नौकरशाही क्या है? अर्थ, सिद्धांत, भूमिका

नमस्कार आज हम सामान्य ज्ञान के महत्वपूर्ण अध्याय यानि नौकरशाही के बारे में अध्ययन करेंगे। इस अध्ययन के दौरान हम अध्याय से समबन्धित विभिन्न बिन्दुओ का अध्ययन करेंगे जैसे नौकरशाही क्या हैं? नौकरशाही किसे कहते हैं? नौकरशाही के प्रकार, नौकरशाही के सिद्धांत, अर्थ, भूमिका इत्यादि के बारे में चर्चा करेंगे।

नौकरशाही क्या है?

नौकरशाही वर्तमान विश्व की एक प्रमुख विशेषता के रूप में उभरकर आई है। लगभग हर क्षेत्र में, चाहे वे सार्वजनिक अथवा निजी बड़े संगठन हो अथवा विकसित या अविकसित देश हो, सभी में कार्य सम्पन्न करने हेतु एकाधिक संख्या में कार्मिकों की नियुक्ति की जाती हैं।

– आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन व्यापक रूप से नौकरशाही संगठनों से प्रभावित होता है।

– नौकरशाही की प्रवृत्ति राजकीय शासन के क्षेत्र में सर्वाधिक व्यापक हुई है।

– नौकरशाही अंग्रेजी भाषा का शब्द ‘Bureaucracy (ब्यूरोक्रेसी)’ फ्रांसीसी भाषा के शब्द ‘Bureau’ (ब्यूरो) से बना है, जिसका अर्थ ड्रॉअर वाली लिखने की मेज या डेस्क था। जिसका आशय एक विभागीय उपसंभाग अथवा विभाग से है।

– ‘नौकरशाही’ शब्द के सर्वप्रथम प्रयोग का श्रेय फ्रांसीसी विचारक विन्सेंट डी. गॉरनी (1745 ई.) को जाता है। उन्होंने इस शब्द को शिकायत के रूप में प्रयुक्त किया।

– यूरोप में यह शब्द साधारणत: नियमित सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए प्रयुक्त किया जाता था।

– आगे चलकर ब्यूराक्रेसी शब्द का प्रयोग विशेष प्रकार की निरंकुशतावादी, संकुचित दृष्टिकोण एवं सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों की स्वेच्छाचारिता वाली सरकार के लिए किया जाने लगा।

– नौकरशाही प्रत्येक प्रशासन का एक अनिवार्य अंग है।

– नौकरशाही को सरकार का चौथा अंग कहा जाता है।

– नौकरशाही शब्द का प्रयोग देशकाल के अनुसार बदलता रहा है।

– नौकरशाही में प्राय: प्रशिक्षित और अनुभवी प्रशासक होते हैं। उनमें एक जातिगत भावना होती है तथा वे लालफीताशाही एवं औपचारिकताओं पर अधिक जोर देते हैं।

भारत में नौकरशाही का विकास

– भारत में सिविल सेवाओं का विकास औपनिवेशिक शासन की देन है लेकिन सिविल सेवाओं की आवश्यकता एवं संगठन प्राचीन काल से ही माना जाता है। इस संबंध में चाणक्य का ‘अर्थशास्त्र’ एक सर्वोत्तम प्राचीन ग्रंथ है।

– भारत में अंग्रेजी शासन के दौरान सरकारी प्रशासन में नौकरशाही का प्रभुत्व एवं सर्वोपरिता थी।

– भारत में अंग्रेजी शासन काल से ही प्रशासन के सर्वोच्च स्तर पर आई. सी. एस. अधिकारियों का प्रभुत्व रहा है। आई. सी. एस. सेवा का सदस्य होना समाज में प्रतिष्ठा एवं गरिमा का प्रतीक माना जाता था और आज भी माना जाता है।

– देश की आजादी के पश्चात् आई. सी. एस. सेवा को आई. ए. एस. (भारतीय प्रशासनिक सेवा) के नाम से जाना जाने लगा।

– आई. ए. एस. अफ़सरों का समूह (जमात) को कुशल एवं सक्षम प्रशासन का प्रतिरूप स्वीकार कर लिया गया। इन्हीं नौकरशाही ने उच्चतम शासकीय पदों को सुशोभित किया एवं सम्पूर्ण सरकारी प्रशासन पर अपना नियंत्रण कायम रखा है।

