नमस्कार आज हम हिंदी व्याकरण के महत्वपूर्ण अध्याय में से एक पल्लवन के विषय में अध्ययन करेंगे। अध्ययन के दौरान हम इस अध्याय से जुड़े विभिन्न बिन्दुओ पर चर्चा करेंगे जैसे पल्लवन किसे कहते हैं? पल्लवन का अर्थ, पल्लवन की परिभाषा, पल्लवन के उदाहरण एवं विशेषताएं इत्यादि के बारे मे विस्तार पूर्वक चर्चा करेंगे । इस अध्याय का परीक्षा की दृष्टि से बहुत अधिक महत्वपूर्ण है । इसलिए इस Pallawan से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नों का समावेश भी यहाँ पर किया गया है । जिनके अध्ययन से आपको इसकी बहुत अछि तरह से समझ विकसित हो जाएगी । तो आइए जानते है इस अध्याय के बारे मे।
जैसे की आपको तो पता ही होगा की यह अध्याय परीक्षा की दृष्टि से कितना महत्वपूर्ण है क्योंकि आप आएदिन देखते होंगे की सिविल जैसी exam मे इस अध्याय से प्रश्न आते है । तो आपको इसका अध्ययन करना और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है । इसमे आपको अध्ययन के साथ साथ त्रुटियों का भी विशेष ध्यान रखना होता है ताकि आप किसी भी प्रकार के अवांछित नंबर काटे जाने से बच सके तो आइए थोड़ा विस्तार और ध्यान पूर्वक इसका अध्ययन करते हैं ।
पल्लवन किसे कहते हैं?
कहावत, मुहावरे, सूक्ति, भावपूर्ण कथन, नीति वचन आदि को सरल भाषा मे विस्तार के साथ लिखना पल्लवन कहलाता हैं ।
पल्लवन को वृद्धिकरण, विशदिकरण, संवर्धन, भाव विस्तार आदि नामों से भी जाना जाता हैं ।
पल्लवन की परिभाषा
पल्लवन की परिभाषा कुछ इस प्रकार है:,
किसी सुसंगठित एवं गूढ़ विचार या भाव के विस्तार को पल्लवन कहते हैं। अर्थात किसी सूक्ति या गूढ़ विचार वाले वाक्यों के मूल भाव का तर्कसंगत शैली मे विभिन उदाहरणों द्वारा किया गया विस्तार ही पल्लवन कहलाता हैं ।
पल्लवन और विद्वानों के बारे मे यह उक्ति प्रचलित है,
ज्यों केरा के पात में, पात – पात मे पात ।
त्यों चतुरन की बात मे, बात-बात मे बात ।।
पल्लवन का अर्थ
पल्लवन शब्द पल्लव से बना हैं, जिसका अर्थ होता है – पत्ते
पल्लवन की विशेषताएं
- जिस प्रकार पते एक पेड़ को पूर्ण रुपेण आच्छादित कर देते है। लेकिन तने को नहीं ढक पाते हैं उसी प्रकार पल्लवन मे जिस संक्षिप्त गूढ पंक्ति का भाव विस्तार करना होता हैं, उसके मूल तत्व को नहीं छोड़ते हैं।
- पल्लवन मे जिस संक्षिप्त गूढ़ पंक्ति का भाव विस्तार करना होता हैं, उसके मूल भाव को नही छोड़ते हैं ।
- हमे जिस पंक्ति का पल्लवन करना होता है, उसे ध्यान पूर्वक पढ़ कर उसके गूढ़ अर्थ को भली भांति समझ लेना चाहिए।
- ऐसी स्थिति मे उक्त कथन को खोलकर उदाहरण देते हुवे इस तरह स्पष्ट करना होता हैं की वह संक्षिप्त गूढ़ कथन सभी को सरलता से समझ मे आ जाए।
- वृद्धिकरण व्याख्या का एक भाग होता हैं । व्याख्या के चार अंग होते हैं ।
- संदर्भ
- प्रसंग
- व्याख्या
- विशेष
- वृद्धिकरण मे सिर्फ एक ही अंग व्याख्या मे काम आता हैं ।
आवश्यक बिन्दु
