चुम्बक किसे कहते है? प्रकार, गुण, चुंबकीय तरंग, क्षेत्र

स्वागत है आपका, आज हम चुम्बक (Magnet) के विषय में अध्ययन करेंगे। यहां पर पे हम चुंबक किसे कहते है? चुम्बक के प्रकार, चुंबक के गुण, चुंबकीय तरंग, चुंबकीय क्षेत्र, चुंबकीय बल, चुम्बक के उपयोग इत्यादि के विषय में विस्तार पूर्वक जानेंगे।

चुंबक किसे कहते है?

यह एक ऐसा पदार्थ है, जो लोहा, कोबाल्ट, निकिल या उनके यौगिकों को आकर्षित करता है, चुम्बक कहलाता है।

● स्वतंत्रता पूर्वक किसी धागे से लटकाने पर ये उत्तर-दक्षिण दिशा में स्थित होती है।
● चुंबक सदैव द्विध्रुव के रूप में अस्तित्व रखती है।

चुंबक की परिभाषा

● लोहा, कोबाल्ट या निकल आदि को आकर्षित करने के गुण को चुंबकत्व तथा जो वस्तु इस गुण को प्रदर्शित करती है उसे चुंबक कहते हैं।

चुंबक के प्रकार:-

1. प्राकृतिक चुम्बक:-

इसकी खोज एशिया प्रान्त के मैग्नीशिया शहर में हुई थी।
मैग्नीशिया में ऐसे पत्थर की खोज हुई जो Ni, Co तथा Fe को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, जिसका नाम चुम्बक (Magnet) रखा गया। उदाहरण- Fe3O4
प्राकृतिक चुम्बक का उपयोग दैनिक जीवन में नहीं होता है।

2. कृत्रिम चुंबक:-

(1) स्थायी चुंबक:-

इस चुम्बक में लम्बे समय तक चुम्बकीय गुण पाए जाते हैं।
इसके चुम्बकीय गुणों को आसानी से नष्ट नहीं किया जा सकता है।
इसका उपयोग दैनिक जीवन में नहीं होता है।

(2) अस्थायी चुम्बक:-

इस प्रकार की चुम्बक, चुम्बकीय गुण तब ही प्रदर्शित करती है जब तक उस पर कोई बाह्य बल कार्य करता है। जैसे ही इस बाह्य बल को हटा दिया जाए तो चुम्बकीय गुण नष्ट हो जाते हैं।
यह एलनिको (Al+Ni+Co) नामक मिश्रधातु का बना होता है।
चुम्बक द्वारा लौह, इस्पात आदि धातुओं की अपनी ओर आकर्षित करने के गुण को चुम्बकत्व कहा जाता है।

चुंबक के गुण–

● आकर्षण प्रकृति- चुंबक चुंबकीय पदार्थों को अपनी ओर आकर्षित करती है। यह आकर्षण चुंबक के सिरों पर सबसे अधिक तथा मध्य में सबसे कम होता है।
● चुंबक के दोनों सिरों पर स्थित वे बिन्दु जहाँ चुंबकत्व का गुण अधिकतम होता है, चुंबक के ध्रुव (Poles) कहलाते हैं।

चुम्बक किसे कहते है? प्रकार, गुण, चुंबकीय तरंग, क्षेत्र

● चुंबक के दो ध्रुव होते हैं इन्हें क्रमश: उत्तरी ध्रुव (N-Pole) तथा दक्षिण ध्रुव (S-Pole) कहते हैं।
● चुंबक के दोनों ध्रुव सदैव युग्म में रहते हैं, किसी एक चुंबकीय ध्रुव को दूसरे ध्रुव से विलक्षित नहीं कर सकते।
● समान चुंबकीय ध्रुव परस्पर प्रतिकर्षित जबकि विजातीय चुंबकीय ध्रुव परस्पर आकर्षित होते हैं।
● जब चुंबक के समीप किसी चुंबकीय पदार्थ को लाते हैं तो प्रेरण द्वारा उस पदार्थ में चुंबकत्व उत्पन्न हो जाता है। यह घटना चुंबकीय प्रेरण कहलाती है।
● चुंबक को गर्म कर, पीट कर, टक्कर से या पृथ्वी सतह में लंबे समय तक गाढ़ कर चुंबक के गुण को समाप्त किया जा सकता है।
● कुछ पदार्थ चुंबक द्वारा प्रतिकर्षित होते हैं जिन्हें प्रतिचुंबकीय पदार्थ कहते है, जैसे-पानी, सोना।