– इंग्लैण्ड के सर रॉबर्ट पील ने सरकारी कर्मचारियों के लिए पहली बार ‘लोक सेवक’ शब्द का प्रयोग किया।

– भारत में लोक सेवा में व्यापक सुधार गवर्नर जनरल लॉर्ड कार्नवालिस (1785-1793 ई.) ने किए।

– भारत में योग्यता आधारित आधुनिक सिविल सेवा की अवधारणा सन् 1854 में ब्रिटिश पार्लियामेंट की प्रवर समिति की सिफारिशों के बाद साकार हुई।

– कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि ईस्ट इंडिया कंपनी की संरक्षण आधारित प्रणाली के स्थान पर प्रतियोगी परीक्षा द्वारा प्रवेश के साथ योग्यता आधारित स्थाई सिविल सेवा प्रणाली स्थापित की जानी आवश्यक है।

– ब्रिटिश सरकार ने भारतीय लोक सेवकों के संबंध में सुधार हेतु सुझाव देने के लिए सन् 1912 में ‘रॉयल कमीशन’ का गठन किया जिसके अध्यक्ष लॉर्ड इस्टीलंटन थे।

– रॉयल कमीशन (इस्टीलंटन आयोग) द्वारा अपनी रिपोर्ट में निम्नलिखित सिफारिशें की गई –

1. उच्च लोक सेवा पदों पर भर्ती आंशिक रूप से भारत में एवं आंशिक रूप से इंग्लैण्ड में एक साथ प्रतियोगी परीक्षा कराने का समर्थन नहीं किया, जो कि भारतीयों की प्रमुख माँग थी।

2. उच्च पदों के 25 प्रतिशत पदों पर भारतीयों की नियुक्ति की जाए जिसमें से कुछ पद सीधी भर्ती द्वारा एवं कुछ पद पदोन्नति द्वारा भरे जाएं।

3. भारतीय सरकार के अधीन लोक सेवाओं को दो वर्गों – क्लास-I एवं क्लास-II में वर्गीकृत किया जाए।

4. सीधी भर्ती द्वारा नियुक्त अधिकारियों को 2 वर्ष के परिवीक्षा समय पर रखा जाए। आई. सी. एस. सेवाओं हेतु यह प्रोबेशन समयावधि 3 वर्ष रखी जाए।

– 1919 में माण्टेग्यू – चेम्सफोर्ट रिपोर्ट प्रकाशित की गई।

– इस्टीलंटन आयोग रिपोर्ट एवं माण्टेग्यू – चेम्सफोर्ट रिपोर्ट के आधार पर भारत शासन अधिनियम, 1919 में यह प्रावधान किया गया कि भारतीय सिविल सेवा परीक्षाएँ भारत में आयोजित की जाएगी जिनके आयोजन हेतु एक ‘सिविल सेवा आयोग’ का गठन होगा।

– वर्ष 1922 में सर्वप्रथम भारत में आई. सी. एस. परीक्षा का आयोजन ‘इलाहाबाद’ में हुआ।

– भारतीय उच्च सिविल सेवाओं पर सलाह देने हेतु ब्रिटिश सरकार ने सन् 1923 ई. में लॉर्ड ली की अध्यक्षता में ली कमीशन का गठन किया गया।

– सन् 1926 में दिल्ली में लोक सेवा आयोग का गठन किया गया। यह आयोग लोक सेवाओं में भर्ती की प्रक्रिया संपन्न करता था।

– आई. सी. एस. की तरह ही देश की स्वतंत्रता से पूर्व उच्च स्तरीय पुलिस अधिकारी ‘भारतीय (इंपीरियल) पुलिस सेवा’ से संबंधित थे जिनकी नियुक्ति ‘सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फॉर इंडिया’ द्वारा प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से की जाती थी।

– भारतीय (इंपीरियल) पुलिस सेवा में भारतीयों के लिए खुली भर्ती 1920 के बाद ही प्रारम्भ की गई।

– सन् 1921 में पुलिस सेवा हेतु प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन इंग्लैण्ड के साथ-साथ भारत में भी प्रारम्भ किया गया।

– स्वतंत्रता के पश्चात् 1966 ई. में ‘भारतीय वन सेवा’ (IFS) के नाम से तीसरी अखिल भारतीय सेवा (IAS एवं IPS के बाद) का गठन किया गया।

नौकरशाही के प्रकार

– मैक्स वेबर ने नौकरशाही के ‘आदर्श रूप’ की अवधारणा पेश की।

– मैक्स वेबर ने नौकरशाही को प्रशासन की एक ऐसी व्यवस्था माना है जिसकी विशेषता – विशेषज्ञता, निष्पक्षता और मानवता का अभाव।