- दिए गए कथन को ध्यान पूर्वक पढ़कर उसके गूढ़ अर्थ को समझकर सरल भाषा मे विस्तार करना चाहिए । अर्थात भाषा सरल, सुबोध एवं पठनीय होनी चाहिए ।
- मूलभाव को स्पष्ट करने के लिए उदाहरण आवश्यकता अनुसार नकारात्मक उदाहरणों का इस्तेमाल करना चाहिए ।
- मूल भाव का विस्तार एक या दो अनुछेद में ही करना चाहिए। आवश्यकता अनुसार इनकी संख्या बढ़ाई भी जा सकती हैं।
- वृद्धिकरण में अनावश्यक विस्तार से बचना चाहिए । अर्थात अनावश्यक उदाहरणों से अपने ज्ञान का प्रदर्शन न करे ।
- वृद्धिकरण हमेशा अन्य पुरुष शैली मे लिखा जाता है ।
- वृद्धिकरण मे पुनरावृति नामक दोष से बचना चाहिए ।
पल्लवन के सामान्य ध्यातव्य बिन्दु-
1. मूलभाव–सूक्ति या प्रसिद्ध कथन का भाव-विस्तार करते समय उसके मूलभाव से संबंधित उल्लेख ही करना चाहिए।
2. वैचारिक स्वतंत्रता– संक्षिप्तीकरण के विपरित पल्लवन में अपने विचारों को अभिव्यक्ति करने की छूट होती है
3. अन्य पुरुष शैली– पल्लवन हमेशा अन्य पुरुष शैली में ही करना चाहिए। मेरा मानना है, मैं सोचता हूँ आदि शब्दों का प्रयोग न करें।
4. पांडित्य प्रदर्शन से बचे– इसमें अनर्गल बातों का उल्लेख नहीं करना चाहिए। विषय से संबंधित बातें ही लिखे।
5. पुनरावृत्ति न हो– पल्लवन करते समय शब्दों और विचारों की पुनरावृत्ति से बचा जाना चाहिए।
उदाहरण–1 “कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण है।“
पल्लवन– मनुष्य जीवन में आने वाले कष्ट, विपत्ति और दु:ख उसे दृढ़ बनाते हैं। साहसी और प्रबल इच्छाशक्ति वाला मनुष्य जीवन की बाधाओं से नहीं घबराता। जिस प्रकार सोना आग में तपकर और भी निखरता है उसी प्रकार मनुष्य विपत्तियों और कष्टों का सामना करके पहले से मजबूत बनता है। विपत्तियाँ व्यक्ति को शिक्षा प्रदान करती हैं। नेपोलियन ने भी विश्व की दुर्गम यात्राएँ कर कई देशों को विजित किया था। चाणक्य ने तमाम बाधाओं को पारकर चंद्रगुप्त जैसे महान शासक का निर्माण किया। कष्टों से न घबराकर सदैव उनका दृढ़ता से सामना करना चाहिए।
उदाहरण–2 “महत्वकांक्षा का मोती निष्ठुरता की सीपी में पलता है।“
पल्लवन– महत्वकांक्षी व्यक्ति को अपने जीवन में निष्ठुरता का पालन करना पड़ता है। जीवन की भौतिक सुख–सुविधाओं के प्रति उसे निष्ठुर दृष्टि रखनी पड़ती है। जिस प्रकार मोती जैसा मूल्यवान रत्न सीपी के कठोर आवरण में विकसित होता है उसी प्रकार व्यक्ति को सफलता प्राप्त करने हेतु स्वयं के प्रति कठोर बनना पड़ता है। विश्व के तमाम महान शासकों, राजनेताओं, उद्योगपतियों, अभिनेताओं, गायकों, खिलाड़ियों आदि ने कठोर जीवन शैली का पालन किया है। महात्मा गाँधी, अब्राहम लिंकन, जमेशद जी टाटा, चार्ली चैप्लिन आदि ने अपने जीवन में कठोर नियमों का पालन किया। तभी वे विश्व की सर्वकालिक महान हस्तियाँ बन पाए।
● उदाहरण–3 “असफलताएँ सफलता का आधार स्तंभ है।“ (RAS 2018)