चुंबक से संबंधित परिभाषाएँ–

● किसी चुंबक के सिरों के निकट वे बिंदु जहाँ चुंबकत्व अधिकतम होता है तथा साथ ही चुंबकीय आकर्षण बलों की परिणामी बल की कार्यकारी रेखा गुजरती है, चुंबकीय ध्रुव कहते हैं।
● चुंबकीय ध्रुवों को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा चुंबकीय अक्ष कहलाती है।
● चुंबक के चुंबकीय ध्रुव द्वारा चुंबकीय पदार्थों को आकर्षित करने की क्षमता उसकी ध्रुव प्रबलता कहते है।
● पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण पृथ्वी के चारों ओर एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है, उसे भू-चुंबकत्व कहते हैं।

क्यूरीताप– वह तापमान जिस पर चुंबक अपने चुंबकीय गुणों को खो देता है, उस तापमान को क्यूरी ताप कहलाते है।

चुम्बक के चुम्बकीय गुणों को नष्ट करने के सही तरीके:-

अत्यधिक ताप देकर चुम्बकीय गुणों को नष्ट किया जा सकता है।
चुम्बक को पीटकर भी चुम्बकीय गुणों को नष्ट किया जा सकता है।
लम्बे समय तक चुम्बक को खुला छोड़ने पर भी चुम्बकीय गुण नष्ट हो जाते हैं।

क्यूरीताप:-
वह तापमान जिस पर चुम्बक अपने चुम्बकीय गुणों को खो देता है, उस तापमान को क्यूरी ताप कहा जाता है।

चुंबक के ध्रुव:-

चुम्बक में दो ध्रुव पाए जाते हैं-
1. उत्तरी ध्रुव या धनात्मक ध्रुव
2. दक्षिणी ध्रुव या ऋणात्मक ध्रुव
चुम्बक के समान ध्रुवों के मध्य प्रतिकर्षण होता है तथा विपरीत ध्रुवों के मध्य आकर्षण होता है।
चुम्बक के ध्रुवों को पृथक् नहीं किया जा सकता है।

चुम्बकीय पदार्थ:-

– किसी तत्त्व या पदार्थ में चुम्बकीय गुण उसमें उपस्थित इलेक्ट्रॉन के चक्रण या घूर्णन गति के कारण होता है।
– चुम्बकीय पदार्थों को तीन पदार्थों में विभाजित किया गया। (फैराडे के अनुसार)
1. अनुचुम्बकीय
2. लौह-चुम्बकीय
3. प्रति चुम्बकीय

1. अनुचुम्बकीय पदार्थ:-

– इन्हें जब बाहरी चुम्बक क्षेत्र में रखा जाता है, तो ये चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में चुम्बकीत हो जाते हैं, अनुचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं।
– इसकी चुम्बकीय प्रवृत्ति धनात्मक एवं कम होती है।
– ये दुर्बल चुम्बकत्व का गुण दर्शाते हैं।
– ताप बढ़ाने पर इन पदार्थों का चुम्बकत्व घटता है। उदाहरण- Pt, Na, Al, Cr, Mn, Cu, O2

2. लौह चुम्बकीय पदार्थ:-

– ये स्वयं चुम्बकत्व का गुण दर्शाते हैं। बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की उपस्थिति में प्रबल चुम्बकत्व इनमें उत्पन्न होता है। लौह चुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं।
– इसकी चुम्बकीय प्रवृत्ति धनात्मक एवं अधिक होती है।
– ये पदार्थ क्यूरी नियम का पालन करते हैं।
– इनकी चुम्बकीय प्रवृत्ति ताप बढ़ाने पर कम तथा ताप घटाने पर अधिक हो जाती है। उदाहरण- Fe, Co, Ni, मैग्नेटाइट।