 एफ.एम. मार्क्स ने नौकरशाही के चार रूप बताए-

(i) अभिभावक नौकरशाही :-

– यह नौकरशाही अपने आपको लोकहित का अभिरक्षक मानती थी किन्तु लोकमत से स्वतन्त्र थी तथा उसके प्रति उत्तरदायी भी होती थी।

(ii) जातीय नौकरशाही :-

– ऐसी व्यवस्थाओं में वे ही व्यक्ति सरकारी अधिकारी हो सकते हैं जो उच्चतर वर्गों या जातियों के होते हैं वहाँ जातीय नौकरशाही पाई जाती है।

– इस नौकरशाही का आधार वर्ग विशेष होता है।

उदाहरण – प्राचीन भारत में ब्राह्मण और क्षत्रिय ही उच्चाधिकारी हो सकते थे।

(iii) संरक्षक नौकरशाही :-

– यह नौकरशाही का वह रूप है जिसमें लोक सेवकों की नियुक्ति उनकी तुलनात्मक योग्यता के आधार पर नहीं की जाती, वरन नियोक्ता और प्रत्याशियों के राजनीति संबंधों के आधार पर की जाती है।

– इस प्रकार की नौकरशाही में चुनाव में विजया दल अपने समर्थकों को ऊँचे पदों पर नियुक्त करता है इसे लूट पद्धति कहा जाता है – यह अमेरिका में प्रचलित है।

(iv) योग्यता नौकरशाही :-

– यह नौकरशाही का वह रूप जिसमें प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति योग्यता के आधार पर की जाती है, योग्यता नौकरशाही कहलाती है।

– इसके अन्तर्गत व्यक्तियों की जाँच हेतु निष्पक्ष तथा वस्तुगत परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं।

– इसका लक्ष्य प्रतिभा के लिए खुला पेशा है।

– इसमें लोक सेवक निष्पक्ष व तटस्थ होकर संविधान के प्रति प्रतिब्धता के साथ कार्य करते है।

– वर्तमान में भारत सहित विश्व के अधिकांश देशों में इसी नौकरशाही देशों का प्रचलन है।

नौकरशाही की विशेषताएँ :-

(i) कानून व नियमों में अटूट विश्वास – नौकरशाही संगठन में अधिकारी वर्ग की सत्ता कानून पर आधारित होती हैं कानून के अनुसार ही प्रत्येक अधिकारी कार्यों को पूरा करने के लिए जवाबदेय होता है।

(ii) कानून के शासन के अनुसार कार्य संचालन – नौकरशाही में सरकारी अधिकारी विधि के अनुसार काम करते है।

 – इनका व्यवहार कानून के अनुकूल होता है प्रशासनिक विधि, नियम, निर्णय आदि लिखित रूप में रहते हैं।

(iii) प्राविधिक विशेषता :- नौकरशाही के काम करने का एक विशिष्ट ढंग होता है।

 – वर्षों से जो संगठन कार्यरत है उनकी अपनी विशेषता स्थापित हो जाती है एक सरकारी कर्मचारी अपना समस्त जीवन एक विशिष्ठ कार्य में लगा देता है।

(iv) पदसोपान का सिद्धान्त :- नौकरशाही पदसोपान के सिद्धान्त के आधार पर गठित होती है इनमें आदेश ऊपर से नीचे की और चलता है।

– प्रत्येक अधीनस्थ अधिकारी अपने उच्च अधिकारी के प्रति उत्तरदायी होता है तथा उसी के निर्देशन और नियन्त्रण में कार्य करता है।

(v) कार्यों का बुद्धिमत्तापूर्ण विभाजन करना – नौकरशाही का प्रमुख गुण यह है कि इसमें नियोजित और बुद्धिमत्तापूर्ण ढ़ंग से कार्यों के विभाजन की व्यवस्था की जाती है।

– इसमें श्रम-विभाजन से प्रत्येक पद को कानूनी सत्ता प्रदान की जाती है ताकि वह अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें।

(vi) निष्पक्ष कार्य प्रणाली :- नौकरशाही के अन्तर्गत कार्यों का विभाजन कार्मिक संगठन के मध्य से होता है जिससे प्रत्येक कर्मचारी अपने-अपने कार्यों को निष्पक्ष एवं सही तरीके से कार्य करते हैं।

