनी बेसिन स्थित है। यह स्टेपी मरुस्थल अरावली श्रेणी के पश्चिमी भाग में 30 से 50 से.मी.. वर्षा वाले क्षेत्र पर उत्तर-पूर्व व दक्षिणी-पश्चिमी दिशा में अवस्थित है।
❍ अर्द्ध शुष्क प्रदेश का वर्गीकरण-
• भौगोलिक संरचना के आधार पर
 (i) घग्घर प्रदेश
 (ii) शेखावाटी प्रदेश
 (iii) नागौरी उच्च भूमि
 (iv) गोडवाड़ प्रदेश
(i) घग्घर प्रदेश-
• श्रीगंगानगर- हनुमानगढ़ में घग्घर नदी द्वारा निर्मित मैदानी प्रदेश।
• प्राचीन काल में यह क्षेत्र यौद्धेय प्रदेश कहलाता था (यौद्धेय जाति का निवास क्षेत्र)।
• हनुमानगढ़ में घग्घर नदी द्वारा निर्मित मैदानी भाग को स्थानीय भाषा में नाली कहा जाता है।
• राजस्थान में नहरों द्वारा सर्वाधिक सिंचाई की जाती है।
1. गंगनहर (श्रीगंगानगर)
2. भाखड़ा नहर (हनुमानगढ़)
3. सिद्धमुख नहर परियोजना (हनुमानगढ़ के नोहर व भादरा तहसील)
4. इंदिरा गाँधी नहर (हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर)।
❍ घग्घर दोआब प्रदेश-
• सतलज व घग्घर नदी के बीच की भूमि।
• राजस्थान के कृषि विभाग के अनुसार घग्घर दोआब प्रदेश में एक विशेष प्रकार की मिट्‌टी का निर्धारण किया गया है, जिसका नाम रेवेरीना मिट्‌टी है, जो श्रीगंगानगर में पाई जाती है।
• रेवेरीना मिट्‌टी में सर्वाधिक गेहूँ का उत्पादन किया जाता है।
❍ सेम की समस्या (जल उत्प्लावन की समस्या)-
• नहरी क्षेत्र के आस-पास भूमिगत जल रिसाव (केशाकर्षण) के कारण भूपटल की ऊपरी परत का दलदली हो जाता है तथा मृदा में लवणीयता की मात्रा में वृद्धि हो जाती है।
• श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़, सेम की समस्या से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र हैं।
• सेम की समस्या के लिए नीदरलैंड के सहयोग से इण्डो-डच योजना (हनुमानगढ़ में जल निकासी हेतु) चलाई जा रही है।
• सेम की समस्या का समाधान, नहरी क्षेत्र के आस-पास वृक्षारोपण से संभव है।
(ii) शेखावाटी प्रदेश-
• प्राचीन काल में शेख सामंतों का क्षेत्राधिकार था।
• चूरू, झुंझुनूं व सीकर का क्षेत्र है।
• यह राजस्थान के अन्त: प्रवाह या आंतरिक प्रवाह क्षेत्र का भाग है।
• शेखावाटी प्रदेश की मुख्य नदी कांतली नदी है। (पूर्णत: राजस्थान में बहने वाली सबसे लम्बी आंतरिक प्रवाह की नदी)।
• झुंझुनूं क्षेत्र में प्राचीन जलोढ़ मृदा (बांगर) का विस्तार है।
❍ शेखावाटी प्रदेश में वर्षा जल संरक्षण-
• छोटे तालाब को सर कहा जाता है।
• पक्के कुएँ को नाडा व कच्चे कुएँ को जोहड़ कहा जाता है।
• यहाँ तंवर राजपूतों का क्षेत्राधिकार था इसलिए इसे तोरावाटी क्षेत्र भी कहा जाता है जो कांतली नदी का प्रवाह क्षेत्र कहलाता है।
❍ जोहड़ विकास कार्यक्रम-
• डॉ. राजेन्द्र सिंह (जोहड़ वाले बाबा) द्वारा आरंभ।
• शेखावाटी प्रदेश (सीकर) में वर्षा जल संरक्षण को बढ़ावा देना (जल संरक्षण)।
(iii) नागौरी उच्च भूमि-
• यह नागौर में 300 से 500 मीटर ऊँची अरावली से पृथक् उच्च भूमि क्षेत्र है।
• नागौरी उच्च भूमि में सोडियम लवणों की अधिकता के कारण यहाँ लवणीय झीलें (नमकीन झीलें) सर्वाधिक हैं।
❍ नागौरी उच्च भूमि का वर्गीकरण-
• मांगलोद श्रेणी – जिप्सम का जमाव क्षेत्र।
• मकराना श्रेणी – सफेद संगमरमर का जमाव क्षेत्र।
• कूबड़ पट्‌टी/बांका पट्‌टी/हॉच बेल्ट
• जायल श्रेणी – फ्लोराइड युक्त जल।
• जायल (नागौर) से अजमेर के मध्य स्थित फ्लोराइड युक्त जल पट्‌टी।
(iv) गोडवाड़ प्रदेश (लूनी बेसिन)-
• प्राचीन काल में गौड़ राजपूतों का क्षेत्राधिकार था।
• पाली-जालोर-बाड़मेर-जोधपुर के मध्य स्थित है।
❍ छप्पन की पहाड़ियाँ-
• पीपलूद गाँव (बाड़मेर) को पश्चिमी राजस्थान का माउण्ट आबू कहा जाता है।
• यहाँ 56 गुम्बदाकार पहाड़ियाँ स्थित हैं, जो बालोतरा (बाड़मेर) से सिवाणा (बाड़मेर) क्षेत्र में स्थित है।
• इसी पहाड़ी पर नाकोड़ा पर्वत बालोतरा (बाड़मेर) में स्थित है।
❍ जसवंतपुरा की पहाड़ियाँ-
• यह पहाड़ी जालोर में स्थित है।
• इस पहाड़ी पर डोरा पर्वत (869 मीटर), इसराना भाखर (839 मीटर), रोजा भाखर (730 मीटर), झारोल (588 मीटर), सुंधा पर्वत (450 मीटर) आदि हैं।
• पश्चिमी राजस्थान की सबसे ऊँची पर्वत चोटी डोरा पर्वत है।
❍ ग्रेनाइट पर्वत-
• ग्रेनाइट पर्वत जालोर में स्थित है। जालोर को ग्रेनाइट सिटी भी कहा जाता है।

