1857 की क्रांति (1857 Revolt) सम्पूर्ण जानकारी PDF समेत | 1857 Ki Kranti in India

नमस्कार आज हम भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण भाग 1857 की क्रांति (1857 Ki Kranti) के बारे में अध्ययन करेंगे।

1857 की क्रांति के प्रमुख कारण

राजनीतिक कारण

–  1857 की क्रांति के राजनीतिक कारणों में लॉर्ड वेलेजली की ‘सहायक संधि’ तथा लॉर्ड डलहौजी का ‘व्यपगत का सिद्धांत’ (Doctrine of lapse) प्रमुख था।

–  वेलेजली की ‘सहायक संधि’ के अनुसार भारतीय राजाओं को अपने राज्यों में कंपनी की सेना रखनी पड़ती थी। सहायक संधि से भारतीय राजाओं की स्वतंत्रता समाप्त होने लगी और राज्यों में कंपनी का हस्तक्षेप बढ़ने लगा था।

–  लॉर्ड डलहौजी की ‘राज्य हड़प नीति’ या ‘व्यपगत का सिद्धांत (Doctrine of lapse) द्वारा अंग्रेज़ों ने हिंदू राजाओं के दत्तक पुत्र लेने के अधिकार को समाप्त कर दिया। वैध उत्तराधिकारी नहीं होने की स्थिति में राज्यों का विलय अंग्रेजी राज्यों में कर लिया जाता था।

–  रियासतों के विलय के अतिरिक्त पेशवा (नाना साहब) की पेंशन रोके जाने का विषय भी असंतोष का कारण बना।

प्रशासनिक कारण

–  अंग्रेजों ने भेदभावपूर्ण नीति अपनाते हुए, भारतीयों को प्रशासनिक सेवाओं में सम्मिलित नहीं होने दिया तथा उच्च पदों पर भारतीयों को हटाकर ब्रिटिश लोगों को नियुक्त किया गया। अंग्रेज़ भारतीयों को उच्च सेवाओं हेतु अयोग्य मानते थे। इन सब बातों से क्षुब्ध होकर भारतीयों

में आक्रोश का भाव जागृत हो चुका था, जो 1857 की क्रांति के रूप में सामने आया।

–  अंग्रेज़ न्याय के क्षेत्र में भी स्वयं को भारतीयों से उच्च व श्रेष्ठ समझते थे। भारतीय जज किसी अंग्रेज़ के विरुद्ध मुकदमे की सुनवाई नहीं कर सकते थे। अंग्रेज़ों की न्याय प्रणाली पक्षपातपूर्ण, दीर्घावधिक व खर्चीली थी। अतः भारतीय इससे असंतुष्ट थे, जो 1857 की क्रांति में जनाक्रोश का एक कारण बना।

–  डलहौजी ने तंजौर तथा कर्नाटक के नवाबों की उपाधियाँ जब्त कर ली, मुगल शासक बहादुरशाह को अपमानित कर लाल किला खाली करने को कहा और लॉर्ड कैनिंग ने घोषणा की कि बहादुरशाह के उत्तराधिकारी मुगल सम्राट नहीं सिर्फ राजा ही कहलायेंगे। परिणामतः मुगलों ने क्रांति के समय विद्रोहियों का साथ दिया।

–  प्रशासन संबंधी कार्यों में योग्यता की जगह धर्म को आधार बनाया गया जिससे ईसाईयत की धर्मांतरण पद्धति का प्रसार हुआ, जिससे आम जन में विद्रोह की भावना उत्पन्न हुई।

–  18वीं सदी के उत्तरार्द्ध से ही अकालों की बारंबारता ने ब्रिटिश प्रशासनिक तंत्र की पोल खोल दी।

सामाजिक एवं धार्मिक कारण

–  सांस्कृतिक सुधार की नीतियों से पारंपरिक भारतीय संस्कृति को हीन मानकर बदलाव करना, इससे समाज का रूढ़िवादी वर्ग ब्रिटिशों के विरुद्ध खड़ा हो गया।

–  1850 ई. में आए ‘धार्मिक निर्योग्यता अधिनियम’ द्वारा ईसाई धर्म को ग्रहण करने वाले को पैतृक संपत्ति में अधिकार मिल गया। इससे हिंदू समाज में असंतोष की भावना फैल गई।

–  1813 ई. के चार्टर एक्ट में ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण कार्यक्रमों को प्रोत्साहित किया गया। कालांतर में बेरोजगारों, विधवाओं, जनजातियों व अनाथों का धर्मांतरण करवाया गया तथा साथ ही अंग्रेजों की नस्लवादी भेदभावपूर्ण नीतियों ने भी विद्रोह की पृष्ठभूमि को तैयार किया।

–  1856 ई. में डलहौजी के समय प्रस्तुत विधवा पुनर्विवाह अधिनियम लॉर्ड कैनिंग के शासन में पारित हुआ। इसके पहले भी सती प्रथा, दास प्रथा व नर बलि प्रथा पर लगाई गई रोक के कारण सामाजिक तनाव व्याप्त था।

–  पाश्चात्य शिक्षा ने भारतीय समाज की मूल विशेषताओं को समाप्त कर दिया। परिणामतः परम्परागत शिक्षा समर्थकों ने विद्रोह के समय अंग्रेज़ों का विरोध किया।

आर्थिक कारण

–  ब्रिटिश भू-राजस्व नीतियों, यथा- स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी तथा महालवाड़ी व्यवस्था आदि के द्वारा किसानों का जमकर शोषण किया गया।

–  व्यापारिक कंपनी ने अपनी समस्त नीतियों के मूल में आर्थिक लाभ को केंद्र में रखा।

–  कंपनी की नीतियों ने पारंपरिक उद्योगों को समाप्त कर दिया। इससे दस्तकारी व हथकरघा उद्योग में संलग्न वर्ग व किसानों की आर्थिक स्थिति अत्यंत शोचनीय हो गई तथा कृषि के वाणिज्यीकरण से खाद्य संकट उत्पन्न हो गया।

सैन्य कारण

–  सेना में भारतीय और अंग्रेज़ी सैनिकों का अनुपात लगभग 5:1 था।

–  सैन्य सेवा में नस्लीय भेदभाव विद्यमान थे और योग्यता के बावजूद भारतीय सैनिक अधिकतम सूबेदार पद तक पहुँच सकते थे और साथ ही उनके साथ बुरा बर्ताव किया जाता था।

–  लॉर्ड कैनिंग के समय 1856 में ‘सामान्य सेवा भर्ती अधिनियम पारित किया गया, जिसके द्वारा किसी भी समय किसी भी स्थान पर, समुद्र पार भी सैनिकों का जाना अंग्रेजी आदेश पर निर्भर हो गया। यह भारतीयों के सामाजिक-धार्मिक मान्यताओं के ख़िलाफ़ था।

