सौर मंडल क्या हैं? सौर मंडल के ग्रह के नाम, चित्र Solar System in Hindi

इस लेख मे हम सौर मंडल (Solar System In Hindi) के बारे में जानेंगे। पृथ्वी भी सौर मंडल का एक ग्रह हैं।
सामान्यता हमारे मन में एक प्रश्न उठता हैं की यह सौर मंडल क्या ?हैं किसे कहते हैं।
ब्रह्मांड क्या है? (What is Universe in hindi)
सौर मंडल क्या है? (What is Solar System in hindi)
सौर मंडल में कितने ग्रह होते है? (How Many Planets in Solar System)
सौर मंडल के ग्रहों के नाम (Names of Planets Of Solar System)

इत्यादि के बारे में हम यहां पर विस्तार पूर्वक जानेंगे।

ब्रह्मांड क्या है?

सदैव मन में एक सवाल होता है की ब्रह्मांड क्या है, ब्रह्मांड की उत्पति कैसे हुई इत्यादि ढेरों प्रश्न पैदा होते हैं।
तो चलिए जानते हैं इन सवालों का जवाब –

> अस्तित्वमान द्रव्य एवं ऊर्जा के समिलित रूप को ब्रह्माण्ड कहते हैं।
> दूसरे शब्दों में सुक्ष्मतम अणुओं से लेकर महाकाय आकाशगंगाओं (Galaxies) तक के सम्मिलित रूप को ब्रह्मांड कहते हैं।

ब्रह्माण्ड की उत्पति से संबंधित प्रमुख सिद्धांत :-

1. महाविस्फोट सिद्धांत (Big-Bang Theory) :-

ब्रह्मांड की उत्पत्ति के संबंध में महाविस्फोट सिद्धांत
(Big-Bang Theory) सर्वाधिक मान्य सिद्धांत है।
इसका प्रतिपादन बेल्जियम के खगोलज्ञ एवं पादरी “ऐब जार्ज लेमेंतेयर” ने किया था। बाद में “रॉबर्ट बेगोनेर” इस सिद्धांत की व्याख्या की।

इस सिद्धांत के अनुसार आरंभ में वे सभी पदार्थ जिनसे ब्रह्मांड बना है, अति छोटे गोलक के रूप में एक ही स्थान पर स्थित था, जिसका आयतन अत्यधिक सूक्ष्म एवं तापमान तथा घनत्व अनंत था।

अत्यधिक संकेन्द्रण के कारण बिन्दु का आकस्मिक विस्फोट हुआ, जिसे महाविस्फोट ब्रह्मांडीय विस्फोट (Big-Bang) कहा गया।
इस अचानक विस्फोट से पदार्थों का बिखराव हुआ, जिससे सामान्य पदार्थ निर्मित हुए। इसके अलगाव के कारण काले पदार्थ बने, जिनके समूहन से अनेक ब्रह्मांडीय पिंडों का सृजन हुआ।
वैज्ञानिकों का विश्वास है कि महाविस्फोट (Big-Bang) की घटना आज से 13.7 अरब वर्ष पहले हुई थी।
महाविस्फोट के लगभग 10.5 अरब वर्ष पश्चात यानी आज से 4.5 अरब वर्ष पूर्व सौरमंडल (Solar System in Hindi) का विकास हुआ जिसमें ग्रहों तथा उपग्रहों का निर्माण हुआ।
इस प्रकार ‘बिग बैंग’ परिघटना से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई और तभी से उसमें निरन्तर विस्तार जारी है। इसके साक्ष्य के रूप में आकाशगंगाओं के बीच बढ़ती दूरी का साक्ष्य दिया जाता है।
NASA ने 2001 ई. में MAP (Microwave Anisotrophy Probe) नामक अनुसंधान में इसकी पुष्टि की।

आकाशगंगा क्या है (Galaxy)

आकाशगंगा (Galaxy) ब्रह्मांड में लगभग 100 अरब आकाशगंगाएँ (Galaxy) हैं।
आकाशगंगा असंख्य तारों का एक विशाल पुंज होता है, जिसमें एक केन्द्रीय बल्ज (Bulge) एवं तीन घूर्णनशील भुजाएँ होती हैं।
ये तीनों घूर्णनशील भुजाएँ अनेक तारों से निर्मित होती हैं।
बल्ज, आकाशगंगा के केन्द्र को कहा जाता है। यहाँ तारों का संकेन्द्रण सर्वाधिक होता है।
प्रत्येक आकाशगंगा में लगभग 100 अरब तारे होते हैं।

लिमन अल्फा ब्लॉब्स, अमीबा के आकार
की एवं 20 करोड़ प्रकाश वर्ष चौड़ी विशालकाय आकाशगंगाओं और गैसों का समूह है।
इस विशालकाय संरचना की आकाशगंगाएँ
ब्रह्मांड में उपस्थित अन्य आकाशगंगाओं की अपेक्षा एक-दूसरे से चार गुनी ज्यादा निकट हैं।

एंड्रोमेडा हमारी आकाशगंगा के सबसे निकट की
आकाशगंगा है, जो हमारी आकाशगंगा से 2.2 मिलियन प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है।
हमारी आकाशगंगा को मंदाकिनी कहा जाता है।

सौर मंडल (Solar System in Hindi)