2. अरावली पर्वतीय प्रदेश

❍ अरावली पर्वतीय प्रदेश की उत्पत्ति-
• अरावली का शाब्दिक अर्थ पर्वतों की श्रृंखला है जिसे विष्णु पुराण में सुमेर पर्वत/मेरु पर्वत / परिपत्र पर्वत कहा गया है।
• अरावली पर्वतीय प्रदेश की उत्पत्ति 4.88 अरब वर्ष पूर्व आद्य महाकल्प (एजोइक एरा, प्री पैल्योजोइक एरा, पूर्व प्राथमिक महाकल्प) के प्री-क्रेम्बियन काल में गोंडवाना लेंड में वलन की क्रिया से पर्वतों की एक श्रृंखला के रूप में हुआ जिसे अरावली पर्वतमाला कहा गया।
• उच्चावच की दृष्टि से अरावली पर्वतमाला भारत के प्रायद्वीपीय पठारी प्रदेश का भाग है।
• अरब सागर को अरावली का गर्भ गृह कहा जाता है।
• अरावली पर्वतमाला से पूर्व देहली क्रम भी चट्‌टानों का विस्तार था जिसे राजस्थान में तीन भागों में विभाजित किया गया –
(i) अलवर समूह – अलवर
(ii) अजबगढ़ समूह – सिरोही
(iii) रायलो समूह – बाड़मेर
❍ अरावली पर्वतमाला का विस्तार–
• इसका विस्तार भारत के तीन राज्यों गुजरात, राजस्थान, हरियाणा तथा केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में है।
• राजस्थान में अरावली का लगभग 80% भाग स्थित है।
• भारत में अरावली का विस्तार पालनपुर (गुजरात) से रायलसीमा (रायसीना) दिल्ली तक 692 कि.मी. है।
• राजस्थान में अरावली पर्वतमाला का विस्तार खेड़ब्रह्म (ब्रह्मखेड़ा)/सिरोही से खेतड़ी/झुंझुनूं तक 550 कि.मी. है।
• अरावली पर्वतमाला का अक्षांशीय विस्तार 23°20’ उत्तरी अक्षांश से 28°20’ उत्तरी अक्षांश के मध्य है।
• अरावली पर्वतमाला का देशांतरीय विस्तार 72°10’ पूर्वी देशांतर से 77°03’ पूर्वी देशांतर के मध्य है।
• अरावली पर्वतीय प्रदेश राजस्थान के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 9.3% भाग है तथा इसमें लगभग 10% जनसंख्या निवास करती है।
• राजस्थान में अरावली का विस्तार दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व दिशा में है।
• राजस्थान में अरावली की ऊँचाई तथा चौड़ाई उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर बढ़ती है।
• राजस्थान में अरावली की सर्वाधिक चौड़ाई राजसमंद से बाँसवाड़ा के मध्य है।
• राजस्थान में अरावली की सर्वाधिक ऊँचाई राजसमंद से सिरोही के मध्य है।
• राजस्थान में अरावली का सर्वाधिक विस्तार उदयपुर जिले में है जबकि राजस्थान में अरावली का न्यूनतम विस्तार अजमेर जिले में है।
• राजस्थान में अरावली की सर्वाधिक ऊँचाई सिरोही जिले में है जबकि राजस्थान में अरावली की न्यूनतम ऊँचाई जयपुर जिले में है।
• अरावली की आकृति की तुलना तन्दूरा वाद्य यंत्र तथा कर्ण (कान) से की गई है।
❍ अरावली पर्वतीय प्रदेश की विशेषताएं-
• अरावली पर्वतमाला उत्पत्ति की दृष्टि से विश्व की प्राचीनतम वलित पर्वत माला है जो उत्तरी अमेरिका की अप्लेशियन पर्वतमाला के समकक्ष है।
• उत्पत्ति के समय अरावली की ऊँचाई लगभग 2800 मीटर थी लेकिन अपरदन प्रक्रम के परिणामस्वरूप अरावली वर्तमान में अवशिष्ट पर्वतमाला के रूप में विस्तृत है जिसकी औसत ऊँचाई 930 मीटर है।
• अरावली पर्वतमाला प्रायद्वीपीय पठारी प्रदेश का भाग है जिसे महान् भारतीय जल विभाजक रेखा की संज्ञा दी गई है।
• अरावली पर्वतीय प्रदेश में धारवाड़ क्रम की ग्रेनाइट, नीस, क्वार्टजाइट चट्‌टानों की प्रधानता है। इस कारण अरावली धात्विक खनिज जैसे – लौह-अयस्क, ताँबा, सीसा, जस्ता, टंगस्टन, चाँदी आदि की दृष्टि से समृद्ध प्रदेश है।
• अरावली पर्वतमाला, हिमालयी पर्वतीय प्रदेश तथा पश्चिमी घाट के मध्य स्थित सबसे ऊँची पर्वत श्रृंखला है।
• अरावली पर्वतीय प्रदेश में लाल मृदा (पर्वतीय मृदा, इन्सेप्टीसोल) का विस्तार है। लाल मृदा मक्का के लिए उपयोगी है।
• राजस्थान में सर्वाधिक वन सम्पदा तथा वन्यजीव अभयारण्य, जैव विविधता अरावली पर्वतीय प्रदेश में पाई जाती है।
• अरावली पर्वतमाला राजस्थान के तीनों अपवाह तंत्र (आंतरिक प्रवाह तंत्र, बंगाल की खाड़ी नदी तंत्र, अरब-सागरीय नदी तंत्र) की अधिकांश नदियों का उद्गम स्थल है।
• अरावली पर्वतमाला को राजस्थान में आदिवासियों की आश्रय स्थली कहा जाता है। राजस्थान की मीणा, गरासिया, कथौड़ी, डामोर जनजातियाँ अरावली के विभिन्न जिलों में निवास करती हैं।
• अरावली पर्वतीय प्रदेश में आदिवासी जनजातियों द्वारा मुख्यत: झूमिंग या स्थानांतरित कृषि की जाती है, जिसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे –
• चिमाता – भील जनजाति द्वारा वनों को जलाकर की जाने वाली झूमिंग कृषि।
• वालरा – गरासिया जनजाति द्वारा की जाने वाली स्थानांतरित कृषि
• दजिया – भील / डामोर जनजाति द्वारा वनों को काटकर की जाने वाली झूमिंग कृषि।
❍ अरावली पर्वतीय प्रदेश का वर्गीकरण-
• अरावली पर्वतीय प्रदेश को ऊँचाई के आधार पर तीन भागों विभाजित किया गया है–
(A) उत्तरी अरावली
(B) मध्य अरावली
(C) दक्षिण अरावली
1. उत्तरी अरावली-
• उत्तरी अरावली प्रशासनिक दृष्टि से चार जिलों – जयपुर, अलवर, सीकर, झुंझुनूं में विस्तृत है।
• उत्तरी अरावली की औसत ऊँचाई 450 मीटर है।
उत्तरी अरावली की प्रमुख चोटियाँ निम्नलिखित है –
 (i) रघुनाथगढ़ (सीकर) – 1,055 मीटर