–  1854 ई. में डाकघर अधिनियम लाया गया, जिसके द्वारा अब सैनिकों को भी पत्र पर स्टैंप लगाना अनिवार्य हो गया। यह सैनिकों के विशेषाधिकारों के हनन जैसा था।

  नोटः 1857 की क्रांति के दमन के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारतीय फौज के नव गठन के लिए ‘पील आयोग’ का गठन किया, जिसने सेना के रेजिमेंटों को जाति, समुदाय और धर्म के आधार पर विभाजित किया।

तात्कालिक कारण

–  दिसंबर, 1856 में सरकार ने पुरानी लोहे वाली बंदूक ‘ब्राउन बेस’ के स्थान पर ‘एनफील्ड राइफल’ के प्रयोग का निश्चय किया। इसमें लगने वाले कारतूस के ऊपरी भाग को दाँतों से खोलना पड़ता था।

–  बंगाल सेना में यह बात फैल गई कि कारतूस की खोल में गाय और सूअर की चर्बी का प्रयोग किया जाता है। अतः इससे हिंदू और मुस्लिम सैनिकों को लगा कि चर्बीदार कारतूस का प्रयोग उनके धर्म को नष्ट कर देगा।

–  अधिकारियों ने इस अफवाह की जाँच किए बिना तुरंत इसका खंडन कर दिया। कालांतर में यह बात सही साबित हुई कि गाय और सूअर की चर्बी वास्तव में वूलिच शस्त्रागार में प्रयोग की जाती थी।

–  सैनिकों का विश्वास था कि सरकार जान-बूझकर ऐसे कारतूसों का प्रयोग करके उनके धर्म को नष्ट करने तथा उन्हें ईसाई बनाने का प्रयत्न कर रही है। अतः सैनिकों ने क्षुब्ध होकर अंगेज़ों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।

1857 की क्रांति का प्रारंभ

–  29 मार्च, 1857 को 34वीं रेजिमेंट, बैरकपुर के सैनिक मंगल पाण्डे चर्बी लगे कारतूस के प्रयोग का विरोध ने किया तथा विद्रोह की शुरुआत कर दी।

–  उसने सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट बाग एवं मेजर सार्जेण्ट की गोली मारकर हत्या कर दी। 8 अप्रैल, 1857 को सैन्य अदालत के निर्णय के बाद मंगल पाण्डे को फाँसी की सज़ा दे दी गई, जो कि 1857 की क्रांति का प्रथम शहीद माना गया।

–  1857 की क्रांति के दौरान बैरकपुर में कमांडिंग ऑफिसर हैरसे था।

–  10 मई, 1857 को मेरठ छावनी में तैनात भारतीय सेना ने चर्बी युक्त कारतूस के प्रयोग से इनकार कर दिया एवं अपने अधिकारियों पर गोलियाँ चलाई और विद्रोह प्रारंभ कर दिया। इस समय मेरठ में सैन्य छावनी के अधिकारी जनरल हेविड थे।

1857 के विद्रोह का विस्तार

दिल्ली

–  विद्रोह का आरंभ 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी में हुआ 20वीं N.I. के सिपाहियों ने अपने अधिकारियों पर गोली चलाई और अपने साथियों को मुक्त करवा कर दिल्ली की ओर कूच किया तथा 11 मई को मेरठ के विद्रोही दिल्ली पहुँचे और 12 मई, 1857 को उन्होंने दिल्ली पर अधिकार कर लिया तथा मुगल बादशाह बहादुरशाह द्वितीय को पुनः भारत का सम्राट व क्रांति का नेता घोषित किया।

–  दिल्ली में मुगल शासक बहादुरशाह द्वितीय को प्रतीकात्मक नेतृत्व दिया गया, किंतु वास्तविक नेतृत्व बख्त खाँ के पास था। हालाँकि दिल्ली पर अंग्रेज़ों का पुनः अधिकार सितंबर, 1857 को पूरी तरह हो गया।’ इस संघर्ष को दबाने के लिए अंग्रेज अधिकारी जॉन निकोलसन, हडसन व लॉरेंस को भेजा गया जिसमें जॉन निकोलसन मारा गया।

–  हडसन ने सम्राट के दो पुत्रों और पौत्र को यह वचन देकर कि उन्हें कोई क्षति नहीं पहुँचाई जाएगी, गोली मार कर हत्या कर दी। बहादुरशाह द्वितीय की गिरफ्तारी हुमायूँ के मकबरे से हुई थी। इसकी सूचना जीनत महल ने दी थी। बहादुरशाह द्वितीय को रंगून भेज दिया गया जहाँ 1862 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।

लखनऊ

–  जून, 1857 में विद्रोह का प्रारंभ बेगम हज़रत महल (महक परी के नाम से भी जानी जाती थी) के नेतृत्व में हुआ। उन्होंने अपने अल्पायु पुत्र बिरजिस कादिर को नवाब घोषित कर दिया तथा अपना प्रशासन स्थापित किया। चीफ कमिश्नर हेनरी लारेंस, लखनऊ में स्थित ब्रिटिश रेजिडेंसी की रक्षा करते हुए मारे गए। अंत में कैपबेल ने मार्च, 1858 में विद्रोह को दबा कर लखनऊ पर पुनः कब्जा कर लिया।

–  तात्या टोपे के नेतृत्व में ‘चिनहट’ के पास अंग्रेजी सेना को हराया गया और हेवलॉक मारा गया। कालांतर में कर्नल नील भी लखनऊ में मारा गया।

कानपुर

–  5 जून, 1857 को कानपुर अंग्रेजों के हाथ से निकल गया। यहाँ पर पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहब (धोंदूपंत) ने विद्रोह को नेतृत्व प्रदान किया। इसमें उनकी सहायता तात्या टोपे ने की थी, जिनका असली नाम रामचंद्र पांडुरंग था।

–  दिसंबर, 1857 में कैंपबेल ने कानपुर पर फिर से अधिकार कर लिया। नाना साहब अंत में नेपाल चले गए।

झाँसी

–  झाँसी में जून, 1857 में रानी लक्ष्मीबाई (जन्म-वाराणसी, मृत्यु ग्वालियर) के नेतृत्व में विद्रोह प्रारंभ हुआ। झाँसी में ह्यूरोज की सेना से पराजित होकर वे ग्वालियर पहुँची। तात्या टोपे झाँसी की रानी से जाकर मिले। झाँसी की रानी सैनिक वेशभूषा में लड़ती हुई दुर्ग की दीवारों के पास वीरगति को प्राप्त हुई।

