बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 – The Prohibition of Child Marriage Act

नमस्कार आज हम महिला एवं बाल अपराध से सम्बंधित एक अध्याय बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 – The Prohibition of Child Marriage Act के बारे में अध्ययन करेंगे। इस अध्ययन के दौरान हम बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 – The Prohibition of Child Marriage Act के बारे में बहुत से बिंदुओं पर चर्चा करेंगे। इस चर्चा के दौरान हम जानेंगे के इस अधिनियम को कब पारित किया गया।

महत्वपूर्ण तथ्य

कुल धारा-21

 लागू/प्रारम्भ/प्रवर्तन/दिनांक01 नवम्बर, 2007

  • उद्देश्य:- बाल विवाह के अनुष्ठान को रोकना तथा इसके संबंध में नियम बनाना।
  • धारा-01:- संक्षिप्त नाम, प्रारम्भ और विस्तार।
  • संक्षिप्त नाम- बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006।
  • लागू/प्रारम्भ/प्रवर्तन– 01 नवम्बर, 2007
  • विस्तार- सम्पूर्ण भारत पर।

बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006

 धारा-2 परिषाभाएँ (Definitions)

  • धारा 2(क) 2(a)- बालक:-

 ऐसा व्यक्ति जिसने यदि पुरूष है तो 21 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है और यदि नारी है तो 18 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है।

  • धारा 2(ख) 2(b)- बाल विवाह:-

 ऐसा विवाह जिसके बंधन में आने वाले दोनों पक्षकारों में से कोई बालक है।

  • धारा 2(ग) 2(c)- बंधन में आने वाले पक्षकार विवाह के संबंध में पक्षकारों में से ऐसा केाई भी पक्षकार जिसका विवाह उसके द्वारा अनुष्ठापित किया जाता है या किया जाने वाला है।
  • धारा 2(ड.) 2(e) जिला न्यायालय:-

 ऐसा क्षेत्र, जहाँ कुटुम्ब (पारिवारिक) न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 3 के अधीन स्थापित कुटुम्ब न्यायलय विद्यमान है तो ऐसा कुटुम्ब न्यायालय और यदि ऐसे क्षेत्र में जहाँ कुटुम्ब न्यायालय नहीं है आरंभिक अधिकारिता रखने वाला प्रधान सिविल न्यायालय जिला न्यायालय कहलाता है।

  • धारा 2(च)- 2(f)- अवयस्क:-

 ऐसा व्यक्ति जिसके बारें में वयस्कता अधिनियम, 1875 के उपबंधों के अधीन यह माना जाता है कि उसने वयस्कता प्राप्त नहीं की है।

  • धारा-3:- बाल विवाह का बंधन में आने वाले पक्षकार केजो बालक हैविकल्प पर शून्यकरणीय होना।
  1. प्रत्येक बाल विवाह जो अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व या पश्चात् अनुष्ठापित (सम्पन्न) हुआ हो, विवाह के बंधन में आने वाले पक्षकार के जो विवाह के समय बालक था, विकल्प पर शून्यकरणीय होगा।
  2. विवाह के शून्यकरणीय (बातिल) करने हेतु अर्जी (प्रार्थना पत्र) जिला न्यायालय में प्रस्तुत करनी होगी।
  3. यदि अर्जी प्रस्तुत करते समय अर्जीदार अवयस्क है तो अर्जी उसके संरक्षक या वाद मित्र के साथ-साथ बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी की मार्फत की जाएगी।
  4. इस धारा के अधीन अर्जी किसी भी समय किन्तु अर्जी फाइल करने वाले बालक के वयस्कता प्राप्त करने के वर्ष पूरे करने से पूर्व फाइल की जाएगी।
  • धारा-4:- बाल विवाह के बंधन में आने वाली महिला पक्षकार के भरणपोषण और निवास के लिए उपबंध-

 धारा 3 के अधीन डिक्री (आदेश) प्रदान करते समय जिला न्यायालय, बाल विवाह के बंधन में आने वाले पुरूष पक्षकार को और यदि पुरूष पक्षकार अवयस्क है तो उसके माता-पिता या संरक्षक को बाल विवाह के बंधन में आने वाली महिला पक्षकार के पुनर्विवाह तक भरण-पोषण और निवास देने के लिए आदेश पारित करेगा।

