इस लेख में हम स्थितिज ऊर्जा(potential energy) के बारे में पढ़ेंगे तथा जानेंगे की स्थितिज ऊर्जा किसे कहते हैं? स्थितिज ऊर्जा की परिभाषा क्या है, स्थितिज ऊर्जा का मात्रक,स्थितिज ऊर्जा का सूत्र, विमा, उदहारण, अवधारणा इत्यादि के बारे में जानेंगे। What is Potential energy in hindi
स्थितिज ऊर्जा किसे कहते हैं? क्या है?
सामान्य शब्दों में यदि स्थितिज ऊर्जा के बारे में समझा जाए तो स्थितिज ऊर्जा का अर्थ यह है कि किसी वस्तु के स्थिति में परिवर्तन के कारण उत्पन्न ऊर्जा को ही स्थितिज ऊर्जा कहा जाता है।
स्थितिज ऊर्जा की परिभाषा :-
किसी वस्तु की वह ऊर्जा जो उसकी स्थिति अथवा विरूपण के कारण होती है स्थितिज ऊर्जा कहलाती है।
अर्थात जब किसी किसी जलाशय बांध, नदी इत्यादि के स्थिर जल को प्रवाहित कर उस से विद्युत ऊर्जा उत्पन्न की जाती है
तब यह विद्युत ऊर्जा का उत्पादन जल की स्थितिज ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित किया जाता है।
स्थितिज ऊर्जा की परिभाषा :-
“किसी वस्तु या कण की स्थिति में परिवर्तन से उत्पन्न ऊर्जा को स्थितिज ऊर्जा कहते हैं।”
- इसे U से दर्शाया जाता है।
- यह ऋणात्मक एवं धनात्मक हो सकती है।
स्थितिज ऊर्जा का सूत्र एवं मात्रक :-
स्थितिज ऊर्जा का सूत्र (फॉर्मूला) :-
यहां पर स्थितिज ऊर्जा का सूत्र के बारे में बताया गया है।
U = स्थिति में परिवर्तन
स्थितिज ऊर्जा का मात्रक (matrak) :-
कार्य करने की दर या शक्ति ही ऊर्जा ही ऊर्जा होती है। अत कार्य एवं ऊर्जा का मात्रक समान होता है।
स्थितिज ऊर्जा का मात्रक :- जूल (joule)
स्थितिज ऊर्जा के विभिन्न रूप/ प्रकार
सामान्यत प्रकृति में स्थितिज ऊर्जा के भिन्न भिन्न रूप है । उनमें से ही कुछ महत्वपूर्ण रूपो के बारे में अध्ययन करेंगे।
प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा :-
वस्तुओं में जो स्थितिज ऊर्जा प्रत्यास्थता के कारण होती है उसे प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा कहते है।
इसका उदाहरण है घड़ी की कमानी को ऐंठने पर उसमे संचित ऊर्जा। कमानी को ऐंठने पर जो कार्य किया जाता है। वह उसके सामान्य अवस्था में आने पर वापस मिल जाता है।
स्थिर वैधुत्त स्थितिज ऊर्जा क्या है :-
स्थिर वैधुत्त स्थितिज ऊर्जा की परिभाषा :-
दो विद्युत आवेशो के बीच दूरी बढ़ाने व घटाने एवं घटाने के लिए आकर्षण अथवा प्रतिकर्शन बल के विरूद्ध कार्य करना पड़ता है। यह कार्य निकाय में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित होता है, जिसे स्थिर वैधुत्त स्थितिज ऊर्जा कहते है।
रासायनिक स्थितिज ऊर्जा किसे कहते हैं? :-
विभिन्न प्रकार के ईधन जैसे कोयला, मिट्टी का तेल, कुकिंग गैस, अल्कोहल, हाइड्रोजन में ऊर्जा रासायनिक स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित रहती है।
गुरूत्वीय स्थितिज ऊर्जा :-
पृथ्वी से ऊंचाई पर स्थित वस्तुओं में जो स्थितिज ऊर्जा होती है उसे गुरूत्वीय स्थितिज ऊर्जा कहते है। उदाहरण :- ऊंचाई पर स्थित नहर या बांध से एकत्रित जल को नीचे गिरकर कार्य किया जाता है।
स्थितिज ऊर्जा की अभिधारणा :-
निकाय के विन्यास में परिवर्तन निकाय की विन्यास ऊर्जा को बदल देता है। निकाय विन्यास ऊर्जा को ही स्थितिज ऊर्जा कहते है। इसे U द्वारा दर्शाया जाता है।
माना किसी निकाय पर एक संरक्षी बल लगाने पर उसका विन्यास बदल जाता है और इस कारण निकाय की गतिज ऊर्जा ∆K से परिवर्तित हो जाती है। अब संरक्षी बल की परिभाषा से निकाय की विन्यास ऊर्जा अथवा स्थितिज ऊर्जा U भी बराबर तथा विपरीत मात्रा में परिवर्तित होनी चाहिए जिससे कि दोनों परिवर्तनों का योग शून्य हो जाए अर्थात
∆U + ∆K = 0
अत किसी निकाय की गतिज ऊर्जा K में परिवर्तन, निकाय में स्थितिज ऊर्जा U में बराबर तथा विपरीत (ऋणात्मक) परिवर्तन से प्रतिकारित होता है और इस प्रकार गतिज ऊर्जा एवं स्थितिज ऊर्जा का योग नियत रहता है अथवा