–  तात्या टोपे ने अंग्रेजों को सर्वाधिक परेशान किया और सिंधिया की अस्वीकृति के बावजूद ग्वालियर की सेना व जनता का उन्हें सहयोग मिला। अपने गुरिल्ला युद्धों द्वारा उन्होंने विद्रोह को एक नया आयाम दिया, किंतु बाद में उनके विश्वासघाती मित्र मान सिंह ने उन्हें गिरफ्तार करवा दिया और वर्ष 1859 में ग्वालियर में उन्हें फाँसी दे दी गई।

बिहार

–  जगदीशपुर में विद्रोह का नेतृत्व कुँवर सिंह ने किया। कुँवर सिंह की मृत्यु के बाद विद्रोह का नेतृत्व इनके भाई अमर सिंह ने किया। अंत में विलियम टेलर एवं विसेंट आयर ने यहाँ विद्रोह को दबा दिया।

फैज़ाबाद

–  फैज़ाबाद में विद्रोह का नेतृत्व अहमदुल्लाह ने किया। कैंपबेल ने यहाँ के विद्रोह को दबाया।

–  अहमदुल्ला ने अंग्रेजों के विरुद्ध जिहाद का नारा दिया था।

इलाहाबाद

–  इलाहाबाद में जून के प्रारंभ में विद्रोह हुआ, जिसकी कमान मौलवी लियाकत अली ने संभाली। अंत में जनरल नील ने यहाँ के विद्रोह को दबा दिया। विद्रोह के दौरान तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग ने इलाहाबाद को आपातकालीन मुख्यालय बनाया था।

बनारस

–  सामान्य जनता का विद्रोह।

–  कर्नल नील द्वारा दमन।

–  यहाँ बच्चों व स्त्रियों को भी मृत्युदंड दे दिया गया।

बरेली

–  बरेली में खान बहादुर खाँ ने विद्रोहियों का नेतृत्व किया और अपने आप को ‘नवाब’ घोषित किया।

–  कैंपबेल ने यहाँ के विद्रोह को भी दबा दिया और खान बहादुर को फाँसी की सजा दी गई।

राजस्थान

–  राजस्थान में कोटा ब्रिटिश विरोधियों का प्रमुख केंद्र था। यहाँ जयदयाल और मेहराव खाँ ने विद्रोह को नेतृत्व प्रदान किया।

असम

–  असम में विद्रोह की शुरुआत मनीराम दत्त ने की तथा अंत में राजा के पोते कंदर्पश्वर सिंघा को राजा घोषित कर दिया। मनीराम को पकड़कर कलकत्ता में फाँसी दे दी गई।

उड़ीसा

–  उड़ीसा में संबलपुर के राजकुमार सुरेंद्र साई विद्रोहियों के नेता बने। 1862 ई. में सुरेंद्र साई ने आत्मसमर्पण कर दिया। इन्हें देश से निकाल दिया गया।

  नोट : फैजाबाद के मौलवी अहमदुल्लाह ने अंग्रेजों के विरुद्ध फतवा जारी किया और जिहाद का नारा दिया। अंग्रेजों ने इनके ऊपर 50 हज़ार रुपये का इनाम घोषित किया था।

–  विद्रोह के समय एक झंडा गीत की रचना हुई, जिसे अजीमुल्लाह ने लिखा था।

–  लंदन टाइम्स के पत्रकार ‘माइकल रसेल’ ने इस विद्रोह का सजीव वर्णन किया।

–  बंगाल, पंजाब, राजपूताना, पटियाला, जींद, हैदराबाद, मद्रास आदि ऐसे क्षेत्र थे, जहाँ पर विद्रोह पनप नहीं सका। यहाँ के शासक व जमींदार वर्ग ने विद्रोह को कुचलने में ब्रिटिशों की सहायता भी की।

–  1857 की क्रांति में अवध में इस तरह जनता ने भाग लिया कि यह स्वतंत्रता संग्राम जैसा प्रतीत होने लगा।

1857 की क्रांति का परिणाम

–  स्वतंत्रता संग्राम की दृष्टि से भले ही यह विद्रोह असफल रहा हो, परंतु इसके दूरगामी परिणाम काफी उपयोगी रहे। मुगल साम्राज्य का दरवाजा सदा के लिए बंद हो गया। ब्रिटिश क्राउन ने कंपनी से भारत पर शासन करने के सभी अधिकार वापस ले लिए।

–  1 नवंबर, 1858 में इलाहाबाद में आयोजित दरबार में लॉर्ड कैनिंग ने महारानी विक्टोरिया की उद्घघोषणा को पढ़ा। उद्घघोषणा में भारत में कंपनी का शासन समाप्त कर भारत का शासन सीधे क्राउन के अधीन कर दिया गया।

–  इस अधिनियम के द्वारा भारत राज्य सचिव के पद का प्रावधान किया गया तथा उसकी सहायता के लिए 15 सदस्यीय इंडिया काउंसिल (मंत्रणा समिति) की स्थापना की गई। इन सदस्यों में 8 की नियुक्ति ब्रिटिश सरकार द्वारा तथा 7 की नियुक्ति ‘कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स’ द्वारा किया जाना सुनिश्चित किया गया।

–  भारत सचिव ब्रिटिश कैबिनेट का सदस्य होता था और इस प्रकार संसद के प्रति उत्तरदायी होता था।

–  1858 के अधिनियम के तहत भारत के गवर्नर जनरल को वायसराय कहा जाने लगा। इस तरह लॉर्ड कैनिंग भारत के प्रथम वायसराय बने। ब्रिटिश के साम्राज्य विस्तार पर रोक, धार्मिक मामलों में अह स्तक्षेप, सबके लिए एक समान कानूनी सुरक्षा उपलब्ध कराना, भारतीयों के प्राचीन अधिकारों की रक्षा व रीति-रिवाजों के प्रति सम्मान के वायदे भारत सरकार अधिनियम, 1858 के तहत किए गए।

–  अंग्रेजों की सेना का पुनर्गठन किया गया ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सके। अब भारतीय सैनिकों की संख्या में वृद्धि की गई। तोपखाना पूर्णतः यूरोपीय सैनिकों के हाथों में सौंप दिया गया। विद्रोह के पूर्व बंगाल व अवध के सैनिकों की संख्या सर्वाधिक थी, परंतु अब सिखों व गोरखों की संख्या में काफी बढ़ोतरी कर दी गई।

