मानव रक्त परिसंचरण तंत्र क्या होता हैं? परिभाषा Blood Circulatory system in hindi

नमस्कार पाठको आज हम इस लेख में मानव रक्त परिसंचरण तंत्र क्या होता हैं? परिभाषा Blood Circulatory system in hindi के विषय में पढ़ेंगे। यहां आपको मानव रक्त परिसंचरण तंत्र के कार्य, अंग एंव अन्य जानकारी दी गयी हैं।

मानव रक्त परिसंचरण तंत्र का अर्थ

परि – चारों ओर

संचरण = पदार्थों की गति

–  डॉ. विलियम हार्वे ने मानव परिसंचरण तंत्र के बारे में विस्तृत रुप से बताया था।

मानव रक्त परिसंचरण तंत्र किसे कहते हैं?

परिसंचरण तंत्र की परिभाषा :- जीवों में पाया जाने वाला वह तंत्र/सिस्टम, जिसके द्वारा विभिन्न पोषक पदार्थों/Nutrients, उत्सर्जी पदार्थों/Excretory products, गैसों, हॉर्मोन्स, एंजाइम्स आदि का परिवहन (Transportation) किया जाता है, परिसंचरण तंत्र कहलाता है।

जंतुओं में परिसंचरण तंत्र के प्रकार : –

जंतुओं में परिसंचरण तंत्र 2 प्रकार के हैं –

(i)  खुला परिसंचरण तंत्र (Open circulatory system)

(ii) बंद परिसंचरण तंत्र (Closed circulatory system)

खुला परिसंचरण तंत्र(Open circulatory system)बंद परिसंचरण तंत्र(Closed circulatory system)
इसमें हृदय से निकल कर रक्त सीधे शरीर के विभिन्न भागों (साईनस) में पहुँच जाता है।उदाहरण – अकशेरुकी प्राणी (Invertebrates), कीट वर्ग के सदस्य, स्टार फिश, चपटे कृमि, एस्केरिस आदिइसमें रक्त बंद नलिकाओं (closed vessels) में प्रवाहित होकर विभिन्न अंगों तक पहुँचता है।उदाहरण- कशेरुकी प्राणी (Vertebrates), मत्स्य वर्ग, उभयचर/Amphibians, सरीसृप/Reptiles, पक्षी/Aves तथा स्तनधारी/Mammalsएनेलिडा वर्ग के सदस्य  (केंचुआ/Earthworm) अकशेरुकी हैं, लेकिन इनमें बंद परिसंचरण तंत्र पाया जाता है।

दोहरा परिसंचरण तंत्र (Double Circulatory System)

  • 2 आलिंद (Atrium)
  • 2 निलय (Ventricle)
  • 4 कोष्ठीय हृदय (सबसे विकसित हृदय) :- स्तनधारी/Mammals, पक्षी/Aves, मगरमच्छ/Crocodile(अपवाद/Exception)
  • मत्स्य वर्ग में 2 कोष्ठीय हृदय पाया जाता है।
  • 2 कोष्ठीय (मत्स्य वर्ग/Pisces) हृदय/2 chembered heart

एक परिसंचरण तंत्र/Single Circulatory system

  • 3 कोष्ठीय हृदय – उभयचर/Amphibians उदाहरण – मेंढक

अपूर्ण दोहरा परिसंचरण तंत्र

  • 3 कोष्ठीय हृदय – सरीसृप। उदाहरण – साँप, छिपकली आदि।

मानव रक्त परिसंचरण तंत्र के अंग

1. मानव हृदय (Heart)
2. रक्त (Blood)
3. रक्त नलिकाएं (Bloods vessels)
4. लसिका तंत्र (Lymphatic system) 

हृदय (Heart)

रक्त परिसंचरण तंत्र का चित्र

manav rakt parisanchrn
रक्त परिसंचरण तंत्र का चित्र हृदय (Heart)

मानव हृदय पेशियों का बना अंग है, जो कि वक्ष गुहा में मीडीस्टाईनम अवकाश में बाएँ फेफड़ों की ओर स्थित होता हैं।

मानव का हृदय गुलाबी रंग का शंक्वाकार, खोखला व स्पन्दनशील होता है, जो फेफड़ों के बीच कुछ बाईं ओर होता है।

मानव का हृदय बंद मुठ्ठी के आकार का होता है।

यह एक दोहरी झिल्ली पेरी कार्डियम से घिरा रहता है।

मनुष्य में हृदय का वजन 250-350g.m. होता है।

मनुष्य में हृदय का वजन महिलाओं की तुलना में पुरुषों का अधिक होता है।

हृदय की संरचना एवं कार्यिकी के अध्ययन की शाखा को हृदय विज्ञान (Cardiology) कहते है।