नौकरशाही के दोष :-

(i) सार्वजनिक नियंत्रण का अभाव :- इसमें लोक कर्मचारियों के प्रभावशाली जन नियंत्रण की परिधि से बाहर रहते हैं।

– जनता द्वारा उनके कार्यों की आलोचना का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, क्योंकि उन्हें शासन वर्ग का समर्थन प्राप्त हेाता है।

(ii) अधिकारियों का असीमित नियंत्रण :- नौकरशाही में अधिकारियों का नियंत्रण आवश्यकता से अधिक होता है, इस नियंत्रण के कारण जनता के मौलिक अधिकारों पर संकट उत्पन्न हो जाता हैं।

(iii) प्रजातंत्रात्मक प्रणाली की विरोधी :-

– नौकरशाही व्यवस्था प्रजातंत्रात्मक शासन प्रणाली के भौतिक सिद्धान्तों के विरूद्ध है।

– इस व्यवस्था में अधिकारी वर्ग धीरे-धीरे अपनी शक्ति बढ़ा लेता है और कर्मचारी वर्ग सेवक के स्थान पर मालिक बनने का सपना देखता है।

(iv) लालफीताशाही :- इसमें लालफीताशाही पाई जाती है चाहे कितनी भी शीघ्रता का कार्य क्यों न हो, ये कानून की दुहाई देकर उसकी चिन्ता नहीं करते है। सार्वजनिक कार्यों में इसी कारण बहुत देर लगती है।

 – उच्च अधिकारी अपने ऊपर कोई उत्तरदायित्व नहीं लेना चाहते, इसलिए कार्य को इधर-उधर घुमाते रहते हैं।

(v) व्यक्तिगत महत्व पर बल :- नौकरशाही में पदाधिकारी अपने महत्व का प्रदर्शन करना चाहते है।

नौकरशाही के दोषों को दूर करने के उपाय :-

(i) सत्ता का विकेन्द्रीकरण :-

 नौकरशाही की सत्ता पर नियंत्रण रखने के लिए सत्ता का विकेन्द्रीकरण आवश्यक है

(ii) संसद तथा मंत्रिपरिषद् पर नियंत्रण :- लोक सेवा के कर्मचारियों पर यदि संसद तथा मंत्रिपरिषद् का नियंत्रण रहेगा, तो वे किसी भी प्रकार की मनमानी नहीं कर सकते।

(iii) प्रशासकीय न्यायाधिकरणों की स्थापना :- एक ऐसे प्रशासकीय मण्डल की स्थापना होनी चाहिए जिसके सम्मुख नागरिक लोक सेवा के कर्मचारियों के विरुद्ध अपनी शिकायत कर सकें।

 – इस व्यवस्था के द्वारा लोक सेवा में कर्मचारी सार्वजनिक उत्तरदायित्व का अनुभव करेंगें।

अन्य सुझाव :-

(i) लोक सेवा को प्रत्येक नागरिक के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए।

(ii) लोक सेवा में सामाजिक वर्गों के विभिन्न प्रतिनिधि होने चाहिए।

(iii) शासित एवं शासकों के मध्य सर्म्पक बनाए रखने के लिए पत्र व्यवहार की व्यवस्था होनी चाहिए।

(iv) प्रशासन के कार्यों में गैर सरकारी मनुष्य को भी सतत् रूप से भाग लेना चाहिए।

– नौकरशाही की समयानुसार प्रशंसा भी करनी चाहिए किन्तु उसकी अनावश्यक आलोचना के प्रति भी सतर्क रहना चाहिए।

– नौकरशाही आधुनिक युग की अनिवार्य आवश्यकता है इसे समाप्त नहीं किया जा सकता है।

– केवल नौकरशाही पर अवरोध लगाना ही पर्याप्त होगा, जिससे वह अपने को जनता का सेवक समझे।

लोक सेवाएँ

 अंग्रेजों के शासनकाल में भारत में लोक सेवाओं का विकास निम्नलिखित रूप में हुआ –

– 1854 में एक आयोग ‘इंडियन सिविल सर्विसेज कमेटी’ का गठन किया गया था, जिसकी अध्यक्षता मैकाले द्वारा की गई थी। इस आयोग का उद्देश्य लोक सेवकों की नियुक्ति प्रतियोगी परीक्षा के आधार पर कराने के संबंध में सुझाव देना था।