सूर्य एवं उसके चारों ओर भ्रमण करने वाले 8 ग्रह, 172 उपग्रह, धूमकेतु, उल्काएँ एवं क्षुद्रग्रह संयुक्त रूप से सौरमंडल (Solar System In Hindi) कहलाते हैं।
हाल ही में, दिसंबर, 2017 में नासा ने अपनी केपलर
अंतरिक्ष दूरबीन और गूगल के अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artifical Intelligence-AI) एवं मशीन लर्निंग (Machine Learning-ML) की सहायता से नए सौरमंडल की खोज की
नए सौरमंडल में 8 ग्रह है और ये केपलर-90 नामक तारा की परिक्रमा करते हैं।
इसलिए इसे केपलर-90 तारामंडल (Kepler 90 Star System) कहा जाता है।

सूर्य (Sun)

सूर्य जो कि सौरमंडल (Solar System in Hindi) का जन्मदाता है, एक तारा है, जो ऊर्जा और प्रकाश प्रदान करता है।
सूर्य की ऊर्जा का स्रोत, उसके केन्द्र में हाइड्रोजन परमाणुओं का नाभिकीय संलयन द्वारा हीलियम परमाणुओं में बदलना है।

सूर्य से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य

पृथ्वी से सूर्य की न्यूनतम दुरी 14.70 करोड़ किमी
पृथ्वी से सूर्य की अधिकतम दुरी 15.21 करोड़ किमी
पृथ्वी से माध्य दुरी 14.98 करोड़ किमी
सूर्य का व्यास 1392000 किमी
सूर्य का आयतन पृथ्वी से 13 लाख गुना
सूर्य का द्रव्यमान पृथ्वी से 332000 गुना
तलीय गुरुत्व पृथ्वी से 28 गुना
सूर्य का केंद्रीय गुरुत्व 100 ग्राम प्रति घन सेमी
सूर्य का रासायनिक संघटन हाईड्रोजन- 71% हीलियम 26.5 %
फोटोस्फीयर ताप 6000 C
केंद्र का ताप 15 मिलियन C
ऊर्जा का उत्सर्जन 1026 ज़ुल/सेकण्ड
सूर्य की आयु 5 बिलियन वर्ष
सूर्य के प्रकाश की चाल 3 x 108 m/s
केंद्रीय दबाव 1 अरब एटमॉस्फियर

सूर्य की संरचना (Structure of Sun)

सूर्य का जो भाग हमें आँखों से दिखाई देता है, उसे प्रकाशमंडल (Photosphere) कहते हैं।

सूर्य का बाह्यतम भाग जो केवल सूर्यग्रहण के समय दिखाई देता है, कोरोना (Corona) कहलाता है।
कभी-कभी प्रकाशमंडल से परमाणुओं का तूफान इतनी वेग से निकलता है कि सूर्य की आकर्षण शक्ति को पार कर अंतरिक्ष में चला जाता है, इसे सौर ज्वाला (Solar Flares) कहते हैं।
जब यह पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है तो
हवा के कणों से टकराकर रंगीन प्रकाश (Aurora Light) उत्पन्न करता है, जिसे उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव पर देखा जा सकता है।
उत्तरी ध्रुव पर इसे औरोरा बोरियालिस एवं दक्षिणी ध्रुव पर औरोरा ऑस्ट्रालिस कहते हैं।

सौर ज्वाला जहाँ से निकलती है, वहाँ काले धब्बे-से दिखाई पड़ते हैं। इन्हे ही सौर कलंक (Sun-Spots) कहते हैं।

सौर मंडल के ग्रह (planets of solar system in hindi)

1. बुध (Mercury In Hindi)


बुध सूर्य का सबसे निकटतम तथा सौरमंडल (Solar System in Hindi) का सबसे छोटा ग्रह है। यह 88 दिनों में सूर्य की परिक्रमा पूर्ण कर लेता है।
सूर्य और पृथ्वी के बीच में होने के कारण बुध एवं शुक्र को अन्तरिक ग्रह (Internor Planets) भी कहते हैं।
वायुमंडल के अभाव के कारण बुध पर जीवन सम्भव नहीं है, क्योंकि यहाँ दिन अति गर्म व राते बर्फीली होती हैं।
इसका तापान्तर सभी ग्रहों में सबसे अधिक 1560C) है।

बुध का एक दिन पृथ्वी के 90 दिन के बराबर होता है। परिमाण {mass) में यह पृथ्वी का 1/18वाँ भाग है।
बुध के सबसे पास से गुजरने वाला कृत्रिम उपग्रह मैरिनर-10 था

जिसके द्वारा लिए गए चित्रों से पता चलता है कि इसकी सतह पर कई पर्वत, क्रेटर और मैदान हैं। इसका कोई भी उपग्रह नहीं है।

2. शुक्र (Venus In Hindi)


यह सूर्य से निकटवर्ती दूसरा ग्रह है तथा सूर्य को परिक्रमा 225 दिनों में पूरी करता है।
यह ग्रहों की सामान्य दिशा के विपरीत सूर्य की पूर्व से पश्चिम दिशा में परिक्रमण करता है। यह पृथ्वी के सर्वाधिक निकट है,
जो सूर्य व चन्द्रमा के बाद सबसे चमकीला दिखाई पड़ता है।
इस सांझ का तारा या भोर का तारा भी कहते हैं, क्योंकि यह शाम को पश्चिम दिशा में तथा सुबह पूर्व दिशा में दिखाई देता है।
आकार व द्रव्यमान में पृथ्वी से थोड़ा ही कम होने के कारण इसे पृथ्वी की जुड़वा बहन कहा जाता है।
शुक्र के वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड (CO.) 90-95% तक है।
इस कारण यहाँ प्रेशर कुकर की दशा (Pressure Cooker Condition) उत्पन्न होती है। बुध के समान इसका भी कोई उपग्रह नहीं है।