1857 के विद्रोह के बारे में इतिहासकारों के मत

–  “यह धर्मांधों का ईसाइयों के विरुद्ध एक धर्मयुद्ध था”- एल.ई.आर. रीज

–  यह राष्ट्रीय विद्रोह था, न कि सिपाही विद्रोह – बेंजामिन डिजरैली

–  1857 का विद्रोह न तो प्रथम था, न ही राष्ट्रीय था और यह न ही स्वतंत्रता संग्राम था। – आर. सी. मजूमदार

–  यह पूर्णतया देशभक्ति रहित और स्वार्थी सिपाही विद्रोह था। – सीले

–  यह सिपाही विद्रोह के अतिरिक्त कुछ नहीं था – जॉन लॉरेंस

–  यह सभ्यता एवं बर्बरता का संघर्ष था। – टी.आर. होम्स

–  यह विद्रोह राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए लड़ा गया सुनियोजित स्वतंत्रता संग्राम था। – वी.डी. सावरकर

–  यह अंग्रेज़ों के विरुद्ध हिंदू व मुसलमानों का षड्यंत्र था। – जेम्स आउट्रम व डब्ल्यू. टेलर 1857 की क्रांति से संबंधित प्रमुख पुस्तकें एवं उनके लेखक

‘द इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेस 1857’वी. डी. सावरकर
‘द पीजेंट एंड द राज’एरिक थॉमस स्टोक्स
1857 द ग्रेट रिवोल्ट’अशोक मेहता
‘द सिपॉय म्यूटिनी एंड रिवोल्ट ऑफ 1857’आर. सी. मजूमदार
‘सिविल रिबेलियन इन इंडियन म्यूटिनीस 1857-1859’शशि भूषण चौधरी
‘द हिस्ट्री ऑफ द सिपॉय वॉर इन इंडिया’जॉन विलियम काये
द कॉजेज ऑफ द इंडियन रिवोल्ट (1858)सर सैय्यद अहमद खाँ
‘द सिपॉय म्यूटिनी ऑफ 1857’ ए सोशल एनालिसिसएच.पी. चट्टोपाध्याय
‘1857’एस.एन.सेन
1857 का विद्रोह संक्षेप में
केन्द्रविद्रोहीविद्रोह कुचलने वाले अंग्रेज अधिकारी
दिल्ली11-12 मई, 1857बहादुरशाह, बख्त खाँनिकलसन, हडसन
कानपुर5 जून, 1857 ई.नाना साहब, तात्या टोपेकॉलिन कैम्पबेल, हेवलॉक
लखनऊ/अवध4 जून, 1857 ई.बेगम हजरत महलकैंम्बवेल
झाँसी, ग्वालियर4 जून, 1857रानी लक्ष्मी, तात्या टोपेजनरल ह्यूरोज
जगदीशपुर12 जून, 1857कुंवर सिंहविलियम टेलर, विंसेट आयर
फैजाबादजून, 1857मौलवी अहमद उल्लाजनरल रेनॉर्ड
इलाहाबाद6 जून, 1857लियाकत अलीकर्नल नील
बरेलीजून, 1857खान बहादुर खान (बख्त खाँ)विंसेट आयर, कैम्पबेल
फतेहपुरअजीमुल्लारेनर्ड एवं कैम्पबेल

–  डॉ. ताराचन्द को भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का सरकारी इतिहासकार माना जाता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर ब्रिटिश प्रभाव

–  भारत में अनेक विदेशी शक्तियों का आगमन हुआ जिसमें ब्रिटिश प्रमुख है क्योंकि ब्रिटिश शासन के परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था उपनिवेशी अर्थव्यवस्था (Clonial Economy) में रुपांतरित हो गई तथा भारतीय अर्थव्यवस्था की सभी नीतियाँ एवं कार्यक्रम औपनिवेशिक हितों के अनुसार बनने लगे। 1757 में ‘प्लासी युद्ध’ के बाद ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ ने बंगाल पर प्रभुत्व स्थापित कर लिया।

1.  अनौद्योगीकरण एवं भारतीय हस्तशिल्प का ह्रास ̵ 1813 के चार्टर एक्ट द्वारा ब्रिटिशों को भारत से व्यापार करने की आजादी मिलने के बाद भारतीय बाजार सस्ते एवं मशीन निर्मित आयात से भर गए। इधर भारतीय उत्पादों का यूरोपीय बाजारों में प्रवेश करना अत्यंत कठिन हो गया। 1820 ई. के पश्चात् यूरोपीय बाजार भारतीय उत्पादों के लिए बंद हो गए। भारत में रेलवे के विकास ने यूरोपीय उत्पादों को भारत के दूर-दराज क्षेत्रों में भर जाने से भारतीय माल अंग्रेजों के सस्ते माल से प्रतिस्पर्द्धा नहीं कर सका। इसके कारण भारत के अनेक शहरों का पतन हुआ तथा भारतीय शिल्पियों ने गाँवों की ओर पलायन किया। अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियों के कारण बहुत से भारतीय दस्तकारों ने अपने परंपरागत व्यवसाय को त्याग दिया। वे गाँवों में जाकर खेती करने लगे। 1901 और 1941 के बीच कृषि पर निर्भर जनसंख्या का 63.7% थी। हुआ यह दबाव ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की घोर गरीबी के मुख्य कारणों में से एक था। भारत एक सम्पूर्ण निर्यातक देश से सम्पूर्ण आयातक देश बना गया।

– 1813 एक्ट द्वारा कम्पनी का व्यापारिक एकाधिकार समाप्त कर दिया था।

2.  किसानों की दरिद्रता – कालान्तर में लगान व्यवस्था में व्याप्त असंगतियों के कारण वारेन हेस्टिंग्स ने 1772 ई. में बंगाल में द्वैध शासन का अंत कर राजस्व वसूली का काम स्वयं कम्पनी की देखरेख में शुरू किया।

इजारेदारी प्रथा

–  1772 में एक पंचवर्षीय इजारेदारी प्रथा चालू  की गई। इस नई प्रथा में सबसे अधिक बोली लगाने वाले को भू-राजस्व वसूली का ठेका दिया जाता था।

–  इस प्रथा से भू-राजस्व की रकम तो बढ़ गई पर वास्तविक वसूली प्रतिवर्ष घटती बढ़ती रहती थी। यह योजना, कृषि की उन्नति, कृषकों का शोषण बंद करने और कंपनी की धन की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकी।

–  इस पंचवर्षीय इजारेदारी प्रथा के असफल होने के बाद इसे 1776 ई. में एक वर्षीय कर दिया। इसमें जमींदारों को प्राथमिकता दी गई।     

–  इसी समय ब्रिटेन अपना अमेरिकी उपनिवेश खो चुका था। अंत: वो भारत को मजबूत उपनिवेश बनाने को प्रयासरत था।

–  वॉरेन हेस्टिंग्स के बाद गवर्नर जनरल लॉर्ड कॉर्नवालिस का आगमन हुआ। उन्होंने यह अनुभव किया की कृषि अर्थव्यवस्था में गिरावट के कारण कंपनी की राजस्व दर में उतार चढ़ाव हो रहा है। तो उन्होंने नई प्रथा को शुरू किया।

जमींदारी/स्थायी/इस्तमरारी व्यवस्था (1793 ई.)