3. प्रतिचुम्बकीय पदार्थ:-

– वे पदार्थ, जो बाहरी क्षेत्र में स्वयं को चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् व्यवस्थित करते हैं तथा इनमें चुम्बकत्व नहीं पाया जाता है, प्रतिचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं।
– इसकी चुम्बकीय प्रवृत्ति कम तथा ऋणात्मक होती है अर्थात् इनकी चुम्बकीय प्रवृत्ति ताप पर निर्भर नहीं करती है।
– चुम्बकीय कण ताप के बढ़ने अथवा घटने पर अपरिवर्तन रहते हैं।
नोट:- पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण पृथ्वी के चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है, उसे भू-चुम्बकत्व कहते हैं।
– ऑरस्टेड ने सर्वप्रथम बताया कि धारावाही चालक तार के आस-पास चुम्बकीय क्षेत्र पाया जाता है।
– फैराडे ने बताया कि चुम्बकीय क्षेत्र में रखी कुण्डली में गति होने से इस कुण्डली में धारा प्रवाहित होने लगती है।
– चुम्बकीय फ्लक्स का SI मात्रक वेबर या टेस्ला/मीटर2 तथा CGS मात्रक मैक्सवेल होता है।

चुम्बकीय बल रेखाएँ:-

chumbakiy kshetra

– किसी चुम्बक के चारों तरफ वह क्षेत्र जहाँ काल्पनिक रेखाएँ चुम्बकीय क्षेत्र को दर्शाती हैं, वे चुम्बकीय बल रेखाएँ कहलाती हैं।
– चुम्बकीय बल रेखाएँ काल्पनिक कहलाती हैं।
– चुम्बकीय बल रेखाएँ बंद वक्र बनाती हैं।
– चुम्बक के अंदर चुम्बकीय बल रेखाएँ दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की तरफ गमन करती हैं।
– चुम्बक के बाहर की तरफ चुम्बकीय बल रेखाएँ उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की तरफ गमन करती है।
– दो चुम्बकीय बल रेखाएँ एक-दूसरे को कभी नहीं काटती क्योंकि कटाव बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दो दिशाएँ हो जाती हैं, जो कि संभव नहीं है।
– पृथ्वी के दो ध्रुव होते हैं- उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव।
– पृथ्वी पर चुम्बकीय बल रेखाएँ दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की तरफ चलती हैं।
– पृथ्वी का स्वयं का चुम्बकीय क्षेत्र 105T होता है।

चुम्बकीय क्षेत्र:-

– चुम्बक के चारों ओर का वह क्षेत्र, जिसमें चुम्बक के प्रभाव का अनुभव किया जा सके, चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है।
– चुम्बकीय क्षेत्र सदिश राशि है।
– चुम्बकीय क्षेत्र का SI मात्रक टेस्ला तथा C.G.S. मात्रक गॉउस होता है।
F = qVB Sin
q = आवेश
V = वेग
B = चुम्बकीय क्षेत्र
– यदि sin� का मान 90o हो तो चुम्बकीय क्षेत्र का मान अधिकतम होगा (Fmax = qVB)

चुम्बकीय फ्लक्स :-

● चुंबकीय क्षेत्र में प्रति एकांक क्षेत्रफल से लम्बवत गुजरने वाली चुंबकीय बल रेखााओं को चुंबकीय फ्लक्स कहा जाता है।
● इसे f से दर्शाते हैं।
● चुंबकीय फ्लक्स = चुंबकीय क्षेत्र × क्षेत्रफल
● f = B.A
● f = B.A cosq
● A = क्षेत्रफल
● B = चुंबकीय क्षेत्र
● f = चुंबकीय क्षेत्र तथा क्षेत्रफल के बीच कोण
● यदि 𝜃 का मान हो तो चुंबकीय फ्लक्स का मान अधिकतम होगा।
● f
max = B.A
● यदि 𝜃 का मान 90 हो तो चुंबकीय फ्लक्स का मान न्यूनतम होगा।
● f
min = 0
● चुंबकीय फ्लक्स का SI मात्रक वेबर होता है।
● चुंबकीय फ्लक्स का CGS मात्रक मैक्सवेल होता है।
● चुंबकीय फ्लक्स प्रेरित धारा (I) के समानुपाती होता है।
● f
 µ I
● f = LI
● L = प्रेरकत्व
● I = प्रेरित धारा
● f = चुंबकीय फ्लक्स
● प्रेरित धारा (I) गतिमान आवेश वाली कुंडली को किसी अन्य कुंडली के पास ले जाए तथा धारा में परिवर्तन करने पर दूसरी कुंडली में स्वत: धारा उत्पन्न हो जाती है, जिसे प्रेरित धारा कहा जाता है।