हृदय का कार्य रक्त को पम्प करते हुए वि भिन्न अंगो तक पहुँचाना है।

मानव हृदय में 4 कोष्ठ (दो आलिन्द व दो निलय) होते है।

(i) दायाँ आलिन्द –

यह सबसे बड़ा कोष्ठ है।

यह इनकी दीवारें पतली होती हैं।

यह सम्पूर्ण शरीर से विऑक्सीजनित रक्त निम्न 3 नलिकाओं से प्राप्त करता है-

अग्र महाशिरा

पश्च महाशिरा

कोरोनरी साइनस

दाएँ आलिन्द से विऑक्सीजनित रक्त त्रिवलनी कपाट से होता हुआ दाएँ निलय में पहुँचता है।

(ii) दायाँ निलय –

मोटी भित्ति एवं कम आयतन वाला कोष्ठ जो दाएँ आलिन्द से अशुद्ध रक्त प्राप्त करता है।

यहाँ से अशुद्ध रक्त पल्मोनरी धमनी के द्वारा फेफड़ों तक पहुँचता है, जहाँ इसका ऑक्सीजनीकरण होता है।

(iii) बायाँ आलिन्द –

ये पल्मोनरी शिराओं के द्वारा फेफड़ों से ऑक्सीजनित रक्त प्राप्त करता है।

यहाँ से ऑक्सीजनित रक्त द्विवलनी / मिट्रल कपाट से होता हुआ बाएँ निलय में पहुँचता है।

(iv) बायाँ निलय –

यह सबसे मोटी भित्ति वाला तथा सबसे कम आयतन वाला कोष्ठ है।

यहाँ संकुचन के समय रक्त को दबाव के साथ पूरे शरीर में महाधमनी के द्वारा पम्प किया जाता है।

पल्मोनरी धमनी व महाधमनी के सिरों पर अर्धचन्द्राकार कपाट पाए जाते हैं।

दाएँ आलिन्द व दाएँ निलय के बीच त्रिवलनी तथा बाएँ आलिन्द व बाएँ निलय के बीच द्विवलनी कपाट पाए जाते हैं, जिसे मिट्रल कपाट भी कहते हैं।

हृदय धड़कन

हृदय का धड़कना एक अनैच्छिक क्रिया है।

इसका नियमन मेडूला ऑब्लागेटा में स्थित कार्डियक सेंटर से होता है।

यहाँ से हृदय धड़कन के संदेश तंत्रिकाओं द्वारा दाएँ आलिन्द में पहुँचते हैं।

एक स्वस्थ मनुष्य का हृदय 72 बार प्रति मिनट की दर से धड़कता है। लेकिन कठोर परिश्रम के समय एक मजदूर का हृदय 180 बार प्रति मिनट तक धड़क सकता है।

हृदय धड़कन पर तंत्रिकीय नियंत्रण के अलावा हॉर्मोन्स का प्रभाव भी पड़ता है, जो निम्न है-

एड्रीनलीन हॉर्मोन्स जो आपातकालीन परिस्थितियों में हृदय धड़कन को बढ़ाता है।

नॉर एड्रीनलीन हॉर्मोन्स जो सामान्य परिस्थितियों में हृदय धड़कन को बढ़ाता है।

थायरॉक्सिन हॉर्मोन्स उपापचयी क्रियाओं को बढ़ाकर हृदय धड़कन को बढ़ाता है।

हृदय धड़कन का नियंत्रण हृदय संकुचन की दर के द्वारा होता है।

शिरा आलिन्द पर्व (Sino-Atrial node) SA नोड द्वारा हृदय लयबद्ध संकुचन होता है, जिसे पेसमेकर कहते है।

इसे नोड ऑफ की कीथी फ्लेक भी कहते है।

Atrio-Ventcricular Node (आलिन्द निलय पर्व)

इसे पेससेटर कहा जाता है।

इसे नोड ऑफ एरकॉक ट्वारा भी कहते हैं ।

हृदय ध्वनियाँ –

हृदय धड़कन के समय कपाट बंद होने पर हृदय ध्वनियाँ सुनाई दी जाती है।

प्रथम हृदय ध्वनि –

निलय संकुचन के समय त्रिवलनी एवं द्विवलनी कपाट के बंद होने पर उत्पन्न होती है।

यह lubb के रूप में सुनाई देती है।

यह 0.15 सेकण्ड तक सुनाई देती है, जो धीमी होती है।

द्वितीय हृदय ध्वनि –

निलय संकुचन पूर्ण हो जाने पर अर्धचन्द्राकार कपाटों के बंद होने पर उत्पन्न होती है।