(Perment Land Reveunu System)

–  वर्ष 1790 में कॉर्नवालिस ने एक 10 वर्षीय भू-राजस्व लागू की जिसे स्थायी बंदोबस्त के नाम से जाना गया। इसमें भूमि का मालिक तथा लगान वसूली का अधिकारी जमींदार को ही माना गया। 1793 में कॉर्नवालिस ने 10 वर्षीय व्यवस्था को बदलकर स्थायी कर दिया। लगान वसूली का 10/11 भाग सरकार का  तथा शेष 1/11 भाग जमींदार का तय कर दिया गया, जमींदार किसानों से कितना लगान वसूल करें यह तय नहीं होने के कारण जमींदार किसानों से अत्यधिक लगान वसूलते थे जिससे किसानों पर शोषण बढ़ने लगा। 1793 के अधिनियम-14 से सरकार को जमींदार की संपत्ति जब्त करने का अधिकार मिला। 1794 में सूर्यास्त का नियम लागू कर दिया। अर्थात् नियत समय तक सरकार के पास लगान न पहुँचने पर जमींदारी नीलाम की जाने लगी। यह व्यवस्था भारत के 19% भाग पर लागू की  गई जिसमें बंगाल, बिहार, उड़ीसा के अतिरिक्त बनारस व उत्तरी कर्नाटक के क्षेत्र शामिल कर जमीनों की नीलामी के कारण उपसामंतीकरण का उदय हुआ। अंग्रेजों को भारत में जमींदारों के रूप में एक सामंती मित्र मिल गया जो  चाहते थे, की अंग्रेज यहाँ बसे रहे। इसलिए 1857 की क्रांति में जमींदारों ने अंग्रेजों का साथ दिया।

रैय्यतवाड़ी व्यवस्था (Ryotwari System) (1792 ई.)

–  इसमें प्रत्येक पंजीकृत भूमिदार (किसान) को भूमि का स्वामी माना गया। यदि किसान निर्धारित लगान जमा नहीं कर पाया तो उसे भू-स्वामित्व से वंचित कर दिया जाता था। इस व्यवस्था का जन्मदाता टॉमस मुनरो और कैप्टन रीड को कहा जाता है। 1792 ई. में पहली बार रैय्यतवाड़ी व्यवस्था बारामहल जिले में कर्नल रीड द्वारा लागू की गई। 1820 में इसे मद्रास में लागू किया गया। यहाँ मुनरो को गवर्नर नियुक्त गया। 1825 ई. में यह व्यवस्था बंबई तथा 1858 ई. तक यह संपूर्ण दक्कन और अन्य क्षेत्रों में लागू की गई। यह व्यवस्था भारत के 51% भू-भाग पर लागू की गई थी। यह व्यवस्था 30 वर्षों के लिए लागू की गई और इसकी दर 1/3 निश्चित की गई। अधिकांश क्षेत्रों में अधिक राजस्वप्राप्ति के लिए लगान की दरें ऊँची रखी गई थी।

महालवाड़ी व्यवस्था (Mahalwari System)

–  महाल का अर्थ – गाँव होता है। इस व्यवस्था में गाँव के मुखिया से सरकार का लगान वसूली का समझौता होता था। इस व्यवस्था को होल्ट मैकेंजी ने शुरू किया। 1820 ई. में इस योजना का प्रतिवेदन दिया व 1822 ई. में महालवाड़़ी व्यवस्था को कानूनी रूप से लागू किया गया। यह व्यवस्था मध्य प्रांत, उत्तर प्रदेश एवं पंजाब में लागू थी। इस व्यवस्था में महाल के मुखिया को अत्यधिक शक्तिशाली बना दिया। इससे सरकार को लगान वसूली में अधिक खर्च करना पड़ा यह व्यवस्था बुरी तरह विफल रही।

–  इस व्यवस्था को रेग्यूलेशन -7 के द्वारा ब्रिटीश भरत के 30% भाग पर लागू की गई थी।

3.  पुराने जमींदारों की तबाही तथा नयी जमींदारी व्यवस्था का उदय–   

–  ब्रिटिश शासन के पिछले कुछ दशकों में बंगाल व मद्रास के पुराने जमींदार तबाह हो गए। यह सबसे ऊँची बोली लगाने वाले जमींदार को ही राजस्व वसूली के अधिकार नीलाम करने की वॉरेन हेस्टिंग्स की नीति के कारण हुआ। वसूली संबंधी सख्ती के कारण राजस्व अदायगी में विलंब के कारण जमींदारी संपत्तियाँ बड़ी कठोरता से नीलाम कर दी गई। लगभग आधी भू-संपत्तियाँ पुराने जमींदारों के हाथों से निकलकर सौदागरों तथा अन्य धनी वर्गों के पास जा चुकी थी। ये किसानों से बहुत अधिक लगान ऐठते तथा जब भी चाहते उन्हें बेदखल कर देते।

–  उत्तर मद्रास में स्थायी बंदोबस्त और उत्तर प्रदेश में अस्थायी जमींदारी बंदोबस्त भी स्थानीय जमींदार के लिए समानरूप से कठोर थे।

–  जमींदार भू-राजस्व समय पर अदा कर सकें, इसके लिए किसानों के परंपरागत अधिकार समाप्त हो गए। रैयतवाड़़ी क्षेत्रों में भी जमींदार- रैयत संबंधों की प्रणाली धीरे-धीरे असफल हो गई। अधिकाधिक जमीन महाजनों, सौदागरों और धनी किसानों के हाथ में चली गई। बटाईदारी नामक एक अन्य प्रथा का प्रसार हुआ। जमींदारी प्रथा के प्रसार के कारण बिचौलियों का उदय हुआ। जमींदारों एवं किसानों के मध्य कोई परंपरागत समझौता न होने के कारण इन जमींदारों ने कृषि के विकास के लिए न किसी प्रकार का निवेश किया न ही इस कार्य में रुचि ली। इन जमींदारों का हित ब्रिटिश शासन के चलते रहने से ही था और इसलिए इन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में अंग्रेजों का साथ दिया।