 (ii) खोह (जयपुर) – 920 मीटर
 (iii) भरौच (अलवर) – 792 मीटर
 (iv) बरवाड़ा (जयपुर) – 786 मीटर
 (v) बबाई (झुंझुनूं) – 780 मीटर
 (vi) बिलाली (अलवर) – 775 मीटर
 (vii) बैराठ (जयपुर) – 704 मीटर
 (viii) सरिस्का (अलवर) – 677 मीटर
 (ix) भानगढ़ (अलवर) – 649 मीटर
 (x) जयगढ़ (जयपुर) – 648 मीटर
 (xi) नाहरगढ़ (जयपुर) – 599 मीटर
 (xii) बालागढ़ (अलवर) – 597 मीटर
• उत्तरी अरावली में कोई दर्रा नहीं है।
 (दर्रा-पहाड़ों के मध्य स्थित संकीर्ण मार्ग जिसे नाल या घाट भी कहा जाता है।)
2. मध्य अरावली-
• मध्य अरावली का विस्तार अजमेर जिले में विस्तृत है।
• मध्य अरावली की औसत ऊँचाई – 500-700 मीटर
 मध्य अरावली की प्रमुख चोटियाँ निम्नलिखित है –
 (i) गोरमजी (934 मीटर)– अजमेर
 (ii) मेरियाजी (933 मीटर)- टॉडगढ़, अजमेर
 (iii) तारागढ़ (873 मीटर)- अजमेर  
 (iv) नागपहाड़ (795 मीटर)- अजमेर  
मध्य अरावली के प्रमुख दर्रे निम्नलिखित हैं–
 (i) बर दर्रा – पाली (मारवाड़ तथा मेरवाड़ा को जोड़ता है NH-14 गुजरता है।)
 (ii) शिवपुरी – अजमेर
 (iii) परवेरिया- अजमेर
 (iv) पीपली – अजमेर
 (v) अरनिया – अजमेर
 (vi) सुराघाट – अजमेर
 (vii) झीलवाड़ा – अजमेर
3. दक्षिणी अरावली-
• दक्षिण अरावली का विस्तार राजसमंद, सिरोही व उदयपुर जिलों में हैं।
• दक्षिण अरावली की औसत ऊँचाई 900 मीटर है।
दक्षिण अरावली की प्रमुख चोटियाँ निम्नलिखित है–
 (i) गुरुशिखर (सिरोही) – 1,722 मीटर
 (ii) सेर (सिरोही) – 1,597 मीटर
 (iii) देलवाड़ा (सिरोही) – 1,442 मीटर
 (iv) जरगा (उदयपुर) – 1,431 मीटर
 (v) अचलगढ़ (सिरोही) – 1,380 मीटर
 (vi) कुम्भलगढ़ (राजसमंद) – 1,224 मीटर
 (vii) ऋषिकेश (सिरोही) – 1,017 मीटर
 (viii) कमलनाथ (उदयपुर) – 1,001 मीटर
 (ix) सज्जनगढ़ (उदयपुर) – 938 मीटर
 (x) सायरा (उदयपुर) – 900 मीटर
 (xi) लीलागढ़ (उदयपुर) – 874 मीटर
 (xii) नागपानी (उदयपुर) – 867 मीटर
 (xiii) गोगुन्दा (उदयपुर) – 840 मीटर
• राजस्थान में अरावली की सर्वाधिक ऊँची चोटियाँ सिरोही जिले में हैं जबकि राजस्थान में अरावली की सर्वाधिक चोटियाँ उदयपुर जिले में हैं।
❍ दक्षिण अरावली के प्रमुख दर्रे निम्नलिखित हैं–
 (i) केवड़ा की नाल – उदयपुर
 (ii) हाथी दर्रा – उदयपुर
 (iii) देबारी दर्रा – उदयपुर
 (iv) फुलवारी की नाल – उदयपुर
 (v) जीलवा / पगल्या नाल – उदयपुर
 (vi) हाथीगुढ़ा दर्रा – राजसमंद
 (vii) गोरम घाट – राजसमंद
 (viii) कामली घाट – राजसमंद
 (ix) सोमेश्वर दर्रा – पाली
 (x) स्वरूप घाट – पाली
 (xi) देसूरी की नाल – पाली
❍ अरावली के प्रमुख पठार-
(i) उड़िया का पठार-
• सिरोही में स्थित राजस्थान का सबसे ऊँचा पठार (1,360 मीटर)।
• राजस्थान का सबसे ऊँचा शहर माउण्ट आबू तथा सबसे ऊँची मीठे पानी की नक्की झील उड़िया के पठार पर स्थित है।
(ii) आबू का पठार–
• सिरोही में उड़िया का पठार के दक्षिण में स्थित राजस्थान का दूसरा सबसे ऊँचा पठार (1,295 मीटर ऊँचाई) है।
• स्थलाकृति की दृष्टि से आबू के पठार को इन्सेलबर्ग की संज्ञा दी गई है।
• आबू का पठार एक बैथोलिक संरचना का उदाहरण है। (बैथोलिक – ज्वालामुखी क्रिया के दौरान निकलने वाले मैग्मा के पृथ्वी के भीतर अत्यधिक गहराई पर गुम्बदाकार आकृति में जमाव से निर्मित संरचना।)
(iii) भोराठ का पठार-
• ये गोगुन्दा (उदयपुर) से कुम्भलगढ़ (राजसमंद) के मध्य स्थित 1,225 मीटर उच्च पठारी क्षेत्र है।
• राजस्थान का तीसरा सबसे ऊँचा पठार जो अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी के मध्य जल विभाजक का कार्य करता है। (उदयपुर की सबसे ऊँची चोटी जरगा भोराठ के पठार पर स्थित है।)
(iv) मेसा का पठार–
• चित्तौड़गढ़ में बेड़च तथा गम्भीरी नदियों द्वारा अपरदित पठार इसकी ऊँचाई 620 मीटर है।
• चित्तौड़गढ़ दुर्ग मेसा के पठार पर स्थित है, जिसका निर्माण चित्रांग्द मौर्य ने करवाया था।
(v) मानदेसरा का पठार- चित्तौड़गढ़
(vi) लसाड़िया का पठार-
• जयसमंद झील के पूर्व में स्थित उबड़ खाबड़ पठारी क्षेत्र (राजस्थान का सबसे कटा-फटा पठार है।)
(vii) काकनवाड़ी का पठार- अलवर
• अलवर का भानगढ़ दुर्ग तथा काकनवाड़ी दुर्ग काकनवाड़ी के पठार पर स्थित है।
(viii) भोमट का पठार-
• उदयपुर – डूंगरपुर – बाँसवाड़ा के मध्य स्थित पठारी क्षेत्र जहाँ भोमट जनजाति निवास करती है।
(ix) ऊपरमाल का पठार-
• बिजौलिया से भैंसरोड़गढ़ के मध्य स्थित पठार क्षेत्र।
(x) देशहरो का पठार-
• उदयपुर में जरगा तथा रागा की पहाड़ियों के मध्य स्थित वर्ष भर हरा भरा रहने वाला पठारी क्षेत्र।
❍ अरावली के प्रमुख पर्वत एवं पहाड़ियाँ-
 (i) भाकर- पूर्वी सिरोही में स्थित तीव्र ढाल वाली पहाड़ियाँ भाकर कहलाती है।
 (ii) गिरवा- उदयपुर के आस-पास पाई जाने वाली अर्द्धचंद्राकार या तश्तरीनुमा पहाड़ियों को स्थानीय भाषा में गिरवा कहा जाता है।
 (iii) मगरा- उदयपुर के उत्तर पश्चिम में स्थित अवशिष्ट पहाड़ियाँ मगरा कहलाती है। जैसे – माकड़ का मगरा, बांकी का मगरा, कामन मगरा, लेगा मगरा आदि।
 (iv) मेवल व देवलिया- डूंगरपुर, बाँसवाड़ा के मध्य स्थित पहाड़ियों को स्थानीय भाषा में मेवल कहा जाता है।
उत्तरी अरावली की पहाड़ियाँ-