सफल व्यक्ति कई असफलताओं का सामना करके बनता है। असफलताओं से वह लगातार सीखता है। वृन्द कवि की यह प्रसिद्ध सूक्ति है कि “करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।“ अर्थात् लगातार प्रयास करने से जड़ बुद्धि का व्यक्ति भी अच्छा ज्ञानवान बन जाता है। थॉमस अल्वा एडिसन ने बल्ब बनाने के एक हजार असफल प्रयास किए। परन्तु अंतत: वह सफल हुए। प्रत्येक असफलता हमें सीख देती है कि कार्य करने का यह तरीका या रीति पर्याप्त नहीं है; हमें और भी बेहतर प्रयास करने की आवश्यकता है। महान शासकों ने भी लगातार प्रयास कर शक्तिशाली राज्यों को विजित किया। अत: कह सकते हैं कि असफलताएँ सफलता का आधार स्तंभ हैं।
उदाहरण-4 “सुंदर है विहग, सुमन सुंदर, मानव तुम सबसे सुंदरतम।“
● छायावाद के प्रसिद्ध कवि जिन्हें प्रकृति का ‘सुकुमार कवि’ भी कहा जाता है। उनकी यह प्रकृति और मानव पर लिखी सुंदर पंक्ति है। प्रकृति में पक्षी सुंदर होते हैं, फूल उनसे भी सुंदर होते हैं। परन्तु मानव तो इनमें सुन्दरतम हैं। अर्थात् मानव की रचना या मानव जाति प्रकृति की सबसे सुंदर और श्रेष्ठ रचना है। मनुष्य को मन, वचन और कर्म से अपने व्यक्तित्व और व्यवहार को लगातार परिष्कृत करना चाहिए। मनुष्यता की सिद्धि इसी में है कि वह प्रकृति के साथ अपने संबंधों को मधुर रखें। अपने व्यवहार में नैतिक और मानवीय गुणों का पालन करें। मानव तभी सबसे सुंदरतम है, जब वह निरंतर परिष्कृत होकर प्रगति करें।
अभ्यास कीजिए– (निम्नलिखित पंक्तियों का पल्लवन लगभग 100 शब्दों में कीजिए)
1. “क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो। उसका क्या जो दंतहीन, विषरहित, विनीत, सरल हो।“
2. “हम पंछी उन्मुक्त गगन के, पिंजरबद्ध न गा पाएंगे। कनक-तीलियों से टकराकर, पुलकित पंख टूट जाएंगे।
3. खुद वो बदलाव बनिए जो दुनिया में आप देखना चाहते हैं।
4. यदि आप सच बोलते हैं तो आपको कुछ याद रखने की जरूरत नहीं रहती है।
5. जीतने वाले अलग चीजें नहीं करते, वो चीजों को अलग तरह से करते हैं।
6. साहस वो नहीं है जब शक्ति हो, साहस वो है जब आपमें शक्ति न हो फिर भी आप डटे रहते हो।
7. संतोष प्रयास में निहित है प्राप्ति में नहीं। पूर्ण प्रयास पूर्ण विजय है।
8. व्यक्ति अपने विचारों से निर्मित प्राणी है। वह जो सोचता है, वहीं बन जाता है।
9. क्रोध और असहिष्णुता यह दोनों ही समझ के दुश्मन है।
10. श्रद्धा और प्रेम के योग का नाम भक्ति है।
अन्य अध्ययन सामग्री
महत्वपूर्ण प्रश्न
पल्लवन से आप क्या समझते हैं?
कहावत, मुहावरे, सूक्ति, भावपूर्ण कथन, नीति वचन आदि को सरल भाषा मे विस्तार के साथ लिखना पल्लवन कहलाता हैं ।
पल्लवन कैसे करते है?
पल्लवन को वृद्धिकरण, विशदिकरण, संवर्धन, भाव विस्तार आदि नामों से भी जाना जाता हैं ।
पल्लवन का दूसरा नाम क्या है?
दिए गए कथन को ध्यान पूर्वक पढ़कर उसके गूढ़ अर्थ को समझकर सरल भाषा मे विस्तार करना चाहिए । अर्थात भाषा सरल, सुबोध एवं पठनीय होनी चाहिए ।