4.  कृषि में ठहराव एवं उसकी बर्बादी –

–  कृषि पर जनसंख्या के बढ़ते दबाव, अत्यधिक भू-राजस्व निर्धारण जमींदारी प्रथा के पनपने, बढ़ती ऋणग्रस्तता और किसानों की बढ़ती दरिद्रता के परिणामस्वरूप भारतीय कृषि का द्वारा होने लगा। वर्ष 1901 से 1939 के बीच कुल कृषि उत्पादन 14% कम हो गया। जमींदारों का गाँवों से कोई संबंध नहीं था तथा सरकार द्वारा कृषि तकनीक एवं कृषि से संबंधित शिक्षा पर किया जाने वाला व्यय अत्यल्प था।

–  इन सभी कारणों से भारतीय कृषि का धीरे-धीरे पतन होने लगा तथा उसकी उत्पादकता कम हो गई।

5.  भारतीय कृषि का वाणिज्यीकरण ̵

–  इस दौर में कुछ विशेष फसलों का उत्पादन राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए होने लगा न कि ग्रामीण उपयोग के लिए। मूँगफली, गन्ना, पटसन, कपास, नील अफीम, चाय, तिलहन, तंबाकू, मसाले, फलों तथा सब्जियों जैसी वाणिज्य फसलों का उत्पादन बढ़ गया। वाणिज्यीकरण के फलस्वरूप किसान ऋण के बोझ में और दब गए, उसकी जमीनें नीलाम हो गई उन्हें अकाल का सामना करना पड़ा तथा दक्षिण भारत में व्यापक पैमाने पर आंदोलन हुए।

6.  आधुनिक उद्योगों का विकास ̵

–  उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में बड़े पैमाने आधुनिक उद्योगों की स्थापना की गई। जिसके कारण भारत में मशीनी युग प्रारंभ हुआ। पहली कपड़ा मिल 1853 ई. में कावसजी नाना भाई ने बंबई में शुरू की और पहली जूट मिल 1855 ई. में रिशरा (बंगाल) में स्थापित की गई। इन उद्योगों का विस्तार धीरे-धीरे मगर सतत रूप से हुआ। 1879 ई. तक भारत में 56 सूती मिल स्थापित हुई जिनमें लगभग 43000 लोग काम करते थे।

–  1905 तक 200 सूती मिल व 36 से अधिक जूट मिल थी। लेकिन इस अवधि में भारतीय स्वामित्व वाले उद्योगों के समक्ष अनेक समस्याएँ थी जैसे- भारत की ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रशुल्क संरक्षण का अभाव, विदेशी उद्योगों से असमान प्रतिस्पर्द्धा तथा ब्रिटिश उद्योगपत्तियों द्वारा दृढ़ विरोध आदि। तकनीकी शिक्षा को संरक्षण न दिए जाने के कारण उद्योगों को तकनीकी रूप से दक्ष मानवशक्ति के अभाव का सामना करना पड़ा।

–  औद्योगिक पूँजीवादी वर्ग तथा श्रमिक वर्ग का उदय इस चरण की महत्त्वपूर्ण विशेषता थी।

7.  रेलवे का विकास क्रम ̵

–  1846 ई. में लॉर्ड हार्डिंग द्वारा सैन्य यातायात के लिए पहली बार भारत में रेलवे के विकास की बात की गई।

–  भारत में रेलवे के विकास क्रम का प्रथम चरण 1849 से 1864 ई. तक माना जाता है।

–  1849 ई. में पहली रेलवे लाइन कलकत्ता से रानीगंज तक बिछाई गई।

–  1853 ई. में डलहौजी के काल में रेलवे के विकास में तीव्रता आई। इसमें निवेश की शुरुआत सार्वजनिक कंपनियों ने नहीं बल्कि निजी कंपनियों ने की।

–  देश में पहली रेल मुंबई से थाणे के बीच चलाई गई (16 अप्रैल, 1853)

–  1856 ई. में भारत में विदेशी निवेश की शुरुआत रेलवे के संदर्भ में ही हुई।

–  1869 ई. तक रेलवे प्रबंधन के लिए 33 कंपनियाँ थी जिसमें 24 निजी, 5 सरकारी व 4 देशी रियासतें थी।

–  1879 ई. में लिटन के कार्यकाल में सबसे पहले पूर्वी रेलवे को खरीदा गया।

–  वर्ष 1905 ई. में कर्जन ने थॉमस राबर्टसन के नेतृत्व में एक रेलवे बोर्ड की स्थापना की।

–  एकबर्थ आयोग (1921-22) की रिपोर्ट के आधार पर वर्ष 1925 में रेलवे बजट को आम बजट से अलग कर दिया गया।

–  1947 में आजादी के पहले के.सी. नियोगी की अध्यक्षता में रेलवे वित्त से संबंधित तथ्यों के निरीक्षण के लिए एक समिति का गठन हुआ।

–  1853 ई. में भारत में पहला चाय बगान स्थापित हुआ और 1837 ई. में असम चाय लिमिटेड की स्थापना की गई। वर्ष 1916 में थॉमस होलैंड के नेतृत्व में एक ‘औद्योगिक आयोग’ भारत आया। इब्राहिम रहीमतुल्ला की अध्यक्षता में वित्तीय आयोग ने भी भारत के उद्योगों के संरक्षण की माँग की। 1830 ई. में आधुनिक इस्पात तैयार करने का प्रथम प्रयास अर्काट (मद्रास) में जेसिया मार्सल हिट द्वारा किया गया। 1874 ई. में ‘बंगाल आयरन एण्ड वर्क्स कंपनी’ स्थापित हुई जो भारत में पहली आधुनिक लौह इस्पात कंपनी बनी। वर्ष 1907 में निजी क्षेत्र में पहला इस्पात कारखाना लगाया गया (TISSCO)।

–  टाटा लौह इस्पात कारखाना, वर्ष 1927 में फिक्की (FICCI) की स्थापना से भारतीय उद्योगपतियों व स्वदेशी उद्योगों को संरचनात्मक आधार मिला।

8.  आर्थिक निकास ̵

–  भारतीय उत्पाद का वह हिस्सा जो जनता के उपभोग के लिए उपलब्ध नहीं था तथा राजनीतिक कारणों से जिसका प्रवाह इंग्लैण्ड की ओर हो रहा था जिसके बदले में भारत को कुछ नहीं प्राप्त हो रहा था। इसे आर्थिक निकास की संज्ञा दी गई। दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक ‘पॅावर्टी एण्ड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया’ में सर्वप्रथम आर्थिक निकास की अवधारणा प्रस्तुत की। भारतीय धन के इंग्लैण्ड में निकासी के कारण भारत में पूँजी का निर्माण एवं संरक्षण नहीं हो सका, जबकि इंग्लैण्ड की समृद्धि बढ़ती गई। इस धन के निकास से भारत में रोजगार तथा आय की संभावनाओं पर अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। रमेशचन्द्र दत्त ने अपनी पुस्तक ‘इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इंडिया’ में धन निकास का उल्लेख किया है।