– 1855 में लंदन में भारतीय सिविल सेवा की पहली प्रतियोगी परीक्षा आयोजित की गई।

– वे सेवाएँ जो भारत की केन्द्रीय सरकार के प्रत्यक्ष नियंत्रण में थीं, उन्हें केन्द्रीय सेवाओं का नाम दिया गया तथा इन सेवाओं में नियुक्ति गवर्नर जनरल के द्वारा की जाती थी। सिविल सेवाओं को ऐसा व्यवस्थित रूप भारत शासन अधिनियम के द्वारा प्रदान किया गया।

– 1926 में ली आयोग के सुझाव पर प्रथम बार लोक सेवा आयोग की स्थापना केन्द्रीय लोक सेवा आयोग के रूप में की गई, जिसमें एक अध्यक्ष तथा चार अन्य सदस्य थे। इसके प्रथम अध्यक्ष सर रोज वार्कर थे।

– भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत इस केन्द्रीय लोक सेवा आयोग का नाम बदलकर संघीय लोक सेवा आयोग कर दिया गया।

– 26 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान लागू होने पर लोक सेवा आयोग का नाम बदलकर संघ लोक सेवा आयोग कर दिया गया।

● लोक सेवाओं की संवैधानिक स्थिति

– लोक सेवाओं की संवैधानिक स्थिति के संबंध में भारतीय संविधान के भाग – 14 के अनुच्छेद 308 से 313 तक में भारत की लोक सेवाओं के संबंध में प्रावधान किया गया है।

– ब्रिटिश शासन के समान ही देश (भारत) की लोक सेवाएँ तीन भागों में विभक्त हैं, किंतु इनके नामों में परिवर्तन कर दिया गया। ये सेवाएँ निम्नलिखित हैं :-

 – अखिल भारतीय सेवाएँ

 – केन्द्रीय सेवाएँ

 – राज्य की सेवाएँ

● भारत की प्रमुख लोक सेवाएँ

– अखिल भारतीय सेवाएँ –

– अखिल भारतीय सेवाएँ वे सेवाएँ हैं जिनके अधिकारी केन्द्र द्वारा नियुक्त किए जाते हैं तथा ये संयुक्त रूप से केन्द्र व राज्य सरकारों के नियंत्रण में होते हैं।

– मूलत: वे केन्द्र के नियंत्रण में होते हैं, लेकिन तात्कालिक नियंत्रण राज्य सरकार द्वारा होता है क्योंकि ये अपनी सेवाएँ राज्यों में देते हैं।

– 1947 में भारतीय सिविल सेवा (आई. सी. एस.) का स्थान आई. ए. एस. ने और भारतीय पुलिस (आई. पी.) का स्थान आई. पी. एस. ने ले लिया है।

– भारतीय संविधान में इनको अखिल भारतीय सेवाओं के रूप में मान्यता दी गई है।

– सन् 1966 में तीसरी अखिल भारतीय सेवा – भारतीय वन सेवा का सृजन किया गया है।

– वर्तमान में कुल तीन प्रकार की अखिल भारतीय सेवाएँ हैं –

 • भारतीय प्रशासनिक सेवा (I. A. S.)

 • भारतीय पुलिस सेवा (I. P. S.)

 • भारतीय वन सेवा (I. F. S.)

नोट :

– संविधान सभा में अखिल भारतीय सेवाओं के प्रमुख समर्थक सरदार वल्लभ भाई पटेल थे। अत: उन्हें अखिल भारतीय सेवाओं का जनक कहा जाता है।

– भारत में सिविल सर्विस का जनक लॉर्ड कार्नवालिस को माना जाता है।

● केन्द्रीय सेवाएँ

– केन्द्रीय सेवाएँ पूर्ण रूप से केन्द्र के अधीन राष्ट्रीय स्तर की सेवाएँ हैं।

– केन्द्रीय सेवाओं के सदस्य अपनी सेवाएँ सिर्फ केन्द्र सरकार को देते हैं। वे केन्द्र सरकार के विभिन्न विभागों में विशिष्ट पदों पर आसीन होते हैं।

– स्वतंत्रता पूर्व केन्द्रीय सेवाएँ- प्रथम श्रेणी, द्वितीय श्रेणी, अधीनस्थ व निम्न श्रेणी में शामिल थी। स्वतंत्रता के बाद अधीनस्थ एवं निम्न श्रेणियों का नामकरण तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के रूप में कर दिया गया।