चुम्बकीय फ्लक्स का मात्रक:-

– चुम्बक फ्लक्स का SI या MKS मात्रक वेबर होता है।
– चुम्बकीय फ्लक्स का CGS मात्रक मैक्सवेल होता है।
– चुम्बकीय फ्लक्स प्रेरित धारा (I) के समानुपाती होता है।
– प्रेरकत्व (L) = गतिमान आवेश वाली कुण्डली को किसी अन्य कुण्डली के पास ले जाए तथा धारा में परिवर्तन करने पर दूसरी कुण्डली में स्वत: धारा उत्पन्न हो जाती है, जिसे प्रेरित धारा कहा जाता है।
– बैटरी के सिरों पर उत्पन्न विभवान्तर प्रेरित विभवान्तर कहलाता है तथा इस घटना को प्रेरण कहा जाता है तथा इस क्रिया को प्रेरकत्व कहा जाता है।
– इसका मात्रक हेनरी है।

विद्युत चुंबकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction)

● चुंबकीय प्रेरण की खोज माइकल फैराडे ने 1831 ई. में की।
● किसी भी परिवर्तित होते चुंबकीय क्षेत्र में विद्युत चालक को रखने पर उसमें विद्युतवाहक बल या विभवांतर उत्पन्न हो जाता है, इसे ‘विद्युत चुंबकीय प्रेरण’ कहते हैं।
● चुंबकीय प्रेरण का मात्रक (Tesla) है।
● यदि विद्युत चालक कोई बंद परिपथ हो तो परिवर्तित होते चुंबकीय क्षेत्र में रखने पर उसमें विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है।
● विद्युत चुंबकीय प्रेरण का उपयोग डायनेमो, ट्रांसफार्मर, इत्यादि बनाने में करते हैं।

फैराडे के विद्युत चुंबकीय प्रेरण के नियम–

फैराडे का प्रथम नियम:-

जब किसी धारावाही चालक में चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन किया जाता है तो प्रेरित धारा उत्पन्न होती है तथा बैटरी के सिरों पर प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न होगा।

फैराडे का दूसरा नियम:-

प्रेरित विद्युत वाहक बल चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन की ऋणात्मक दर के समानुपाती होता है।
e=d�dt

लैंज का नियम– 

लैंज के नियमानुसार ‘विद्युत चुंबकीय प्रेरण की प्रत्येक अवस्था में किसी परिपथ में प्रेरित विद्युत वाहक बल एवं प्रेरित विद्युत धारा की दिशा सदैव इस प्रकार होती है कि वह उस कारण का विरोध करती है जिसके कारण उसकी उत्पति हुई है’

फ्लेमिंग का वाम हस्त नियम– 

इस नियम के अनुसार बाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अँगूठे को इस प्रकार फैलाने पर कि ये तीनों एक-दूसरे के परस्पर लंबवत् हो और यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा और मध्यमा चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करती है तो अँगूठा चालक पर आरोपित बल की दिशाा की ओर संकेत करेगा।

flaming ka vaam hast niyam

दक्षिण-हस्त/दक्षिण पेच का नियम– 

यदि किसी धारावाही चालक को दाहिने हाथ से इस प्रकार पकड़ा जाए कि अगूँठा विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत कर रहा हो तो अंगुलियाँ चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा में लिपटी होगी।

dakshin hast niyam

● विद्युत धारा चुंबकीय प्रभाव उत्पन्न करती है।
● इस नियम को मैक्सवेल का ‘कार्कस्क्रू नियम भी कहते हैं।

अन्योय प्ररेण (Mutual induction)

एक विद्युत धारावाही कुंडली में धारा परिवर्तित करके दूसरी कुंडली में प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न करने की घटना को ‘अन्योन्य प्रेरण’ कहते हैं।
● ट्रांसफार्मर अन्योय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है।
● ट्रांसफार्मर ऐसा उपकरण है जो प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति को परिवर्तित किए बिना उसे बढ़ाया अथवा घटा सकता है।
● ट्रांसफार्मर की खोज माइकल फैराडे तथा हेनरी ने की थी।
● ट्रांसफार्मर दो प्रकार के होते हैं
1. उच्चायी ट्रांसफार्मर– इस ट्रांसफार्मर का प्रयोग निम्न विभव की विद्युत धारा को उच्च विभव की विद्युत धारा में परिवर्तित करने के लिए किया जाता है।
2. अपचायी ट्रांसफार्मर– उच्च विभव की विद्युत धारा को निम्न विभव की विद्युत धारा में परिवर्तित करने के लिए अपचायी ट्रांसफार्मर उपयोग में लेते हैं।

