इस लेख में हम ग्रहों कि गति के केप्लर के नियम (kepler’s laws of planetary motion in hindi pdf) के बारे में जानेंगे। यहां पर केप्लर के नियम का सत्यापन, ग्रहों के गति के नियम किसने दिए, what is kepler law of plenetary motion class 11 के नोट्स एवं पीडीएफ भी दिया गया है।
ग्रहों की गति के केप्लर के नियम क्या है? (What is kepler’s law)
टाइको ब्रेह के खगोलीय प्रेक्षणों के आधार पर केप्लर ने सूर्य की परिक्रमा करने वाले ग्रहों की गति के सम्बन्ध में निम्नलिखित तीन नियम प्रतिपादित किए थे , जिन्हें ग्रहों की गति के केप्लर के नियम(Kepler’s law) कहा जाता है।
(1) केप्लर का प्रथम नियम (कक्षाओं का नियम) (kepler’s law of orbits in hindi)
यहां पर केप्लर का प्रथम नियम (कक्षाओं का नियम) (kepler’s law of orbits in hindi) के बारे में बताया गया है।
केप्लर का पहला नियम(Kepler’s first law) :-
यह नियम ग्रहों द्वारा चली गई कक्षाओं(orbits) के बारे में जानकारी देता है। इस नियम के अनुसार ” प्रत्येक ग्रह सूर्य के परित दीर्घवृताकार (Elliptical) पथ पर गति करता है, तथा सूर्य उस दीर्घवृत्त के किसी एक फोकस पर होता है।”
चित्र में सूर्य S, किसी ग्रह द्वारा चले गए दीर्घवृत्त के फोकस पर है। विभिन्न ग्रहों की कक्षाओं भिन्न भिन्न होती है। चित्र में सूर्य का निकटतम बिंदु P1 तथा दूरस्थ बिंदु P2 है। P1 को उपसौर तथा P2 को अपसौर कहते है। अर्ध दीर्घ अक्ष दूरी P1P2 का आधा है।
(2) केप्लर का द्वितीय नियम (क्षेत्रफल का नियम) (kepler’s law of areas in hindi)
यहां पर केप्लर के द्वितीय नियम (क्षेत्रफल का नियम) (kepler’s law of areas in hindi) के बारे में बताया गया है।
केप्लर का दूसरा नियम(kepler’s second law) :-
इस नियम के अनुसार किसी ग्रह के कक्षिय तल में ग्रह तथा सूर्य को मिलाने वाली रेखा समान समयांतराल में समान क्षेत्रफल तय करती है। अर्थात ग्रह तथा सूर्य को मिलाने वाली रेखा की क्षेत्रफलिय चाल नियत रहती है। चित्र में प्रदर्शित कोई ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हुवे एक निश्चित समयांतराल में अपनी कक्षा के बिंदु P1 से बिंदु P2 तक जाता है। तथा उतने ही समयांतराल में कक्षा के बिंदु P3 से P 4 तक जाता है, तब इस नियम के अनुसार
क्षेत्रफल P1SP2 = क्षेत्रफल P3SP4
इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि अपनी कक्षा में ग्रह की चाल निरन्तर बदलती रहती है। तथा जब ग्रह सूर्य से दूरस्थ होता है तो उसकी चाल न्यूनतम तथा जब सूर्य के समीपस्थ होता है तो ग्रह की चाल अधिकतम होती है।
(3) केप्लर का तृतीय नियम (आवर्त कालों का नियम) (kepler’s law of periods in hindi)
केप्लर का तीसरा नियम (Kepler’s 3rd law) :-
सूर्य के चारों ओर किसी ग्रह द्वारा एक चक्कर पूरा करने में लगा समय अर्थात ग्रह का सूर्य के परित परिक्रमण काल, T का वर्ग, उसकी दीर्घवृताकार कक्षा के अर्द्ध- दीर्घ अक्ष a, की तृतीय घात के अनुक्रमनूपाती होता है।
अर्थात T2 ∝ a3
केप्लर के नियम की व्युत्पत्ति (सत्यापन):-