K + U = नियतांक …..समी. (1)
स्पष्ट है कि किसी निकाय की स्थितिज ऊर्जा वह संचित ऊर्जा है जो संपूर्ण मात्रा में पुनः प्राप्त होती है और जिसको गतिज ऊर्जा में बदला जा सकता है।
जिस प्रकार बल क्षेत्र द्वारा किया गया कार्य स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तन के तुल्य होता है उसी प्रकार बल क्षेत्र के विरूद्ध किया गया कार्य स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तन के तुल्य होता है।
यहां यह जानना अति आवश्यक है कि असंरक्षी बलो से स्थितिज ऊर्जा की अभिधारणा नहीं की जा सकती है। उदाहरण के लिए घर्षण बल के साथ स्थितिज ऊर्जा की गणना नहीं की जाती है क्योंकि निकाय पर बल लगाने पर, जब वह अपनी पूर्व स्थिति को लौटता है तो उसकी गतिज ऊर्जा का मान प्रारम्भिक गतिज ऊर्जा से भिन्न होता हैं।
अब कार्य ऊर्जा प्रमेय से
W = ∆K
W = ∆K = -∆U
परंतु W =∫Fdx
अत: ∆U = -W
= -∫ Fdx …. समी. (2)
समीकरण (2) से हमको यह ज्ञात होता है कि यदि कोई कण किसी स्थिति x1 से किसी अन्य स्थिति x2 तक संरक्षी बल F के प्रभाव में गति करे तो उसकी स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तन का परिकलन कैसे किया जाता है?
समी. (2) को पुन लिखने पर
F = -dU/dx
यहां F व U दोनों ही x के फलन है।
स्पष्ट है कि संरक्षी बल ऋणात्मक स्थितिज ऊर्जा की दर होता है। यदि विस्थापन केवल X दिशा में हो तो
Fx = dU/dx
अर्थात X दिशा में कार्यकारी बल स्थितिज ऊर्जा के सापेक्ष आंशिक अवकलन के बराबर होता है। इसी प्रकार
Fy = – dU/dy
तथा
Fz = -dU/dz
अत वस्तु पर कार्यकारी बल
ऋणात्मक स्थितिज ऊर्जा :-
ऊर्जा संरक्षण नियम से
कुल ऊर्जा E = K + U = नियतांक
अब क्योंकि गतिज ऊर्जा K = 1/2 mv2 सदैव धनात्मक है।
अत U का मान धनात्मक या ऋणात्मक दोनों ही संभव है। यदि दो कणों के बीच की दूरी अनंत हो तथा उनकी इस स्थिति में स्थितिज ऊर्जा के मान को शून्य जाए तो कण को पास लाने पर स्थितिज ऊर्जा शून्य मान में बदल जाएगी । यदि कणों के मध्य प्रतीकर्षण बल कार्य करता है। तो कण को पास लाने में निकाय पर प्रतिकर्षण बल के विरूद्ध कार्य करना होगा अर्थात कण को पास लाने में U का मान्य शून्य से बढ़ेगा। अत U धनात्मक होगा। इसके विपरित यदि कणों के मध्य आकर्षण बल कार्य करता है तो कणों के पास आने पर निकाय द्वारा किया गया कार्य किया जाएगा । अत स्थितिज ऊर्जा घटेगी अथवा इसका मान शून्य से भी कम हो जाएगा। इस प्रकार U का मान ऋणात्मक (U<0) होगा। इसको चित्र के माध्यम से नीचे समझाया गया है।
अत किन्हीं दो पिंडो के बीच की दूरी r तथा स्थितिज ऊर्जा U के मध्य ग्राफ से बल क्षेत्र की प्रकृति का ज्ञान होता है।
वक्र के उन भागो जहां दो पिंडो के मध्य दूरी घटने पर स्थितिज ऊर्जा का मान बढ़ता है, में प्रतिकर्षण बल कार्य करता है। इसके विपरित जहां दूरी घटने पर स्थितीज ऊर्जा का मान घटता है। वहा आकर्षण बल कार्य करता है। वक्र के किसी बिंदु पर भी बल की प्रकृति का मान उस स्थान पर स्पर्श रेखा खींचकर भी प्राप्त किया जा सकता है। यदि स्पर्श रेखा X अक्ष के साथ न्यून कोण बनाती है तो आकर्षण बल कार्य करेगा। यदि x अक्ष से बना कोण अधिक कोण है तो वहा पर प्रतिकर्षण बल कार्य करेगा। यदि कोण का मान शून्य है तो अर्थात वहा स्पर्श रेखा X अक्ष के समानांतर हैं तो बल का मान शून्य होगा। ध्यान रहे कि कोण सदैव वामावर्त दिशा में X अक्ष व स्पर्श रेखा के मध्य नापते है।
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महत्वपूर्ण प्रश्न
उदाहरण (1) :- किसी निकाय की स्थितिज ऊर्जा में वृद्धि होगी, यदि इस निकाय पर कार्य किया जाए
- किसी संरक्षित अथवा असंरक्षित बल द्वारा
- एक असंरक्षित बल द्वारा
- एक संरक्षित बल द्वारा
- उपयुक्त में से कोई नहीं
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