विद्युत मोटर– विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव के कारण किसी चम्बकीय क्षेत्र में विद्युत धारावाही चालक पर बल लगता है। इसी सिद्धांत के प्रयोग से विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलने की युक्ति को विद्युत मोटर कहते हैं।

डायनेमो– डायनेमो एक ऐसा यंत्र है, जो यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत में परिवर्तित कर देता है।
● डायनेमो को प्रयोग विद्युत जेनरेटर, पवन ऊर्जा द्वारा विद्युत बनाने इत्यादि में किया जाता है। 

यूक्तिऊर्जा परिवर्तन
विद्युत मोटरविद्युत ऊर्जा से यांत्रिक ऊर्जा
डायनेमोयांत्रिक ऊर्जा से विद्युत
बैटरीरासायनिक ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा
बल्ब, CFLविद्युत ऊर्जा से प्रकाश
हीटरविद्युत ऊर्जा से ऊष्मा

विद्युतधारा जनित्र

यह एक ऐसी युक्ति है जिसमें चुंबकीय क्षेत्र में रखी कुंडली को यांत्रिक ऊर्जा देकर घूर्णन करवाकर विद्युत ऊर्जा प्राप्त की जाती है वह विद्युत चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर आधारित है।
● धारा जनित्र दो प्रकार के होते हैं
(i) प्रत्यावर्ती धारा जनित्र- अपने घरों में उपकरण जैसे बल्ब, पंखा, इस्त्री, टोस्टर, फ्रिज इत्यादि प्रत्यावर्ती विद्युतधारा से चलती हैं। शादी विवाह में विवाह स्थल पर आपने देखा होगा जब बिजली बंद हो जाती है तो लाइट डेाकेरेशन को चालित करने के लिए हॉल या गार्डन के बाहर डीजल से चलने वाली एक युक्ति होती है जिसे प्रत्यावर्ती धारा जनित्र कहते हैं।
● वास्तव में प्रत्यावर्ती धारा जनित्र एक ऐसी युक्ति है जो यांत्रिक ऊर्जा को प्रत्यावर्ती विद्युत ऊर्जा में बदलता है।
● प्रत्यावर्ती धारा जनित्र के निम्न चार भाग होते हैं
(a) क्षेत्र चुंबक– इसे एक अति शक्तिशाली नाल के आकार का चुंबक NS होता है जिसे क्षेत्र चुंबक कहते हैं।
(b) आर्मेचर या कुंडली– यह कच्चे लोहे के ढाँचे पर लपटी विद्युत रोधी ताँबे की कुंडली ABCD होती है।
(c) सर्पीवलय– कुंडली के सिरे A व D को अलग-अलग पृथक्कित धात्विक वलयों S1 व Sसे जोड़ दिये जाते हैं। ये वलय कुंडली के घूमने से उसके साथ-साथ घूमते हैं।
(d) ब्रुश– ये कार्बन या किसी धातु की पत्तियों से बने दो ब्रुश होते हैं जिनका एक सिरा तो वलयों को स्पर्श करता है तथा शेष दूसरा सिरा को बाहरी परिपथ से संयोजित कर दिया जाता है।

pratyavarti dhara janitra

• कार्याविधि-
● जब आर्मेचर को यांत्रिक ऊर्जा देकर घुमाया जाता है तो कुंडली ABCD से पारित चुंबकीय फ्लक्स में लगातार परिवर्तन होता है जिससे कुंडली के सिरों के बीच प्रेरित धारा बहती है।
● जब कुंडली को दक्षिणावर्त घुमाते हैं कुंडली का तल बार-बार चुंबकीय क्षेत्र के समान्तर व लम्बवत होता है। चूँकि प्रथम आधे चक्र में फ्लक्स की मात्रा घटती है। इस प्रकार प्रथम आधे घूर्णन में धारा की दिशा बाह्य परिपथ में दक्षिणावर्त होती है और अगले आधे घूर्णन में वामावर्त होती है। अर्थात प्रथम आधे चक्र में बाह्य परिपथ में धारा B1 से B2 की और शेष आधे चक्र में B2 से B1 की ओर बहती है। इस प्रकार आर्मोचर के पूर्ण घूर्णन में निश्चित कालान्तर के बाद धारा की दिशा बदलती है तथा इस दौरान धारा मान भी नियमित रूप से बदलता है ऐसी धारा प्रत्यावर्ती धारा कहलाती है।
● भारत में प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति 50 हटर्ज है अत: प्रत्यावर्ती धारा जनित्र से 50 हटर्ज आवृत्ति वाली धारा उत्पन्न करने के लिए कुंडली को एक सेकण्ड में 50 बार घुमाया जाता है।
● प्रत्यावर्ती धारा जनित्र से उत्पन्न धारा का मान कुंडली में फेरों की संख्या, कुंडली के क्षेत्रफल, घूर्णन वेग व चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता पर निर्भर करता है।