यहां पर केप्लर के नियम के सत्यापन अर्थात व्युत्पत्ति के बारे में बताया गया है। (Kepler law equations)
केप्लर के द्वितीय नियम का सत्यापन (व्युत्पत्ति) :-
Kepler’s 2nd law equation :-
केप्लर के ग्रहों की गति का द्वितीय(दूसरा) नियम, वास्तव में ग्रह के कोणीय संवेग संरक्षण के नियम के तुल्य है। इसको निम्न प्रकार सिद्ध किया जा सकता है। क्षेत्रफलों के नियम से संबंधित चित्र में एक ग्रह सूर्य के परित दीर्घवृताकार कक्षा में परिक्रमण कर रहा है तथा सूर्य S इसके फोकस पर स्थित है। माना किसी क्षण t पर ग्रह कक्षा के बिंदु P1 पर है। माना S के सापेक्ष, बिंदु P1 के ध्रुवीय निर्देशांक है। माना ग्रह एक सूक्ष्म समयांतराल ∆t में अपनी कक्षा में स्थिति P1 से स्थिति P2 में पहुंच जाता है। तथा \_ P2SP1 = ∆θ तब इस अंनत सूक्ष्म समयांतराल ∆t में रेखा SP1 तथा SP2 के बीच बना क्षेत्रफल
केप्लर के द्वितीय नियम के अनुसार क्षेत्रफलीय चाल dA/dt नियत रहती है, अत L/2m भी नियत रहता है। यही क्षेत्रफलों का नियम है। ग्रह का द्रव्यमान m नियत है। अत ग्रह का कोणीय संवेग L भी नियत रहता है।
अत केप्लर का द्वितीय नियम ग्रह के कोणीय संवेग संरक्षण के नियम तुल्य है।
केप्लर के तृतीय नियम का सत्यापन (व्युत्पत्ति) :-
Kepler’s 3rd law equation :-
यदि दीर्घवृताकार कक्षा की अर्द्ध दीर्घ तथा अर्द्ध लघु अक्षे क्रमश a तथा b हो तो दीर्घवृत्त का क्षेत्रफल πab होता है।
अत ग्रह का आवर्त काल
T = दीर्घ वृत का क्षेत्रफल/ सूर्य तथा ग्रह को मिलाने वाली रेखा की क्षेत्रफलीय चाल
केप्लर के नियम से सबंधित महत्वपूर्ण परिभाषाएं :-
(1) ग्रह (Planets) :-
सूर्य के चारों ओर अपनी अपनी कक्षाओं में चक्कर लगाने वाले आकाशीय पिंडो को ग्रह कहते है। ग्रह निम्न है बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति,शनि,युरेनस तथा प्लूटो।
(2) उपग्रह (Satelite) :-
ग्रह के चारों ओर इसके गुरूत्वीय क्षेत्र में चक्कर लगाने वाले आकाशीय पिंडो को उपग्रह कहते है। पृथ्वी के परित परिक्रमण करने वाले पिंड भू उपग्रह कहलाते है। इन उपग्रहों को पृथ्वी के परित कक्षाएं वृताकार अथवा दीर्घवृताकार होती है। ग्रहों की गति से संबंधित केप्लर के नियम इन पर समान रूप से लागू होते है।
उपग्रह के प्रकार :-
(1) प्राकृतिक उपग्रह (2) कृत्रिम उपग्रह
(1) प्राकृतिक उपग्रह :- ग्रहों के चारों ओर चक्कर लगाने वाले प्राकृतिक आकाशीय पिंडों को प्राकृतिक उपग्रह कहते है। जैसे – चन्द्रमा पृथ्वी का प्राकृतिक उपग्रह है।
(2) कृत्रिम उपग्रह :- मानव द्वारा निर्मित वे पिंड जो पृथ्वी के चारों ओर नियत कक्षा में परिक्रमा करते है। कृत्रिम उपग्रह कहलाते है।
(3) कक्षीय वेग (Orbital Velocity) :-
किसी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने के लिए उसको दिया जाने वाला स्पर्श रेखीय वेग कक्षीय वेग V0 कहलाता है।
(4) परिक्रमण काल (period of revolution) :-
किसी उपग्रह को पृथ्वी का एक चक्कर लगाने में जितना समय लगता है उसे उसका परिक्रमण काल कहते है।
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