3. पृथ्वी (Earth In Hindi)

यह सूर्य से दूरी के क्रम में तीसरा ग्रह है तथा सभी ग्रहों में आकार की दृष्टि से पांचवां स्थान रखता है।
यह शुक्र और मंगल ग्रह के बीच स्थित है। यह अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर
भ्रमण करती है।

यह अपने अक्ष पर 23 1/2 झुकी हुई है। इसका एक परिक्रमण लगभग 365 दिन में पूरा होता है।
इसकी सूर्य से औसत दूरी लगभग 15 करोड़ किमी. है।
चारों ओर मध्यम तापमान, ऑक्सीजन और प्रचुर मात्रा में जल की उपस्थिति के कारण यह सौरमंडल (Solar System in Hindi) का अकेला ऐसा ग्रह है, जहाँ जीवन है।
अंतरिक्ष से यह जल की अधिकता के कारण नीला दिखाई देता है। अतः इसे नीला ग्रह भी कहते हैं।

वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के समान सात ग्रहों को चिह्नित किया है।
23 फरवरी, 2017 को नेचर पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार जिन ग्रहों का पता लगाया गया है, उनके द्रव्यमान पृथ्वी के समान है।
चिह्नित सभी ग्रह उपग्रह एक बौने तार की परिक्रमा करते है, जो सूर्य से मात्र 39 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है। इसे ट्रेपिस्ट-1 नाम दिया गया है।

पृथ्वी : महत्वपूर्ण तथ्य

आकृतिजीयोड
अक्षधुर्वीय व्यास12,714 किमी.
भूमध्यरेखीय व्यास12,756 किमी.
धुर्वीय परिधि 40,008 किमी.
विषुवत रेखीय परिधि40,075 किमी.
द्रव्यमान 5.97 x 1024 टन
जलीय भाग71%
स्थलीय भाग29%
आयतन10.83 x 1011 घन किमी.
औसत घनत्व5.52
पृथ्वी की आयु4.6 बिलियन वर्ष
धरातल के क्षेत्रफल51.6 करोड़ वर्ग किमी.
परिभ्रमण समय23 घण्टे 56 मिनट 4 सेकंड
परिक्रमण समय365 दिन 5 घंटे 48 मि. 46 सेकंड
परिक्रमण वेग29.8 किमी सेकंड
परिक्रमण मार्ग की लंबाई96 करोड़ किमी
सूर्य से पृथ्वी की न्यूनतम दूरी14.70 करोड़ किमी
सूर्य से अधिकतम दूरी15.21 करोड़ किमी
सूर्य से पृथ्वी तक प्रकाश पहुंचने में लगा समय8 मिनट, 20 सेकंड
पृथ्वी की चंद्रमा से दूरी348000 किमी.

4. मंगल (Mars In Hindi)

यह सूर्य से दूरी के क्रम में पृथ्वी के बाद चौथा ग्रह है। यह सूर्य की परिक्रमा 687 दिनों में पूरी करता है।
मंगल की सतह लाल होने के कारण लाल ग्रह भी कहते हैं। इस ग्रह पर वायुमंडल अत्यंत विरल है।
इसकी घूर्णन गति पृथ्वी की घूर्णन गति के समान हैं।

फोबोस और डीमोस मंगल के दो उपग्रह हैं। डीमोस सौरमंडल का सबसे छोटा उपग्रह है।
इस ग्रह का सबसे ऊंचा पर्वत निक्स ओलंपिया है, जो एवरेस्ट से तीन गुना ऊँचा है।

मंगल से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य (Important facts related to Mars)

मंगल की सूर्य से दूरी22.79 करोड़ किमी.
व्यास6794 किमी.
सूर्य की परिक्रमा686.98 दिन
घूर्णन गति24 घंटे 37 मिनट 23 सेकंड
घनत्व3.93 ग्राम/सेमी. 0.38
सतह तापमान-87 C से -5 C
उपग्रह2 (फोबोस व डिमोस)
वायुमंडलकार्बन डाई आक्साइड, नाइट्रोजन
अक्षीय झुकाव25

मंगल ग्रह के अन्वेषण के लिए विभिन्न अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा लगातार कई मिशन भेजे जाते रहे हैं,
क्योंकि पृथ्वी के अलावा यह एकमात्र ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन की संभावना व्यक्त की जा रही है।
सर्वप्रथम मार्स ओडिसी नामक कृत्रिम उपग्रह से यहाँ बर्फ छत्रकों और हिमशीतित जल की सूचना मिली थी।
मंगल पर जीवन की संभावना तथा उसके वातावरण के अध्ययन के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी (NASA) ने नवम्बर, 2011 में मार्स साइंस लैबोरेटरी (MSL) या मार्स क्यूरियोसिटी रोवर को प्रक्षेपित किया।
6 अगस्त, 2012 को नासा का यह अंतरिक्षयान मंगल ग्रह पर गेल क्रेटर नामक स्थान में पहुँचा।
वर्तमान समय में यह नासा के डीप स्पेस नेटवर्क को विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक संदेश, फोटो व अन्य सूचनाएँ भेज रहा है।
18 दिसम्बर, 2015 को क्यूरियोसिटी रोवर ने मंगल ग्रह पर सिलिका का भंडार खोजा है।
वर्ष 2006 से सक्रिय अंतरिक्ष यान मार्स रिकॉनेसियंस आर्बिटर (MRO) से ली गई तस्वीरों के अध्ययनों के आधार पर नासा ने 28 सितम्बर, 2015 को मंगल ग्रह पर जल-प्रवाह की भी घोषणा की।
नासा द्वारा इस बात की पुष्टि की गई है कि मंगल ग्रह पर खारे पानी की बहती धाराएं उपस्थित हैं।
मंगल ग्रह पर वायुमण्डल के अध्ययन के लिए नासा ने एक अन्य मिशन aprera (Mars Atmosphere and Volatile Evolution Mission, MAVEN) 18 नवम्बर, 2013 को प्रक्षेपित किया था, जो 22 सितम्बर, 2014 को मंगल की कक्षा में पहुँच गया।
नासा ने अगले 25 वर्षों में जनीं टू मार्स मिशन के तहत मंगल ग्रह पर मानव बस्तियाँ बसाने की त्रिस्तरीय योजना तैयार करने की घोषणा की है।