9.  दरिद्रता और अकाल ̵

–  देश में पहला अकाल 1860-61 ई. में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पड़ा जिसमें दो लाख लोगों की मृत्यु हुई। 1865-66 ई. में उड़ीसा, बंगाल, बिहार और मद्रास में अकाल के कारण 20 लाख लोगों की जान गई। केवल उड़ीसा में 10 लाख लोग मारे गए। इस समय का सबसे भयंकर अकाल 1876-78 ई. में मद्रास, मैसूर, हैदराबाद, महाराष्ट्र, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पंजाब में पड़ा। पशुओं एवं अन्य संसाधनों के अभाव में कई बार किसान खेती भी नहीं कर पाते थे। वर्ष 1850 से 1900 के बीच तकरीबन 2 करोड़ 80 लाख लोग केवल सूखे के कारण काल के ग्रास में समा गए।

ब्रिटिश काल में गठित आयोग
आयोगअध्यक्षस्थापना वर्षगवर्नर जनरलविषय वस्तु
इनाम आयोगइनाम1852 ई.लॉर्ड डलहौजीभू-स्वामियों की उपाधियों की जाँच हेतु।
हर्शल समितिहर्शल1893 ई.लॉर्ड लेंस डाउनटकसाल संबंधी सुझाव के लिए।
फ्रेजर आयोगएन्ड्रफ्रेजर1902 ई.लॉर्ड कर्जनपुलिस प्रशासन।
शाही आयोगलॉर्ड इसलिंग्टन1912 ई.लॉर्ड हार्डिगलोक सेवा (नागरिक सेवा)।
शाही आयोगलॉर्ड ली1923 ई.लॉर्ड रीडिंगनागरिक सेवा।
स्कीन समिति(भारतीय सैन्डहर्स्ट समिति)सर एन्ड्रयू स्कीन1925 ई.लॉर्ड रीडिंगसेना का भारतीयकरण करने के बारे में।
रेल समितिसर विलियम एकवर्थ1924 ई.लॉर्ड रीडिंगभारतीय रेल।
बटलर समितिसर हारकोर्ट बटलर1927 ई.लॉर्ड इरविनदेशी राज्यों व ब्रिटिश परमसत्ता के बीच संबंधों को परिभाषित करने के लिए।
हिटले आयोगजे.एच.हिटले1929 ई.लॉर्ड इरविनश्रमिकों के बारे में।
लिण्डसे आयोगए.डी.लिण्डसे1929 ई.लॉर्ड इरविनमिशनरी शिक्षा के विकास के लिए
भारतीय परिसीमन (सीमा निर्देश) समितिसर लौरी हेमन्ड1935 ई.लॉर्ड वेलिंगटननिर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन।
विकेन्द्रीकरण पर शाही आयोग1908 ई.लॉर्ड मिन्टोस्थानीय स्वशासन तथा विकेन्द्रीकरण पर सिफारिश
लोक सेवा आयोगसर चार्ल्स एटचिन्सन1886 ई.लॉर्ड डफरिनसिविल सेवा परीक्षा प्रणाली के बारे में रिपोर्ट।
मुड्डिमैन कमेटी(रिफोम इन्क्वायरी कमेटी)एलेक्जेण्डर मुड्डिमैन1924 ई.लॉर्ड रीडिंग1919 के अधिनियम के द्वैधशासन की जाँच।
मुद्रा से संबंधित आयोग
आयोग/समिति का नामगठन का वर्षमुख्य सिफारिशें व उद्देश्यगवर्नर जनरल
मेंसीफील्ड आयोग1866 ई.मुद्रा समस्या पर विचारलॉर्ड लारेन्स
हर्शल समिति1893 ई.टकसाल संबंधी सुझावलॉर्ड लेंसडाउन
सर हेनरी फाउलर समिति1898 ई.सौवरिन व रूपया दोनों एक शिलिंग चार पेन्स प्रति रुपये की दर से असीमित कानूनी टेंडर बना दिया गए।लॉर्ड एल्ग्नि द्वितीय
सर हेनरी बेमिगंटन समिति1919-20 ई.इसकी सिफारिशों पर एक राजस्व आयोग (Fiscal Commission) गठित किया गया, जिसके अध्यक्ष एम. रहीममुल्ला थे।लॉर्ड चेम्सफोर्ड
हिल्डन यंग कमीशन1925 ई.मुद्रा व्यवस्था पर सिफारिशलॉर्ड रीडिंग
चेम्बरलेन आयोग (द रॉयल कमीशन ऑनइंडियन फाइनेंस एण्ड करेन्सी)1931 ई.मुद्रा प्रणाली पर सुझावलॉर्ड इरविन

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1857 Ki Kranti से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न

1857 की क्रांति कब और कैसे शुरू हुई?

बैरकपुर छावनी के एक सिपाही मंगल पांडे ने 29 मार्च, 1857 को चर्बी वाले कारतूस का प्रयोग करने से मना कर दिया और अपने दो अधिकारियों लेफ्टिनेंट जनरल ह्यूसन और लेफ्टिनेंट बाग की हत्या कर दी थी। 

1857 की क्रांति कहाँ से शुरू हुई?

1857 की क्रांति की शुरुआत 10 मई, 1857 ई. को मेरठ से हुई थी

1857 के विद्रोह के मुख्य कारण क्या थे?

1857 का विद्रोह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अन्यायपूर्ण शासन के खिलाफ भारत में एक शक्तिशाली विद्रोह था। 1857 का विद्रोह मुख्यतः उत्तरी और मध्य भारत तक ही सीमित था। 

1857 की क्रांति के प्रश्न उत्तर mcq

Q.1
‘चलो दिल्ली, मारो फिरंगी’ का नारा किस छावनी के सैनिकों ने दिया?

1
नीमच

2
देवली

3
एरिनपुरा

4
नसीराबाद

Q.2
निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए –

(विद्रोह के केंद्र) (विद्रोही नेता)
A. लखनऊ 1. बेगम हजरत महल
B. जगदीशपुर 2. कुँवर सिंह
C. इलाहाबाद 3. खान बहादुर
D. बरेली 4. लियाकत अली
कूट :

1
A-1, B-2, C-3, D-4

2
A-1, B-2, C-4, D-3

3
A-4, B-3, C-2, D-1

4
A-3, B-4, C-2, D-1

Q.3
निम्नलिखित में से किसने 1857 के विद्रोह में कोई भूमिका नहीं निभाई?