यह DUB के रूप में 0.1 सेकण्ड तक सुनाई देती है।

यह तीव्र होती है।

इन्हीं ध्वनियों को स्टैथोस्कोप से सुनकर डॉक्टर स्पन्दन की जाँच करते है।

Every Day science –

मानव हृदय का सबसे मोटा भाग बाएँ निलय की दीवार होती है।

मादा की धड़कन लगभग 78 बार प्रति मिनट तथा नर की लगभग 70 बार प्रति मिनट होती है।

हृदय के कपाट एक दिन में लगभग 1 लाख बार खुलते व बंद होते है।

बायाँ आलिन्द 75% रुधिर को बिना बल लगाए बाएँ निलय में पम्प करता है। अत: किसी व्यक्ति के बाएँ आलिन्द में या मिट्रल कपाट में कमी हो तो भी वह व्यक्ति सामान्य जीवित रह सकता है।

रुधिर दाब –

जब निलय अपने आंकुचन द्वारा धमनियों में रुधिर पम्प करते हैं, तो रुधिर का दाब धमनियों की दीवार पर पड़ता है, इसी दाब को रुधिर दाब कहते है।

स्वस्थ मनुष्य में संकुचन दाब (Systol) 120mmHg तथा आंकुचन (प्रसरण&Diastol) दाब 80mmHg होता है।

रक्त दाब को स्फिग्नोमैनोमीटर द्वारा मापा जाता है।

E.C.G. (इलेक्ट्रोकाड्रियोग्राफी)

इसकी खोज ‘एंथोवेन’ नामक वैज्ञानिक ने की थी, इसलिए इन्हें 1924 में नोबेल पुरस्कार मिला।

E.C.G. को सर्वप्रथम ‘वॉलेर’ ने रिकॉर्ड किया।

हृदय की क्रियाविधि की जाँच के लिए E.C.G. का प्रयोग किया जाता है।

ECG में हृदय धड़कन के दौरान उत्पन्न तरंगों को आरेख के रूप में दर्शाया जाता है।

Daily Science –

वयस्क मनुष्य का हृदय 1 मिनट में 72 बार धड़कता है।

प्रत्येक धड़कन के साथ लगभग 70-72 ml रक्त को पंप किया जाता है अर्थात् 1 मिनट में 72 × 70 ml लगभग पूरा रक्त एक बार पंप कर दिया जाता है।

रक्त (Blood)

यह एक तरल संयोजी ऊतक है, जिसका संपूर्ण बाह्य कोशिकीय तरल का 30-32% होता है।

वयस्क मानव में रक्त का आयतन 5 से 5.5 लीटर होता है।

रक्त की pH लगभग 7.4 होती है।

रक्त लाल रंग का हल्का क्षारीय होता है।

रक्त के संघटन में निम्न शामिल है –

(a) तरल भाग (प्लाज्मा) 55%

(b) ठोस (कणिकीय भाग) 45%

I. तरल भाग (Plasma)

– इसमें अधिकांश मात्रा जल की होती है, जो 90-92% होती है तथा 8-10% मात्रा में अन्य पदार्थ होते हैं।

– 6-8% प्लाज्मा प्रोटीन पायी जाती है, जिसमें एल्ब्यूमिन, ग्लोब्यूलिन, फाइब्रिनोजन आदि प्रमुख है।

– इसमें गैसें घुलित अवस्था में O2 व CO2 पायी जाती है।

– इसमें पोषक पदार्थ के रूप में वसीय अम्ल, ग्लिसरॉल, ग्लूकोज, अमीनो अम्ल पाए जाते हैं।

– तरल/प्लाज्मा में N2 युक्त अपशिष्ट पदार्थ पाए जाते हैं।

– इसके अतिरिक्त हॉर्मोन्स, एन्जाइम्स, प्रतिस्कंदक पदार्थ, स्कंदन कारक, एंटीबॉडीज पाए जाते हैं।

सीरम (Serum) –

– रुधिर के थक्के हेतु कारक भी प्लाज्मा में पाए जाते हैं, इन कारकों को स्कंदक कारक कहते हैं।