मंगल ग्रह के वैज्ञानिक अन्वेषण के लिए भारत का प्रथम अभियान मार्स आर्बिटर मिशन (MOM) या मंगलयान है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा मंगलयान का सफल प्रक्षेपण 5 नवम्बर, 2013 को किया गया।
यह प्रक्षेपण सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र, श्री हरिकोटा से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV-C-25) के माध्यम से किया गया, जो मंगल ग्रह की कक्षा में 24 सितम्बर, 2014 को पहुँचा। इस सफलता से भारत मार्शियन इलीट क्लब (अमेरिका, रूस और यूरोपीय संघ) में शामिल हो गया है।
टाइम पत्रिका ने भी मंगलयान को वर्ष 2014 के 25 सर्वश्रेष्ठ आविष्कारों में जगह देते हुए इसे द सुपरस्मार्ट स्पेसक्राफ्ट की संज्ञा दी।

इसरो के अनुसार, मंगलयान का प्रमुख उद्देश्य पृथ्वी नियंत्रित मुक्ति चालन,
मंगल की कक्षा में प्रवेश तथा कक्षीय चरण में सुरक्षित रहने एवं कार्य निष्पादन की क्षमता के साथ अंतरग्रहीय अंतरिक्षयान का डिजाइन व निर्माण करना था।
इसके वैज्ञानिक उद्देश्यों में मंगल की सतह तथा उसके वातावरण का अन्वेषण शामिल है।
मंगल ग्रह की भौगोलिक, जलवायवीय एवं वायुमण्डलीय प्रक्रियाओं के अध्ययन के लिए मंगलयान पर
पाँच वैज्ञानिक नीति भार (Payloads) स्थापित किए गए हैं। मंगलयान ने मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक अपने 2000 दिने पूरे कर लिये हैं। ये 2000 दिन मंगल के मानक के अनुसार से हैं।

इनसाइट (INSIGHT : Interior Exploration Using Seismic Investigations Geodesy and Heat Transport) यह अमेरिकी अंतरिक्ष संस्था नासा (NASA) के डिस्कवरी कार्यक्रम का एक मिशन है।
इस मिशन के अन्तर्गत नासा द्वारा मंगल ग्रह की आंतरिक एवं वाह्य संरचना के अध्ययन के लिए
इस ग्रह की सतह पर एक भू-भौतिकी लैंडर (Geophyical Lander) नवम्बर 2018 तक उतारा जाएगा।

यह मिशन वैज्ञानिकों को एक चट्टानी गृह के रूप में मंगल ग्रह के विकास की बेहतर समझ प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया है।
इसके अन्तर्गत मंगल की सतह पर एक भूकम्पमापी एवं एक तापमापी यंत्र स्थापित किया जायेगा।
5 मई, 2018 को नासा द्वारा मंगल ग्रह के लिए इनसाइट मिशन का प्रक्षेपण किया जाना है।
26 नवंबर, 2018 को इनसाइट मिशन लैंडर मंगल ग्रह की सतह पर उतरेगा।

5. बृहस्पति (Jupiter )

यह सौरमंडल (Solar System in Hindi) का सबसे बड़ा ग्रह है. जो सूर्य की परिक्रमा 11. 9 वर्ष में करता है। सौरमंडल में इसके 67 उपग्रह हैं, जिनमें गैनिमीड सबसे बड़ा है। यह सौरमंडल का सबसे बड़ा उपग्रह है। आयो, यूरोपा, कैलिस्टो. अलमथिया आदि इसके अन्य उपग्रह हैं। बृहस्पति को लघु सौर-तंत्र (Miniature Solar System) भी कहते हैं। इसके वायुमंडल में हाइड्रोजन, हीलियम, मीथेन और अमोनिया जैसी गैसें पाई जाती हैं। यहाँ का वायुमंडलीय दाब पृथ्वी के वायुमंडलीय दाब की तुलना में करोड़ गुना अधिक है। यह तारा और ग्रह दोनों के गुणों से युक्त होता है क्योंकि इसके पास स्वयं की रेडियो ऊर्जा है।

6.शनि (Saturn In Hindi)

यह आकार में दूसरा बड़ा ग्रह है। यह सूर्य की परिक्रमा 29. 5 वर्ष में पूरी करता है।
इसकी सबसे बड़ी विशेषता या रहस्य इसके मध्यरेखा के चारों ओर पूर्ण विकसित वलयों का होना है,
जिनकी संख्या 7 है। यह वलय अत्यंत छोटे-छोटे कणों से मिलकर बने होते हैं,
जो सामूहिक रूप से गुरुत्वाकर्षण Gravity के कारण इसकी परिक्रमा करते हैं।
शनि को गैसों का गोला (Globe of Gases) एवं गैलेक्सी समान ग्रह (Galaxy Like Pianet) भी कहा जाता है।
आकाश में यह ग्रह पीले तारे के समान दृष्टिगत होता है।
इसके वायुमंडल में भी बृहस्पति की तरह हाइड्रोजन, हीलियम, मीथेन और अमोनिया गैसें मिलती हैं।
अब तक इसके 62 उपग्रहों का पता लगाया जा चुका है। टाइटन शनि का सबसे बड़ा उपग्रह है, जो आकार में के लगभग बराबर है।