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❍ मध्य अरावली की पहाड़ियाँ-
(i) बीठली की पहाड़ी (अजमेर) – बीठली की पहाड़ी पर स्थित तारागढ़ दुर्ग को गढ़ बीठली के नाम से भी जाना जाता है। बिशप महोदय ने तारागढ़ दुर्ग को ‘राजस्थान के जिब्राल्टर’ की संज्ञा दी।
(ii) मेरवाड़ा की पहाड़ियाँ (अजमेर)
❍ दक्षिणी अरावली की पहाड़ियाँ-
(i) मानगाँव की पहाड़ी – सिरोही
(ii) माण्डल की पहाड़ी – भीलवाड़ा
(iii) बिजौलिया की पहाड़ी – भीलवाड़ा
(iv) बीजासण की पहाड़ी – भीलवाड़ा
(v) कुकरा की पहाड़ियाँ राजसमंद (मेवाड़) तथा अजमेर (मेरवाड़ा) की सीमा का निर्धारण करती है।
(vi) कुकरा की पहाड़ी (राजसमंद)
(vii) पालखेड़ा पर्वत – चित्तौड़गढ़

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(x) जोलियां डूंगरी(xi) रायसीना की पहाड़ियाँ – दिल्ली

3. पूर्वी मैदानी प्रदेश

उत्पत्ति-
  यह मैदानी भाग अरावली के पूर्व में स्थित है, जिसका उत्तरी-पूर्वी भाग गंगा-यमुना के मैदानी भाग से मिला हुआ है। पूर्वी मैदानी प्रदेश की उत्पत्ति नूतन महाकल्प (चतुर्थक महाकल्प, नियोजोइक एरा) के प्लीस्टोसीन काल में गंगा तथा यमुना द्वारा लाई गई मृदा/ जलोढ़कों के निक्षेप/जमाव से हुई। यह मैदान संपूर्ण राज्य के लगभग एक चौथाई (23 प्रतिशत) भू-भाग को घेरे हुए हैं। जहाँ राज्य की पश्चिमी सीमा अरावली के पूर्वी ढालों द्वारा, उत्तरी सीमा 50 से.मी.. सम वर्षा रेखा द्वारा, इसकी दक्षिणी -पूर्वी सीमा विंध्यन पठार द्वारा बनाई जाती है। इस प्रदेश में दौसा, करौली, सवाईमाधोपुर, भरतपुर, धौलपुर, टोंक, जयपुर, अलवर, भीलवाड़ा, कोटा और बूंदी जिलों के मैदानी भाग आते हैं। इसका ढाल पूर्व एवं उत्तर-पूर्व में है। इसकी औसत ऊंचाई 400 से 550 मीटर तथा इस प्रदेश में 4,500 वर्ग किमी. पर बीहड़ों का विस्तार है। इसके पूर्वी भाग की गहराई पश्चिमी भाग की तुलना में अधिक है। इस मैदान के अंतर्गत चंबल बेसिन की निम्न भूमियाँ जैसे बनास का मैदान, मध्य माही मैदान अथवा छप्पन का मैदान सम्मिलित है। यह मैदान काँप मिट्‌टी से निर्मित है।
❍ विस्तार-
• पूर्वी मैदानी प्रदेश का राजस्थान में विस्तार मुख्यत: अरावली पर्वतमाला के पूर्व में है।
• पूर्वी मैदानी प्रदेश राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का 23.3% है।
• पूर्वी मैदानी प्रदेश में राजस्थान की कुल जनसंख्या का 40% निवास करता है।
• पूर्वी मैदानी प्रदेश में राजस्थान के 10 जिले अवस्थित हैं जो निम्न है- सवाई माधोपुर, करौली, धौलपुर, भीलवाड़ा, टोंक, भरतपुर, जयपुर, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ तथा बाँसवाड़ा।
• पूर्वी मैदानी प्रदेश का ढाल पश्चिम से पूर्व है।