– स्कंदक कारक रहित प्लाज्मा को सीरम कहते हैं।

Important Fact –

– प्लाज्मा में उपस्थित प्रोटीन प्लाज्मा को गाढ़ापन (Viscosity) देते हैं। यही प्रोटीन मानव रक्त की श्यानता का कारण है।

रक्त प्लाज्मा के कार्य –

1. यह हल्के पीले रंग का क्षारीय तरल है, जो कि प्रतिरक्षा में सहायक है।

2. ताप नियमन

3. शरीर में जल संतुलन

4. pH को नियमित बनाए रखना (क्योंकि रक्त प्लाज्मा में बफर पदार्थ उपस्थित होता है।)

5. फाइब्रिनोजन रक्त में सहायता ग्लोब्यूलिन प्रतिरक्षी तंत्र तथा एल्ब्यूमिन परासरण संतुलन बनाए रखना।

II. ठोस (कणिकीय) भाग

(a) RBC

(b) WBC

(c) प्लेटलेट्स

रक्त समूह, उपस्थित एंटीजन एवं एंडीबॉडी

रक्त समूह, उपस्थित एंटीजन एवं एंडीबॉडी
रक्त समूहउपस्थित एंटीजनउपस्थित एंटीबॉडी
AAb
BBa
ABABएंडीबॉडी अनुपस्थित
ORBC पर एंटीजन अनुपस्थितप्लाज्मा में a व b दोनों एंटीबॉडीज पायी जाती है।

रक्त वहिनिया (Blood Vessels)-

  • बंद परिसंचरण तंत्र वाले जन्तुओं में रक्त का प्रवाह बंद नलिकाओं में होता है, जिसे रक्त वाहिनियाँ कहते है।
  • रक्त वाहिनियाँ तीन प्रकार की होती है-

(1) धमनी

(2) शिराएँ

(3) कोशिकाए

(1) धमनी-(Arterial)

  • ये रक्त वाहिनियाँ हृदय से विभिन्न अंगों तक रक्त को ले जाती है।
  • ये मोटी दीवारों वाली रक्त वाहिनियाँ होती है।
  • इन रक्त वाहनियों में ऑक्सीजनित रक्त होता है।
  • इसमें कपाट अनुपस्थित होते हैं।

अपवाद-  केवल फुफ्फुसीय (Pulmonary) धमनी इसका अपवाद है, क्योंकि यह हृदय से विऑक्सी जनित रक्त को शुद्धिकरण के लिए फेफड़ों में ले जाती है।

(2) शिराएँ (Veins)

  • ये विभिन्न अंगों से रक्त को हृदय तक लेकर जाती है।
  • ये पतली दीवारों वाली रक्त वाहिनियाँ होती है।
  • इन रक्त वाहिनियों में विऑक्सी जनित रक्त होता है।
  • इसमें कपाट उपस्थित होते हैं।

अपवाद- केवल फुफ्फुसीय (Pulmonary) शिराएँ इसका अपवाद है, क्योंकि यह फेफड़ों में (ऑक्सीजनित रक्त) को हृदय में ले जाती है।

(3) केशिकाएँ (Capillaries)

  • ये अत्यन्त पतली रक्त नलिकाएँ हैं, जो विभिन्न अंगों में प्रवेश कर कई शाखाओं में बँट जाती है।
  • ये केशिकाएँ धमनियों एवं शिराओं को जोड़ने का भी कार्य करती है।
  • इसकी पतली दीवारों में अपशिष्ट पोषक पदार्थों, Co2 तथा O2 का विनिमय होता है।
  • लसिका तंत्र (Lumphatic System)

   मनुष्य के लसिका तंत्र में लसिका (lymph), लसिका कोशिकाएँ, लसिका वाहिनियाँ, लसिका ग्रंथियाँ सम्मिलित हैं।

लसिका(Lymph)

  • यह रक्त एवं कोशिकाओं के बीच मध्यस्थ का कार्य करता है।
  • ये रंगहीन तरल दृश्य, जिसमें WBC उपस्थित हो सकती है।
  • इसका रासायनिक संघटन ऊत्तक द्रव्य के समान होता है लेकिन इसमें O2 व पोषक पदार्थों की कमी तथा उत्सर्जी पदार्थों व Co2 की अधिकता होती है।