मंगल ग्रह की भाँति यह नारंगी रंग का है। टाइटन पर वायुमंडल और गुरुत्वाकर्षण दोनों का प्रभाव बराबर हैं।
इसके अन्य प्रमुख उपग्रह मीमांसा, एनसीलाडु, टेथिस, डीआन, रीया, हाइपेरियन, इपापेटस और फोबे हैं।
इसमें फोबे शनि की कक्षा में घूमने के विपरीत दिशा में परिक्रमा करता है। शनि अंतिम ग्रह है जिसे आँखों से देखा जा सकता है।

शनि से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य (Important facts About Saturn)

सूर्य से दूरी142.66 करोड़ किमी.
अक्षीय झुकाव2673′
घूर्णन गति10 घंटा 34 मिनट
सूर्य की परिक्रमा करने में लगा समय29.5 वर्ष
घनत्व0.70 ग्राम/ सेमी 3
गुरुत्वाकर्षण7.2 मीटर/ सेकंड
उपग्रह62
तापमान– 178 से.
वायुमंडलहाइड्रोजन, हीलियम, मिथेन, अमोनिया
वलयो की संख्या7

7. अरुण (Uranus In Hindi)

इसकी खोज 1781 ई. में सर विलियम हरशेल द्वारा की गई।
यह सौरमंडल (Solar System in Hindi) का सातवाँ तथा आकार में तृतीय ग्रह है।
अधिक अक्षीय झुकाव के कारण इसे लेटा हुआ ग्रह भी कहते हैं। यह सूर्य की परिक्रमा 84 वर्षों में पूरी करता है।
यह भी शुक्र ग्रह की भाँति ही ग्रहों की सामान्य दिशा के विपरीत पूर्व से पश्चिम दिशा में सूर्य के चारों ओर परिभ्रमण करता है।
इस ग्रह पर वायुमंडल Atmosphere बृहस्पति और शनि की ही भाँति काफी सघन है, जिसमें हाइड्रोजन, हीलियम, मीथेन एवं अमोनिया हैं।
दूरदर्शी से देखने पर यह हरा दिखाई देता है।
सूर्य से दूर होने के कारण यह काफी ठंडा है। शनि की भाँति अरुण के भी चारों ओर वलय है, जिनकी संख्या 5 हैं।
ये हैं- अल्फा (0.), बीटा (B), गामा (7), डेल्टा (A) और इप्सिलॉन। इसके 27 उपग्रह हैं।
अरूण पर सूर्योदय पश्चिम दिशा में एवं सूर्यास्त पूर्व दिशा में होता है। ध्रुवीय प्रदेश में इसे सूर्य से सबसे अधिक ताप और प्रकाश मिलता है।

8. वरुण (Neptune Planet in Solar System)

इसकी खोज जर्मन खगोलशास्त्री जोहान गाले ने की। यह 165 वर्ष में सूर्य की परिक्रमा पूरा करता है।
यहाँ का वायुमंडल अति घना है।
इसमें हाइड्रोजन, हीलियम, मीथेन और अमोनिया विद्यमान रहती हैं। यह ग्रह हल्का पीला दिखाई देता है।
इसके 13 उपग्रह हैं। इनमें ट्रिटोन व मेरीड प्रमुख हैं।

Important Fact About Solar System Planets in Hindi

सूर्य से निकटम ग्रहबुध
पृथ्वी से निकटम ग्रहशुक्र
सर्वाधिक गर्म ग्रहशुक्र
सूर्य से सर्वाधिक दूर स्थित ग्रहवरुण
सबसे बड़ा ग्रहबृहस्पति
सबसे छोटा ग्रहबुध
सर्वाधिक घनत्व वाला ग्रह पृथ्वी
सर्वाधिक चमकीला ग्रहशुक्र
लाल ग्रहमंगल
भोर का ताराशुक्र
शाम का ताराशुक्र
पृथ्वी की जुड़वा ग्रहशुक्र
छलेवाला ग्रहशनि व वरुण
सबसे लंबा वर्ष वाला ग्रहवरूण
सबसे छोटा वर्ष वाला ग्रहबुध
सर्वाधिक तापांतर वाला ग्रहबुध
सर्वाधिक उपग्रहों वाला ग्रहवृहस्पति
हरे रंग का दिखाई देने वाला ग्रहअरुण
धुरी पर सर्वाधिक तीव्र परिभ्रमण गति वाला ग्रहवृहस्पति
न्यूनतम परिभ्रमण गति वाला ग्रहशुक्र

प्लूटो (Pluto)