  • धारा-5:- बाल विवाह से जन्मे बालकों की अभिरक्षा और भरण-पोषण-
  1. जहाँ बाल विवाह से जन्मे बालक है वहाँ जिला न्यायालय ऐसे बालकों की अभिरक्षा व भरण-पोषण के लिए उचित आदेश करेगा।
  2. जिला न्यायालय विवाह के किसी पक्षकार या उनके माता-पिता या संरक्षक द्वारा बालक के भरण-पोषण के लिए उचित आदेश करेगा।
  • धारा-6:- बाल विवाह से जन्में बालकों की धर्मजता-

 इस बात के होते हुए कि बाल विवाह धारा 3 के शून्यकरणीय (बातिल) हो गया है, डिक्री किए जाने से पूर्व ऐसे विवाह से जन्मा या गर्माहित प्रत्येक बालक सभी प्रयोजनों के लिए धर्मज (जायज) बालक समझा जाएगा।

  • धारा-8:- वह न्यायालय जिसमें अर्जी दी जानी चाहिए-

 धारा 3, 4 व 5 के अन्तर्गत अनुतोष (उपचार) प्रदान करने के लिए अर्जी (प्रार्थना पत्र) अधिकारिता रखने वाले जिला न्यायालय में प्रस्तुत की जाएगी जहाँ-

  1. प्रतिवादी या बालक निवास करता है या
  2. विवाह अनुष्ठापित किया गया है या
  3. पक्षकारों ने अंतिम रूप से एकसाथ निवास किया था।
  4. या अर्जीदार अर्जी पेश करने की तारीख को निवास कर रहा है।
  • धारा-9:- बाल विवाह करने वाले वयस्क पुरूष के लिए दंड:-

 जो कोई 18 वर्ष से अधिक आयु का वयस्क पुरूष बाल विवाह करेगा वह-

 कठोर कारावास 2 वर्ष तक या 01 लाख जुर्माना या दोनों से दंडनीय होगा।

  • धारा-10:- बाल विवाह के अनुष्ठान के लिए दंड जो कोई बाल विवाह सम्पन्न करवाएगा, संचालित करेगा या निर्दिष्ट करेगा या दुष्प्रेरित करेगा-

 कठोर कारावास 2 वर्ष तक और 01 लाख जुर्मानें से दंडनीय होगा।

  • धारा-11:- बाल विवाह के अनुष्ठान का संवर्धन करने या उसे अनुज्ञात करने के लिए दंड:-

 जो कोई बाल विवाह का संवर्धन करेगा या अनुष्ठान किया जाना अनुज्ञात करेगा-

 कठोर कारावास 2 वर्ष तक और 01 लाख जुर्माने से दंडनीय होगा।

  • धारा-15:- अपराधों का संज्ञेय और अजमानतीय होना।
  • धारा-16:- बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी:-

 राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी की नियुक्ति करेगी।

  • बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी के निम्नलिखित कर्तव्य होंगे-
  1. बाल विवाह के अनुष्ठान का कार्यवाही करके निवारण करना।
  2. इस अधिनियम के उपबंधों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों के अभियोजन के लिए साक्ष्य संग्रह करना।
  3. बाल विवाह के परिणामस्वरूप होने वाली बुराई के प्रति जागृत्ति पैदा करना।
  4. बाल विवाह के मुद्दे पर समाज को सुग्राह्य बनाना।
  5. ऐसे अन्य कार्य करना जो राज्य सरकार निर्देशित करें।
  • धारा-17:- बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी का लोक सेवक होना।

 बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी भारतीय दंड संहिता की धारा 21 के अन्तर्गत लोक सेवक समझे जाएंगे।

  • धारा-19- नियम बनाने की शक्ति:-

 राज्य सरकार इस अधिनियम के अन्तर्गत नियम बनाती है।

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Faq

बाल विवाह अधिनियम में कुल कितनी धाराएं हैं?

इस अधिनियम में 21 खंड हैं।

बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के प्रावधान क्या हैं?

इस अधिनियम के अनुसार विवाह की न्यूनतम आयु बालिकाओं के लिए 18 वर्ष और बालकों के लिए 21 वर्ष निर्धारित की गई है।

नमस्कार, मैं कुलदीप सिंह पठतु प्लेटफार्म पर शिक्षा जगत से संबंधित लेख लिखने का कार्य करता हूं। मैंने इतिहास विषय से स्नातकोत्तर किया है और वर्तमान में पीएचडी कर रहा हु। यहां इस प्लेटफार्म पर मैं आपको बहुत सी जरूरी जानकारी देने का प्रयास करूंगा जो की शिक्षा जगत से जुड़ी हो।

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