1
बहादुरशाह जफर

2
बेगम हजरत महल

3
बालाजी बाजीराव

4
रानी लक्ष्मी बाई

Q.4
1857 के विद्रोह में मानसिंह ने किसको धोखा दिया, जिसे अंग्रेजों द्वारा फाँसी दे दी गई?

1
नाना साहब

2
तात्या टोपे

3
बहादुरशाह जफर

4
कुँवर सिंह

Q.5
भारत में शिक्षित वर्ग ने –

1
1857 के विद्रोह का विरोध किया।

2
1857 के विद्रोह से तटस्थता बनाए रखी।

3
देशी रियासतों का समर्थन किया।

4
1857 के विद्रोह का समर्थन किया।

Q.6
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में किस राजवंश ने अंग्रेजों की सर्वाधिक सहायता की?

1
नागपुर के भोसले

2
ग्वालियर के सिंधिया

3
राजस्थान के गुहिल

4
रामगढ़ के लोदी

Q.7
निम्नलिखित में से किसे धोंधू पंत के नाम से भी जाना जाता है?

1
कुँवर सिंह

2
तात्या टोपे

3
नाना साहब

4
बख्त खाँ

Q.8
1857 के विद्रोह से निम्नांकित में से कौन संबंधित नहीं था?

1
कुँवर सिंह

2
रानी लक्ष्मी बाई

3
ऊधम सिंह

4
तात्या टोपे

Q.9
किस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को ह्यूरोज ने वीरतम् और श्रेष्ठतम् कहा था?

1
नाना साहब को

2
रानी लक्ष्मी बाई को

3
बहादुरशाह जफर को

4
बेगम हजरत महल को

Q.10
पटना में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के नेता थे-

1
बेगम हजरत महल

2
नाना साहब

3
कुँवर सिंह

4
खान बहादुर खान

Q.11
1857 के विद्रोह के दौरान बहादुरशाह जफर को किस मुगल शासक के मकबरे से गिरफ्तार किया गया?

1
हुमायूँ

2
अकबर

3
शाहजहाँ

4
जहाँगीर

Q.12
कुशासन के आधार पर डलहौजी ने ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल किया-

1
झाँसी

2
अवध

3
नागपुर

4
सतारा

Q.13 29 मार्च, 1857 की तिथि किस घटना से संबंधित है?

1
मेरठ विद्रोह

2
बैरकपुर विद्रोह

3
कानपुर विद्रोह

4
लखनऊ विद्रोह

Q.14 ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा 1857 के विद्रोह के दमन के लिए निम्नलिखित युग्मों पर विचार करें-
क्षेत्र अधिकारी

  1. दिल्ली जॉन निकोलसन
  2. कानपुर सर कॉलिन कैंपबेल
  3. रानी झाँसी कर्नल नील
    उपर्युक्त में से सही युग्म है-

1
केवल 1 और 3

2
केवल 1 और 2

3
केवल 2 व 3

4
उपर्युक्त सभी

Q.15 1857 ई. के विद्रोह का वह नेता जिसने विद्रोह के दौरान फ्रांस के सम्राट नेपोलियन तृतीय को तीन पत्र भेजे थे-

1
रानी लक्ष्मीबाई

2
तात्या टोपे

3
नाना साहब

4
सम्राट बहादुरशाह-द्वितीय

Q.16 निम्न में से किस नेता ने 1857 की क्रांति को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के रूप में बताया?

1
जवाहर लाल नेहरू

2
महात्मा गाँधी

3
लोकमान्य तिलक

4
वी.डी. सावरकर

Q.17 1857 के विद्रोह के फैलने का सही क्रम है-

1
मेरठ-दिल्ली-कानपुर-लखनऊ-इलाहाबाद

2
मेरठ-दिल्ली-लखनऊ-कानपुर-इलाहाबाद

3
मेरठ-दिल्ली-इलाहाबाद-लखनऊ-कानपुर

4
मेरठ-दिल्ली-कानपुर-इलाहाबाद-लखनऊ

Q.18 1857 के विद्रोह के पश्चात् नियुक्त पील आयोग का मुख्य उद्देश्य क्या था?

1
1857 के वुड्स डिस्पैच के गैर-कार्यान्वयन की शिकायतों को देखना।

2
क्राउन और रियासतों के बीच भविष्य के संबंधों को बनाने की रणनीति

3
भारत में सैन्य मामलों को देखना

4
भारत में एक साथ सिविल सेवा परीक्षा आयोजित करने से संबंधित याचिकाओं पर गौर करने के लिए।

Q.19 निम्न मे से किसने 1857 के विद्रोह को एक षड्यंत्र की संज्ञा दी?

1
टी.आर. होम्स

2
जॉन सीले

3
जेम्स आउट्रम एवं डल्यू. टेलर

4
लॉर्ड लॉरेन्स

Q.20
निम्नलिखित युग्मों पर विचार करें-

पुस्तक लेखक
1.Eighteen fifty seven एस. एन. सेन

  1. The great Rebellion आर. सी. मजूमदार
  2. Sepoy Mutiny and the revolt of 1857 अशोक मेहता
    उपर्युक्त युग्मों में से सही युग्म है-

1
केवल 1

2
केवल 1 और 2

3
केवल 2 और 3

4
केवल 1 और 3

Q.21
1857 ई. की क्रांति के परिणामों के संदर्भ में कौन-सा कथन असत्य है?

1
1857 ई. की क्रांति के पश्चात् कम्पनी के शासन की समाप्ति तथा भारत के शासन को सीधे ब्रिटिश ताज के अन्तर्गत लाए जाने की घोषणा हुई।

2
भारत को सुव्यवस्थित शासन प्रदान करने के लिए गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1858 पारित किया गया।

3
अंग्रेजी सेना का पुनर्गठन किया गया तथा उसमें भारतीय सैनिकों का अधिकार बढ़ा दिया गया।

4
1857 ई. की क्रांति में भारतीय शिक्षित वर्ग तटस्थ रहा।

Q.22
1857 की क्रांति के समय अंग्रेजों ने अपनी अस्थाई राजधानी किसे बनाया था?

1
मेरठ

2
कलकत्ता

3
इलाहाबाद

4
लखनऊ

नमस्कार, मैं कुलदीप सिंह पठतु प्लेटफार्म पर शिक्षा जगत से संबंधित लेख लिखने का कार्य करता हूं। मैंने इतिहास विषय से स्नातकोत्तर किया है और वर्तमान में पीएचडी कर रहा हु। यहां इस प्लेटफार्म पर मैं आपको बहुत सी जरूरी जानकारी देने का प्रयास करूंगा जो की शिक्षा जगत से जुड़ी हो।

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