यम या कुबेर (प्लूटो) की खोज 1930 ई. में क्लाइड टॉम्बैग ने की थी तथा
इसे सौरमंडल (Solar System in Hindi) का नौवाँ एवं सबसे छोटा ग्रह माना गया था परंतु 24 अगस्त, 2006 में चेक गणराज्य के प्राग में हुए इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन (IAU) के सम्मेलन में वैज्ञानिकों ने इससे ग्रह का दर्जा छीन लिया।
सम्मेलन में 75 देशों के 2,500 वैज्ञानिकों ने ग्रहों की नई परिभाषा दी।
वैज्ञानिकों के अनुसार, ऐसा ठोस पिंड जो अपना गुरुत्व करने लायक विशाल हो, गोलाकार हो एवं सूर्य का चक्कर लगाता हो, ग्रहों के श्रेणी में आएगा।
साथ ही, इसकी कक्षा पड़ोसी ग्रह के रास्ते में नहीं होनी चाहिए।
प्लूटो के साथ समस्या यह हुई कि उसकी कक्षा वरुण (नेपच्यून) की कक्षा (ऑरबिट) से ओवरलैप करती है।
सीरीस, शेरॉन (Charon) और इरीस (2003 यूबी-313/जेना) को ग्रह मानने के विचार को भी अस्वीकृत कर दिया।
नई परिभाषा में इन चारों को बौने ग्रह (Dwarf Planet in hindi) का दर्जा दिया गया है। इस प्रकार, अब सौरमंडल (Solar System in Hindi) में मात्र 8 ग्रह रह गए हैं।

नासा द्वारा सौर प्रणाली ( The Solar System) की बाह्य सीमाओं पर अवस्थित ड्वार्फ ग्रह प्लूटो तथा इसके चन्द्रमाओं एवं क्षुद्रग्रह बहुल क्षेत्र
क्विपर बेल्ट के अध्ययन हेतु भेजा गया अंतरिक्ष अन्वेषण यान न्यू होराइजंस जुलाई, 2015 में अपनी यात्रा पूरी कर प्लूटो के निकट पहुँचा।
यह प्लूटो और इसके पाँच चन्द्रमाओं (शेरॉन, हाइड्रा, निक्स, कार्बेरोस एवं स्टाइक्स) का अन्वेषण कर आंकड़े और चित्र पृथ्वी पर सप्रेषित कर रहा है।

उपग्रह (Satellite in hindi)

ये वे आकाशीय पिंड हैं, जो अपने-अपने ग्रहों की परिक्रमा करते हैं तथा अपने ग्रह के साथ-साथ सूर्य (Sun) की भी परिक्रमा करते हैं।
ग्रहों की भाँति इनकी भी अपनी चमक नहीं होती, अतः ये भी सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशित होते हैं।
ग्रहों के समान उपग्रहों का भ्रमण पथ भी परवलयाकार (Parabolic) होता है।
“बुध और शुक्र का कोई उपग्रह नहीं है। सबसे अधिक उपग्रह बृहस्पति के हैं। पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह चन्द्रमा है।

सुपर मून (Super Moon)

चन्द्रमा एवं पृथ्वी के बीच की दूरी औसतन 3,84,000 किमी. है, चूँकि चन्द्रमा परवलयाकार कक्ष में पृथ्वी की परिक्रमा करता है,
इसी कारण पृथ्वी एवं चन्द्रमा के बीच की दूरी बदलती रहती है।
सुपर मून वह स्थिति है जब चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है। इसे पेरिजी फुल मून (Perigee Full Moon) भी कहा जाता है।
इसमें चन्द्रमा 14% ज्यादा बड़ा एवं 30% अधिक चमकीला दिखाई पड़ता है।
27 सितम्बर, 2015 को विश्व के अनेक भागों में सुपर मून चन्द्रग्रहण की परिघटना देखी गई,
जिसमें सुपर मून व चन्द्रग्रहण दोनों घटनाएँ एक साथ घटित हुईं।
ऐसा सन् 1982 के बाद पहली बार हुआ। अब ऐसा संयोग पुनः 25 नवम्बर, 2034 को बनेगा।

ब्लू मून (Blue Moon)

एक कैलेन्डर माह में जब दो पूर्णिमाएँ हों तो दूसरी पूर्णिमा का चाँद ब्लू मून कहलाता है।
इसका नीले रंग से कोई सम्बंध नही है। वस्तुतः इसका मुख्य कारण दो पूर्णिमाओं के बीच के अंतराल का 31 दिनों से कम होना है।
ऐसा हर दो-तीन वर्ष पर होता है। जुलाई, 2015 में ब्लू मून की स्थिति देखी गई।
जनवरी (2 व 31 जनवरी) 2018 में ब्लू मून की स्थिति देखी गई। जब किसी वर्ष विशेष में दो या अधिक माह ब्लू पून के होते हैं, तो उसे ब्लू मून ईयर कहा जाता है।

ब्लड मून (Blood Moon in Hindi)

ब्लड मून क्या है किसे कहते हैं? (What is Blood Moon in Hindi)

पूर्ण चन्द्रग्रहण का पूर्ण छाया पहुँच पाने के 2015 को लगातार चार पूर्ण चन्द्रग्रहणों (Lunar Tetrad) को ब्लड मून (Blood Moon) की संज्ञा दी गई है।
चार टेट्राड भी कहा जाता है।
जब पृथ्वी, चन्द्रमा पर डालती है तब सूर्य का प्रकाश चन्द्रमा तक न कारण पूर्ण चन्द्रग्रहण की स्थिति उत्पन्न होती है।
इस चन्द्रमा का रंग लाल हो जाता है। इसे ही ब्लड मून (Blood Moon) कहा जाता है।
पूर्ण चन्द्रग्रहण दुर्लभ परिघटना है। सामान्यतया तीन चन्द्रग्रहणों में से एक पूर्ण चन्द्रग्रहण की घटना होती है।
किसी स्थान पर एक दशक में चार से पाँच ग्रहण की खगोलीय परिघटना घटित होती है।
पूर्ण चन्द्रग्रहण श्रृंखला का पहला चन्द्रग्रहण 14-15 अप्रैल, 2014 को, दूसरा 7-8 अक्टूबर, 2014 एवं तीसरा 4 अप्रैल, हुआ। 4 अप्रैल, 2015 को सदी का सबसे छोटा पूर्ण चन्द्रग्रहण लगा था।