❍ विशेषता-
• पूर्वी मैदानी प्रदेश भारतीय उच्चावच के उत्तरी विशाल मैदान का भाग है।
• उत्पत्ति के आधार पर (कालक्रम के अनुसार) पूर्वी मैदानी प्रदेश थार के मरुस्थल के पश्चात् दूसरा नवीन प्रदेश है।
• गंगा तथा यमुना द्वारा लाई गई मृदा के जमाव से निर्मित होने के कारण पूर्वी मैदानी प्रदेश में जलोढ़ मृदा (एल्फीसोल) का विस्तार है।
• जलोढ़ (एल्फीसोल) मृदा क्षेत्र होने के कारण पूर्वी मैदानी प्रदेश सर्वाधिक उपजाऊ तथा सर्वाधिक कृषि संभावना वाला भौतिक प्रदेश है।
• खनिज संपदा की दृष्टि से पूर्वी मैदानी प्रदेश राजस्थान का सर्वाधिक निर्धन भौतिक प्रदेश है।
• राजस्थान की अधिकांश जनसंख्या की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि होने के कारण पूर्वी मैदानी प्रदेश राजस्थान का सर्वाधिक जनघनत्व वाला भौतिक प्रदेश है।
• पूर्वी मैदानी प्रदेश की औसत वर्षा 60-80 से.मी. है तथा यह जलवायु की दृष्टि से उप-आर्द्र जलवायु प्रदेश में शामिल है।
• पूर्वी मैदानी प्रदेश में सिंचाई का प्रमुख साधन नलकूप तथा कुएँ है।
• पूर्वी मैदानी प्रदेश में मत्स्य औद्योगिक क्षेत्र (अलवर) तथा विश्वकर्मा औद्योगिक क्षेत्र (जयपुर) में स्थित है।
❍ पूर्वी मैदानी प्रदेश का वर्गीकरण-
• भौगोलिक संरचना के आधार पर पूर्वी मैदानी प्रदेश को तीन भागों में विभाजित किया गया हैं-
(i) चंबल बेसिन
(ii) बनास-बाणगंगा बेसिन
(iii) माही बेसिन
(i) चंबल बेसिन-
• चंबल बेसिन की सबसे प्रमुख भौगोलिक विशेषता बीड़ है।
❍ बीड़-
• चंबल नदी द्वारा अवनलिका अपरदन से निर्मित उत्खात स्थलाकृति जिसमें घने जंगल पाए जाते हैं बीहड़ कहलाता है।
• बीहड़ की चंबल (कोटा) से यमुना नदी (उत्तर प्रदेश) तक कुल लम्बाई 480 कि.मी. है तथा यह 4,500 वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल में विस्तृत है।
• राजस्थान में बीहड़ का मुख्य रूप से विस्तार सवाईमाधोपुर, करौली तथा धौलपुर जिलों में है।
• राजस्थान में बीहड़ का सर्वाधिक घनत्व धौलपुर जिले में है, जबकि बीहड़ का सर्वाधिक विस्तार सवाईमाधोपुर जिले में है।
• सवाईमाधोपुर – धौलपुर – करौली जिलों में विस्तृत बीहड़ क्षेत्र में दस्यु (डाकू) निवास करते हैं इस कारण इसे डांग प्रदेश की संज्ञा दी गई है।
इस प्रदेश की प्रमुख भू-आकृतिक विशेताषाएँ निम्न हैं-
 यह चंबल बेसिन क्षेत्र उत्खात स्थलाकृतियों व बीहड़ों के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध हैं जिसे डांग कहते हैं। इस बेसिन की दक्षिणी सीमा काली सिंध और पार्वती नदियों के साथ बनती है।
• डांग प्रदेश के सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु प्रमुख योजनाएँ संचालित की जा रही है-
❍ कन्दरा क्षेत्र विकास कार्यक्रम-
• केंद्र सरकार द्वारा 1987-88 से कन्दरा क्षेत्र विकास कार्यक्रम राजस्थान के भरतपुर तथा कोटा संभाग के आठ जिलों (भरतपुर-धौलपुर, करौली, सवाईमाधोपुर, कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़) में आर्थिक-सामाजिक विकास एवं डांग क्षेत्र में निवास करने वाले लोगों को समाज की मुख्य धारा में जोड़ने के लिए संचालित की जा रही है।
❍ डांग क्षेत्र विकास कार्यक्रम-