– सन् 1974 में केन्द्रीय सेवाओं को प्रथम श्रेणी, द्वितीय श्रेणी, तृतीय श्रेणी तथा चतुर्थ श्रेणी से क्रमश: समूह क, समूह ख, समूह ग व समूह घ में वर्गीकृत कर दिया गया।

– वर्तमान में समूह क की 45 व समूह ख की 33 केन्द्रीय सेवाएँ हैं। समूह क की कुछ मुख्य केन्द्रीय सेवाएँ इस प्रकार हैं –

 • भारतीय विदेश सेवा

 • केन्द्रीय विधिक सेवा

 • केन्द्रीय स्वास्थ्य सेवा

 • केन्द्रीय सूचना सेवा

 • केन्द्रीय अभियांत्रिकी सेवा

 • भारतीय अर्थशास्त्र सेवा

 • भारतीय डाक सेवा

 • विदेश संचार सेवा

 • भारतीय मौसम विज्ञान सेवा

 • भारतीय सैन्य लेखा सेवा

 • रेल कार्मिक सेवा

 • भारतीय राजस्व सेवा

 • केन्द्रीय सचिवालय सेवा

 • भारतीय लेखा एवं परीक्षा सेवा

– समूह ग की केन्द्रीय सेवाओं में लिपिकीय कर्मचारी और समूह घ की सेवाओं में श्रमिक कर्मचारी होते हैं।

• राज्य सेवाएँ

– राज्य सेवाओं के सदस्य केन्द्र राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत कार्य करते हैं। राज्य सरकार के विभागों में विभिन्न पदों पर आसीन होते हैं।

– अलग-अलग राज्यों में राज्य सेवाओं की संख्या अलग-अलग हो सकती है, तथापि ये सेवाएँ जो सभी राज्यों में समान होती हैं। वे निम्नलिखित हैं –

 • सिविल सेवा

 • पुलिस सेवा

 • वन सेवा

 • चिकित्सा सेवा

 • मत्स्य सेवा

 • शिक्षा सेवा

 • जल सेवा

 • न्यायिक सेवा

 • सहकारी सेवा

 • बिक्री कर सेवा

 • अभियांत्रिकी सेवा

 • पशु चिकित्सा सेवा

 • कृषि सेवा

 • जन-स्वास्थ्य सेवा

विशेष तथ्य –

– मैक्स वेबर नौकरशाही का व्यवस्थित अध्ययन करने वाले पहले समाजशास्त्री थे।

– लोक सेवकों को उचित एवं समयानुकूल प्रशिक्षण प्रदान करने की दृष्टि से नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन स्थापित की गई।

– प्रतिवर्ष लोक सेवा दिवस 21 अप्रैल को मनाया जाता है।

– 1959 में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु ‘राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी’ की स्थापना मसूरी (देहरादून-उत्तराखण्ड) में की गई। 2 अक्टूबर, 1972 को इसका नाम लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी कर दिया गया।

– सरदार वल्लभ भाई राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, हैदराबाद – राष्ट्रीय पुलिस प्रशिक्षण अकादमी की स्थापना 1948 ई. में माउण्ट आबू में की गई थी। जिसे 1975 में हैदराबाद (आंध्रप्रदेश) स्थानांतरित कर दिया गया।

– वन अधिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु देहरादून में इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय वन अकादमी कार्यरत है।

– भारतीय विदेश सेवा के अफसरों के प्रशिक्षण हेतु नई दिल्ली में ‘विदेश सेवा संस्थान’ संचालित है।

– भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारियों के प्रशिक्षण हेतु नागपुर (महाराष्ट्र) में नेशन एकेडमी ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस कार्यरत है।

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भारतीय संविधान की विशेषताएं पीडीएफ नोट्स – Features of Indian Constitution in Hindi

महत्वपूर्ण प्रश्न

नौकरशाही से आप क्या समझते हैं?

 नौकरशाही का अर्थ हुआ ” अधिकारियों का शासन” 

नौकरशाही के जनक कौन है?

मैक्स वेबर 

निष्कर्ष

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नमस्कार, मैं कुलदीप सिंह पठतु प्लेटफार्म पर शिक्षा जगत से संबंधित लेख लिखने का कार्य करता हूं। मैंने इतिहास विषय से स्नातकोत्तर किया है और वर्तमान में पीएचडी कर रहा हु। यहां इस प्लेटफार्म पर मैं आपको बहुत सी जरूरी जानकारी देने का प्रयास करूंगा जो की शिक्षा जगत से जुड़ी हो।

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