सुपर ब्लू ब्लड मून 31 जनवरी, 2018 को एशिया में सुपरमून, ब्लू मून और ब्लड मून की खगोलीय घटना एक साथ देखी गयी।
इसलिए इसे सुपर ब्लू ब्लड मून भी कहा जा रहा है।

चन्द्रयान-1

भारत ने 22 अक्टूबर, 2008 को आंध्र प्रदेश के श्री हरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV-C11X) से अपने पहले चन्द्र अभियान चन्द्रयान-1 को रवाना किया।
बंगलुरू में स्थित स्पेस क्राफ्ट कंट्रोल सेंटर (SCC) द्वारा पाँच बार ऊपरी कक्षाओं में स्थानान्तरित किए जाने के बाद
8 नवम्बर, 2008 को चन्द्रयान-1 अपने 5वें और अंतिम चरण के बाद चन्द्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया।
इस प्रकार अमेरिका, यूरोप, रूस, जापान व चीन के बाद भारत चन्द्रमा की कक्षा में पहुँचने वाला छठा देश बन गया।

इस अभियान में भारत द्वारा निर्मित मानव रहित अंतरिक्ष यान मून इम्पैक्ट प्रोब को चन्द्रमा की सतह पर उतारा गया।
चन्द्रयान-1 एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर, मिनियेचर सिंथेटिक एप्रेचर रडार, मून मिनरलोजी मैपर (M-3) आदि कुल 11 अत्याधुनिक उपकरणों से लैस पहला ऐसा उपग्रह है, जिसमें हाई रेजोल्यूशन रिमोट सेंसिंग के जरिए चन्द्रमा की तस्वीरें देखी जा सकेंगी।

यह चन्द्रमा की सतह व वातावरण का संपूर्ण रासायनिक मानचित्रण करेगा तथा
उसके मृदा, खनिज, बर्फ, ऊष्मा, मौसम आदि की जानकारियाँ उपलब्ध कराएगा।
चन्द्रयान-1 ने चन्द्रमा पर बर्फ के होने की जानकारी दी है।
इसने चंद्रमा की भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर 1.2 किमी. लंबी गुफा या लावा ट्यूब की जानकारी भी दी है,
जिसका तापमान हमेशा लगभग -20°C रहता है।
इस प्रकार, यह लावा ट्यूब चन्द्रमा की सतह के तापमान की विषमता एवं गैलेक्टिक कॉस्मिक किरणों से वैज्ञानिकों का बचाव करेंगी।
चन्द्रयान पर नजर रखने के लिए बंगलुरु से 40 किमी. दूर ब्यालालू (Byalalu) में इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क सेंटर की स्थापना की गई है।

चन्द्रयान-2

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने 16 अगस्त, 2009 को चन्द्रयान-2 का भी डिजाइन तैयार कर लिया है।
यह भारत का चन्द्रमा के लिए दूसरा अंतरिक्ष मिशन होगा, जो चन्द्रयान-1 मिशन का उन्नत संस्करण है।
चन्द्रयान-2 मिशन में एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर शामिल होंगे।
इसे स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन वाले जीएसएलवी-एमके ॥ के माध्यम से संयुक्त रूप से
500 किमी. की अर्थ पार्किंग ऑर्बिट (EPO) में प्रक्षेपित किया जाएगा।
चन्द्रयान-2 अभियान का वैज्ञानिक लक्ष्य आर्बिटर पर मौजूद वैज्ञानिक उपकरणों के माध्यम से
चन्द्रमा की उत्पत्ति और विकास के बारे में हमारी समझ को बढ़ाना तथा लैंडर एवं रोवर का उपयोग करते हुए चन्द्रमा के चट्टानों का अध्ययन (सुदूर और प्रत्यक्ष विश्लेषण) करना है।

कृत्रिम उपग्रह (Artificial Satellite in hindi)

कृत्रिम उपग्रह किसे कहते हैं ? (What is Artificial Satellite In Hindi) :-

विभिन्न देशों ने अनेक कृत्रिम उपग्रह भी स्थापित किए हैं, जो पृथ्वी की परिभ्रमण दिशा से साम्यता स्थापित करने के लिए पूर्व की ओर प्रक्षेपित किए जाते हैं।
सामान्यतः दूर-संवेदी उपग्रह ध्रुवीय सूर्य समतुल्य कक्षा (Polar Sun-synchronous Orbit) में 600-1100 किमी. की दूरी पर स्थापित किए जाते हैं।
इन उपग्रहों का परिभ्रमण काल 24 घंटे का होता है।
ये भूमध्यरेखा को एक निश्चित स्थानीय समय पर ही पार करते हैं, जो सामान्यतः प्रात: 9 से 10 बजे होता है।
सुदूर-संवेदी उपग्रहों के द्वारा पृथ्वी के एक परिभ्रमण में सुदूर संवेदन

दूर-संचार उपग्रह भू-स्थैतिक कक्षा (Geo-Stationary Orbit) में 36,000 किमी. की ऊँचाई पर स्थापित किए जाते हैं।
पृथ्वी के घूर्णन काल से मेल खाने के कारण ये स्थिर से प्रतीत होते हैं।
इसी कारण इन्हें भू-स्थैतिक उपग्रह भी कहा है जाता है।
समस्त पृथ्वी को एक साथ कवर करने के लिए न्यूनतम तीन भू-स्थैतिक उपग्रहों की आवश्यकता पड़ती है।