(ii) दिष्ट धारा जनित्र-
● यह एक ऐसी युक्ति है जो यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलती है। विद्युत ऊर्जा से प्राप्त विद्युत धारा की दिशा समय के साथ नियत रहती है।
● बनावट– इसकी बनावट भी प्रत्यावर्ती धारा जनित्र जैसी ही होती है अन्तर केवल इतना है दो सर्पीवलय के स्थान पर विभक्त वलय दिक परिवर्तक का उपयोग किया जाता है।
● इसमें धातु का एक वलय लेते हैं जिसके दो बराबर भाग Cव C2 करते हैं जिन्हें कम्यूटेटर कहते हैं। आर्मेचर का एक सिरा कम्यूटेटर Cसे एक भाग से तथा दूसरा सिरा कम्यूटेटर C2 के दूसरे भाग से जुड़ा होता है। Cव Cदो कार्बन ब्रुशों Bव Bको स्पर्श करते हैं।

disht dhara janitra


 कार्यप्रणाली
● जब आर्मेचर को चुंबकीय क्षेत्र में घुमाया जाता है तब कुंडली से पारित चुंबकीय फ्लक्स में लगातार परिवर्तन होने से उसमें प्रेरित धारा बहती है उसमें ब्रुश Bव Bकी स्थितियाँ इस प्रकार समायोजित की जाती है कि कुंडली में धारा की दिशा परिवर्तित होती है तो ठीक उसी समय इन ब्रुशों का संबंध कम्यूटेटर के एक भाग से हटकर दूसरे भाग से हो जाता है और बाह्य परिपथ में धारा की दिशा समय के साथ नियत रहती है।
● माना कि प्रथम आधे चक्र में प्रेरित धारा की दिशा इस प्रकार होती है कि कुंडली C1 से जुड़ा सिरा धनात्मक व C2 से जुड़ा सिरा ऋणात्मक होता है इस स्थिति में ब्रुश B1, धनात्मक व ब्रुश Bऋणात्मक होते हैं अगले आधे चक्र में कुंडली में धारा की दिशा जैसे ही बदलती है C1 ऋणत्मक व C2 धनात्मक हो जाते हैं, लेकिन कुंडली के घूमने के कारण C1 घूमकर C2 के स्थान पर (Bके संपर्क में) तथा C2 घूमकर C1 के स्थान पर (Bके संपर्क में) आ जाते हैं अत: B1 सदैव धानात्मक व Bऋणात्मक रहता है। इस प्रकार एक पूर्ण चक्र में बाह्य परिपथ में धारा की दशा Bसे Bकी ओर बढ़ती है।

भू-चुंबकत्व (Earth’s Magnetism)

● पृथ्वी एक चुंबक की तरह व्यवहार करती है। पृथ्वी के चुम्बकत्व को भू चुम्बकत्व या पार्थिव चुम्बकत्व कहते हैं। पृथ्वी के चुंबकीय व्यवहार की पुष्टि के तथ्य
(i)  स्वतंत्रतापूर्वक लटकाए हुए चुंबक का सदैव उत्तर दक्षिण दिशा में ठहरना।
(ii)  पृथ्वी में गाड़ने पर लोहे के टुकड़े का कुछ समय पश्चात चुंबक बनना।
(iii) किसी दंड चुंबक की चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ खींचने पर उदासीन बिन्दुओं को प्राप्त होना।

m भू-चुम्बकत्व के अवयव (Elements of Earth’s Magnetism)- किसी स्थान पर पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने हेतु तीन राशियों का जानना आवश्यक है। इन्हें भू चुम्बकत्व के अवयव कहते हैं।
भू चुम्बकत्व के निम्न अवयव हैं
(i) दिकपात का कोण
(ii) नति को
(iii) पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक

(i) दिकपात का कोण (Angle of Declination)- किसी स्थान पर चुंबकीय याम्योत्तर तथा भौगोलिक याम्योत्तर के मध्य के न्यून कोण को दिकपात का कोण करते हैं।
● भिन्न-भिन्न स्थानों पर दिकपात का कोण मापकर संसार का नक्शा बनाया जाता है।

(ii) नमन या नति कोण (Angle of Dip)- चुंबकीय याम्योत्तर में पृथ्वी के परिणामी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा तथा क्षैतिज दिशा के मध्य बनने वाले कोण को नति कोण कहते हैं।
● पृथ्वी के चुंबकीय ध्रुवों पर नति कोण 900 तथा चुंबकीय निरक्ष पर 00 होती है। क्योंकि इन पर चुंबकीय सुई क्रमश: ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज हो जाती है।

(iii) पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक (Horizontal Componet of Earth’s Magnetic Field)-पृथ्वी के संपूर्ण चुंबकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक (H) अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग होता है।

चुंबकीय मानचित्र (Magnetic Map)

● चुंबकीय मानचित्र (अर्थात दिकपात कोण, नमन कोण एवं क्षैतिज घटक) पृथ्वी के प्रत्येक स्थान के लिए अलग-अलग होते हैं। यह पाया गया है कि कई स्थानों पर चुंबकीय अवयवों के मान समान होते हैं।
पृथ्वी तल पर ऐसे बिन्दुओं को मिलाते हुए विभिन्न रेखाएँ खींची गई हैं। ये रेखाएँ चुंबकीय मानचित्र बनाती हैं।

 शून्य दिकपाती रेखाएँ– शून्य दिकपात कोण वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएँ।
 सम दिकपात रेखाएँ– समान दिकपात कोण वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएँ।
 सम चुंबकीय रेखाएँ- समान क्षैतिज घटकों वाले स्थानों को मिलने वाली रेखाएँ।

 भँवर धाराएँ (Eddy Currents)- इन धाराओं की खोज 1895 में फोको (Facault) ने की थी। अत: इन्हें फोको धाराएँ भी कहते हैं। जब किसी बंद विद्युत परिपथ से संबद्ध चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन किया जाता है तो उसमें प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न होती है। इसी प्रकार जब किसी बंद पथ (Closed Path) धातु के स्थूल टुकड़ों से संबद्ध चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है तो इनके संपूर्ण आयतन बंद पथ में प्रेरित धाराएँ उत्पन्न हो जाती है जिनकी प्रकृति पानी में उत्पन्न भंवरों के समान चक्कदार होती है इनका तल चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा में लम्बवत होता है, इन्हें भँवर धाराएँ कहते हैं।
● उपयोग- भँवर धारा का उपयोग विद्युत रेलगाड़ी के ब्रेक के रूप में किया जाता है।
● भँवर धारा का उपयोग धारामापी प्रेरणी भट्टी में, प्रेरणी मोटर में, मोटर में स्पीडोमीटर में किया जाता है।

m चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग (Magnetic Resonance Imaging-MRI)
● चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग एक चिकित्सा तकनीक है जिसका उपयोग शरीर रचना विज्ञान और शरीर की शारीरिक प्रक्रियाओं के चित्र बनाने के लिए रेडियोलॉजी में किया जाता है।
● एमआरआई स्कैनर शरीर में अंगों की छवियों को उत्पन्न करने के लिए मजबूत चुंबकीय क्षेत्र, चुंबकीय क्षेत्र ढाल ओर ‘रेडियो तरंगों’ का उपयोग करते हैं।
● एमआरआई में एक्स-रे आयनकारी विकिरण का उपयोग नहीं किया जाता है जो इसे सीटी और पीईटी स्कैन से भिन्न बनता है।
● एमआरआई का सर्वप्रथम प्रयोग वर्ष 1977 में कैंसर की जाँच के लिए किया गया था।
● एमआरआई स्कैन का इस्तेमाल मस्तिष्क, हडि्डयों व माँसपेशियों, ट्यूमर कैंसर, डिमेंशिया, माइग्रेन का पता लगाने में होता है।

 एमआरआई की विशेषताएँ (Features of MRI)
● MRI स्कैन एक दर्द रहित प्रक्रिया है इसमें एनस्थैटिक की आवश्यकता नहीं होती है।
● MRI स्कैन में एक्स-रे या आयनकारी विकिरण का उपयोग नहीं किया जाता है। फलस्वरूप यह कम हानिकारक होती है।
● MRI में अंगों को विस्तृत रूप से विवरण दिखता है। यह हडि्डयों व टिश्यूज (उतकों) दोनों को दिखा सकती है।