• इसे सर्वप्रथम 1995-96 में राजस्थान के दस्यु प्रभावित जिन 8 जिलों में शुरु किया गया था वे निम्न है- सवाईमाधोपुर, कोटा, बारां, बूंदी, करौली, भरतपुर, धौलपुर तथा झालावाड़। वित्तीय प्रावधान समाप्त हो जाने के कारण इस कार्यक्रम को बंद कर दिया गया था। परंतु वर्ष 2004-05 के बजट में राज्य सरकार ने डांग विकास परियोजना को डांग क्षेत्र के सर्वांगीण विकास हेतु पुन: प्रारंभ करने की घोषणा की। इस योजना के प्रमुख उद्देश्य दस्युओं से प्रभावित क्षेत्र (डांग क्षेत्र) की आवश्यकता के अनुरूप सामाजिक-आर्थिक तथा आधारभूत सुविधाओं के विकास के साथ-साथ रोजगार के अवसर सृजित करना है।
(ii) बनास-बाणगंगा बेसिन-
• बनास बाणगंगा बेसिन को चार मैदानी प्रदेशों में विभाजित किया गया है जो निम्नलिखित हैं –
1. रोही का मैदान – जयपुर से भरतपुर के मध्य बाणगंगा तथा यमुना नदियों के मध्य स्थित मैदानी प्रदेश, जिसे रोही दोआब प्रदेश के नाम से जाना जाता है।
2. मालपुरा – करौली मैदान –मालपुरा (टोंक) से करौली के मध्य बनास तथा बाणगंगा नदियों के मध्य स्थित दोआब प्रदेश
3. खैराड़ प्रदेश – जहाजपुर (भीलवाड़ा) से टोंक के मध्य बनास नदी द्वारा निर्मित मैदान।
4. पीडमान्ट का मैदान – देवगढ़ (राजसमंद) से भीलवाड़ा के मध्य बनास नदी द्वारा निर्मित अवशिष्ट पहाड़ी युक्त मैदान है।
इस प्रदेश की प्रमुख भू-आकृतिक विशेषताएं निम्न हैं-
(i) यह मैदानी क्षेत्र कहीं पूर्ण समतल हैं तो कहीं कटा-फटा, किन्तु संपूर्ण क्षेत्र जलोढ़ मृदा का जमाव है, जो कृषि के लिए उपयुक्त है।
(ii) यह क्षेत्र प्री-कैम्ब्रियन शैलों से बना हैं, जिसमें पूर्वी भाग बुंदेलखंड नीस तथा उत्तर एवं दक्षिण में शिस्ट का जटिल स्वरूप तथा शेष भाग में अरावली शिस्ट और नीस का विस्तार है।
(iii) यहाँ की भूगर्भिक बनावट बुन्देलखण्ड नीस, अरावली क्रम, देहली क्रम तथा विंध्यन शैलों से युक्त हैं, जिनका आपसी संबंध जटिल विविध शैल स्वरूपों को जन्म देता है जिनमें अनेक प्रकार के खनिज उपलब्ध होते हैं।
(iv) इस प्रदेश के बीच-बीच में छोटी-छोटी पहाड़ियाँ पाई जाती है। इस प्रदेश में फ्लोराइड, चूना पत्थर, एस्बेस्टास,गारनेट, सीसा-जस्ता व अभ्रक मिलता है।
(iii) माही बेसिन-
• राजस्थान के दक्षिणी भाग में माही नदी के आस-पास का क्षेत्र जिसे माही बेसिन के नाम से जाना जाता है। माही बेसिन को तीन मैदानी प्रदेशों में विभाजित किया गया है जो निम्नलिखित है–
1. छप्पन का मैदान – यह प्रतापगढ़ से बाँसवाड़ा के मध्य माही नदी के किनारे स्थित छप्पन गाँवों या नदी-नालों का समूह हैं।
2. कांठल का मैदान – यह प्रतापगढ़ में स्थित माही नदी का तटवर्ती मैदान है।
3. वागड़ प्रदेश – यह डूंगरपुर व बाँसवाड़ा के मध्य स्थित माही नदी द्वारा निर्मित विखंडित पहाड़ी क्षेत्र है।
इस प्रदेश की प्रमुख भू-आकृतिक विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(i) इस प्रदेश में ग्रेनाइट व नीस की आर्कियन युगीन शैल, अरावली क्रम की क्वार्टजाइट एवं शिस्ट तथा इओसीन युग की दक्कन ट्रेप चट्टानें पाई जाती हैं।
(ii) इस प्रदेश की उत्तरी सीमा राज्य के उदयपुर व प्रतापगढ़ जिलों से संयुक्त हैं, जबकि पूर्वी सीमा मध्यप्रदेश व दक्षिणी-पश्चिमी सीमा गुजरात से मिलती हैं।
(iii) माही बजाज सागर बाँध से उपलब्ध सिंचाई सुविधाओं के कारण यह महत्त्वपूर्ण कृषि क्षेत्र बना हुआ है।
(iv) यह मैदान एक असमतल मैदान हैं, क्योंकि अरावली का दक्षिण छोर यहाँ पहुँचता है, जिसके कारण अनेक छोटी-छोटी पहाड़ियाँ इसे असमतल कर देती हैं।

4. दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश

• प्राचीन काल में दक्षिण पूर्वी पठारी प्रदेश पर हाड़ा वंश का क्षेत्राधिकार होने के कारण इसे हाड़ौती का पठार कहा जाता है।
• दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश की उत्पत्ति मध्यजीवी महाकल्प (मिसोजोइक एरा या द्वितीयक महाकल्प) के क्रिटेशियस काल में गोंडवाना लैंड में ज्वालामुखी क्रिया के दरारी उद्गार से निकले लावा के जमाव से हुई है।
• हाड़ौती का पठार प्रायद्वीपीय पठारी प्रदेश के मालवा के पठार का उत्तरी भाग है, जिसका विस्तार राजस्थान के दक्षिण-पूर्व में है। इस कारण इसे दक्षिणी-पूर्वी पठारी प्रदेश कहा जाता है।
• अक्षांशीय दृष्टि से हाड़ौती के पठार का विस्तार 23°51′ उत्तरी अक्षांश से 25°27′ उत्तरी अक्षांश के मध्य है। देशांतरीय दृष्टि से हाड़ौती के पठार का विस्तार 75°15′ पूर्वी देशांतर से 77°25′ पूर्वी देशांतर के मध्य है।
• हाड़ौती के पठार का विस्तार राजस्थान के चार जिलों कोटा, बूंदी, बारां तथा झालावाड़ में हैं।
• हाड़ौती के पठार का क्षेत्रफल 24,185 वर्ग कि.मी. है जो राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का 6.49% है। क्षेत्रफल की दृष्टि से हाड़ौती का पठार राजस्थान का सबसे छोटा भौतिक प्रदेश है। हाड़ौती के पठार की औसत ऊँचाई 500 मीटर है तथा ढाल दक्षिण से उत्तर है।
• हाड़ौती के पठार में राजस्थान की कुल जनसंख्या का लगभग 10% भाग निवास करता है।
❍ हाड़ौती का पठार-
• राजस्थान के दक्षिण-पूर्व में स्थित मालवा के पठार के उत्तरी भाग हाड़ौती पठार की विशेषताएं निम्नलिखित है–
(i) हाड़ौती का पठार अरावली पर्वतमाला तथा विन्ध्याचल के मध्य स्थित एक संक्रांति प्रदेश है जो अरावली-विन्ध्याचल- प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्र का संक्रमण स्थल है।
(ii) हाड़ौती के पठार में बूंदी से सवाईमाधोपुर के मध्य एक भ्रंश घाटी स्थित है, जिसे महान् सीमा भ्रंश या ग्रेट बाउंड्री फॉल्ट की संज्ञा दी गई है।
(iii) हाड़ौती के पठार में ज्वालामुखी क्रिया से निकले लावा के विखण्डन से निर्मित काली मृदा (वर्टीसोल) का विस्तार है।
(iv) हाड़ौती के पठार में ज्वालामुखी के दरारी उद्गार से निर्मित क्रिटेशियस कालीन बैसाल्ट चट्टानों का विस्तार है। इस कारण हाड़ौती के पठार में बलुआ पत्थर तथा एल्युमिनियम के भण्डार पाए जाते हैं।
(v) राजस्थान में सर्वाधिक नदियाँ हाड़ौती के पठार में प्रवाहित होती हैं, जिसमें राजस्थान का सबसे बड़ा अपवाह तंत्र चंबल नदी तंत्र भी शामिल है। इस कारण हाड़ौती के पठार में जल द्वारा मृदा अपरदन की समस्या सर्वाधिक है।
(vi) हाड़ौती के पठार की प्रमुख नदी चंबल नदी है जो दक्षिण से उत्तर दिशा में बहती है।
(vii) नदियों की अधिकता के कारण हाड़ौती के पठार में विशेष प्रकार का अपवाह श्रेणी अन्त: अस्पष्ट- अधर प्रवाह तंत्र पाया जाता है।
(viii) राजस्थान में हाड़ौती के पठार दक्षिण-पश्चिम मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा से प्रवेश करती है।
(ix) राजस्थान में दक्षिण-पश्चिमी मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा से लगभग 90% वर्षा होती है। इस कारण हाड़ौती का पठार राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा तथा सर्वाधिक आर्द्रता वाला भौतिक प्रदेश है जहाँ 80 से.मी. से अधिक वर्षा होती है तथा अति आर्द्र जलवायु पाई जाती है।
(x) मुख्य रूप से सोयाबीन, धनिया, कपास, गन्ना आदि फसलों का उत्पादन हाड़ौती के पठार में होता है।
(xi) राजस्थान में सहरिया जनजाति हाड़ौती के पठार के अंतर्गत बारां जिले में निवास करती है।
(xii) कोटा को राजस्थान की औद्योगिक नगरी कहा जाता है। इन्द्रप्रस्थ औद्योगिक क्षेत्र कोटा में स्थित है।
उच्चावच के आधार पर हाड़ौती को दो भागों में विभाजित किया गया है
A. विन्ध्य कगार क्षेत्र
B. दक्कन का पठार (दक्षिण का पठार)
(A) विन्ध्य कगार क्षेत्र-
• बनास एवं चंबल नदियों के मध्य दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व में बलुआ पत्थर निर्मित संरचना विंध्य कगार क्षेत्र कहलाती है।
• कोटा, बूंदी, बारां जिलों में विन्ध्य कगार क्षेत्र का विस्तार हैं।