एस्ट्रोसैट

एस्ट्रोसैट भारत को प्रथम समर्पित बहु-तरंगदैर्ध्य अंतरिक्ष वेधशाला (Multi wavelength Space Observatory) है। खगोलीय शोध को समर्पित यह वेधशाला पृथ्वी की निचली निकट भूमध्यरेखीय कक्षा (Low Earth Near Equatorial orbit) में लगभग 650 किमी. की ऊंचाई पर स्थापित की गई है। एस्ट्रोसैट के सफल प्रक्षेपण के साथ भारत अब अमेरिका, रूस, जापान और यूरोपीय संघ के ऐसे विशिष्ट क्लब में शामिल हो गया है, जिन्होंने अपनी अंतरिक्ष वेधशाला स्थापित की है।

उपग्रह वीनस

वीनस (Vegetation and Environment Monitoring on a New Microsatellite) एक माइक्रो उपग्रह हैं, जिसका वजन मात्र 265 किग्रा. है। इस उपग्रह को इजरायली अंतरिक्ष एजेंसी (ISA) तथा फ्रांसीसी अंतरिक्ष एजेंसी (CNES) द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है। वीनस उपग्रह अंतरिक्ष से पृथ्वी की वनस्पतियों की निगरानी करेगा।

उल्काश्म व उल्कापिंड ( Meteorite in hindi)

उल्काश्म व उल्कापिंड किसे कहते हैैं (What are Meteorite in hindi) ?

ये अंतरिक्ष में तीव्र गति से घूमते हुए अत्यन्त सूक्ष्म ब्रह्मांडीय पिण्ड हैं। धूल व गैस से निर्मित ये पिंड जब वायुमंडल में प्रवेश करते हैं तो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण तेजी से पृथ्वी की ओर आते हैं तथा वायुमंडलीय घर्षण से चमकने लगते हैं। इन्हें टूटता हुआ तारा (Shooting Star) भी कहा जाता है। प्राय: ये पृथ्वी पर पहुँचने से पूर्व ही जलकर राख हो जाते हैं, जिन्हें उल्काश्म (Meteors) कहते हैं। परंतु, कुछ पिंड वायुमंडल के घर्षण से पूर्णतः जल नहीं पाते और चट्टानों के रूप में पृथ्वी पर आ गिरते हैं, जिन्हें उल्कापिंड कहा जाता है।

पुच्छल तारे या धूमकेतु (Tail stars or comets)

धूमकेतु किसे कहते हैं :-

ये आकाशीय धूल, बर्फ और हिमानी गैसों के पिंड हैं, जो सूर्य से दूर ठंडे व अंधेरे क्षेत्र में रहते हैं। सूर्य के चारों ओर ये लंबी किन्तु अनियमित या असंकेन्द्रित (Eccentric) कक्षा में घूमते हैं। अपनी कक्षा में घूमते हुए कई वर्षों के पश्चात् जब ये सूर्य के समीप से गुजरते हैं तो गर्म होकर इनसे गैसों की फुहारेंनिकलती हैं, जो एक लंबी चमकीली पूँछ के समान प्रती होती हैं। कभी-कभी ये पूँछ लाखों किमी. लंबी होती है सामान्य अवस्था में पुच्छल तारा (Comets) बिना पूंड की होता है। पुच्छल तारे के शीर्ष को कोमा कहते हैं। लखी अवधि का धूमकेतु 70 से 90 वर्षों के अंतराल में दिखाई पड़ता है। हेली पुच्छलतारा भी इन्हीं में से एक है। यह 76 वर्षों के अंतराल के बाद दिखाई पड़ता है। अंतिम बार यह 1986 ई. में देखा गया था। खगोलशास्त्रियों के अनुसार, सौरमंडल में लगभग 1 लाख धूमकेतु विचरण कर रहे हैं।

क्षुद्र ग्रह या अवान्तर ग्रह (Asteroids in Hindi)

क्षुद्र ग्रह क्या हैं :-

क्षुद्रग्रह, मंगल और बृहस्पति ग्रह के मध्य क्षेत्र में सूर्य की परिक्रमा करने वाले छोटे से लेकर सैकड़ों किमी. आकार के पिंड हैं। इनकी अनुमानित संख्या 40,000 है। इनकी उत्पत्ति ग्रहों के विस्फोट के फलस्वरूप टूटे हुए खंडों से हुई है, यद्यपि इस सम्बंध में कुछ अन्य मत भी दिए गए हैं। जापान के हायाबूसा अंतरिक्ष यान ने हाल ही में इटोकावा नामक क्षुद्रग्रह की मिट्टी के नमूने को पृथ्वी तक भेजने में सफलता हासिल की है।पृथ्वी से क्षुद्र ग्रहों की संभावित टक्कर को रोकने के लिए नासा ने अक्टूबर, 2015 में एस्टेराएड रिडायरेक्शन मिशन की शुरूआत की। इस मिशन के अंतर्गत रोबोट से युक्त एक ऐसे अंतरिक्ष यान का निर्माण किया जाएगा, जो पृथ्वी की ओर आने वाले क्षुद्रग्रहों की दिशा को परिवर्तित करने में सक्षम होगा। नासा ने 12 अप्रैल, 2015 को अंतरिक्ष में स्थित एक क्षुद्रग्रह- 316201 का नाम पाकिस्तान की समाजिक कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई के नाम पर रखा है।