लसिका के कार्य-

(i) यह पोषक तत्त्वों तथा हॉर्मोन्स का वाहक है।

(ii) ECF के पुर्नजनन में सहायक है।

(iii) आँत के रसांकुर के लेक्टेल्स में लसीका द्वारा वसा का अवशोषण

(iv) ऊतक कोशिकाओं को नम बनाए रखना।

(v) लसिका गाँठ द्वारा B कोशिका व T-कोशिका का परिपक्वन

लसिका कोशिकाएँ-

–  ये पतली नलिकायें जिसमें लसिका पाया जाता है।

–  छोटी आँत में रसांकुरों के बीच पाई जाने वाली ऐसी कोशिकाएँ लेक्टियेल्स (Lacteales) (वसा अवशोषण) कहलाती है।

लसिका वाहिनियाँ-

–  लसिका कोशिकाएँ लसिका को बड़े आकार की लसिका वाहिनियों में पहुँचाती है।

लसिका ग्रंथियाँ-

  • लसिका ग्रंथियों में T-लिम्फोसाइट्स व B-लिम्फोसाइट्स का निर्माण होता है।
  • T- लिम्फोसाइट्स बाहरी पदार्थों पर आक्रमण कोशिकाओं के रुप में कार्य करती है।
  • B-लिम्फोसाइट्स एंटीबॉडीज के निर्माण को प्रेरित करती है।

प्लीहा-(Spleen)

– ये एंटीजन्स का भक्षण करती है।

– इसे RBC का कब्रिस्तान कहते हैं।

– इसे Blood Bank of Body कहते हैं।

– भ्रूण में यह RBC के निर्माण में सहायक है।

परिसंचरण तंत्र से संबंधित रोग-

(1) उच्च रुधिर दाब (hyper tension)-

इसमें रुधिर दाब 140 MmHg/90 MmHg से अधिक हो जाता है।

यह हृदय, मस्तिष्क, वृक्क तथा आँखों को आद्यात पहुँचाता है।

(2) हृदयघात (Heart Attack)-

हृदय पेशियों को O2 न मिलने से हृदयघात होता है, जिसमें हृदय में दर्द, साँस लेने में परेशानी, उल्टी होती है।

(3) निम्न रुधिर दाब (Hypotension)-

रुधिर दाब में कमी।

(4) हृदयपात (Heart failure)-

हृदय द्वारा उचित मात्रा में रुधिर के स्पंदन ना होने पर हृदयापात होता है।

यह निलय के प्रभावित होने से ज्यादा होता है।

(5) हृदयशूल (Angina Pectories)-

हृदय पेशियों को O2 ना मिलने से छाती में दर्द होता है।

(6) पूर्ण हृद्रोध(Cardiaet Arrest)-

इसमें हृदय घड़कना बंद हो जाता है।

  NOTE-

  • रेडियल धमनी में नाड़ी दर (Pulse Rate) तथा ब्रेकियल धमनी में रक्तदाब(Blood Pressure) नापते हैं।
  • हृदय धड़कन का असामान्य रूप से तेज होना टेकीकार्डिया तथा धीमा होना ब्रेडीकार्डिया कहलाता है।

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मानव रक्त परिसंचरण तंत्र से सम्बंधित FaQ

रक्त परिसंचरण कैसे होता है?

इनमें पहला है हृदय, जो शरीर के विभिन्न भागों में ऑक्सीजन युक्त रक्त पंप करता है। दूसरा, धमनियां, जो हृदय से विभिन्न अंगों में रक्त पहुंचाती हैं, और तीसरा अंग है शिरा, जो विभिन्न अंगों से ऑक्सीजन रहित रक्त एकत्र करती हैं और इसे वापस हृदय की ओर भेजती हैं।

रक्त परिसंचरण तंत्र कितने प्रकार के होते हैं?

(i)  खुला परिसंचरण तंत्र (Open circulatory system)
(ii) बंद परिसंचरण तंत्र (Closed circulatory system)

शुद्ध रक्त कहाँ पाया जाता है?

वृक्क 

रक्त परिसंचरण तंत्र की खोज किसने की थी?

डॉ. विलियम हार्वे ने मानव परिसंचरण तंत्र के बारे में विस्तृत रुप से बताया था।

परिसंचरण तंत्र के कार्य

रक्त का प्रवाह

नमस्कार मेरा नाम मानवेन्द्र है। मैं वर्तमान में Pathatu प्लेटफार्म पर लेखन और शिक्षण का कार्य करता हूँ। मैंने विज्ञान संकाय से स्नातक किया है और वर्तमान में राजस्थान यूनिवर्सिटी से भौतिक विज्ञान विषय में स्नात्तकोत्तर कर रहा हूँ। लेखन और शिक्षण में दिसलचस्पी होने कारण मैंने यहाँ कुछ जानकारी उपलब्ध करवाई हैं।

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