• भौगोलिक संरचना के आधार पर विंध्य कगार क्षेत्र को पाँच भागों में विभाजित किया गया है-
(1) अर्द्धचन्द्राकार पहाड़ियाँ-
(i) बूंदी की पहाड़ियाँ- बूंदी जिले में स्थित 96 कि.मी. लम्बी अर्द्ध चन्द्राकार पहाड़ियाँ जिसकी सर्वोच्च चोटी सतूर (353 मीटर) है।
(ii) मुकुन्दरा की पहाड़ियाँ- कोटा- झालावाड़ में 120 कि.मी. लम्बी विस्तृत पहाड़ियाँ जो विन्ध्याचल का भाग है। मुकुन्दरा की पहाड़ियों की सर्वोच्च चोटी चाँदबाड़ी (517 मीटर) है।
(iii) कुण्डला की पहाड़ियाँ- कोटा के आस-पास कुण्डल के आकार की पहाड़ियाँ कुण्डला की पहाड़ियाँ कहलाती हैं।
(iv) रामगढ़ की पहाड़ियाँ- बूंदी से बारां के मध्य स्थित पहाड़ियाँजिसे बूंदी जिले में घोड़े के नाल के आकार की पहाड़ियाँ (हॉर्स -सू) कहा जाता है।
• रामगढ़ की पहाड़ियाँ पर्यटन की दृष्टि से राजस्थान का पहला भू-विरासत स्थल (जियो हेरिटेज स्थल) है।
(2) शाहबाद उच्च भूमि क्षेत्र-
• बारां के पूर्वी क्षेत्र में 450 मीटर उच्च भूमि क्षेत्र जहाँ सहरिया जनजाति निवास करती है, शाहबाद उच्च भूमि क्षेत्र कहलाता है।
• शाहबाद उच्च भूमि क्षेत्र की सबसे ऊँची चोटी काम्बा (456 मीटर), बारां जिले में स्थित है।
(3) नदी निर्मित मैदान-
• कोटा-बूंदी में चंबल तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा निर्मित मैदान
(4) डग-गंगधार के उच्च क्षेत्र
• हाड़ौती पठार को इस उपविभाजन के अलावा भी विंध्यन कगार भूमि तथा दक्कन का लावा पठार में विभाजित।
• दक्षिणीपश्चिमी क्षेत्रजिसका क्षेत्रफल लगभग 1,430 वर्ग किलोमीटर है। यह क्षेत्र अलगअलग पहाड़ियों में विस्तृत है।
(5) झालावाड़ का पठार
• झालावाड़ का पठार दक्षिणी हाड़ौती क्षेत्र में है जो मालवा के पठार का उत्तरी भाग है।
• इस क्षेत्र की सामान्यतऊँचाई 300 से 450 मीटर है। जिसमें छोटीछोटी पहाड़ियाँ विस्तृत है ।
 (B) दक्कन का पठार (दक्षिण का पठार)-
• झालावाड़ जिले में विस्तृत मालवा के पठार के उत्तरी भाग को झालावाड़ के पठार के नाम से जाना जाता है।
• डगगंगधार प्रदेश- झालावाड़ के दक्षिणपश्चिम में स्थित 350 मीटर उच्च भूमि क्षेत्र डगगंगधार प्रदेश कहलाता है।
❍ हाड़ौती के पठार के प्रमुख दर्रे-
1. रामगढ़-खटगढ़ दर्रा
2. बूंदी दर्रा
3. लाखेरी दर्रा
4. जैतवास दर्रा
• उपरोक्त चारों दर्रे बूंदी जिले में स्थित हैं।
❍ दक्षिणी-पूर्वी पठार की विशेषताएं-
(i) यह प्रदेश धरातलीय दृष्टि से दक्षिण के प्रायद्वीप पठार का ही भाग है।
(ii) यह पूरा प्रदेश लावा मिश्रित शैल एवं विन्ध्यन शैलों का सम्मिश्रण है।
(iii) इसका ढाल उत्तर-पूर्व की ओर है। इस छोटे से प्रदेश में अत्यधिक धरातलीय तथा उच्चावचीय विविधता पाई जाती है।
(iv) हाड़ौती के पठार पर अर्द्धचंद्राकार रूप में पर्वत की श्रेणियों का विस्तार है, जो क्रमश: बूंदी व मुकुंदरा श्रेणियों के नाम से जानी जाती है। यह पठार उत्तर-पूर्व में इंद्रगढ़ से आरंभ होकर लाखेरी-बूंदी होता हुआ इस प्रदेश के दक्षिणी-पश्चिमी मध्य भाग तक फैला हुआ है।
(v) यह पठारी भाग अरावली एवं विंध्याचल पर्वत के बीच संक्रांति प्रदेश (Transitional Belt) है।
(vi) इस पठार के उत्तरी क्षेत्र में अरावली क्रमवाली शिस्ट की प्रधानता है, साथ ही कुछ क्वार्टजाइट के अवशिष्ट देहलीक्रम के भी हैं। बूंदी के निकट ऊपरी विंध्यन सैंडस्टोन अरावली शिस्ट के साथ मिश्रित हो गया है।
(vii) इस पठार पर काली मिट्‌टी का सर्वाधिक जमाव पाया जाता है। साथ ही चंबल और उसकी सहायक कालीसिंध, परवन, पार्वती नदियों ने जलोढ़ मैदानों का निर्माण किया है।
(viii) बारां व कोटा में शैलों की बनावट दक्कन ट्रेप वाली है।

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राजसस्थान मे भौतिक प्रदेश कितने हैं?

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राजस्थान को कितने भौगोलिक क्षेत्र में बांटा गया है?

राजस्थान को चार मुख्य भौगोलिक क्षेत्रों में विभाजित किया गया है:

राजस्थान में कर्क रेखा की लम्बाई कितनी है?

कर्क रेखा बांसवाड़ा जिले से होकर गुजरती है और बांसवाड़ा जिले में इसकी लंबाई लगभग 26 किलोमीटर बताई जाती है।

निष्कर्ष

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