 एमआरआई के उपयोग-
● निर्जीव वस्तुओं की छवियों को बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।
● MRI का विस्तृत रूप से अस्पतालों और क्लीनिकों में चिकित्सा निदान और बीमारी के अनुवर्ती के परीक्षण हेतु किया जाता है।
● पौधों की शारीरिक रचना, उनकी जल परिवहन प्रक्रियाओं और जल संतुलन का अध्ययन करने के लिए उपयोग किया जाता है।
● जैव चिकित्सा अनुसंधान को अधिक प्रभावी बनाने के लिए उपयोग में लिया जाता है।

 कार्यात्मक चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग (FMRI)
● कार्यात्मक चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग मस्तिष्क के कुछ क्षेत्रों में रक्त प्रवाह की निगरानी करके संज्ञानात्मक गतिविधि मापने के लिए MRI तकनीक का उपयोग करता है।
● इस तकनीक के माध्यम से शोधकर्ताओं को जटिल प्रक्रियाओं या नशीली दवाओं के इंजेक्शन की आवश्यकता के बिना मस्तिष्क और रीढ़ की हड्‌डी का आकलन करना आसान हुआ है।

♦ एमआरआई कॉन्ट्रास्ट (MRI Contrast)
● इसका इस्तेमाल मेडिकल इमेजिंग प्रक्रिया में प्रमुख रूप से किया जाता है।
● MRI कॉन्ट्रास्ट एक रंगहीन पदार्थ होता है जिसे शरीर में प्रवाहित रक्त में इंजेक्शन द्वारा प्रवेश कराया जाता है।

m नाभिकीय चुंबकीय अनुनाद (Nuclear Magnetic Re Sonance-NMR)
● नाभिकीय चुंबकीय अनुनाद (NMR) स्पेक्ट्रोस्कोपी औषधीय और रासायनिक अणुओं के संरचनात्मक स्वरूप का अवलोकन करने की एक महत्वपूर्ण तकनीक है।
● यह तरल व ठोस पदार्थों में परमाणुओं के प्रकार तथा गठन के बारे में विश्लषणात्मक डेटा प्रदान करता है।
● इस परीक्षण के लिए नमूने को एक चुंबकीय क्षेत्र में रखकर उस पर एन.एम.आर. सिग्नल उत्पन्न किया जाता है। इसके लिए नमूने पर रेडियो तरंगों का प्रयोग किया जाता है। जिससे एंड्रिक चुंबकीय प्रतिध्वनि उत्पन्न होती है। प्रत्येक यौगिक के स्वयं के अनूठे और स्वतंत्र लक्षण होते हैं।
● NMR का प्रयोग पॉलिमर विश्लेषण, पैकेजिंग, फार्मास्यूटिकल आदि क्षेत्रों में और ठोस-तरल अनुपात, हाइड्रोजन सामग्री इत्यादि का परीक्षण करने में किया जाता है।
● भारतीय कानून के अनुसार निर्यात किए जाने वाले शहद के लिए NMR परीक्षण किया जाता है।
● विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (CSE) द्वारा NMR तकनीक के माध्यम से कराए गए शहद के शुद्धता परीक्षण में 13 में से 11 ब्रांड गलत रहे हैं। इस तकनीक से शहद में शुगर सीरप की मिलावट का पता लगाया जाता है।

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महवत्पूर्ण प्रश्न

चुंबक किसे कहते हैं यह कितने प्रकार के होते हैं?

यह एक ऐसा पदार्थ है, जो लोहा, कोबाल्ट, निकिल या उनके यौगिकों को आकर्षित करता है, चुम्बक कहलाता है। चुंबक मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं प्राकृतिक और कृत्रिम चुंबक।

चुंबक के कार्य क्या है?

चुंबक लोहा, निकिल, कोबाल्ट जैसे कुछ पदार्थों को आकर्षित करता है। 

चुम्बक की खोज कब हुई थी?

चुंबकत्व का इतिहास 600 ईसा पूर्व का है, जहां हमें ग्रीक दार्शनिक थेल्स ऑफ मिलेटस के काम में लॉडस्टोन का उल्लेख मिलता है।

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